For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

August 2013 Blog Posts (253)

मेरे दिल को न चैन आयेगा

मेरे दिल को न चैन आयेगा,

उम्र सारी मलाल आयेगा।



नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,

बस अँधेरा करीब आयेगा।



आसमाँ पर है सूरज अगर,

चाँद कैसे भला आयेगा।



बददुआयें वो देने लगे,

अब मुकद्दर क़हर ढायेगा।



हमनशीं बन गया एक फिर,

देखें कब तक निभा पायेगा।



मुझसे लेता रहा उल्फतें,

तोहमतें वो जो दे जायेगा।



अलविदा ज़िन्दगी को कहें,

जाके तब कुछ क़रार आयेगा।



वो जो सीने से लगते थे अब,

पीठ पर उनका वार… Continue

Added by इमरान खान on August 16, 2013 at 11:55am — 19 Comments

ख्वाबों की परिधि

ख्वाबों की परिधि मे

आलते का इकरार सुनाई देता है

मौन रहती उस मृगनयनी के

आँखों से झंकार सुनाई देता है

कोतूहल के इस कोहरे मे

कस्तुरी संस्कार सुनाई देता है

सम्बोधन के अरुनिम मे

रुनझुन करता गान सुनाई देता है

हृदय के स्निग्ध लबों से

तरुवर का व्याख्यान सुनाई देता है

कोकिला के कुहुक मे

सम्बन्धों मे आन सुनाई देता है

बच्चे की किलकारी मे

माँ के गर्वित मन का भान सुनाई देता है

शिक्षक के सहपाठी बनने मे

विस्तृत होता…

Continue

Added by एल गुनेश्वर राव on August 16, 2013 at 11:17am — 10 Comments

आज़ादी

तिरंगे को लहराता देख

लगता है

हम आज़ाद हैं

 

आज़ादी सापेक्ष होती है

 

आज़ाद हैं अंग्रेजों से

 

जिंदगी तो अब भी वैसी ही है

वही साँसें

वही चीथड़े

वहीं चाँद

टूटता तारा

वही कुआँ खोदना

फटी जेबें

वही बिवाइयाँ।

 

कहाँ बदला कुछ

राजाओं के रंग बदल गये

भाषा वही है

 

सत्ता का चेहरा बदलता है

चरित्र नहीं

आजादी का मतलब

निरंकुशता की समाप्ति तो…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 7:00am — 18 Comments

निरर्थक - (रवि प्रकाश)

मरियल गाय सी

आँगन में खड़ी धूप में,

पर-कुतरी चिड़िया की तरह

मुँह के बल लाचार हवा गिरती है,

आधी टूटी अगरबत्ती से सरकते

बेजान धुँए की लकीरों से

ज़बरदस्ती दबाए गए

बीड़ी और शराब के भभके,

बालिश्त भर के रसोईघर में

धुँए से झाँकती दो-चार लपटों पर

निहत्थे तवे की छाती से चिपकी

काली चौकोर रोटी,

पीतल की पुरानी हँडिया

टूटे नल से रिसते पानी को

सँजोने की नाकाम कोशिश में

अक्सर घबड़ा जाती है।

दीवारों की उभरी पसलियों पर

मुँह फुलाए… Continue

Added by Ravi Prakash on August 15, 2013 at 10:18pm — 7 Comments

ग़ज़ल / आज़ादी

अपनी इस ग़ज़ल के साथ सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूँ

आये लौट आज़ादी आज अपनी जवानी में ।

के फहरा दो तिरंगा फिर हवाओं की रवानी में ।

उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,

गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।

हिमालय की पनाहों में शहीदों को सलामी दे ,

कोई तो गीत गूँजेगा आज गंगा के पानी में ।

बनायें उनके सपनों का चलो आज़ाद भारत हम ,

जिन्होंने ख्वाब देखा था ये अपनी जिंदगानी में ।

आँखों…

Continue

Added by Neeraj Nishchal on August 15, 2013 at 2:00pm — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गुमशुदा खुशियां कहां रहने लगी है आज छुप कर

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर

***************************************

दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना

क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे

जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 8:00am — 33 Comments

खनखनाता रुपैया मेरे देश का --

मेरे आजाद देश की  

बेहतरीन खिलाडी

बिना डोपिंग परिक्षण के, 

महंगाई हो गई है

दौड़ती है सबसे आगे

तेज धावक की तरह

मारती है सबसे ऊँची

छलांग

पहुंचना चाहती है

सबसे पहले  

बाहरवें आसमान|

और रुपया बेचारा

मुंह उतारे

लुढ़क रहा है नीचे नीचे

अपना ही बाजार सौतेला हो गया जिसके लिए

जैसे इस मंडी से नाराज  

वह मुंह छुपाना चाहता हो

प्रचलन से बाहर किसी तरह से

निकल आना चाहता हो

वह…

Continue

Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 15, 2013 at 6:00am — 13 Comments

कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है

बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर

उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर

ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया

अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया

उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया

किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया

इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?

शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल। 

रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है

भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है 

कभी कभी मुझको लगता है, भारत…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 14, 2013 at 9:46pm — 8 Comments

जन गण मन के अधिनायक

कौन हो तुम ?

जन गण मन के अधिनायक.

कहाँ रहते हो ?

मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ.

बरसों से हूँ मैं तुम्हारी खोज में,

तुम शून्य हो या हो सर्वव्यापी,

ईश्वर की तरह .

कौन हो तुम ?

तुम भारत भूमि तो नहीं ,

भारत तो माता है,

माता कभी अधिनायक तो नहीं होती .

तुम हो भारत भाग्य विधाता .

फिर बदला क्यों नहीं भारत का भाग्य.

भारत के भाग्य का ऐसा क्यों लिखा विधान.

कैसे विधाता हो ?

तुम्हारा स्वरुप तुम्हारी…

Continue

Added by Neeraj Neer on August 14, 2013 at 9:11pm — 13 Comments

अनेकता में एकता --अपना भारत

अनेकता में एकता --अपना भारत

प्रिय दोस्तों और  ..मेरे नन्हे मुन्ने मित्रों आप सब को भ्रमर की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ...

 

मेरा भारत महान है , हम सब की शान है अपनी जान हैं  गौरव है यह एक  शब्द नहीं है अपितु हर भारतवासी  के दिल की धड़कन  है। ये अपनी पहचान है। हम इस पवित्र भूमि में पैदा हुए हैं। हमारे लिए यह उतना  ही  महत्त्वपूर्ण है जितना कि हमारे माता-पिता हम सब के लिए । भारत केवल  एक भू-भाग का नाम नहीं है बल्कि  यह हो इस  भू-भाग में बसे लोगों, उसकी…

Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 14, 2013 at 8:30pm — 6 Comments

भाई बहन के प्यार का प्रतीक है रक्षाबंधन ( लेख - कुछ अदृष्ट्य तथ्य )

मनुष्य स्वभावतः उत्सव प्रिय एवं प्रकृति प्रेमी है । ग्रीष्म ऋतु के अवसान के पश्चात जब आषाढ़ और सावन आकाश मे काले काले घुमड़ते बादल झमझमाती बारिश लेकर आते है तब शुष्क और तपती हुई धरा धीरे धीरे तृप्त होती जाती है । सावन का महीना लगते ही हरियाली हरियाली ही दिखाई देती है । इस ऋतु परिवर्तन पर प्रकृति की मन भावन सुषमा एवं सुंदर परिवेश को पाकर मानव मन आन्नादित हो उठता है और ऋतुओं के अनुसार पर्व एवं त्योहार भी आरंभ हो जाते है । सावन के महीने मे ही तीज , नागपंचमी और सावन का अंत श्रावणी पूर्णिमा यानि…

Continue

Added by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 7:30pm — 1 Comment

मेरे वतन

मेरे वतन

------------

देश खड़ा चौराहे पर

मुखिया करते हैं मक्कर

घर घुस हमको मार रहे

प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर

सांझ सवेरे युगल गीत सुन

कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा

मत टोक मुझे मत रोक मुझे

अंगार ह्रदय में दहक रहा

पिया दूध माँ तेरा हमने

अमृत, वो नही था पानी

आकर तुझको आँख दिखाये

जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी

नभ में तिरंगा फहरेगा

माँ न कर तू दिल मे मलाल

भले शीश गिरे धरती पर

धरा रक्त से हो जाय लाल …

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 14, 2013 at 6:44pm — 7 Comments

कागज़ी आज़ादी

एक बार फिर दिल से, गुस्ताखी माफ़ अगर लगे दिल पे 

 .

आज कल हर कोई  स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगा है, ऐसे में मेरे मन में कुछ विचार आये है ... जो शायद  क्रांति नहीं ला सकते और न ही उनमे कोई बोद्धिकता है | फिर भी लिख रहा हूँ और आप सबके साथ साँझा कर रहा हूँ ....

 .

बात तब की है, जब मैं बचपने की गोद में खेला करता था, दूरदर्शन पर  स्वतंत्रता दिवस के दिन मनोज कुमार की शहीद दिखाई गयी, फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मुझे भारत माँ के  सबसे महान और वीर बेटे  भगत सिंह ही नज़र आने…

Continue

Added by Sumit Naithani on August 14, 2013 at 6:00pm — 12 Comments

सदा देश है प्यारा |

सार छंद | १६-१२ पर यति , अंत दो गुरु |

 

पवन वेग से दीप बचाना, छा ना जाये अंधेरा | 
बढ़ते जाओ चढ़ते जाओ, तोड़ो यम का  डेरा |  …
Continue

Added by Shyam Narain Verma on August 14, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

कुछ स्वतंत्र लाइनें

आगे बढ़ती भारत माँ के, पैरों में चुभ रहे काँटे !

आओ हम मिल कर उसके, एक एक दर्द को बाँटे !



समता, करूणा, वैभवशाली, भारत माँ की शान निराली !

धर्म ,प्रांत , जाति में बँटकर, हमने इसकी आभा बिगाड़ी !



जिस किसी ने भारत माँ पर, बुरी निगाह गड़ाई है ।

हमारे सपूतों ने हिम्मत से, उन्हें गर्त दिखाई है।



हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, इन नामों को बदलो भाई।

हम सब तो बस बन्दे है, इस झंझट में क्यूं पड़ते हैं।



कोई ना रहेगा पराया तब, सब अपने बन जायेंगे…

Continue

Added by D P Mathur on August 14, 2013 at 12:00pm — 11 Comments

संस्कार (लघुकथा )

संस्कार 
********
महीमा जी पर बहू  को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय में चल रहा था . 
आज एक महत्वपूर्ण गवाही थी . 
श्रीमती उषाकिरण ने अपनी गवाही में बताया -
महीमा जी मेरी बहू  की माँ है और मै अपनी बहू  को बेटी की तरह रखती हूँ . 
इनकी बेटी भी मुझे माँ से कहीं बढ़कर स्नेह देती  है. 
जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार 
बना सकती है !!!!
बातों में…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on August 13, 2013 at 11:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल : न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

--------

न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

 

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

 

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा

ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

 

चुने जिसको, सहे उसके…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 13, 2013 at 11:00pm — 40 Comments

!!! बृज की बाला श्याम पुकारे !!!

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।

सावन है मन भावन अब तो,आजा मन के चोर।

बदरा बरसे रिमझिम हरषे, मन सरसै तन मोर।।

मेरी  करूण  सुने  बनवारी, मेह  बड़े  चितचोर।

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।1

गोरी का साजन मन झूठा, कैसा यह परदेश।

जग के बन्धन-संशय भरते, तू सत्य अनमोल।।

तन की माटी तुझे बुलाए, भ्रम में करता शोर।

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।2

जीवन बड़ा जुगाड़ु पग-पग, निश-दिन करता…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 13, 2013 at 10:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

गीत

*********              

मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ

तुम नृप के भी हो नृपराज

पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी

मै हूँ अमा की काली रात  …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments

जो मै नेता होती ( हास्य कविता )

यदि होती नेता मै  

सिंहासन पर बैठती

अगल बगल प्यादे

लंबी मोटर कार होती

तिजोरी भर धन होता

यहाँ कुछ वहाँ होता  

षटरस व्यंजन खाती

गिनती एक न करती

देना तो दूर की बात

सब छीन ले आती

भूखे कितने भी भूखे

दो रोटी की थाली

बनवाती संग मे

चावल , कटोरी दाल

बोनस कह कद्दू देती

उन्नति का ठेंगा

पड़े रहते सब नेता

जो बिचारे फिरते है

वोट मांगते रहते है

अंत मे मौन रहे साध

आँख…

Continue

Added by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 10:30pm — 15 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service