Added by Naveen Mani Tripathi on September 22, 2017 at 8:38am — 1 Comment
जैसे ही वह ऑफिस से लौटी एक बार फिर वही नज़ारा उसके आँखों के सामने था| कितना भी समझा ले, न तो बेटा समझता था और न ही बाप, दोनों अपने आप को ही समझदार मानते थे| उसके घर में घुसते ही कुछ पल के लिए दोनों खामोश हो गए और उसकी तरफ फीकी मुस्कान फेंकते हुए देखने लगे|
"कब समझोगे तुम विक्की, मान क्यों नहीं लेते कि वह तुमसे ज्यादा समझते हैं| आखिर पिता हैं तुम्हारे, तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है उन्होंने", कहते हुए बैग उसने टेबल पर रखा और सोफे पर अधलेटी हो गयी| राजन ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा, अक्सर…
ContinueAdded by विनय कुमार on September 21, 2017 at 5:00pm — 4 Comments
ज़िद कर रही हूँ ...
जानती हूँ
हर नसीब में
हर शै
नहीं हुआ करती
फिर भी
मैं असंभव को
संभव करने की
ज़िद कर रही हूँ
कुछ और नहीं
बस
उम्र के हर पड़ाव पर
सिर्फ
प्यार करने की
ज़िद कर रही हूँ
मैं नहीं जानती
सात जन्म क्या होते हैं
पर उम्र की उस अवस्था पर
जब सब ख्वाहिशें
दम तोड़ देती हैं
चाहती हूँ
तब भी तुम
किसी मठ के
सन्यासी सी एकाग्रता लिए
मुझ से प्यार करने चले आना…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2017 at 3:10pm — 6 Comments
2122 1212 22/112
ख़्वाब तूने कोई बुना होगा
तब तेरा रतजगा हुआ होगा
सर यक़ीनन मेरा झुकेगा जनाब
आपसे जब भी सामना होगा
मुद्दतों बाद मेरी याद आई
मुश्किलों से कहीं घिरा होगा
मुझको मेहनत लगी थी लिखने में
उसको एहसास इसका क्या होगा
शहर में होना आरज़ी है मगर
तज़्किरा मेरा बारहा होगा
आरज़ी – थोड़े समय के लिए, तज़्किरा – जिक्र
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2017 at 11:24am — 6 Comments
22 22 22 22 22 2
............................
खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में
उनकी ही खुशबू है मेरी साँसों में
.
दिल के हाथों था मजबूर बहुत वरना
आता कब मैं उनकी मीठी बातों में
.
उनको खो देने का भी अहसास हुआ
रंग-ए-हिना जब देखा उनके हाथों में
.
खो कर दुनिया आख़िर उनको पाया है
यूँ ही नहीं है नाम मेरा अफसानों में
.
हर शय में उनका ही चेहरा दिखता है
उनके ही सपने हैं मे री आँखों …
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on September 21, 2017 at 8:30am — 7 Comments
१२२२ १२२२ १२२
चढ़े सूरज तलक सोए हुए हैं
किसी की याद में खोए हुए हैं
ग़ज़ल लिक्खी हुई है आंसुओं से
कहें किससे कि हम रोये हुए हैं
तभी भीगा हुआ तकिया मिला है
इसे अश्कों से हम धोये हुए हैं
कमर टूटी ज़फ़ा की चोट खाकर
मगर फिर भी वफ़ा ढोए हुए हैं
वहाँ चर्चा हमारा हो रहा है
न जाने हम कहाँ खोए हुए हैं
तुम्हारे दाग ज्यों के त्यों दिखेंगे
भले ही आईने धोए हुए…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 20, 2017 at 5:00pm — 20 Comments
काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने
बहर : ११२२-| ११२२ ११२२ २२/११२
२१२२}
तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने
दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने |
पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब
क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |
क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान
यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |
कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा
कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:10am — 13 Comments
श्राद्ध
" पर....? हर बार तो आनंद ही ..." दूसरी तरफ की कड़क आवाज़ में बात अधूरी ही रह गई
"जी ,जैसा आप ठीक समझें ,पैरी पै..." बात पूरी होने से पहले ही दूसरी तरफ से मोबाइल कट गया ....
रुआंसी सी प्राप्ति सोफे में ही धंस गई , बंद आँखों से अश्क बह निकले
"८ बरसों में जड़ें भी मिटटी पकड़ चुकी थी ......"
"पर आंगन को फूल देना कितना जरूरी है ये एहसास देवरानी के बेटा पैदा होने के बाद हुआ ....."
"नर्म हवाओं ने तूफान बन कर सब रौंदते हुए रुख जब आनंद की ओर किया तो आनंद…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on September 19, 2017 at 4:51pm — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 19, 2017 at 1:00pm — 14 Comments
1222 1222 122
.
नही हमको जो भाता क्यों करें हम
कोई झूठा बहाना क्यों करें हम
हमीं से रौशनी है चार सू जब
तो बुझने का इरादा क्यूँ करें हम
खमोशी की सदा अक्सर सुनी है
न सुनने का बहाना क्यूँ करें हम
भरोसा जब नहीं खुद पे हमें ही
*वफ़ादारी का दावा क्यूँ करें हम*
हो झगड़ा आपसी सुलझाएँ खुद ही
ज़माने में तमाशा क्यों करें हम
न होता झूठ का कोई ठिकाना
फिर उसको ही तराशा क्यूँ करें हम
मौलिक…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 19, 2017 at 6:00am — 12 Comments
Added by Usha Awasthi on September 18, 2017 at 11:29pm — 7 Comments
2122 2122 212
दो पहर की धूप भी अच्छी लगी
साथ उनके हर कमी अच्छी लगी
यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ
तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी
कब कहा मैनें कि मैं था शादमाँ
कुल मिला कर ज़िन्दगी अच्छी लगी
सब में रहता है ख़ुदा ये मान कर
जब भी की तो बन्दगी अच्छी लगी
हाँ, ज़बाँ से भी कहा था कुछ मगर
जो नज़र ने थी कही, अच्छी लगी
दोस्ती तो थी हमारी नाम की
पर तुम्हारी दुश्मनी,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 18, 2017 at 3:30pm — 17 Comments
मुट्ठी भर
ताकतवर
और बुद्धिमान
लोगों ने
इकठ्ठा किया
ढेर सारे लोगों को
और
आवाहन किया
कहा
"हमें इस धरती को
स्वर्ग बनाना है
और बेहतर बनाना है "
और हम
चल पड़े
तमाम जंगल काटते हुए
पहाड़ों को रौंदते…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 18, 2017 at 3:29pm — 3 Comments
1212 1122 1212 22
............................................
जिसे ख़यालों में रखता हूँ शायरी की तरह.
मुझे वो जान से प्यारा है जिंदगी की तरह.
.
क़सम जो खाता था उल्फ़त में जीने मरने की.
वो सामने से गुज़रता है अजनबी की तरह.
.
यूँ ही न बज़्म से तारीकियाँ हुईं रुख़सत.
कोई न कोई तो आया है रोशनी की तरह.
.
खड़े हैं छत पे हटा कर…
Added by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 9:30am — 22 Comments
Added by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 8:00am — 27 Comments
दीप रिश्तों का' बुझाया जो', जला भी न सकूँ
प्रेम की आग की’ ये ज्योत बुझा भी न सकूँ |
हो गया जग को’ पता, तेरे’ मे’रे नेह खबर
राज़ को और ये’ पर्दे में’ छिपा भी न सकूँ |
गीत गाना तो’ मैं’ अब छोड़ दिया ऐ’ सनम
गुनगुनाकर भी’ ये’ आवाज़, सुना भी न सकूँ |
वक्त ने ही किया’ चोट और हुआ जख्मी मे’रे’ दिल
जख्म ऐसे किसी’ को भी मैं’ दिखा भी न सकूँ |
बेरहम है मे’रे’ तक़दीर, प्रिया को लिया’…
Added by Kalipad Prasad Mandal on September 17, 2017 at 8:57pm — 11 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मापनी 1222 1222 1222 1222
इधर जाता तो अच्छा था, उधर जाता तो अच्छा था.
रहा भ्रम में, कहीं पर यदि, ठहर जाता तो अच्छा था.
उभर आता तो अच्छा था, हृदय का घाव चेहरे पर,
हमारा दर्द भी हद से, गुजर जाता तो अच्छा था.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 17, 2017 at 5:30pm — 17 Comments
Added by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 1:00pm — 20 Comments
चुन्नों, मेरा चश्मा कंहा रखा है ? चुन्नो मेरी नयी वाली कमीज नहीं मिल रही है, चुन्नो तुमने मेरा रुमाल देखा है क्या? चुन्नो एक कप चाय मिलेगी क्या? चुन्नो चुन्नो चुन्नो सच घर आते ही चुन्नो चुन्नो के नाम की माला जपने लगता हूं। सच आफिस मे रहता हूं तो आफिस की छोटी छोटी बातें नही भूलती पर घर आते ही जैसे यादें हैं कि साथ छोड के फिर से आफिस मे ही दुपुक जाती हैं ये कह के कि जाओ अब अपनी चुन्नो के साथ ही रहो मेरी क्या जरुरत है वो जो है न तुम्हारी और…
ContinueAdded by MUKESH SRIVASTAVA on September 17, 2017 at 11:30am — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 17, 2017 at 8:00am — 12 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |