२१२ २१२
मैं जहाँ भी रहूँ,
तू भी आती है क्यूँ।
मैं अकेला कहाँ,
तेरी यादों में हूँ।
ठोकरें भी लगें,
तो भी चलता रहूँ।
मेरी बर्बादियाँ,
चल रही दू ब दूँ।
कत्ले अरमाँ या जाँ,
बोल दे क्या करूँ।
जिस्म ठंडा हुआ,
रूह जलती है क्यूँ।
है तेरी याद में,
दीद में खूँ ही खूँ।
ज़ख़्मी सारा जिगर,
दर्द कैसे सहूँ।
आशियाना नहीं,
बेठिकाना फिरूँ।
यार भी छल…
Added by इमरान खान on November 20, 2012 at 11:30pm — 9 Comments
आज करना कुछ नया-सा चाहता हूँ
आस के जज़्बात भरना चाहता हूँ
ये ग़ज़ल मेरी अधूरी है अभी तक
बस तेरी ख़ुशबू मिलाना चाहता हूँ
शौक़ है ये और ज़िद भी है हमारी
दिल में दुश्मन के उतरना चाहता हूँ
ख़ौफ़जद है ज़िंदगी अब तो हमारी
प्यार के कुछ रंग भरना चाहता हूँ
दुश्मनों ने दोस्त बन कर जो किया था
गलतियाँ उनकी भुलाना चाहता हूँ
(मात्रा 2122 2122 2122 की कोशिश की है ।)
Added by नादिर ख़ान on November 20, 2012 at 11:00pm — 6 Comments
जिंदगी तेरा दायरा मालूम........
इस जमाने का फलसफा मालूम।।
किस तरह आये थे यहाँ मालूम ,
और जाने का रास्ता मालूम........
रात दिन सामना सवालों से,
मन में है कितनी दुविधा मालूम।।
भूख से पेट खाली है कितना,,
जबकि मौसम है खुशनुमा मालूम।।
लोग खुश हैं कि मर गया सुजान,,
कौन थे ये पता करो मालूम।। सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on November 20, 2012 at 9:39pm — No Comments
कुछ और शाम इंतज़ार सही
कुछ और दिल बेकरार सही
कुछ और रखी जिन्दगी दांव पे
कुछ और तेरा ऐतबार सही
कुछ और गम के समंदर पालूँ
कुछ और काज़ल की धार सही
कुछ और चले ये रात अँधेरी
कुछ और सर्द अंगार सही
कुछ और चाँद की ख्वाहिश मेरी
कुछ और तेरा ये प्यार सही
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 20, 2012 at 8:56pm — 3 Comments
[1] जल चरणों के श्लोक यह , जग हित में शुभ-लाभ !
पी कर विष प्रदूषण का , हुआ नीर अमिताभ !!
[2] पाट कर सब ताल कुँए , हम ने की यह भूल !
पानी - पानी हो गई , निज चरणों की धूल !!
[3] कर न पायें दीपक ज्यों , तेल बिना उजियार !…
ContinueAdded by लतीफ़ ख़ान on November 20, 2012 at 4:57pm — No Comments
त्योहार के हादसे
छठ पूजा के दिन आज,
हुई बड़ी दुर्घटना, कई,
आदमी मरे पटना में,
त्योहार को हुई,फिर ये घटना ।
भारत की यह नियमित घटना,
होती है हर साल, कभी यहाँ,
तो कभी वहाँ, कुचले जाते,
हैं लोग प्रार्थना करते-करते…
ContinueAdded by akhilesh mishra on November 20, 2012 at 10:57am — 6 Comments
तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /
Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments
सभी से सादर निवेदन है कि यह मेरी प्रथम कहानी है कृपया अपने विचा रखें .....
कभी-कभी लोकल सवारी गाड़ी में चलते हुए भी ऐसा महसुस होता है कि जैसे उसकी रफ़्तार जिंदगी से तेज हो गयी हो तो वहीँ कभी-कभार किसी सुपरफास्ट ट्रेन में भी आदमी ऐसे झेल जाता है कि मानो मंजिल ही दोगुने रफ़्तार से भाग रही हो और हम कहीं पीछे छूटते जा रहे ! जनवरी के जाड़े की वो रात आज भी मै भुल नहीं पाया हूँ जब वो पहली और अंतिम बार मुझसे मिली थी ! वाकया लगभग डेढ़ साल पहले का है ,जब २२ जनवरी की उस रात…
ContinueAdded by शिवानन्द द्विवेदी सहर on November 19, 2012 at 10:49pm — 5 Comments
फूल ही सही मगर ख़ारों में ज़िन्दा हूँ
मय बनकर ही तलबदारों में ज़िंदा हूँ
मैं इश्क हूँ मुझे आशारों में न ढूंढ
मैं तेरी आँख के इशारों में ज़िन्दा हूँ
मुझे आसमाँ की आज़ादी मिली न कहीं
मैं तेरी याद के इज्तिरारों में ज़िन्दा हूँ
न दे गवाही मुझे इनकारों की तमाम
मैं तेरे खामोश इकरारों में ज़िंदा हूँ
ये माना कि किश्ती है जलजलों में अभी
मैं मगर उम्मीद के किनारों में ज़िन्दा हूँ
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 19, 2012 at 9:35pm — No Comments
तीन भाग जल धरती,शेष जमीन,
प्रकृति सींचे वरना, नीर विहीन/
धरती जल को दुहता,मनुज प्रवीण,
जाने जल बिन होगा, जीवन हीन/
प्रकृति भक्षक बनते, मानव दीन,
बरसें मेघ लगाओ, वृक्ष नवीन/
नद जल सारा खींचा, कूप बनाय,…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:08pm — 2 Comments
नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 19, 2012 at 5:18pm — 9 Comments
वोह दूर क्या हुए
Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2012 at 11:30am — 4 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2012 at 11:00am — 2 Comments
Added by shalini kaushik on November 19, 2012 at 12:31am — 4 Comments
मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया
तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"
झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया
छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया
मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया
Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
"प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !" आकाश शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !
"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !
"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"
“कौन मित्र?”
“अभिनव, कॉलेज वाला...!”
“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”
“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”
“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!”…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on November 18, 2012 at 8:00pm — 14 Comments
उम्र की दौड़ में हम बदल जाते हैं
वक्त की ठोकरों से संभल जाते हैं l
चाँद-तारों की हसरत है जिनको नहीं
सूखी रोटी खुशी से निगल जाते हैं l
कूड़े-कर्कट में पाया हुआ जो मिला
उन खिलौनों से ही वो बहल जाते हैं l
हैं जहाँ में बहुत जिनमें है वो हवस
जो भी देखा उसी पर मचल जाते हैं l
बिन किसी बात हम उनको खलने लगें
इस दुनिया में ऐसे भी मिल जाते हैं l
राजे-दिल खोलो जिसको अपना समझ…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on November 18, 2012 at 7:30pm — 6 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 18, 2012 at 4:36pm — 4 Comments
दोहा सलिला
नीति के दोहे
संजीव 'सलिल'
*
रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .
व्यर्थ घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।
खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।
बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।
फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।
कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।
सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।
नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।
दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।
अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 18, 2012 at 1:21pm — 1 Comment
शब्द-पुष्पों का एक गुच्छा सादर प्रस्तुत है --
हर दिल के दरबार में, बादशाह बेताज
सहज-धीर-उद्भाव-नत, ओबीओ सरताज
ओबीओ सरताज, पूर्ण जो जीवन जीता
’जो कुछ है, वह सार’, सोच का सुगढ़ प्रणेता …
Added by Saurabh Pandey on November 18, 2012 at 11:30am — 25 Comments
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