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November 2015 Blog Posts (159)

गीत - कितना तुझको याद किया.( बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)

श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|

भूल गई मैं सारे जग को, फिर भी तेरा नाम लिया|

यादों में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही गुजार दिया,

श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|

 

देख के तेरी भोली सूरत हम भी धोखा खा ही गए,

मोहन तेरी मीठी-मीठी बातों में हम आ ही गए,

हार गए जीवन में सब फिर भी तेरा नाम लिया

श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|

 

करती हूँ कोशिश मैं मोहन याद हमेशा तुम आओ,

रह नही सकती…

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Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 19, 2015 at 8:30pm — 2 Comments

अज्ञात था अज्ञात हूँ अज्ञात रहने दे मुझे।

मौन रहकर साज भी,                            

हैं ध्वनित होते नहीं,                                    

कुछ बोलने दे आज,                                      

मन की बात कहने दे मुझे ।                  

है नहीं ख्वाहिश कि,                        

सुन्दर सा सरोवर मैं बनूँ,                           

धार हूँ नदिया की मैं,                             

मत रोक बहने दे मुझे ।                                                            हर एक पल भी…

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Added by Ajay Kumar Sharma on November 19, 2015 at 8:08pm — 5 Comments

मिटता मन का मैल(लघुकथा)

अपना पेट काटकर छौटे भाई को पढ़ाया।अपनी जवानी का अधिकत्तर हिस्सा मजूरी करके गुज़ारा।मेहनत करने में दिन न देखा न कभी रात।भाई होनहार जो था पढ़ाई में भी पूरा तेज और लोकव्यवहार में बिलकुल सधा हुआ।

पता नहीं क्या हुनर बख्शा था ऊपरवाले ने उसे।लोगों को झट से मना लेता था और उनके मन तक को पढ़ जाता था।

जब उसके कुछ करने का समय आया तो ,"मुझे नहीं रहना आपके साथ और न ही मैं आपके लिए कुछ कर पाऊँगा।मुझे मेरी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीनी है।मैं जा रहा हूँ।मुझे ढूँढने की भी कभी कौशिश मत करना।" बस इतना… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 19, 2015 at 8:06pm — 11 Comments

फसल [ कविता अतुकांत ]

मेरी बेटी ने गमले में

लॉलिपॉप बो दिया हैI

खुद को पूरा भिगो कर

पानी भी देती है

मिठास की लहलहाती फसल का

इंतज़ार कर रही है I

पगली ने उस दिन

कागज़ का तिरंगा भी बो दिया था

कि  ढेर सारे तिरंगे 

ढेर सारा देश प्रेम उगेगा I

बच्चों की बातें  हैं 

ऐसी ही बेतुकी  ,नासमझ I

हम तो बड़े हैं ,समझदार हैं

हम थोड़ी करते हैं विश्वास 

इन बातों पर ,हैं ना ?

मौलिक व् अप्रकाशित 

Added by pratibha pande on November 19, 2015 at 5:30pm — 8 Comments

नत मस्तक आभार ( दोहें) - लक्ष्मण रामानुज

ईश कृपा से ही हुऐ, सात दशक ये पार,

बाँट सका सुख-दुख सदा,उन सबका आभार | - 1

 

सहयोगी मन भाव से, दिया जिन्होनें साथ,

आभारी उनका सदा,  भली करेंगे नाथ |  - 2

 

सीख मिली जिनसे सदा, उनका ऐसा कर्ज,

चुका सकूँ क्या मौल मै, पूरा करने फर्ज | = 3

 

गुरुजन को मै दे सकूँ, क्या ऐसी सौगात,

सूरज सम्मुख दीप की, आखिर क्या औकात |-4

 

कृपा करे माँ शारदा, तब कुछ मिलता ज्ञान,

विद्वजनों के योग से, लिया सदा संज्ञान | =…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2015 at 5:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल.................जान' गोरखपुरी

122 122 122 122



अजब इक तमाशा है ये ज़िन्दगी भी।

बिछड़ना है सबकुछ मगर दिल्लगी भी।।



बहुत बेमुरव्वत है तासीर दिल की।

मिली जितनी उतनी बढ़ी तिश्नगी भी।।



जमीं हो या आँखें...ख़ुशी हो या हो गम।

है अच्छी नही देर तक खुश्कगी* भी।। (सूखापन)



कहानी मुहब्बत की है तो पुरानी।

नयी सी मगर इसमें है ताजगी भी।।



न समझा कोई हुस्नो-इश्को-वफ़ा पर।

हरिक को है पर इनसे बावस्तगी* भी।। (सम्बद्धता)



ये माना कि बरबादियाँ भी बहुत की।…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 19, 2015 at 1:30pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -बच गये तो शेर, वर्ना कागज़ी थे, सोचिये - ( गिरिराज भंडारी )

2122 2122 2122 212

छोड़िये पानी में उनको तज़्रिबा तो कीजिये

बच गये तो शेर, वर्ना कागज़ी थे, सोचिये



दोस्त हैं हम आपके, इतना तो हक़ होगा हमें

दर्द अपना, आपको दे, कह सकें, सह लीजिये



हम भरोसा किस तरह कर लें, बतायें हाल पर

जब्र से इतिहास उनका है भरा, पढ़ लीजिये



जिनकी है बारूद चाहत वो ज़मीं को देंगे क्या ?

खूँ बहुत है मुल्क़ में तो आप वो ही सींचिये



आपको इनकार यूँ , शोभा नहीं देता ज़नाब

ज़ह्र तो पीते रहें हैं , और थोड़ा… Continue

Added by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:47am — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
चैनो-सुकून, दिल का मज़ा कौन ले गया-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

221-2121-1221-212

 

चैनो-सुकून, दिल का मज़ा कौन ले गया

दामन की वो तमाम दुआ, कौन ले गया?

 

ताउम्र समंदर से मेरी दुश्मनी…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 18, 2015 at 10:12pm — 10 Comments

नया कोई सपना सजाकर तो देखो| -बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’

अरकान -    122      122      122    122  

नया कोई सपना सजाकर तो देखो|

परायों को अपना बनाकर तो देखो

 

लगेगी ए दुनिया तुम्हें खूबसूरत,

ज़रा दिल से नफ़रत भुलाकर तो देखो|

 

सफलता मिलेगी तुम्हें भी यकीनन,

कदम अपने तुम भी बढाकर तो देखो|

 

बहू-बेटियाँ क्यों न पर्दा करेगी,

हया उनको तुम भी सिखाकर तो देखो|

 

करोगे जहां को भी सूरज –सा रोशन,

तुम अपने को पहले तपाकर तो देखो|

 

बनेंगे…

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Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 18, 2015 at 6:30pm — 9 Comments

मौत के मुँह से (लघुकथा)

सोहन नर्मदा किनारे महिष्मति क्षेत्र में नर्मदा परिक्रमावासियो की लिए सदाव्रत प्रारम्भ करने जा रहा है। उसकी आँखों में वह दृश्य घूमने लगा। जल पीकर सीढ़ियों पर लेटे सोहन को बेहोशी छाने लगी। उस पार से आ रही एक नाव की सवारी ने उसे जगाया।

"भाई तू ब्राह्मण का बालक है ना ? यह अन्न दान लेI"

अपनी पहनी हुई धोती में वह अन्न लेकर सोहन मौत के मुँह से घर लौटा आया।

"आज घर में केवल दलिया शेष बची थी। तेरे पिता जी को जोरो से भूख लगी थी, सो मैंने खिला दी,बेटा|" स्कूल से लौटकर…

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Added by Vijay Joshi on November 18, 2015 at 12:00pm — 4 Comments

" सहिष्णुता-असहिष्णुता " - [ लघुकथा ] - 34 _शेख़ शहज़ाद उस्मानी

सर्दी क्या बढ़ी, उनकी 'सहिष्णुता' पर फिर चर्चा होने लगी। सहिष्णुता तो गर्मी और बारिश के मौसम वाले हालात की तरह अपना नियंत्रण खो रही थी। हीटर ने पंखे की सहिष्णुता की बात करते हुए कहा- "अब कर ले तू आराम, लो आ गई अब मेरी बारी ! अब मुझे ही जलना है सुबहो-शाम , रसोई के अलावा कई कमरों में अब मेरा ही है काम !"



पंखे ने अपने चक्कर यथावत जारी रखते हुए कहा- " क्यों मज़ाक करते हो, अनजाने से बनते हो ! मच्छर भगाने, धुले कपड़े सुखाने सर्दियों में मेरा है भारी काम, तुम्हें नहीं मालूम मीटर होता कितना… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 18, 2015 at 3:55am — 9 Comments

कुछ एक बातें …

कुछ एक बातें …

कुछ  एक  बातें  ऐसी  हैं

कुछ   एक   बातें वैसी है

होठों पर  लज्जा   वाली

भीगी   रातों   जैसी   हैं

कुछ एक बातें …

हृदय के सागर पर लिखी

अमर प्रीत की बात  कोई

शब्द नीड़ में जागी  सोई

अलसायी  बातों जैसी  हैं

कुछ एक बातें …

मन के अम्बर  पर कोई

दीप प्रीत के जला  गया

मधुपलों की सिमटी सी

कुछ यादें मेघों जैसी  हैं

कुछ एक बातें …

इक शीत बूँद  अंगारों  पर

तृप्ति पूर्व  ही  झुलस गयी

हार जीत की नैनझील पर…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 17, 2015 at 7:21pm — 4 Comments

इबादत कर रहा हूँ मैं

इबादत कर रहा हूँ कर रहा हूँ

कर रहा हूँ मैं।

खलल मत डालिये चेहरे की पुस्तक,

पढ़ रहा हूँ मैं।।



अभी मैं रोककर साँसों को,

प्राणायाम में रत हूँ।

विधाता की सुघर कृति के सघन,

अवधान में रत हूँ।

अभी मत बोलिये मन में ये प्रतिमा,

गढ़ रहा हूँ मैं।

खलल मत डालिये चेहरे की पुस्तक,

पढ़ रहा हूँ मैं।।



अभी धड़कन सँवरनी है,

अभी शृंगार करना है।

अभी बेजान से बुत पर,

हृदय का हार चढ़ना है।

नज़र मत डालिये प्रियवर मिलन को,

बढ़ रहा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 17, 2015 at 5:09pm — 4 Comments

तेरी याद आई, तो आती चली गई|

तेरी याद आई, तो आती चली गई|

गहरे तक दिल को जलाती चली गई||

.

कितने दिन हुए तुमसे मिले हुए|

याद तेरी हमको, याद दिलाती चली गई||

कौन मानेगा , हम तड़प रहे हैं यहाँ|

तुम वहां दूर, ललचाती चली गई||

.

मुझको यकीन है हम एक ही तो हैं|

यही सोच दूरी, मिटाती चली गई||

.

कितने मंजर नजर के सामने से गुजरे|

हर मंजर में तू, झलक दिखलाती चली गई||

.

लिखने को गज़ल लिख रहा हूँ मैं|

सच तो ये है कि तू लिखती…

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Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on November 17, 2015 at 4:56pm — 1 Comment

जालिम की दलीलें (लघुकथा )राहिला

"देखो,बच्चे बहुत थक गये है और तुम्हारी हालत भी खस्ता हो रही है । हम खच्चर कर लेते है । ये सुनते ही वो कर्कशा!सुपरिचित वाणी में कूकी-"वाह जी वाह!!फिर कैसी यात्रा?अरे थोड़ा बहुत कष्ट तो होता ही है।फिर मेरी सहेलियां कह रही थीं कि जो पुण्य पैदल वैष्णों देवी जाने में है वो...."उसने अपनी बात को वजनी बनाने में दुनिया की दलीलें दे डाली । मैं उसके स्वभाव से बहुत अच्छी तरह वाकिफ़ था,यात्रा में कोई बदमज़गी ना हो इसलिये हमने उसके आगे हथियार डाल दिये।और चल पड़े । हम खरगोश ना सही,परन्तु वो जरूर कछुये की चाल… Continue

Added by Rahila on November 17, 2015 at 3:36pm — 16 Comments

ई मेल [लघु कथा ]

 सुबह  अचानक एक  सपने से उनकी नींद टूट गई    I बडा अजीब सपना था I बेटी  रिनी खाई में गिरी है, ,जोर जोर से चिल्ला रही है ,पर वो उसे बचा नहीं पा रहे हैं I   उन्होंने समय देखा I  सुबह के चार बजे थे I हल्की  ठण्ड के बावजूद माथे पर पसीना था I धीरे से उठ कर वो आगे कमरे में आ गए I   23 साल की बेटी  रिनी ,बेफिक्री से सो रही थी I उसके बच्चों जैसे मासूम  चेहरे को देखते हुए वो धीरे से कुर्सी पर बैठ गए और लैप टॉप खोल लिया I

परसों ही उनके दोस्त शर्मा जी का दिल्ली से फोन आया था I उनकी बेटी…

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Added by pratibha pande on November 17, 2015 at 10:30am — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गज़ल - बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख - गिरिराज भंडारी

22  22  22  22  22  22    

 

कोई दीप जलाओ, कि अँधेरा यहाँ न हो ।

कभी रोशनी की बात चले तो गुमाँ न हो ।।

 

जो शय बढ़ा दे दूरियां उसको खुदी कहें ।

हर हाल में कोशिश रहे, ये दरमियां न हो ।।

 

है फ़िक्र ये कि पंछी उड़ें किस फलक पे अब।

ऐसा भी  ख़ौफ़नाक  कोई आसमाँ न हो ।।

 

उजड़ीं है कई आंधियों में बस्तियां मगर ।

जैसे ये घर उजड़ गया, कोई मकाँ न हो ।।

 

मंज़िल से जा मिले जो कभी राह तो मिले।

रस्तों…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 17, 2015 at 7:30am — 13 Comments

मेरा पैगाम बाक़ी है|- बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’

अरकान- 1222     1222     1222     1222

                    

 

सुनो सब गौर से वीरों मेरा पैगाम बाक़ी है|

न हारो हौसला अपना अभी तो लाम बाकी है|

 

मैं आकर मैकदे में अब बता कैसे रहूँ प्यासा,

पिला दे जह्र ही साक़ी अभी इक जाम बाक़ी है|

 

जमीं से तोड़कर रिश्ता बहुत आगे निकल आया,

मगर हालत कहते हैं अभी अंजाम बाकी है|

 

गए पकड़े वो सारे जो बहुत मासूम थे यारो,

सही कातिल का लेकिन इक सियासी नाम बाक़ी…

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Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 17, 2015 at 12:00am — 4 Comments

हर द्वारे पर दीप जलाएं (गीत)

हर द्वारे हम दीप जलाएं, उत्सव की हो शाम सदा

झूम झूम कर खूब नाचता, जंगल में है मोर सदा |

 

क्षण भंगुर ये जीवन अपना,

कर्म करे से सधता सपना |

रोने से क्या कुछ मिल पाए ?

आओ सब मिले हाथ मिलाएं, काम बाँटते रहे सदा,

हर द्वारे हम दीप - - - - - - - -

 

आतंक का मिल करे सामना,

रहे न ह्रदय में हीन भावना |

सबके सुख के दीप जलाएं

सब मिल डर को दूर भगाएं, ह्रदय भरे विश्वास सदा 

हर द्वारे हम दीप - - - - - -- -…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 16, 2015 at 8:30pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122 - 1122 - 1122 - 22 या 112

 

तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन

रोजे-अव्वल से ही बदनाम रहा हूँ लेकिन

 

हक़ जताने से कभी हक़ नहीं होता…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 16, 2015 at 11:30am — 16 Comments

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