आज सुबह सुबह ही सब लोग ईद की तैयारी में लग गएI अब्दुल मियां एक बकरी का बच्चा लाये और क़ुरबानी की तैयारियां शुरू हुई,
अब्दुल का दस साल का लड़का सलीम गुमसुम सा ये सब देख रहा था,…
Added by harikishan ojha on September 14, 2016 at 6:00pm — 10 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 5:23pm — 4 Comments
कुकुभ छंद -२
देश की एकता, अखण्डता, सबकी वाहक है हिंदी
भाव, विचार, पूर्णता, संस्कृति, सभी का प्रतिरूप हिंदी |
आम जन की मधुर भाषा है, भारत को नई दिशा दी
है विदेश में भी यह अति प्रिय, लोग सिख रहे हैं हिंदी ||
सहज सरल है लिखना पढ़ना, सरल है हिन्द की बोली
संस्कृत तो माता है सबकी, बाकी इसकी हम जोली |
हिंदी में छुपी हुई मानो, आम लोग की अभिलाषा
जोड़ी समाज की कड़ी कड़ी, हिंदी जन-जन की भाषा ||
ताटंक -१
देश की…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 14, 2016 at 3:57pm — 4 Comments
दरवाजों पर ताले रखना
चाबी जरा संभाले रखना।
ठंडी होगयी चाय सुबह की
पानी और उबाले रखना।
संसद में घेरेंगे तुझको
तू भी प्रश्न उछाले रखना।
गाँवों का सावन है फीका
नीम पर झूले डाले रखना।
चिडियों की चीं चीं खेतों में
कुछ गौरैयाँ पाले रखना|
दूर ना होना अपनों से तू
रिश्ते सभी संभाले रखना।
...आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।
Added by रमेश कुमार चौहान on September 14, 2016 at 12:00pm — 5 Comments
हिंदी दिवस की शुभ कामनाओं के साथ कुछ दोहे -
हमें बढ़ाना मान (दोहे)
=================
हिंदी में साहित्य का, बढ़ा खूब भण्डार
हम संस्कृति का देखते, शब्दों में श्रृंगार |
कविता दोहा छंद में, सप्त सुरों का राग
गीत गीतिका छंद में, भरें प्रेम अनुराग…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2016 at 11:30am — 12 Comments
सावन
सूखी रह गई,
सूखे भादो मास
विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई
पनघट पूछे बाँह पसारे,
बदरा क्यों मार गई
पनिहारिन
भी पोछती
अपनी अंजन-सार
रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहे फसलों को
बूँद-बूँद कर जल को निगले,
क्या दें हम नसलों को
धूँ-धूँ कर
अब जल रही
हम सबकी अँकवार
कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 14, 2016 at 11:27am — 3 Comments
Added by S.S Dipu on September 14, 2016 at 4:46am — 10 Comments
Added by amita tiwari on September 14, 2016 at 3:05am — 5 Comments
पहाड़ी के बीच
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ऊँची नीची पहाड़ी पगडंडियों में
बल खाती घुमावदार सड़कों के बीच
दिखती है एक चाय की दुकान
यह दुकान होती है
छोटे मोटे मकानों में
किसी भी पगडंडी पर
किसी खोखे जैसी दुकान
उस में चाय भी बनती है
आलू प्याज के बनते हैं पकौड़े भी
यहाँ कभी कभी टहलते हुये
होते हैं लोग इकट्ठा
करतें हैं अपने ऊँची चोटी पर बसे गाँव की बातें
इसी बीच इन्हीं दुकानों पर
वे कर लेते…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 11:00pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
तुम पिया आये नहीं बरसात बैरन आ गई
दिन गुजारा बेबसी में रात बैरन आ गई
था हवाओं ने कहा मनमीत का सन्देश है
ले जुदाई बेशरम की बात बैरन आ गई
ढोल ताशे बज उठे हैं गूंजती शहनाइयाँ
हाय रे महबूब की बारात बैरन आ गई
मुट्ठियों में दिल समेटा होंठ भी भींचे खड़े
आँसुओं की आँख से सौगात बैरन आ गई
भाइचारा भूल जाओ अब मियाँ तकरीर में
धर्म मजहब आदमी की जात बैरन आ…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 8:00pm — 12 Comments
Added by shashi bansal goyal on September 13, 2016 at 5:18pm — 4 Comments
चाँद की शक्ल में आ जाओ सहर होने तक,
ईद हो जाये मेरी आठ पहर होने तक.
तुमको आवाज़ भी देती तो बताओ…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
ढलक गया .... (क्षणिकाएं )
१.
बंद था
एक लम्हा
पलकों की मुट्ठी में
सह न सका
दस्तक
याद की
और
ढलक गया
हौले से
.... ... ... ... ... ...
२.
था
एक ख़्वाब
जो
हकीकत से पहले
जाने कब
हकीकत में
ख्वाब हो गया
.... .... .... .... .... ....
३.
वो
ज़िदंगी का
बीता कल था
जिया मरके
जिसमें
वो सुहाना पल था
वो पल
सुख का
रूह से
बतियाता रहा
मारने के बाद…
Added by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 4:39pm — 12 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 13, 2016 at 4:17pm — 7 Comments
‘बेटा जो नयी वैकेंसी निकली थी, तुमने फार्म डाल दिया ?’- पिता के चेहरे पर खुशी थी . उनके हाथ में एक मोबाईल था .
‘नहीं पापा, मैं कोई फॉर्म नहीं डालूँगा . आपके कहने पर पहले कितने फार्म भर चुका हूँ , कितने इक्जाम दिए, पर कोई नतीजा निकला ?’
‘बेटा तकदीर को कोई नहीं जानता --------?’
‘बेकार की बाते हैं पापा, नौकरी किस्मत से नहीं योग्यता से मिलती है एक्स्ट्रा आर्डिनरी बच्चों को नौकरी की कमी नहीं , पर जो बच्चे सामान्य हैं वे क्या करें, सरकार के पास उनके लिए कोई व्यवस्था…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2016 at 3:30pm — 5 Comments
कलावती देवी को प्राइमरी शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुए चौदह पन्द्रह वर्ष बीत चुके थे | पति का देहांत हो गया था और वह अपने बेटे के साथ रहती थीं | अकेलेपन और अवहेलना ने उनको चिड़ाचिड़ा बना दिया था | कान से कम सुनाई देता था इस लिए खुद भी तेज आवाज में बोलती थीं, ऐसा कि पूरा मोहल्ला सुनता | बाहर बैठ कर अखबार और अध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना यही उनकी दिनचर्या थी | सास-बहू का जैसे सांप छछूंदर सा बैर था, ना तो बहू उनका ख्याल रखती ना ही वह बहू पर तंज कसने का कोई मौका छोड़तीं | बहू उनका खाना निकाल कर रख…
ContinueAdded by Meena Pathak on September 13, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 13, 2016 at 3:00pm — 10 Comments
बह्र-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,
मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।
गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1
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अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2
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जा रहेगें मंजिलों तक जख़्म वाले पांव भी,
यार बस अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3
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इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
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नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ…
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 13, 2016 at 1:00pm — 11 Comments
Added by मनोज अहसास on September 13, 2016 at 10:37am — 7 Comments
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