तू ये कर और वो कर बोलता है.
न जाने कौन अन्दर बोलता है
.
मेरे दुश्मन में कितनी ख़ामियाँ हैं
मगर मुझ से वो बेहतर बोलता है.
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जुबां दिल की; मेरे दिल से गुज़रकर
मेरे दुश्मन का ख़ंजर बोलता है.
.
मैं कट जाऊं मगर झुकने न देना
मेरे शानों धरा सर बोलता है.
.
मैं हारा हर लड़ाई जीत कर भी
जहां सुन ले! सिकंदर बोलता है.
.
बहुत भारी पडूँगा अब कि तुम पर
अकेलों से दिसम्बर बोलता है.
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नया मज़हब नई दुनिया बनाओ
ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 30, 2019 at 11:30pm — 10 Comments
नशाख़ोरी
करते हैं जन जो नशा, होता उनका नाश
तिल-तिल गिरते पंक में, बनते हैं अय्याश
बनते हैं अय्याश, नष्ट कर कंचन काया
रिश्तों को कर ख़ाक बनें लगभग चौपाया
छपती खबरें रोज न जाने कितने मरते
युवा वर्ग गुमराह नशा जो हर दिन करते।।1
जरदा गुटखा पान सँग, बीड़ी औ' सिगरेट
अब यह कैसे बन्द हो, इस पर करें डिबेट
इस पर करें डिबेट, किया क्या हमने अब तक
आसानी से नित्य पहुँचता क्यों यह सब तक
बालक, वृद्ध, जवान न करते इनसे…
Added by नाथ सोनांचली on November 28, 2019 at 7:30pm — 8 Comments
उर उमंग से भर गया
मैं छम छम नाचूँ आज
ख़बर सखी ने दी मुझे
मेरे पिया खड़े हैं द्वार
मन प्रसन्न इस बात से
नित गाए ख़ुशी के गीत
मिलने क़ी बेताबी उर में
प्रतिदिन औऱ बढ़ाए प्रीत
द्वार तक रहे सुबह से नयना
औऱ छत पे कागा का शोर
स्वाती क़ी बूँदों क़ी प्रतीक्षा
करता रहता है जैसे चकोर
-प्रदीप देवीशरण भट्ट -26.11.2019, हैदराबाद(9867678909)
मौलिक व अप्रकाशित
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 28, 2019 at 6:00pm — 3 Comments
दोहे
तोड़ो चुप्पी और फिर, कह दो मन की बात
व्याकुल तपती देह पर, हो सुख की बरसात।१।
लाज शरम चौपाल की, यू मत करो किलोल
जो भी मन की बात हो, अँखियों से दो बोल।२।
मन से मन की बातकर, कम कर लो हर पीर
बाँध रखो मत गाँठ में, दुख देगा गम्भीर।३।
मन से निकलेगी अगर, दुखिया मन की बात
जो भी शोषक जन रहे, देगी ढब आधात।४।
कहना मन की बात नित, करके सोच विचार
जोड़े यह व्यवहार को, तोड़े यह …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2019 at 6:00am — 10 Comments
अब सिर्फ़ तुम्हारी यादें ही तो हैं
जिन्हें संजोकर रक्खा हुअ है मैंने।
अपनी धुँधली होती हुई स्मृतियों में,
इन गुलाब के फूलों क़ी पंखुड़ियों में॥
मैं अभी तक भी कुछ नहीं भूला हूँ,
लैंपपोस्ट क़ी वो मद्दिम रौशनी में।
मेरे कांधे तुम्हारा धीरे से सर रखना,
औऱ फिर घंटो तलक अपलक निहारना॥
वो आकाश में बिजली का वो कौंधना,
तुम्हारा घबराकर मुझसे लिपट जाना।
मुझे अहसास कराता था सदियों का,
उन पलों का कुछ देर यूँ ही…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 27, 2019 at 6:30pm — 4 Comments
प्रश्न मैं तुझ पर उठाऊँ, हूँ नहीं इतना पतित भी,
किन्तु जो प्रत्यक्ष है उस पर अचंभित हूँ, अकिंचन!
पूछ बैठा हूँ स्वयं के, बोध की अल्पज्ञता में,
बोल दे हे नाथ मेरे, क्या यही तेरा सृजन था?
जब दिखी मुस्कान तब-तब, आँसुओं का आचमन था।
आस के मोती हृदय की, सीप में किसने भरे थे?
कौन भावों की लहर में, घोल रंगों को गया था ?
धड़कनों की थाप पर, किसने किया मन एकतारा?
प्रीत की पहली छुअन को, पुण्य सम किसने किया था?
किन्तु क्षण के बाद…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 27, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
डोरबैल पे उंगली रखते ही दरवाज़ा खुल गया।जैसे बंद दरवाज़े के पीछे खड़ी वसुधा बेसब्री से इसी पल का इंतज़ार कर रही थी । लपक कर पति के हाथ से उसने ब्रीफकेस ले लिया।जब तक उमेश ने कपड़े बदले वसुधा ने चाय के साथ गरम नाश्ता लगा दिया।
Added by Manju Saxena on November 26, 2019 at 8:30pm — 2 Comments
३ क्षणिकाएँ :
दूर होती गईं
करीब आती आहटें
शायद
घुटनें टेक दिए थे
साँसों ने
इंतज़ार के
.............................
दूर चला जाऊँगा
स्वयं की तलाश में
आज रात
जाने किसके बिम्ब में
हो गया है
समाहित
मेरा प्रतिबिम्ब
..............................
हां और न के
लाखों चेहरे
हर चेहरे पर
गहराती झुर्रियाँ
हर झुर्री
विरोधाभास को जीतने की
दफ़्न…
Added by Sushil Sarna on November 26, 2019 at 4:30pm — 12 Comments
काश मैं भी उड़ सकती
खुले विस्तृत गगन में
बादलों को चीरते हुए
और छू सकती आकाश
पर ये संभव ही कहाँ है …
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 26, 2019 at 1:00pm — 14 Comments
दर्द की एक
अजब अनुभूति होती है ,
अपने और अपनों के दर्द
कुछ न कुछ तकलीफ देते हैं।
कभी किसी बिलकुल
दूसरे के दर्द को महसूस करो ,
वो तकलीफ तो कुछ ख़ास
नहीं देते हैं , पर जो दे जाते हैं
वो किसी भी दर्द से भी
कहीं अधिक कीमती होता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2019 at 11:57am — 14 Comments
सुना था मसले,
दो तरफा हुआ करते हैं,
पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,
जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।
हमने भी यह सोच कर,
ज़िक्र न छेड़ा कि,
ख़ामोशी कई मर्तबा,
लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,
पर अफसोस कि,
पासा ही पलट गया,
अपना तो मजमा लग गया,
और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,
नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।
मौलिक व् अप्रकाशित।
Added by Usha on November 26, 2019 at 9:00am — 14 Comments
जब तक रहना जीवन में
फुलवारी बन रहना
पूजा बनकर मत रहना
तुम यारी बन रहना
दो दिन हो या चार दिनों का
जब तक साथ रहे
इक दूजे से सबकुछ कह दें…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 25, 2019 at 7:33pm — 5 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
धन से न आप तोलिए लम्हों की तितलियाँ
कहना फजूल खोलिए लम्हों की तितलियाँ।१।
****
उड़ती हैं आसपास नित सबके मचल - मचल
पकड़ी हैं किस ने बोलिए लम्हों की तितलियाँ।२।
****
सुनते जमाना उन का ही होता रहा सदा
फिरते हैं साथ जो लिए लम्हों की तितलियाँ।३।
****
किस्मत हैं लाए साथ में तुमसे ही ब्याहने
कहती हैं द्वार खोलिए लम्हों की तितलियाँ।४।
****
जिसने न खोला द्वार फिर आती कभी नहीं
कितना भी चाहे रो लिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2019 at 5:24am — 14 Comments
क्षणिकाएं।
इतने बड़े जहां में,
क्यों तू ही नहीं छिप सका,
ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,
कि, हर नए ज़ख्म पर,
नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1
सुना-सुना सा लगता है,
वो सदा है उसके वास्ते,
जीया-जीया सा सच है,
वो खुद ही है खुद के वास्ते,
हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2
कहते…
Added by Usha on November 24, 2019 at 10:18am — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 23, 2019 at 1:00pm — 7 Comments
पानी पर चंद दोहे :
प्यासी धरती पर नहीं , जब तक बरसे नीर।
हलधर कैसे खेत की, हरित करे तकदीर।१ ।
पानी जीवन जीव का, पानी ही आधार।
बिन पानी इस सृष्टि का, कैसे हो शृंगार।२ ।
पानी की हर बूँद में, छुपा हुआ है ईश।
अंतिम पल इक बूँद से, मिल जाता जगदीश।३ ।
पानी तो अनमोल है, धरती का परिधान।
जीवन ये हर जीव को, प्रभु का है वरदान।४ ।
बूँद बूँद अनमोल है, इसे न करना व्यर्थ।
अगर न चेते आज तो, होगा बड़ा अनर्थ।५…
Added by Sushil Sarna on November 22, 2019 at 7:30pm — 12 Comments
221 2121 1221 212
-
रौशन है उसके दम से सितारों की रौशनी
ख़ुश्बू लुटा रही है बहारों की रौशनी
-
इक वो है माहताब फक़त आसमान में
फीकी है जिसके आगे हज़ारों की रौशनी…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on November 21, 2019 at 8:52pm — 6 Comments
ये आसमां धुआँ-धुआँ क्यों है?
सुबू शाम बुझा-बुझा क्यों है?
इन्सां बाहर निकलने से डर रहा है
बीमारियों की फ़िज़ा क्यों है?
यह सारा किया उसी ने है
ज़हर फैलाया उसी ने है
बेजान इमारतों के ख़ातिर
वृक्षों को गिराया उसी ने है
कितने अपशिष्ट जलाए उसने?
कितने कारखाने चलाए उसने?
क्या उसे नहीं पता ?
इतनी बद्दुआएँ क्यों हैं?
ये आसमां धुआँ-धुआँ क्यों है?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 21, 2019 at 11:30am — 3 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on November 19, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
दो क्षणिकाएँ ...
पुष्प
गिर पड़े रुष्ट होकर
केशों से
शायद अभिसार
अधूरे रहे
रात में
........................
मौन को चीरता रहा
अंतस का हाहाकार
कर गयी
मौन पलों का शृंगार
वो लजीली सी
हार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 19, 2019 at 4:34pm — 8 Comments
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