‘’बहुत खुश दिख रही हो लाजो” गाँव से आई लाजो की सहेली कनिया ने कहा|
“हाँ हाँ क्यूँ नहीं बेटा बहू काम पर चले जाते हैं नौकरानी सब काम कर जाती है बस घर में महारानी की तरह रहती हूँ” लाजो ने जबाब दिया|
कुछ देर की शान्ति के बाद फिर लाजो बोली”ये सुख तेरा ही तो दिया हुआ है उस दिन न तू उस बुढ़िया से पिंड छुडाने का आइडिया देती तो आगे भी न जाने कितने सालों तक मुझे उसकी गंद उठानी पड़ती और मेरा रोहित दादी की सेवा के लिए मुझे वहीँ सड़ने के लिए छोड़े रखता, नरक बनी हुई थी मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2014 at 1:00pm — 18 Comments
" बेटा , अब दूसरे विवाह की तैयारी करो , इससे तो कुछ होना नहीं है " |
" लेकिन माँ , दूसरे में भी क्या भरोसा , थोड़ा और सबर करो " , और बात आई गयी हो गयी |
कुछ महीनों बाद खुश खबरी थी , माँ बहुत प्रसन्न हुई |
और बेटे का दोस्त जो कुछ दिनों पहले आया था , अचानक वापस चला गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on August 31, 2014 at 2:57am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 30, 2014 at 11:00am — 11 Comments
रमेश अपने बेटे व् त्यौहार पर आई हुई अपनी बहन के बेटे को, लेकर बाजार गया था, उसकी बहन कल अपने घर जाने वाली है. सोचा शायद उसके बेटे को कुछ दिलवा दिया जाये, उसे कुछ सस्ते से कपडे एक दुकान से दिला लाया है. बहन के बेटे ने भी निसंकोच उन्हें स्वीकार कर लिया. बाजार में रमेश का बेटा जिद करता रहा पर , उसने अपने बेटे को कुछ नही दिलवाया है ...
“ पापा..!! मुझे तो वो ही वाले ब्रांड के कपडे चाहिए जो मैंने पसंद किये थे, कुछ भी हो उसी दुकान से दिलवाना पड़ेगा आपको..” रमेश के बेटे ने, रमेश…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 29, 2014 at 2:08pm — 8 Comments
क्या आपको याद है ... आपने आखरी बार कब डुगडुगी की आवाज सुनी थी ?कब अपनी गली या घर के रास्ते में एक छोटी सी सांवली लड़की को दो मामूली से बांस के फट्टियों के बीच एक पतली सी रस्सी पर चलते देखा और फिर हैरतअंगेज गुलाटी मारते, बिना किसी सुरक्षा इन्तमाजात के | सोचिये , दिमाग पर जोर डालिए !!!
चलिए आज मैं याद दिलाती हूँ | याद है बचपन में जब स्कुल से आकर आप अपना बस्ता फेंक ,माँ के हिदायत पर हाथ मुँह धोकर ,कपडें बदल कर अपने दोस्तों के साथ झटपट खेलने जाने के मुड में होते थे तब…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 28, 2014 at 6:34pm — 15 Comments
किचेन से रश्मि की आवाज आई ...... भाभी जरा मेरे कपड़े धुल देना, खाना बनाने के बाद धुलुंगी तो काॅलेज के लिए देर हो जायेगी! इतना सुनते ही सुमन का जैसे पारा गरम हो गया ...... बड़बड़ाते हुए बोली... सभी ने जैसे नौकर समझ लिया है, कुछ ना कुछ करने के लिए बोलते ही रहते हैं, आराम से टी0वी0 भी नही देखने देतें ........ देखिये जी ! अगर इसी तरह चलता रहा तो मैं मायके चली जाउँगी, मेरी भाभी बहुत अच्छी हैं, घर का सारा काम करती हैं, वहाँ मुझे कुछ नही करना पड़ता, और मैं आराम से टी0वी0…
ContinueAdded by Pawan Kumar on August 28, 2014 at 6:06pm — 8 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
वो कहें सागर में मिलकर आज दरिया खो गया
हम कहें सागर से दरिया मिल के सागर हो गया
सोच कुछ तेरी जुदा है सोच कुछ मेरी अलग
सोचिये सोचों का अंतर आज कैसा हो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 28, 2014 at 9:57am — 17 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2014 at 11:22pm — 10 Comments
सारी उमर मैं बोझ उठाता रहा जिनका
उन आल-औलादों की वफ़ा गौर कीजिये
मरने के बाद मेरा बोझ ले के यूँ चले
मानो निजात पा गए हों सारे बोझ से
मैंने समझ के फूल जिनके बोझ को सहा
छाती से लगाया जिन्हें अपना ही जानकर
वे ही बारात ले के बड़ी धूम धाम से
बाजे के साथ मेरा बोझ फेंकने चले
अपने लिए ही बोझ था मै खुद हयात में
अल्लाह ये तेरा भला कैसा मजाक है
ज्योही जरा हल्का हुआ मै मरकर बेखबर
खातिर मै दूसरों के एक बोझ बन गया
लगती थी बोझ जिन्दगी उनके बिना…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 27, 2014 at 10:02pm — 13 Comments
पृथ्वी की धुरी के इशारों पर
यूं तो नाचता है समय...
विस्मृत क्षण हो गए धूमिल
कई दिनों से गुम था समय...
कितने ही वर्षों से ढूंढता
पूछता था जिससे वो कहता
“मेरे पास तो नहीं है समय...”…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 27, 2014 at 6:51pm — 15 Comments
2122 2122 2122
*************************
सिंधु मथते कर पड़ा छाला हमारे
हाथ आया विष भरा प्याला हमारे
***
धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों
देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे
***
भाग्य सुख को ले चला जाने कहाँ फिर
डाल कर यूँ द्वार पर ताला हमारे
***
हर तरफ फैले हुए हैं दुख के बंजर
खेत सुख के पड़ गया पाला हमारे
***
राह देखी सूर्य की भर रात हमने
इसलिए तन पर लगा काला…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2014 at 11:14am — 10 Comments
याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।
कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चिराई।
अनुभव हुआ एक दिन तेरी, जब हो गई विदाई।
अमरबेल सी पाली थी, इक दिन में हुई पराई।
परियों सी प्यारी गुड़िया को जा विदेश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------
लाख प्रयास किये समझाया, मन को किसी तरह से।
बरस न जायें बहलाया, दृग घन को किसी तरह से।
विदा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सिखार्इ।
दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 27, 2014 at 8:00am — 5 Comments
जब भी आऊंगा खाकर तुमसे गाली मैं
इस धरती के नाम लिखूंगा हरियाली मैं
छोटे-छोटे बच्चों की उंगली थामूंगा
आसमान तक दौड़ लगाऊंगा खाली मैं
हरेक महल के हर पत्थर से बात करूंगा
मज़दूरों के लिए बजाऊंगा ताली मैं
जिस दिन तेरे बच्चे भी पढ़ने जाएंगे
उस दिन तुझे कहूँगा 'हैप्पी दीवाली' मैं
खेतों में सपने फिर से उगने लगते हैं
जब भी करता हूँ बातें फसलों वाली…
Added by Dr. Rakesh Joshi on August 26, 2014 at 9:46pm — 7 Comments
12122 12122 1212
कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए
ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए
बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए
समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का
गरीब बच्चों से पाठ शाला न छीनिए
जुड़े खुदा से…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 26, 2014 at 5:00pm — 31 Comments
Added by Pawan Kumar on August 26, 2014 at 1:30pm — 12 Comments
Added by Ravi Prabhakar on August 26, 2014 at 11:30am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2014 at 9:44am — 8 Comments
यह जीवन महावटवृक्ष है।
सोलह संस्कारों से संतृप्त
सोलह शृंगारों से अभिभूत है
देवता भी जिसके लिए लालायित
धरा पर यह वह कल्पवृक्ष है।
यह जीवन महावटवृक्ष है।।
सुख-दु:ख के हरित पीत पत्र
आशा का संदेश लिए पुष्प पत्र
माया-मोह का जटाजूट यत्र-तत्र
लोक-लाज, मर्यादा,
कुटुम्ब, कर्तव्य, कर्म,
आतिथ्य, जीवन-मरण
अपने-पराये, सान्निध्य, संत समागम,
भूत-भविष्य में लिपटी आकांक्षा,
जिस में छिपा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 26, 2014 at 8:00am — 5 Comments
दर सारे दीवार हो गए
**********************
सारी खिड़की बंद लगीं अब
दर सारे दीवार हो गये
भौतिकता की अति चाहत में
सब सिमटे अपने अपने में
खिंची लकीरें हर आँगन में
हर घर देखो , चार हो गये
सारी खिड़की बंद लगीं अब
दर सारे दीवार हो गए
पुत्र कमाता है विदेश में
पुत्री तो ससुराल हो गयी
सब तन्हा कोने कोने में
तनहा सब त्यौहार हो गए
सारी खिड़की बंद लगीं अब
दर सारे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 25, 2014 at 8:30pm — 34 Comments
बस बात करें हम हिन्दी की।
न चंद्रबिन्दु और बिन्दी की।
ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।
हों घर-घर बातें हिन्दी की।
ना हिन्दू-मुस्लिम-सिन्धी की।
बस सर्वोपरि सम्मान करें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।
पथ-पथ प्रख्याति हो हिन्दी की।
ना जात-पाँत हो हिन्दी की।
बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।
एक धर्म संस्कृति हिन्दी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 25, 2014 at 7:44pm — 6 Comments
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