मुहब्बत की डगर में फिर किसी का हो के देखूँ
किसी की झील सी आँखों में फिर से खो के देखूँ
अब इन आँखों से उसके प्यार का चश्मा उतारूँ
जहां में हैं बहुत से रंग आँखें धो के देखूँ
जिसे मैं प्यार करता था वो मेरा हो न पाया
जो मुझसे प्यार करता है मैं उसका हो के देखूँ
बहुत दिन हो गए आँखों को कोई ख़्वाब देखे
चलो शानो पे सर रख कर किसी के सो के देखूँ
कोई तो बढ़ के 'सूरज' आँसुओ को पोछ लेगा
मुहब्बत में चलो इक…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 22, 2015 at 11:00pm — 8 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
इक सवाल आँखों में ही बसा रह गया
यूँ लगे जैसे इक ख़त खुला रह गया
रेल से वो चली शहर ये छोड़कर
और टेशन पे मैं बस खड़ा रह गया
दाग गिनवा रहा था जमाने के मैं
सामने मेरे बस आइना रह गया
वक़्त सा वैध भी कर ना पाया इलाज
देखिये ज़ख्म तो ये हरा रह गया
शख्स हर जानता जिंदगी है सफ़र
मंजिलें हर कोई ढूंढता रहा गया
दम निकलते समय भूला मैं रब को भी
इन लबों पर तेरा नाम सा…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2015 at 8:27pm — 10 Comments
"ओह, श्रीमती रोहन आप वाकई बहुत भाग्यशाली हैं । कि आप को रोहन जैसा हंसमुख ,जिंदादिल,स्वतंत्र विचारधारा का धनी पति मिला ।ऑफिस की तो जान है,मजाल जो किसी के चेहरे पर उसके रहते उदासी छा जाये।" रात के खाने पर आमंत्रित उनकी महिला मित्र काफ़ी देर से उनकी शान में कसीदे पढ़े जा रही थी ।
"वैसे बुरा ना मानियेगा, अगर रोहन की शादी ना हुई होती तो उसे किसीभी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देती । आखिर ऐसे इंसान की पत्नी होना अपने आप में गर्व की बात है ।सच कह रही हूं ना! " वो अब मेरी राय जानने के लिये…
Added by Rahila on December 22, 2015 at 1:00pm — 18 Comments
2122 1122 1122 22
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प्यार कहते हैं कि हर चाव बदल देता है
एक मरहम की तरह घाव बदल देता है /1
अश्क लेकर भी किसी को न तू रोते दिखना
कहकहा आँख का बरताव बदल देता है /2
झील ठहरी है बहुत वक्त से कंकड़ मारो
एक कंकड़ ही तो ठहराव बदल देता है /3
अजनवी सोच के यूँ दूर न बैठो हमसे
मिलना जुलना ही मनोभाव बदल देता है /4
माँ की ममता से मिली सीख ये हमको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 22, 2015 at 11:55am — 22 Comments
" आइये ,अपनी कुर्सी पर विराज लीजिए ।" इतना तंज ! ऐसे कह गये वे जैसे उसके सिर पर ही बैठने वाली हो ।
"जी , अब काम समझा दिजीए कि मेरा काम क्या होगा यहाँ ?" उनके लहजे से अपमानित सा महसूस कर रही थी । क्या इनके साथ ही काम करना होगा उसे ? कैसे झेलेगी ? हृदय रूआँसा हो रहा था ।
" अरे ,आप क्या काम करेंगी ? आप तो बस पगार उठा कर ऐश करेंगी , काम तो हमें करना होगा ।" वह चिढ़ कर बोला ।
"मतलब ?" सुनकर अनमना उठी । सतीश आप कैसे झेलते रहे होंगे ऐसे लोगों को , पति की याद में…
Added by kanta roy on December 22, 2015 at 11:30am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 22, 2015 at 1:06am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 22, 2015 at 12:15am — 8 Comments
Added by Samar kabeer on December 21, 2015 at 10:00pm — 16 Comments
ये सिलसिला .......
सच ! कितना स्वार्थी है इंसान
हर जीत पे मुस्कुराता है
हर हार से जी चुराता है
अपने स्वार्थ की पगडंडी पर अक्सर
वो हर रास्ते से नाता जोड़ लेता है
हर मोड़ पे इक दर्द को छोड़ देता है
हर कसम तोड़ देता है
मुहब्बत की पाक इबारत पे
वासना की कालिख पोत देता है
जिस्म के रोएँ रोएँ में
नफ़रत की फसल छोड़ देता
किसी ज़िंदगी को नरक कर
उसके अरमानों को रौंद देता है
किसी की पाकीज़गी को
चीत्कारों से ढक देता है
उफ़ !…
Added by Sushil Sarna on December 21, 2015 at 8:08pm — 4 Comments
दुविधा
सर्द साँझ थी जब शकीला अपने पति के साथ दफ्तर से घर लौट रही थी... वापसी में घर जाने की कोई जल्दी ना थी आराम से गंगा किनारे वाली शांत रोड पकड़, जहाँ अपेक्षाकृत कम ट्रैफ़िक रहता है, बीस-बाईस की गति से अहमद बाइक चला रहा था और शकीला उसकी पीठ से सर टिकाये अपनी थकान से मुक्ति पाने का प्रयास का रही थी. अभी आनंदेश्वर मंदिर पार भी ना हुआ था कि किसी बच्चे के रोने की आवाज़ से शकीला ने चौंक कर अहमद से पूछा, “आपने कुछ सुना?”
“हाँ मंदिर की घंटियों की आवाज़... क्यों क्या हुआ? मंदिर के पास वही…
Added by Seema Singh on December 21, 2015 at 2:35pm — 2 Comments
दीवार
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बड़ा गहरा नाता है
तुम्हारा,
इन आॅसुओं से!
और इन आॅंसुओं का,
तुमसे!
मुझसे भी अधिक , तुम
इन्हें ही चाहते हो।
शायद इसीलिये....
जब तुम नहीं आते
ये,
अवश्य आ जाते हैं।
और जब
तुम आ जाते हो
ये,
तब भी निर्झर से
झरते हैं।
हमारे बीच. ..
अर्धपारदर्शी ,
दीवार बनते हैं!!
डॉ टी आर शुक्ल
7 नवंबर 2013
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr T R Sukul on December 21, 2015 at 11:37am — 4 Comments
2212 1211 2212 12
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पतझड़ में अब की बार जो गुलजार हम भी हैं
कुछ कुछ चमन के यूँ तो खतावार हम भी हैं /1
रखते हैं चाहे मुख को सदा खुशगवार हम
वैसे गमों से रोज ही दो चार हम भी हैं /2
माना कि धूप में भी तो साया नहीं बने
तू देख अपने ज़ह्न में,ऐ यार हम भी हैं /3
तू ही नहीं अकेला जो दरिया के घाट पर
नजरें उठा के देख कि इस पार हम भी हैं /4
जब से कहा है आपने बेताज हो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2015 at 11:30am — 20 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 21, 2015 at 10:24am — 4 Comments
दूर क्षितिज में देखा तारा ,सबका मन हर्षाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने,मरियम सुत था आया
दया प्रेम भाईचारे का ,था सन्देश सुनाता
दीन दुखी की सेवा से ही ,जुड़े प्रभु से नाता
आडम्बर में लिप्त जनों को .उसका सत्य न भाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया
मानवता के हत्यारे तो ,हर युग में हैं आते
इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते
उन लोगों ने फिर ईसा को ,था सलीब चढ़वाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम…
ContinueAdded by pratibha pande on December 21, 2015 at 10:00am — 9 Comments
पिघली हुई आँच
कुछ ऐसी ही
पीली उदासीन संध्याएँ
पहले भी आई तो थीं
पर वह जलती हुई भाफ लिए
इतनी कष्टमयी तो न थीं
दिल से जुड़े, चंगुल में फंसे हुए
द्व्न्द्व्शील असंगत फ़ैसलों पर तब
"हाँ" या "न" की कोई पाबंदी न थी
"जीने" या "न जीने" का
साँसों में हर दम कोई सवाल न था
अनवस्थ अनन्त अकेलापन
तब भी चला आता था
पर वह दिल के किसी कोने में दानव-सा
प्रतिपल बसा नहीं रहता…
ContinueAdded by vijay nikore on December 21, 2015 at 3:58am — 8 Comments
ग़ज़ल
२१२२/१२१२/२२ (११२)
.
अपने अहसास दर-ब-दर रखते,
उन से उम्मीद हम अगर रखते.
.
कौन आता यहाँ, जो पूछता ‘वो’,
चाँद तारों में हम भी घर रखते.
.
नींद आती जो रात भर के लिए,
उन को ख़्वाबों में रात भर रखते.
.
जंग से क़ब्ल हार जाते हम,
दिल में ज़ालिम का हम जो डर रखते
.
वो ख़ुदा ही मिला नहीं हम को,
जिस के क़दमों पे अपना सर रखते.
.
मुख़बिरी करते थे ज़माने की,
काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.
.
छोड़ देते…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:20pm — 24 Comments
।।नियाग्रा फाल।।
" मम्मी बधाई हो ,आप दादी बनने वाली है ।तीन माह हो गये।"
खुशी से सराबोर, जल्दी से स्पीकर आन कर ।"बधाई हो,बधाई
हो, बेटा ख्याल रखना बहू का ,पहले क्यों नहीं बताया, बहू
ठीक तो है ना , कोई परेशानी तो नहीं ?"
"सब ठीक है मम्मी । मम्मी, पापा से कहो पासपोर्ट बनवा लें दोनों का।अभी टाइम है तब तक में बन ही जायेगा ।"
"पासपोर्ट का क्या करना है बेटा ?"
"क्यों ,यहाँ अमेरिका घूमने नहीं आओगे ?"
"तेरे पापा को छुट्टियां कहां मिलती है ?"
"मम्मी मैं कुछ…
Added by Pawan Jain on December 20, 2015 at 5:25pm — 2 Comments
परीक्षाएं सिर पर होने से उसका अधिक से अधिक समय कमरे में ही बीतता था I आज फिर भीतर से ही आवाज़ आई थी I ' मॉम आज मटर की दाल बनाओ न !! '
' अच्छा ' कह मैं मुस्कुराई थी I संभवतः उसने सुन लिया था की मैंने आज सब्जी वाले से मटर ख़रीदे हैं I सोचा ,जा कर पूछ लूँ ! ' और कुछ भी चाहिए !!' भीतर गयी तो कमरे में जो नजारा दिखा ,जेहन में एक ही बात आई ' उफ़ ! ये लड़की भी न !! '…
Added by meena pandey on December 20, 2015 at 1:30am — 6 Comments
एक दिन सच और झूठ एक दूसरे से मिले, दोनों ने सोचा हमें एक जैसा दिखना चाहिये, ताकि लोग खुद ही अपने विवेक से सच और झूठ को पहचान सकें|
और उन्होंने एक जैसे कपड़े पहने और एक जैसे मुखौटे चेहरे पर लगा दिये फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वादा किया कि किसी को अपना चेहरा उजागर नहीं करेंगे|
उसके बाद आज तक झूठ की मधुर आवाज़ के कारण कई लोग झूठ को ही सच समझते हैं और सच अपने वादे के कारण खुद…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 19, 2015 at 7:05pm — 4 Comments
‘बेशक हमारे भाई साहिब को देश छोड़े एक अर्सा हो गया यू.एस.ए. में उन्होनें अपना बिजनेस एम्पायर खड़ा कर लिया है पर उन्हें अपने देश और अपनी संस्कृति से अब भी बहुत प्यार है। इसलिए वो अपने बेटे के लिए मेम नहीं बल्कि एक सुसंस्कृत भारतीय बहू चाहते है।’ शहर के नामचीन बिल्डर अपनी डाॅक्टर पत्नी सहित मेयर साहिब के घर उनकी इकलौती बेटी के लिए अपने भतीजे के रिश्ते के सिलसिले के लिए बतिया रहे थे।
‘यह तो बहुत अच्छी बात है। मेरी बहन व बहनोई भी यू.एस.ए. सिटीज़न हैं । वो आपके भाई साहिब को बहुत…
ContinueAdded by Ravi Prabhakar on December 19, 2015 at 1:46pm — 9 Comments
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