"मैडम, इस तरह कैसे चलेगा, बिना छुट्टी लिए आप गायब हो जाती हैं| यह ऑफिस है, ध्यान रखिये, पहले भी आप ऐसा कर चुकी हैं", जैसे ही वह ऑफिस में घुसी, बॉस ने बुलाकर उसे झाड़ दिया| उसने एक बार नजर उठाकर बॉस को देखा, उसकी निगाहों में गुस्सा कम, व्यंग्य ज्यादा नजर आ रहा था| बगल में बैठी बॉस की सेक्रेटरी को देखकर उसको उबकाई सी आ गयी|
लगभग तीन महीने हो रहे थे उसको इस ऑफिस में, पूरी मेहनत से और बिना किसी से लल्लो चप्पो किये वह अपना काम करती थी| ऑफिस में कुछ महिलाएं भी थीं जिनके साथ वह रोज लंच करती थी…
Added by विनय कुमार on September 27, 2017 at 1:00am — 12 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 26, 2017 at 8:06pm — 14 Comments
Added by नाथ सोनांचली on September 26, 2017 at 7:30pm — 18 Comments
Added by AMIT on September 26, 2017 at 6:58pm — 8 Comments
अजब सी है जलन दिल में ये कैसी है मुझे तड़पन
उसे अहसास तो होगा बढ़ेगी दिल की जब धड़कन'
दिखा है जबसे उसकी आँखों में वीरान इक सहरा
मुझे क्या हो गया जाने कहीं लगता नहीं है मन
गले को घेर बाँहों से बदन करती कमाँ जब वो'
मुझे भी दर्द सा रहता मेरा भी टूटता है तन
वो रो लेती पिघल जाता हिमालय जैसा उसका गम
मगर सूरज के जैसे जलता रहता है मेरा तन मन
'नज़र मिलते ही मुझसे वो झुका लेते हैं यूँ गर्दन
ये मंज़र देख उठती है लहर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2017 at 4:30pm — 14 Comments
परोथन – लघुकथा -
"अरे छुटकी, देख तो कौन है दरवाजे पर"?
"कोई भिखारिन जैसी लड़की है अम्मा"।
"बिटिया, एक कटोरा गेंहू दे दे उसे”|
“अम्मा, वह तो बोल रही है कि उसे केवल आटा ही चाहिये”।
"अरे तो क्या हुआ छुटकी, एक कटोरा आटा ही दे दे बेचारी को"।
"पर अम्मा, आटा तो एक बार के लिये ही था तो सारा गूँथ लिया"।
"एक कटोरा भी नहीं बचा क्या"?
"ऐसे तो है, एक कटोरा, पर वह परोथन के लिये है"।
"अरे तो वही देदे मेरी बच्ची। हम लोग एक दिन बिना परोथन की, हाथ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 12:28pm — 24 Comments
ख़्यालों में गिरफ़्तार
गम्भीर उदास
अपना सिर टेक कर
इ-त-नी पास
तुम इतनी पास
तो कभी नहीं बैठती थी
फिर आज...?
मिलने पर
न स्वागत
न शिकायत
न कोई बात
अपने में ही सोचती-सी ठहरी
धड़कन की खलबली में भी
तुम इतनी आत्मीय ...
मेरे बालों की अव्यवस्था को ठेलती
कभी शाम के मौन में शाम की
निस्तब्धता को पढ़ती
शांत पलकें, अब अलंकार-सी
जागती-सी सोचती, कुछ…
ContinueAdded by vijay nikore on September 26, 2017 at 12:24pm — 12 Comments
२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२ (अरकान सही क्रम में हैं या नहीं ये मुझे नहीं पता)
मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर
रुसवाई यानी हो भी तो रुसवा किए बग़ैर.
.
रुख्सत किया है ज़ह’न से यादें लपेट कर,
तन्हा किया है आप ने तन्हा किए बग़ैर.
.
झुकिए अना को छोड़ के गर इल्म चाहिए,
मिलता नहीं सवाब भी सजदा किए बग़ैर.
.
जिस दर पे पूरी होतीं मुरादें तमाम-तर
हम वाँ से लौट आये तमन्ना किए बग़ैर.
.
मुझ को न हो गुरूर मेरे नूर का कभी
रौशन…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 26, 2017 at 11:30am — 27 Comments
बह्र : 2122-1122-1122-112/22
फिर मुहब्बत से लिया नाम तुम्हारा उसने
वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने
मेरी कश्ती को समन्दर में उतारा उसने
और फिर कर दिया तूफ़ाँ को इशारा उसने
डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर
बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने
आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने
ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ
वक़्त…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 10:00am — 30 Comments
ये क्यूँ और कैसे हो गया
हद में रहकर भी बेहद हो गया
था कभी जो नज़रों और ख्वाबों में,
ना जाने अब क्यूँ ओझल हो गया
चाहूँ मैं उसको जितना ज्यादा
वो दूर क्यूँ मुझसे उतना हो गया
ये क्यूँ और कैसे हो गया
हद में रहकर भी बेहद हो गया
सोचा भूल जाऊँ अब उसे मैं
पर वो क्यूँ मेरी रूह में बस गया
लौट-लौट कर आती हैं यादें तेरी
क्यूँ हर लम्हा मेरा तेरे नाम हो गया
पाना क्यूँ…
ContinueAdded by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on September 25, 2017 at 10:06pm — 7 Comments
"तुम रातभर बैचेन थी। हो सके तो आज आराम करो। मैंने चाय बनाकर थर्मस में डाल दी हैं। मैं नाश्ता, खाना आफ़िस में ही ली लूँगा, तुम बस अपना बनवा लेना। आफ़िस से छुट्टी ले लो।"
पास तकिए पर रखे कागज को पढा और चूमकर सीने पर रख लिया। आफ़िस में इस एक दिन के अवकाश की लड़ाई लड़ी और जीती भी थी।
चाय का कप लेकर बालकनी में आई तो सहज ही प्लास्टिक की पन्नियाँ बीनती उन लड़कियों पर नजर गयी। उफ्फ, ये लोग क्या करती होंगी इन दिनों? कप हाथ में लिए-लिए ही झट नीचे आयी। उन्हें आवाज लगाकर अपने…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on September 25, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२
दिल की बातें वो भी समझें ये सोचा था
होंगी मिलकर सारी बातें ये सोचा था ?
चले जायेंगे अपने रस्ते वो भी इक दिन
रह जाएंगी तन्हा रातें ये सोचा था ?
जीवन जैसा होगा उसको जी लेना है
दर्दो अलम की ले सौगातें ये सोचा था ?
एक बहाना मुझको जीने का मिल जाता
रह जातीं बस उनकी यादें ये सोचा था ?
डूब गयीं हूँ प्यार में जिनके मैं " रौनक"…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 25, 2017 at 9:30pm — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2017 at 8:04pm — 16 Comments
दिल में कसक है तेरी यादों का हक है तेरी,
जिसको मैं दिन रात पढ़ूँ वो पुस्तक है मेरी|
दिल में ............
तू ही मेरा सांध्य-गीत है, और भोर वंदन है,
जिसमें मैं निज को निज देखूं नैन तेरे दर्पण है|
तेरी खातिर खुले हमेशा सब दिल के दरवाजे,
चाहे जिससे तू आ जाए तेरा अभिनंदन है||
दिल तो तेरा है पर उसकी धक-धक है तेरी,
दिल में ......
.
गंगा-सा मन पावन तेरा, यमुना सा निर्मल हो,
सरस्वती-सी बुद्धि तुम्हारी, चंडी-सा सम्बल…
ContinueAdded by ARUNESH KUMAR 'Arun' on September 25, 2017 at 7:00pm — 4 Comments
तेरे इंतज़ार में ...
गज़ब करता रहा
तेर हर वादे पे
यकीं करता रहा
हर लम्हा
तेरी मोहब्बत में
कई कई सदियाँ
जीता रहा
और हर बार
सौ सौ बार
मरता रहा
पर अफ़सोस
तू
मुझे न जी सकी
मैं
तुझे न जी सका
पी लिया
सब कुछ मगर
इक अश्क न पी सका
मेरी ख़ामोशी को तूने
मेरी नींद का
बहाना समझा
तू
ग़फ़लत में रही
और
मैं
अजल का हो गया
तिश्नागर आँखों के …
Added by Sushil Sarna on September 25, 2017 at 2:00pm — 19 Comments
2122 1212 22
.
दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे … |
Added by rajesh kumari on September 25, 2017 at 12:30pm — 39 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 25, 2017 at 5:00am — 49 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 24, 2017 at 3:30pm — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 24, 2017 at 11:00am — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2017 at 10:44am — 9 Comments
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