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December 2016 Blog Posts (132)

ग़ज़ल -जो तुम खामोशियाँ पढ़ लो नियामत और हो जाए

1222 1222 1222 1222

****

निगाहों से बुला लीजे शरारत और हो जाए ।

जो धड़कन में बसा लीजे इनायत और हो जाए।।

.

कलाई की अदा देखी कई पैगाम  देती है ।

जरा कंगन बजा दीजे कयामत और हो जाए।।

.

ये परवानों की महफ़िल है गिरा दीजे ज़रा चिलमन।

कहीं ऐसा न हो हमदम अदावत और हो जाए।।

.

दिलों को चैन हम देंगे जफ़ा से तौबा करने दो।

वफ़ा की राह में चाहे बगावत और हो जाए।।

.

मेरे ख़त में तड़पती…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on December 22, 2016 at 9:30pm — 8 Comments

अक्षय गीत ....

अक्षय गीत ....

मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ

तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ

मैं पग पग  आगे  बढ़ता  हूँ

कुछ भी कहने से डरता  हूँ

पीर हृदय की कह  न  सकूं

बन दीप शलभ मैं जलता हूँ

शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ

तुम ही बताओ  कैसे  प्रिय , मैं  कोई  अक्षय  गीत कहूँ

अतृप्त तृषा  है. घूंघट  में

अधरों की हाला प्यासी है

स्वप्न नीड़  पर  नयनों  के…

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Added by Sushil Sarna on December 22, 2016 at 6:00pm — 19 Comments

एक जलज-वीराने में

एक जलज - वीराने में

चहकता हुआ

महकता हुआ

दाग नहीं लगने दिया कभी

आब के छींटे का भी

चक्रवातों में घिरा रहा था

जिन्दगी भर।



लौट चले वो झख मारकर

धक्के खाकर थक हारकर

नाखून घिसाकर दाँत किटकिटाकर

आँधी तूफान भँवर

और

चक्रवात भी।



फिर भी लहलहाता रहा

वह वारिज

कोशिश में

अंबर को नापने की।



चुभने लगी

खुद की ही कलियाँ

शूल बनकर

सताने लगे स्व-सद्कर्म

भूल बनकर।



समझ में आया

क्या… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 22, 2016 at 2:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल- हरम में घुंघरुओं से कुछ कुछ तराने छूट जाते हैं ।

1222 1222 1222 1222

अदा के साथ ऐ ज़ालिम, ज़माने छूट जाते हैं ।

मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।।



तजुर्बा है बहुत हर उम्र की उन दास्तानों में ।

तेरीे ज़द्दो ज़ेहद में कुछ फ़साने छूट जाते हैं ।।



बहुत चुनचुन के रंज़ोगम को जो लिखता रहाअपना।

सनम से इंतक़ामों में निशाने छूट जाते हैं ।।



रक़ीबों से मुसीबत का कहर बरपा हुआ तब से ।

हरम में घुंघरुओं से कुछ तराने छूट जाते हैं ।।



वो कुर्बानी है बेटी की जरा ज़ज़्बात से पूछो…

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Added by Naveen Mani Tripathi on December 22, 2016 at 10:30am — 1 Comment

सौदा ( कविता)

आज एक सौदा ही कर लें

बोली बॉस एक दिन

सुनकर यह चकित हुई मैं

देखती रही उनको एकटक

देख मुझको भांप गयी वो

मुझे लगा कांप गयी वो

पर नहीं , नहीं हुआ कोई असर

बोलीं न छोडूंगी कोई कसर

अब मैं हुई और परेशान

शैतान आया था बनकर मेहमान

रुकी कुछ पल फिर हंस कर बोलीं

अपने ईमान की पोल खोली

सुनो मेरा तुम करो एक काम

न करना इस बात को आम

मेरे पास काला धन पड़ा है

मोदी जी ने सर पर हथौड़ा मारा है

औरतो के खाते में ढाई लाख़ फ्री है

यह रकम…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2016 at 8:30am — 6 Comments

बंधन-- लघुकथा

"आखिर क्यों नहीं कर लेती उससे शादी, जब साथ साथ रहती हो तो दिक्कत क्या है", उसने घर से निकलते हुए बेटी को टोका| बेटी ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर आगे जाने लगी|

"अभी तुमको नहीं समझ में आ रहा है, कुछ साल बाद समझोगी| आखिर कुछ तो सोचो भविष्य के लिए", उसने फिर से समझाने की कोशिश की|

अबकी बार बेटी पलटी और वापस कमरे में आ गयी| उसके पास आकर उसने माँ का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से बोली "तुम्हें क्या दिक्कत है माँ, हम लोग खुश हैं और जब तक सब ठीक है, साथ रहेंगे"|

"लेकिन कोई बंधन तो…

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Added by विनय कुमार on December 21, 2016 at 9:33pm — 14 Comments

ग़ज़ल : दिल ये करता है के अब साँप ही पाला जाए

बह्र : 2122 1122 1122 22

 

दिल के जख्मों को चलो ऐसे सम्हाला जाए

इसकी आहों से कोई शे’र निकाला जाए

 

अब तो ये बात भी संसद ही बताएगी हमें

कौन मस्जिद को चले कौन शिवाला जाए

 

आजकल हाल बुजुर्गों का हुआ है ऐसा

दिल ये करता है के अब साँप ही पाला जाए

 

दिल दिवाना है दिवाने की हर इक बात का फिर

क्यूँ जरूरी है कोई अर्थ निकाला जाए

 

दाल पॉलिश की मिली है तो पकाने के लिए

यही लाजिम है इसे और उबाला…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 21, 2016 at 9:17pm — 2 Comments

लड़ाई (कविता)

एक दिन कुछ अलग हुआ

समुन्दर और आकाश के बीच

आकाश को देख समुन्दर चिल्लाया

मेरी जगह तुम आ जाओ

यह बात सुनकर आकाश मुस्काया

बोला ठीक है करलो ये प्रयास

सारी मछलियां गभरायीं

अब पंख कहाँ से लायें

चिड़िया उनको देख मुस्काईं

जैसे हम जल में तैरेंगे

तुम सब हवा में उड़ जाना

यह सब देख धरा मुस्काई

दोनों की कैसे खत्म करूँ लड़ाई

पूछा उसने समुन्दर से

दादा बोलो मैं कहाँ जाऊँ

वन , जंगल कहाँ ले जाऊँ?

आकाश से भी पूछा उसने

दिन और रात का… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 21, 2016 at 7:33pm — 7 Comments

गजल(काफियों की...)

2122 2122 2122 2

काफियों का बढ़ गया बाजार देखा है

इश्क को होते हुए लाचार देखा है।1



डूबती कश्ती नहीं मँझधार है तो क्या?

हर बखत सहमी नजर में प्यार देखा है।2



लड़ रहा कोई धनुर्धर रोशनी खातिर

व्यूह का निर्माण तो बेकार देखा है।3



सच पराजित हो रहा हर मोड़ पर दिखता

झूठ की गर्दन सजाया हार देखा है।4



माँगते दाता यहाँ पर भीख में हक भी

रहजनों को तो बने सरकार देखा है।5



दे सकेंगे क्या फ़रिश्ते देश को कुछ भी

लूट का हर शख्स है… Continue

Added by Manan Kumar singh on December 21, 2016 at 7:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बदले-बदले लोग - मिथिलेश वामनकर

बदले-बदले लोग

============

 

बहुत दिन हो गए,

हमने नहीं की फिल्म की बातें।

न गपशप की मसालेदार,

कुछ हीरो-हिरोइन की।

न चर्चा,

किस सिनेमा में लगी है कौन सी पिक्चर?

 

पड़ोसी ने नया क्या-क्या खरीदा?

ये खबर भी चुप।

सुनाई अब न देती साड़ियों के शेड की चर्चा।

कहाँ है सेल, कितनी छूट?

ये बातें नहीं होती।

 

क्रिकेटी भूत वाले यार ना स्कोर पूछे हैं।

न कोई जश्न जीते का,

न कोई…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 3:00pm — 18 Comments

कोई सूरज भी ढल रहा होगा।

2122/1212/22

चाँद जब भी निकल रहा होगा।
कोई सूरज भी ढल रहा होगा।

ज़िन्दगी भर न वो रहेगा यूँ,
उस का दिल भी पिघल रहा होगा।

मर्ज़-ए-दिल हम को ही नहीं केवल,
उसका भी दम निकल रहा होगा।

चोट खाने के बाद हम सा ही,
आज वो भी सँभल रहा होगा।

हम को इतना यक़ीं तो है 'रोहित',
हिज़्र में वो भी जल रहा होगा।

रोहिताश्व मिश्रा
फ़र्रुखाबाद
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Added by रोहिताश्व मिश्रा on December 21, 2016 at 11:21am — 14 Comments

सैंटा क्लॉज़ (अतुकान्त कविता)

टाँग देना दरवाज़े पर अपने मोज़े

रख देना खिड़कियों पे चमका कर जूते

और फिर

सो जाना जल्दी

अच्छे बच्चों की तरह

क्योंकि

आने वाला है सैंटा क्लॉज़

ले कर अपने झोले में

ढेर सारे गिफ्ट्स

जैसे...

रोटिनुमा केक

शिक्षारूपी कैण्डी

टॉफ़ी का घर

चिकित्सा की चॉकलेट

रोज़गार का बिस्कुट

सुरक्षा, सम्मान व न्याय के

रंग-बिरंगे खिलौने

ख़ुशियों की टोपी

और अच्छे दिनों का

झुनझुना

तुम्हारे मोज़ों और जूतों में

भरने के… Continue

Added by Mahendra Kumar on December 21, 2016 at 10:30am — 10 Comments

हक़ीक़त - लघुकथा

"हे परवरदिगार! ये तूने मुझे आज कैसे इम्तिहां में डाल दिया ?" उसने पीछे लेटे लगभग बेहोश, युवक को एक नजर देखते हुए हाथ इबादत के लिए उठा दिए।

...... रात का दूसरा पहर ही हुआ था जब वह सोने की कोशिश में था कि 'कोठरी' के बाहर किसी के गिरने की आवाज सुनकर उसने बाहर देखा, घुप्प अँधेरे में दीवार के सहारे बेसुध पड़ा था वह अजनबी। देखने में उसकी हालत निस्संदेह ऐसी थी कि यदि उसे कुछ क्षणों में कोई सहायता नहीं मिलती तो उसका बचना मुश्किल था। युवक की हालत देख वह उसके कपडे ढीले कर उसे कुछ आराम की स्थिति…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 20, 2016 at 10:30pm — 23 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
पतझड़

दिल के रिश्तों की बगिया में जब भी पतझड़ आता है.

ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...



दिल को तो पतझड़ में भी

जाने क्यों सावन याद रहे,

दिल कोई तिनका है क्या

जो हालातों के साथ बहे?

सावन इसने अपनाया,ये पतझड़ भी अपनाता है...

ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...



बागबान बन कर जिसने

रिश्तों की हर डाली सींचीं,

वो पागल क्या समझेगा

क्यों सावन ने बाँहें खींचीं?

इंतज़ार में सावन के वो फिर-फिर पलक बिछाता… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on December 20, 2016 at 8:30pm — 4 Comments

गरीब सैंटा की अमीरी ( लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही- नॉएडा

" आज कड़ाके की ठण्ड है।" कहते हुए उसने दोनों हाथों को आपस में रगड़ कर अपने अंदर गर्मी का अहसास जगाया। बदन पर पहनी एकमात्र कमीज और पतली सी सांता क्लॉज की ड्रेस उसको गर्म रखने में नाक़ाम लग रही थी।

" ममा ! देखो सैंटा " एक छह या सात साल का बच्चा उसकी ओर उत्सुकता से देखने लगा।

" सारी सुस्ती छोड़कर उसने मुस्कुराते मुखौटे के अंदर ठण्डी साँस भरी और मुठ्ठी टॉफियों के साथ गर्मजोशी से बच्चे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

"थैंक्यू सैंटा !" बच्चे ने लपक कर टॉफियां पकड़ ली।साथ ही उसके पापा ने…

Continue

Added by Janki wahie on December 20, 2016 at 1:30pm — 14 Comments

दोस्ती भी सँभल के करता हूँ

बह्र 2122 1212 22



मै अनायास आह भरता हूँ

जब गली से तेरी गुजरता हूँ।



डोर नाजुक बहुत है रिश्तों की

दोस्ती भी सँभल के करता हूँ।



साथ माँ की दुआयें है जिनसे

दिन ब दिन ज़ीस्त में निखरता हूँ।।



कोई मजहब नहीं मेरा यारों

मै तो इंसानियत पे मरता हूँ।।



हौसलों में उड़ान है मेरे

आँधियों के भी पर कतरता हूँ।



मैं भी नेता बनूँ मगर कैसे

मैं कहाँ बात से मुकरता हूँ।।



तेरी यादों के तेज झोंको से

रोज़ मैं टूट… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 12:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल वो सुर्खरूं चेहरे पे कुछ आवारगी पढ़ने लगी

2212 2212 2212 2212



शर्मो हया के साथ कुछ दीवानगी पढ़ने लगी।

वो सुर्खरूं चेहरे पे कुछ आवारगी पढ़ने लगी ।।



हर हर्फ़ का मतलब निकाला जा रहा खत में यहां ।

खत के लिफाफा पर वो दिल की बानगी पढ़ने लगी ।।



वह बेसबब रातों में आना और वो पायल की धुन ।

शायद गुजरती रात की वह तीरगी पढ़ने लगी ।।



गोया के वो महफ़िल में आई बाद मुद्दत के मगर ।

ये क्या हुआ उसको जो मेरी सादगी पढ़ने लगी ।।



कुछ हसरतों को दफ़्न कर देने पे ये तोहफा मिला ।

वो फिर…

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Added by Naveen Mani Tripathi on December 20, 2016 at 6:00am — 8 Comments

सरसी छन्द,,,

सरसी छन्द :

शिल्प :16,11 मात्राएँ चरणान्त गुरु+लघु

****************************

प्रसंग : "धनुष यज्ञ" रामचरित मानस

****************************



सुनें जनक के वचन लखन नें,उमड़ पड़ा आक्रोश ।।

दहल उठी थीं दसों दिशायें,देख लखन का जोश ।।

लगता ज्वालामुखी खड़ा हो,भरे हृदय में रोष ।।

या फ़िर जैसॆ प्रलय सामने,खड़ा हुआ ख़ामोश ।।



काँप उठी थी सभा समूची,नत भूपॊं की दृष्टि ।।

लगता सम्मुख खड़ा शेष अब,खा जाएगा सृष्टि ।।

भृकुटि तनीं भुजदण्ड फड़कते,रक्त…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 19, 2016 at 10:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल ( मुहब्बत करना मुश्किल हो गया है )

(मफाईलुन---मफाईलुन ----फऊलन )

ज़माना दुश्मने दिल हो गया है |

मुहब्बत करना मुश्किल हो गया है |

सफ़ीना बच गया तूफां से लेकिन

बहुत ही दूर साहिल हो गया है |

यह क्या कम है जुदा थी राह जिसकी

वो साथी क़ब्ले मंज़िल हो गया है |

खिलाफे ज़ुल्म कोई लब न खोले

जिसे देखो वो बुज़दिल हो गया है |

निगाहें बोलती हैं यह किसी की

ये दिल अब उनके क़ाबिल हो गया है |

किसी की खूब रूई का है जादू …

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 19, 2016 at 8:30pm — 10 Comments

उसके दरबार में ……………

उसके दरबार में ……………

पूजा कहीं दिल से की जाती है

तो कहीं भय से की जाती है

कभी मन्नत के लिए की जाती है

तो कभी जन्नत के लिए की जाती है

कारण चाहे कुछ भी हो

ये निश्चित है कि

पूजा तो बस स्वयं के लिए की जाती है

कुछ पुष्प और अगरबती के बदले

हम प्रभु से जहां के सुख मांगते हैं

अपने स्वार्थ के लिए

उसकी चौखट पे अपना सर झुकाते हैं

अपनी इच्छाओं पर

अपना अधिकार जताते हैं

इधर उधर देखकर

प्रभु के परम भक्त होने पर इतराते…

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Added by Sushil Sarna on December 19, 2016 at 6:31pm — 12 Comments

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