पहल - लघुकथा -
सुखदेव जी का पांच साल का बेटा आइने के आगे खड़े होकर सिगरेट मुंह में लगाकर अपने पापा की सिगरेट पीने की स्टाइल की नक़ल कर रहा था।
सुखदेव जी की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी, उनकी खोपड़ी भन्ना गयी।गुस्से में तमतमा गये।
"यह क्या कर रहा है बबलू?"
"पापा, देखो आप ऐसे ही पीते हो ना सिगरेट। मैं बिलकुल कॉपी कर लेता हूँ।"
"मगर इसमें धुआँ तो निकल ही नहीं रहा।" उसकी बहिन ने तंज कसा।
"वह भी निकलेगा, थोड़ा बड़ा हो जाने दो।"
"मैं अभी निकालता हूँ तेरा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 13, 2018 at 10:49am — 11 Comments
22 22 22 2
मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ
चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ
हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ
जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ
आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ
मौलिक अप्रकाशित
उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 13, 2018 at 12:00am — 6 Comments
कुछ मुक्तक
1.
आग सीने में मगर आँखों में पानी चाहिए
साथ गुस्से के मुहब्बत की रवानी चाहिए
हाथ सेवा भी करें और' उठ चलें ये वक्त पर
ज़ुल्मतों से जा भिड़े ऐसी जवानी चाहिए।
2.
शेर की औक़ात गीदड़ की कहानी देख लो
नब्ज में जमता नहीं किसका है पानी देख लो
दुम दबाना सीखता जो क्या करेगा वो भला
हौसले का नाम ही होता जवानी देख लो।
3.
समंदर भी गमों के पी जो जाएँ
बहुत ही ख़ास हैं जिनकी अदाएँ
कहाँ हैं मौन ये खामोशियाँ भी
ज़रा तू देख तो…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 12, 2018 at 11:00pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
बे-ख़्वाब आँखों में दबे लम्हात से अलग
गुज़री है ज़िन्दगानी अलामात से अलग
दस्तार रह गई है रवाजों के दरमियाँ
पर इश्क़ खो गया है रिवायात से अलग
जीने की चाह में हुआ बंजारा आदमी
बस घूमता दिखे है मक़ामात से अलग
किस रिश्ते की दुहाई दूँ अहल ए जहाँ को मैं
है क्या यहाँ पे कहिये फ़सादात से अलग
वो वक़्त और ही था कि मौसम बदलते थे
मौसम रहा न अब कोई बरसात से अलग
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2018 at 1:26pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
रहेगी इश्क में बिस्मिल हमारी बेबसी कब तक
हमारा टूटना कब तक और' उनकी दिल्लगी कब तक।
सिमटकर इक परिंदा जान अपनी दे ही बैठा है
शिकारी! तू पकड़ इस पे रखेगा यूँ कसी कब तक।
यहाँ लोमड़ बने बुद्धू, चले तरकीब गीदड़ की
चलेंगी और ये बातें बताओ बे तुकी कब तक।
अवामी सोच बढ़ने पर असर झूठा हुआ इनका
ये जुमलों की अरे साहब!, लगेगी यूँ झड़ी कब तक।
बड़ा तूफ़ान आयेगा लगा…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on November 11, 2018 at 10:30pm — 7 Comments
2122 1122 1122 22
जब भी होता है मेरे क़ुर्ब में तू दीवाना
दौड़ता है मेरी नस नस में लहू दीवाना //१
एक हम ही नहीं बस्ती में परस्तार तेरे
जाने किस किस को बनाए तेरी खू दीवाना //२
इश्क़ में हारके वो सारा जहाँ आया है
इसलिए अश्कों से करता है वजू दीवाना //३
लोग आते हैं चले जाते हैं सायों की तरह
क्या करे बस्ती का भी होके ये कू दीवाना //४
चन्द लम्हों में ही हालात बदल जाते थे
मेरे नज़दीक जो…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 6:00pm — 12 Comments
कल घटना जो भी घटी, नभ थल जल में यार
उसे शब्द में बाँधकर, लाता है अखबार
लाता है अखबार, बहुत कुछ नया पुराना
अर्थ धर्म साहित्य, ज्ञान का बड़ा खजाना
पढ़के जिसे समाज, सजग रहता है हरपल
सबका है विश्वास, आज भी जैसे था कल।1।
जैसा कल था देश यह, वैसा ही कुछ आज
बदल रही तारीख पर, बदला नहीं समाज
बदला नहीं समाज, सुता को कहे अभागिन
लूटा गया हिज़ाब, कहीं जल गई सुहागिन
कचरे में नवजात, आह! जग निष्ठुर कैसा
समाचार सब आज, दिखे है कल ही…
Added by नाथ सोनांचली on November 11, 2018 at 5:00pm — 6 Comments
22 22 22 22
जैसे-तैसे बात बनी है
रमई चादर हाथ लगी है।1
मंदिर-मंदिर घूम रहा मैं
चमचा-चमचा आस पली है।2
'बबुआ काम करेगा बढ़कर',
'दादाओं' ने बात कही है।3
'मम्मी' का मैं राजदुलारा
लगता, 'पगड़ी' माथ चढ़ी है।4
अपनी कुर्सी पर बैठा 'वह'
दिल में कितनी बात खली है!5
साँझ-सबेरे ईश-विनय कर
'राम-रमा' में प्रीत जगी है।6
रंगे आज सियार बहुत हैं
मुझपर सबकी आँख लगी है।7
चोट…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 11, 2018 at 11:08am — 6 Comments
रमीज़ अपनी क्रिकेट टीम का बहतरीन विकेट कीपर बल्लेबाज होते हुए भी लगातार अपनी टीम के साथ नहीं खेल सका वजह थी टीम में पहले से एक सीनियर विकेट कीपर बल्लेबाज मोजूद था जब जब वो अनफ़िट होता या किसी और वजह से नहीं खेल पाता तब ही रमीज़ को टीम में खेलने का मोक़ा मिलता और रमीज़ उस मौक़े का भरपूर फायदा उठाते हुए उम्दा से उम्दा प्रदर्शन करता लेकिन बावजूद इसके भी सीनियर खिलाड़ी के आते ही अगले मेचों में फिर पहले की तरह रमीज़ को पेवेलियन में बेठकर मेच देखना पड़ता!
वक़्त गुज़रता रहा अब रमीज़ ने…
Added by mirza javed baig on November 9, 2018 at 10:00pm — 11 Comments
दीप जलाओ , दिल से जलाओ -
Added by sripoonam jodhpuri on November 9, 2018 at 9:30pm — 3 Comments
प्रणय-हत्या
किसी मूल्यवान "अनन्त" रिश्ते का अन्त
विस्तरित होती एक और नई श्यामल वेदना का
दहकता हुया आशंकाहत आरम्भ
है तुम्हारे लिए शायद घूम-घुमाकर कुछ और "बातें"
या है किसी व्यवसायिक हानि और लाभ का समीकरण
सुनती थी क्षण-भंगुर है मीठे समीर की हर मीठी झकोर
पर "अनन्त" भी धूल के बवन्डर-सा भंगुर है
क्या करूँ ... मेरे साँवले हुए प्यार ने यह कभी सोचा न…
ContinueAdded by vijay nikore on November 9, 2018 at 6:30am — 6 Comments
सजाये कुमकुम अक्षत की थाल
मन में भर अटूट प्रेम स्नेह
आशीष भरे हाथ तिलक लगाएँ
भाई के भाल पर।
बीती बातें बचपन की
वो लड़ाई झगडे भाई बहन के
स्नेह प्यार ही बचे रहे
भाई-बहन के ह्रदय में।
अनमोल वादा रक्षा का
बहन पाए भाई से
भाई-दूज के अवसर पर
मन क्यों न हर्षित हो जाये।
दूर रहे या पास रहे भाई
खुशहाली की कामना लिए भाई की
स्नेह प्रेम का दीप जलाये बहन
ऐसा ही रिश्ता भाई-बहन…
Added by Neelam Upadhyaya on November 8, 2018 at 4:00pm — 6 Comments
"देखो, हम सेलिब्रिटीज़ की ज़िन्दगी के साथ मीडिया ऐसे ही बर्ताव करता रहता है! टेंशन मत लो!"
"सब कुछ मेंशन हो चुका है! तुम तो सिर्फ़ यह बता दो कि मैं तुम्हारा पहला चांद हूं या दूसरा या फिर तीसरे नंबर का?"
"क्या मतलब?"
"देखो अर्थ! अब ज़्यादा मत इतराओ! मैंने भी तुम्हारी उन दोनों लैलाओं के बयान सुन लिए हैं टेलीविज़न पर!"
"देखो शशि! मुझ पर और तुम स्वयं पर विश्वास रखो! तुम्हीं मेरा पहला और आख़री चांद हो, तुम्हीं इंदु, विधु और तुम्हीं मेरी चंदा हो डार्लिंग!"
"फ़िर वे दोनों…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 8, 2018 at 9:00am — 4 Comments
दोहे
दीप जलाएं मौज से, रखें सदा ही ध्यान
आगजनी होवे नहीं, हरपल हो कल्यान ll 1
दीपों की लड़ियाँ जले, हो प्रकाश चहुँओर
ज्ञान पुंज से हर कहीं, होवें सभी विभोर ll 2
घोर तमस मन का मिटे, जीवन हो खुशहाल
भाई भाई सब मिले, कभी न रखें मलाल ll 3
जगमग दीपक सा बनें, तभी बनेगी बात
निरालम्ब को दीजिए, खुशियों की सौगात ll 4
तम आडम्बर का मिटे, मिटे अंधविश्वास
ज्योतिर्मय जग ये करें, दुख ना आये पास ll…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on November 7, 2018 at 9:30pm — 8 Comments
1212 1122 1212 22
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हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है
बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१
चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में
कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२
फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में
हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३
मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने
कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on November 7, 2018 at 12:00pm — 16 Comments
2122---2122---2122---212
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नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी
ग़लतियाँ राई भी हों, पर्वत बना दी जाएँगी
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रौशनी दरकार होगी जब भी महलों को ज़रा
शह्र की सब झुग्गियाँ पल में जला दी जाएँगी
.
फिर कोई तस्वीर हाकिम को लगी है आइना
उँगलियाँ तय हैं मुसव्विर की कटा दी जाएँगी
.
इनके अरमानों की परवा अह्ले-महफ़िल को कहाँ
सुबह होते ही सभी शमएँ बुझा दी जाएँगी
.
नाम पत्थर पर शहीदों के लिखे तो जाएँगे
हाँ, मगर क़ुर्बानियाँ उनकी भुला दी…
Added by दिनेश कुमार on November 7, 2018 at 10:22am — 15 Comments
"आज न छोड़ेंगे, सोते हुओं को चेतायेंगे!"
"घोर अन्धकार है महाराज! सुझावों, चेतावनियों, प्रतिबंधों और घोषणाओं को चुनौती देकर पटाखों, आतिशबाज़ियों और वैद्युत-सजावटों से ही इनका राष्ट्र दहक रहा है, चमक रहा है! इतना तो आपके दहन-आयोजन के आडंबर मेंं भी नहीं होता!"
"...'आडंबर'..! मत कहो मेरे नई सदी के 'सक्रीय अस्तित्व' और 'सांकेतिक स्मरण' को 'आडंबर'..! मेरे दशानन की बदलती भूमिकाएं नहीं मालूम क्या तुम्हें?" नई सदी के नवीन दस मुखौटों वाले विशाल शरीर में अपनी आत्मा लिए दीपावली पर भारत-भ्रमण…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 7, 2018 at 9:30am — 1 Comment
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
अकेला हार जाऊँगा, जरा तुम साथ आओ तो
अमा की रात लम्बी है कोई दीपक जलाओ तो।१।
ये बाहर का अँधेरा तो घड़ी भर के लिए है बस
सघन तम अंतसों में जो उसे आओ मिटाओ तो।२।
कहा बाती मुझे लेकिन जलूँ कैसे तुम्हारे बिन
भले माटी, स्वयं को अब चलो दीपक बनाओ तो।३।
गरीबी, भूख, नफरत, वासनाओं का मिटेगा तम
इन्हें जड़ से मिटाने को सभी नित कर बटाओ तो।४।
महज दस्तूर को दीपक जलाते इस अमा को सब
बने हर जन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2018 at 7:36am — 13 Comments
इस गीत के साथ ओबीओ परिवार के सभी मनीषियों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
सारा जग उजियारा कर दे
दीप कहाँ से लाऊँ
अंधकार ने फन फैलाया
मैला हर इक मन है
सूरज भी गुमसुम सा बैठा
विस्मित नील गगन है
मन को मनका मोती कर दे
सीप कहाँ से लाऊँ
सारा जग उजियारा कर दे
दीप कहाँ से लाऊँ
गली गली में घूमे रावण
हर घर में इक लंका
प्यार मुहब्बत भाईचारा
मिटने की आशंका
कण कण राम बिराजें ऐसा
द्वीप…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2018 at 11:00pm — 12 Comments
अंतर्द्वन्द्व
कितने बर्फ़ीले दर्द दिल में छिपाए
किन-किन बहानों से मन को बहलाए
भीतर की गहरी गुफ़ा से आकर
तुम्हारे सम्मुख आते ही हर बार
हँस देता हूँ , हँसता चला जाता हूँ
स्वयं को छल-छल ऐसे
तुमको भी... छलता चला जाता हूँ
ऐसे में मेरी हर हँसी में तुम भी
हँस देती हो ... नादान-सी
मेरे उस मुखौटे से अनभिज्ञ
न जानती हो, न जानना चाह्ती हो
कि अपने सुनसान अकेलों…
ContinueAdded by vijay nikore on November 6, 2018 at 2:00pm — 14 Comments
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