221 2121 1221 212
.......
मेरे वतन में आते हैं सारे जहाँ से लोग.
रहते हैं इस ज़मीन पे अम्न-ओ-अमाँ से लोग.
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लगता है कुछ खुलुसो महब्बत मे है कमी.
क्यूं उठ के जा रहे हैं बता दरमियाँ से लोग.
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तेरा ख़ुलूस तेरी महब्बत को देखकर.
जुड्ते गये हैं आके तेरे कारवाँ से लोग.
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कैसा ये कह्र कैसी तबाही है ऐ खुदा.
बिछ्डे हुए हैं अपनो से अपने मकाँ से लोग.…
Added by SALIM RAZA REWA on October 4, 2017 at 9:30am — 26 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 3, 2017 at 11:14pm — 10 Comments
२२, २२, २२, २२
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सीने से चिमटा कर रोये,
ख़ुद को गले लगा कर रोये.
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आईना जिस को दिखलाया,
उस को रोता पा कर रोये.
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इक बस्ते की चोर जेब में,
ख़त तेरा दफ़ना कर रोये.
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इक मुद्दत से ज़ह’न है ख़ाली,
हर मुश्किल सुलझा कर रोये.
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तेरी दुनिया, अजब खिलौना,
खो कर रोये, पा कर रोये.
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सीखे कब आदाब-ए-इबादत,
बस,,,, दामन फैला कर रोये.
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हम असीर हैं अपनी अना के,
लेकिन मौका पा कर रोये.
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सूरज…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2017 at 9:00pm — 28 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 3, 2017 at 8:56am — 10 Comments
ग़ज़ल- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२२
मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
मुनासिब है ज़रूरत सब ख़ुदा से ही रजा करना
कि है कुफ़्रे अक़ीदा हर किसी से भी दुआ करना
ग़मों के कोह के एवज़ मुहब्बत ही अदा करना
नहीं है आपके वश में किसी से यूँ वफ़ा करना
नई क्या बात है इसमें, शिकायत क्यों करे कोई
शग़ल है ख़ूबरूओं का गिला करना जफ़ा करना
अगर खुशियाँ नहीं ठहरीं तो ग़म भी जाएँगे इकदिन
ज़रा सी बात पे क्योंकर ख़ुदी को…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 3, 2017 at 12:32am — 17 Comments
ग़ज़ल- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
किसी ने क्यों कतर डाले हैं परवाज़ों के पर मेरे
फ़रिश्ते भी हैं उक़बा में अज़ल से मुंतज़र मेरे
हुजूमे ग़ैर से कोई तवक़्क़ो क्या करूँगा मैं
मेरी क़ीमत न कुछ समझें ज़माने में अगर मेरे
फ़क़ीरी में गुज़ारी है ये हस्ती भी तुम्हारी है
तेरी ज़र्रा नवाज़ी है कभी आये जो घर मेरे
कहूँ क्या हाय शर्मों में छुपी उसकी मुहब्बत को
वो घबरा के जो देखे है इधर मेरे उधर मेरे
कहाँ तुझको…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 3, 2017 at 12:21am — 6 Comments
लघुकथा - ज़िद - -
गाँव के सरपंच बंशीलाल के बेटे शुभम की शादी शहर में रहने वाले परिवार की लड़की सुजाता से हुई।
सुजाता ने गाँव में पहली बार में कुछ परेशानियों का सामना किया तो गौने पर विदा कराने गये शुभम और उसके साथियों को बैरंग लौटा दिया। कहला दिया कि जब तक घर में शौचालय की व्यवस्था नहीं होगी, वह गांव नहीं आयेगी। शुभम भी गुस्से में धमकी देकर चला आया कि अब वह कभी भी उसे लेने नहीं आयेगा।
लेकिन धीरे धीरे सरपंच जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और सामाजिक दबाव के देखते हुए शौचालय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2017 at 8:02pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
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नश्शा नहीं सुरूर नहीं बे खुदी नहीं.
उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं.
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गुलशन में फूल तो है मगर ताज़गी नहीं.…
Added by SALIM RAZA REWA on October 2, 2017 at 7:30pm — 8 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2017 at 4:00pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2017 at 2:42pm — 6 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 5:04am — 21 Comments
एक ख्वाहिश पूरी कर दे तू इबादत के बगैर
वो आ कर गले लगा ले मेरी इजाजत के बगैर
ऐ खुदा हुस्न और दौलत तो तेरी कुदरत है
मैं मानूँ अगर वो अपना ले मुझे इनके बगैर
बोल कर इज़हार क्यों करूँ अपने इश्क़ का
मैं मानूँ अगर वो जान जाये इशारे किए बगैर
यूँ तो आदत नही किसी को देखूं मुड़ कर
पर दिल करता है देखूं तुझे पलकें गिरे बगैर
शौक लगा उसी दिन मुहब्बत का मुझे यारों
दिल खो गया था जिस दिन खोये बगैर
कोई उम्मीद,दिलासा दे दे मुलाकात…
ContinueAdded by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on October 1, 2017 at 10:26pm — 4 Comments
ज्यों खटक जाता है
किसी चित्रकार को
स्वरचित सफल चित्र पर
अचानक रंगो का बिखर
जाना !
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ज्यों खटक जाता है
ज्येष्ठी धूप में तपे प्यासे मानव को
सम्मुख आ सजल पात्र का
अकस्मात ही लुढ़क जाना !.
ज्यों खटक जाता है
प्रणयी युगल को
मधुर प्रणय मिलन
के मध्य
किसी अन्य का
अप्रत्याशित आ जाना !
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त्यों ही खटक रहा है मुझको
शरद्पूर्णिमा के चंद्र पर
निगोड़े मेघो का छा जाना !! …
Added by नन्दकिशोर दुबे on October 1, 2017 at 9:00pm — 3 Comments
बहरे रमल मुसम्मिन मख़बून महजूफ़ मक़तूअ--
2122 1122 1122 22
एक चेह्रे पे कई चेह्रे लगा रक्खे हैं
इस ज़माने से कई राज़ छुपा रक्खे हैं
अश्क आँखों में लिये और हँसी चेह्रे पर
दर्द हमने कई सीने में दबा रक्खे हैं
टूट जाएँ न कहीँ अश्क जमीं पर गिरकर
अपनी पलकों पे करीने से सजा रक्खे हैं
इस ज़माने को कभी ख्वाब मेरे रास आएँ
सोचकर…
Added by rajesh kumari on October 1, 2017 at 1:31pm — 15 Comments
1222 1222 1222 1222
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हमारे सामने सबने कसम गीता की खाई है
जला पुतला सभी ने पाप की कर दी विदाई है
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सभी ये बेटियाँ बहनें सुरक्षित आज से होंगी
अजी रावण की रावण ने यहां कर दी पिटाई है
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बड़ी बातें सभी करते नही है राम कोई भी
कहीं हिन्दू कहीं सिख है यहाँ कोई ईसाई है
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न होती धर्म की सेवा न है संस्कार से नाता
दया बसती नही दिल में दिखावे की भलाई है
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लगाकर हाथ आँचल को वहीं खींसे…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 1, 2017 at 1:00pm — 12 Comments
काफिया : आल ; रदीफ़ अच्छा है
बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२(११२)
११२२
दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा है
खुद करो भूल, अदू को सज़ा’ ख्याल अच्छा है |
नाम है रहनुमा’ क्या राह दिखाई किसी’ को
झूठ पर झूठ, तुम्हारा ये’ कमाल अच्छा है |
आज कोई नहीं’ सुनते किसी’ की दुनिया में
उत्तरी कोरिया’ का बम्ब धमाल अच्छा है |
चाँद में दाग है’, मालूम है’ दुनिया को भी
प्रियतमा मेरी' तो' बेदाग़ जमाल अच्छा है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2017 at 11:00am — 9 Comments
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