संशोधित तरही गज़ल
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
नींदों से जब मिलकर आये कुछ पल बैठ कयाम किया
ऐसा करके सपनों ने भी कुछ तो मेरा काम किया
कब ये दुनिया औरत को घर अपने का हिस्सा माने
मर्द की जेब को हर पल देखा सुबह व् शाम सलाम किया
मुझ को अक्सर आके वो बातें ऐसी बदलाती है
रौशन कैसे दुनिया होगी न अँधेरा नाकाम किया
हर पल उसके पास रहूँ मैं,फिर भी गुम हो जाती है
साथ तो उसका पाया अक्सर याद मेंरी गुमनाम किया
बीत गई जिंद सोच में उलझे कैसे होती तो फुर्सत
रात…
Added by मोहन बेगोवाल on August 4, 2015 at 1:16am — 3 Comments
मोम के पिघलने का
सदियों से रहा है दस्तूर
कोई पत्थर अब पिघला दे
तो कोई बात बने
ऐसा भी नही
कि हर शाम हो हसीन
धूप पर पानी छिड़क
तो कोई बात बने
लड़खड़ाकर मन्दिर का
दिया करता है रोशन
घर के परदे को सिल
तो कोई बात बने
.
मौलिक व अप्रकाशित"
Added by S.S Dipu on August 3, 2015 at 9:00pm — 11 Comments
Added by saalim sheikh on August 3, 2015 at 8:00pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,
पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |
बनके पत्थर देखता हूँ, इंतिहा बुत परस्ती की,
फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |
मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,
लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |
बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,
हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |
इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में…
Added by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 1:30pm — 9 Comments
212—212—1222 |
|
पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
|
आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 9:30am — 42 Comments
२१२ / २१२ / २१२
इश्क के बाद है क्या मिला?
वाँ भी था याँ भी पर्दा मिला
.
अब सनम जबकि तुम खो गये
ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला
.
उनके वादों का हासिल है क्या?
हाथ वादों के वादा मिला
.
हमने दुनिया बहुत देखी पर
कोई मुझको न तुमसा मिला
.
लाख़ कोशिश की हमने मगर
दिल से दिल का न सौदा मिला
.
जब खुला ख़त मेरे वास्ते
नाम हर शय में उसका मिला
.
बेतकल्लुफ़ न इतना हो…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 3, 2015 at 9:00am — 16 Comments
क्यों तू बात नहीं करता
उस नीम के पेड़ की?
जिसके भूत की बातों से,
बचपन में मुझे डराता था
और फिर मजे लेकर
मेरी हंसी उडाता थाI
उस कुँए की भी तू
अब बात नहीं करता ,
जिसमे पत्थर फेंक
हम दोनों चिल्लाते थे ,
फिर कुँए के भूत भी
पलटकर आवाज़ लगाते थेI
उन इस्माइल चाचा का भी
जिक्र तू टालता है
जिनके बाग़ से कच्चे
अमरुद खाते थे और
वो कितना चिल्लाते थे,
पर रात को पके…
ContinueAdded by pratibha pande on August 2, 2015 at 11:08pm — 12 Comments
दो गायक महीनों बाद सवेरे की सैर पर साथ निकले|
एक ने पूछा, "तुमने शास्त्रीय संगीत छोड़ कर ये घटिया राग अलापना क्यों शुरू किया?"
दूसरे ने कहा, "शास्त्रीय संगीत ने आत्मा को चैन और अमन की दौलत दी, लेकिन मेरी पत्नी और बच्चे भूखे रहे| अब मेरे गानों को गली में घूमने वाले गाते हैं, पान की दुकानों और वाहनों में बजता है, बच्चे उन पर नृत्य करते हैं.... और अब देखो कल ही ये खरीदा है|"
उसने एक बड़े से मकान की ओर इशारा किया, जिसे देखते ही पहले के फटे कपड़ों में से शास्त्रीय संगीत की…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 2, 2015 at 8:00pm — 12 Comments
गीतिका छंद
[प्रत्येक पंक्ति 14-12 की यति से कुल 26 मात्रा होती है तथा प्रत्येक पंक्ति की तीसरी, दसवीं, सत्रह्वीं और चौबिसवीं मात्रा लघु ही होती हैं]
शारदे मां वर्ण-व्यंजन में प्रचुर आसक्ति दो।
शब्द-भावों में सहज रस-भक्ति की अभिव्यक्ति दो।।
प्रेम का उपहार नित संवेदना से सिक्त हो।
हर व्यथा-संघर्ष में भी क्रोध से मन रिक्त हो।।1
वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी सी भावना।
तृप्त ही करते रहें निश-दिन यही है…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 2, 2015 at 8:00pm — 5 Comments
लड़कियाँ होती अगर
उड़हूल के फूलों की तरह
और तोड़ ली जाती
बिन खिले
अधखिले
खिल जाती फिर भी
समय के साथ
पर लड़कियाँ तो होती हैं
गुलाब की तरह
नीरज कुमार नीर /
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 11:15am — 13 Comments
खोल रखे है मैंने
खिड़कियाँ और सभी दरवाजे
भीतर आते हैं
धूप , चाँदनी ,
निशांत समीर ,
दोपहर के गरम थपेड़े ,
पूस की शीत लहर ,
बरखा बूंदे
तमस, प्रकाश
पुष्प सुवास, उमसाती गँधाती अपराह्न की हवा
और सभी कुछ
अपनी मर्जी से
और अक्सर उतर आता है
खाली आकाश भी
बस तुम नहीं आती
कितने बरस बीत गए
पर तुम नहीं आती
खोल रखे होंगे
तुमने भी शायद
खिड़कियाँ और दरवाजे
..... नीरज कुमार…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 8:59am — 12 Comments
Added by दिनेश कुमार on August 2, 2015 at 6:30am — 13 Comments
“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”
“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”
“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”
“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”
“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”
“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 2, 2015 at 3:49am — 34 Comments
लखिया रामनारायण पाठक की पुत्री थी. रामनारायण पाठक पेशेवर शिक्षक थे, पर लक्ष्मी की उसपर विशेष कृपा नहीं थी. परिवार के भरण-पोषण के बाद वे बमुश्किल ही कुछ जोड़ पाते थे. उसकी आमदनी तो वैसे दस हजार मासिक थी, लेकिन खर्च भी कम कहां था ? हाथ छोटा कर वह जो भी जोड़ता पत्नी की दवा-दारू में सब हवन हो जाता था. उसका परिवार बहुत बड़ा नहीं था. वे लोग गिने-चुने चार सदस्य थे – दो लड़कियां और अपने दो. बड़ी लड़की लखिया आठ वर्ष की थी और छोटी मित्रा पांच की. उसकी पत्नी भगवती खूब धरम-करम करती किंतु, अपने…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 1, 2015 at 11:30pm — 10 Comments
कविता (हास्य)
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तत्व ज्ञान -न रहो अनजान
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बीबी संग जब जाय बाजार
हथ बंधन बढ़िया है हथियार
चलो बीच सड़क दायें न बाएं
पिघलो नही लाख वो चिल्लाएं
बीबी के आगे किसकी चलती
बाहों में वो नागिन सी पलती
मियां होशियार अपने को माने
तब घोटाले में भिजवाती थाने
मानो बात तुम देखो गाइड
वहीदा ने जब मारी साइड
देती ज्ञान मेरा नाम जोकर
न रही वो कभी किसी की होकर
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 1, 2015 at 9:30pm — No Comments
Added by kanta roy on August 1, 2015 at 9:30pm — 12 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on August 1, 2015 at 6:00pm — 9 Comments
वातानुकूलित कक्ष में बैठकर
तुम करते हो
देश के लिए
देश की जनता के लिये
अच्छे दिन लाने के लिये
जी –तोड़ काम
पर काम किसे कहते है
तुम नहीं जानते
और यदि जानते हो
तो आ जाओ साथ
हो जांए आपस में दो-दो हाथ
मैं एक ओर
चलाता हूँ कुदाल
दूसरा छोर
मेरे भाई तू संभाल
देखते है किसका
है पसीना लहू बनता
देश मेरे दोस्त
लफ्फाजी से नहीं चलता
कोई खेत सोना
यूँ ही नहीं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2015 at 5:30pm — 1 Comment
२१२२ ११२२ ११२२ २२
मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे
मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे
चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर
मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे
रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही
दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे
अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो
मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे
तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता
पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे
बिन…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2015 at 2:30pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,
दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |
कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,
महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |
बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,
किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |
प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,
नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |
लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,…
Added by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 1:00pm — 13 Comments
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2023
2022
2021
2020
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