Added by Dr. Vijai Shanker on December 28, 2016 at 10:55am — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments
आहिस्ता – आहिस्ता, पास तू आने लगी,
बाहों मे आकर, दिल मे समाने लगी,
छूकर मुझको, सपना दिखाने लगी,
नींदों मे आकर, तू अब सताने लगी.
सवेरा तू है लाती, तू ही लाती रात है,
मेरे दिल को जो धड़कादे , तुझमे वही बात है....(2)
1} देदूं मैं…
Added by M Vijish kumar on December 28, 2016 at 8:30am — 8 Comments
मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं
और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।
ना जाने नम सी आँखें रहती हैं
और दर्द की पीर आँखें सहती हैं
देखकर बेवफाई यह रोती है
तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।
रात की अँधियारी में कभी रोती हैं
कभी काँधे पे सर रख सोती हैं
अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं
सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।
दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं
आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं
सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की
हर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 8:30pm — 6 Comments
अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI
Added by योगराज प्रभाकर on December 27, 2016 at 10:00am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 27, 2016 at 6:06am — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:16am — 4 Comments
आएगा नया साल
खिलेंगे नये फूल
उगेगा नया सूरज
फैलेगी नयी रौशनी
छंटेगा अँधेरा
सजेगी महफ़िल
गायेंगी वादियाँ
बजेंगी चूड़ियाँ
झूमेगा आसमाँ
नाचेगी धरती
उड़ेगा आँचल
हँसेगा बादल
सच होंगे सपने
मिलेंगी ख़ुशियाँ
मुड़ेंगी राहें
आएगी मंज़िल
मगर...
सिर्फ औरों के लिए
मेरे लिए
तो अब भी वही साल है
कई सालों बाद भी
सड़न और सीलन से युक्त
दुर्गन्ध से भरा हुआ
तड़पता
उदास
बीमार
और बोझिल…
Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
2122 – 1122 – 1122 - 22
केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है
या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है
इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में
जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है
ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम
जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है
मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे
तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है
पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा
तब कहीं जाके हृदय में भी…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments
Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२
प्यार की धुन को बजाता जायगा
राज़ जीवन का सुनाता जायगा |
पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ
दोस्ती सबसे निभाता जायगा |
बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा
दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |
पेट खुद का चाहे हो खाली मगर
खाना भूखों को खिलाता जायगा |
ले धनी का साथ अपनी राह में
मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |
छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा
प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 25, 2016 at 8:00pm — 14 Comments
Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 25, 2016 at 8:54am — No Comments
आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये
जलियाँ वाला याद आया तोपों के निशाने याद आये
हर और तबाही बरपा थी जुल्म ढहाया जाता था
हुस्न के हाथों आशिक के ख़्वाब मिटाने याद आये
अपने पीछे दौड़ रहे उस बालक को जब देखा तो
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये
फूटी कौड़ी भी ना दूँगा जब भी कोई कहता है
कौरव-पांडव वाले तब ही सब अफ़साने याद आये…
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on December 25, 2016 at 12:00am — 3 Comments
2122 2122 212
तू न मेरा हो सका तो क्या हुआ ।
हो गया है फिर जुदा तो क्या हुआ ।।
हम सफ़र था जिंदगी का वो मिरे ।
बस यहीं तक चल सका तो क्या हुआ।।
मैकदों की वो फ़िजा भी खो गई ।
वक्त पर वो चल दिया तो क्या हुआ ।।
फिर यकीं का खून कर के वह गयी ।
दर्द दिल का कह लिया तो क्या हुआ।।
सुर्ख लब पे रात भर जो हुस्न था ।
तिश्नगी में बह गया तो क्या हुआ ।।
डर गया इंसान अपनी मौत से ।
खो गया वो हौसला तो क्या हुआ ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 24, 2016 at 10:30pm — 6 Comments
गाँव में था
एक भवानी का चौतरा
कच्ची माटी का बना
जिसके पार्श्व में लहराता था ताल
जिसके किनारे था एक देवी विग्रह
छोटा सा
चबूतरे को फोड़कर बीच से
निकला था कभी एक वट वृक्ष
जो विशाल था अब इतना
कि आच्छादित करता था
पूरे चबूतरे को
साथ ही देवी विग्रह को भी
अपने प्रशस्त पत्तों की
घनीभूत छाया से
और लटकते थे
इसकी शाखाओं से अरुणिम फल
फूटते थे
शत-शत प्राप-जड़…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 24, 2016 at 2:47pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2016 at 6:47am — 15 Comments
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