Added by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 2:18pm — 19 Comments
1222 1222 122
हथेली खून से जो तर हुई थी
न जाने क्यूँ यहाँ रहबर हुई थी
जो सच जाना उसे सहना कठिन था
ज़बाँ तो इसलिये बाहर हुई थी
कि उनके नाम में धोखा छिपा है
समझ धीरे सहीं , घर घर हुई थी
वही इक बात जो थी प्रश्न हमको
वही आगे बढ़ी , उत्तर हुई थी
निकाले जब गये सब ओहदों से
ज़मीं बस उस समय बेहतर हुई थी
कहीं पंडित मरे, टूटे थे मन्दिर
कहो कब आँख किसकी तर हुई थी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 4, 2015 at 8:02am — 19 Comments
“बीबी जी, आज के बाद आप की कोठी में काम नहीं करूंगी” कांता ने काम खत्म करते हुए कहा ।
“क्या सभी घरों का काम छोड़ रही हो। ”
“नहीं” “तो मेरा क्यूँ ?” सरबजीत ने फिक्रमंदी जाहिर करते हुए कहा ।
“तुम बीच में काम कैसे छोड़ जाओगी, मुझे कोई प्रबंध करने का मौका तो दिया होता ।
” बस हम ने तो फैसला कर लिया है कि हम आप की कोठी में काम नहीं करेंगे”
बात को आगे बड़ाते हुए कांता ने कहा “हमने सोचा था कि आप पढ़े लिखे हैं, मगर अब पता चला कि पढाई ने तो बस आपकी सुरत ही बदली है,…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on December 3, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
धन लालसा नष्ट करे बुद्धि बल व् ज्ञान
निष्ठा के सम्भार से होव चित्त महान l
भ्रष्टाचार में लिपट हुए भूले धर्म का पाठ
पड़ी जो लाठी न्याय की सब कुछ सुन सपाट l
Added by Nikunj Pathak on December 3, 2015 at 4:49pm — 2 Comments
हुकूमत तुम ग़रीबों के सरों पर हाथ रक्खेगी,
दबे कुचले हुए लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
सियासत अपने मंसूबों में तुमको साथ रक्खेगी,
मसाइल से घिरे लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
तुम्हारी आंख से निकले हुए आंसू को वो देखें?
तुम्हारी सिसकियाँ देखें या फॉरेन टूर को देखें?
तुम्हारी फस्ल ना आने के मातम को मनायेगें,
या जाकर वेस्ट कंट्री से वो एफडीआई लायेंगे?
मिटाना चाहते हैं वो दुकानों को बाज़ारों से,
कोई…
ContinueAdded by इमरान खान on December 3, 2015 at 3:00pm — 13 Comments
तीन दिन से शहर में कर्फ़्यु लगा हुआ था!चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था!सडक पर एक मक्खी भी नहीं दिख रही थी! उसका पूरा परिवार एक शादी में दिल्ली गया हुआ था!शहर में दंगों के कारण उनका लौटना भी नहीं हो पा रहा था!वह घर पर अकेला ही था!बुढापे और बीमारी के कारण वह शादी में नहीं जा सका था! तीन दिन से दूध वाला,सब्ज़ी वाला ,कामवाली बाई,खाना बनाने वाली बाई आदि भी नहीं आ रहे थे!डाइबिटीज़ और ब्लड प्रैसर की दवा भी खत्म हो गयी थी!जैसे तैसे डबल रोटी के सहारे दिन गुजार रहा था!सुबह से उसे चक्कर आ रहे थे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 3, 2015 at 2:00pm — 18 Comments
अरकान -1222 1222 1222 1222
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता|
तभी तो मेरे घर भी यार नज़राना नही आता|
अगर तुम प्यार से कह दो लुटा दूँ जान भी अपनी,…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 2, 2015 at 11:30pm — 14 Comments
अरे ये क्या किया आपने, वक्त ज़रूरत के लिए एक ज़मीन थी वो भी बेच दी कल को बेटी की शादी करनी है और रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ सोचा है । एक सहारा था वह भी चला गया ।
अरे भाग्यवान, बेटी के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए ही तो बेचा है, और बुढ़ापे का सहारा ये ज़मीन जायजाद नहीं हमारे बच्चे हैं और उनकी तरबियत की जिम्मेदारी हमारी है । रही बात शादी की तो, न लड़की की शादी में दहेज़ देंगे, न लड़के की शादी में दहेज़ लेंगे
हिसाब बराबर है, न लेना एक न देना दो ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by नादिर ख़ान on December 2, 2015 at 10:45pm — 16 Comments
साये....
रहने दो
तुम सायों की खामोशी क्या जानो
तुम सिर्फ खोखले अहसासों के
सूखे शज़र हो
साये का दर्द तो सिर्फ
ज़मीन सहती है
हर जिस्मानी खरोंच को
खामोशी से पी जाती है
उफ़ नहीं करती
रेज़ा रेज़ा बिखरती
तारीक में सिमट जाती है
जब कोई तन्हा शब
किसी परिंदे की तरह
पेड़ पर फड़फड़ाती है
बेतरतीब से सलवटों में
तब वफा भी कराहती है
गुजरे लम्हों के साये
तमाम उम्र
जीने की सजा दे जाते हैं
ज़िस्म की कश्कोल में…
Added by Sushil Sarna on December 2, 2015 at 8:02pm — 12 Comments
तीन दिन के नागे के बाद वो आज आई थी Iमन में आया खींच के डांट लगाऊं पर साथ में चार साल के मुन्नू को देख चुप रह गई I
"बड़ी नई साड़ी पहन कर आई है आज तो ,और ये मुन्नू ने भी नए कपड़े पहन रखे हैं "?
"मैडम जी वो दो दिन मंदिर में रत जगा था ना "I
"पहले ये परांठा सब्जी खिला दे मुन्नू को फिर काम करना "I
"ये नहीं खायेगा मैडम जी ,सुबह से ही प्रसाद मिठाई फल खूब खा रहा है "मुन्नू ने भी आँखों से नानी की बात का अनुमोदन कर दिया I
"कहाँ से आ गया इतना प्रसाद ?"
"वो…
ContinueAdded by pratibha pande on December 2, 2015 at 8:00pm — 11 Comments
जैसे ही वह घर से निकलने को हुई ,बंटी भी साथ जाने की जिद करने लगा I सोचा था आज पैदल ही जायेगी सब्जिया लेने I थोड़ी दूर मुख्य सड़क तक तो चलना था वहीं ताज़ी सब्जिया मिल जाती थीं I पर ये बंटी भी न !! अब सब्जियों के साथ इसे भी टांगना पड़ेगा गोद में ,पैदल तो चलने से रहा ये !वह भुनभुनाई थी कि ससुर जी बोल पड़े -' ले जाओ न बहू !नहीं तंग करेगा ये !जनता हु मैं I 'उन्होंने उसके सिर पर स्नेह भरा हाथ फिराते हुए कहा I
' एयेए .....I 'बंटी ख़ुशी से अपनी ही जगह पर नाच उठा I वह मन ही मन और भन्ना उठी थी I कहना…
Added by meena pandey on December 2, 2015 at 7:00pm — 19 Comments
Added by Samar kabeer on December 2, 2015 at 4:08pm — 14 Comments
मैं खड़ा हूं आपकी अदालत में सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है ।
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है ।
पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं निर्दोष हूं, बेचारा हूं
सच तो ये है कि मैं हत्यारा हूं,
हां मैं हत्यारा हूं
मैं हत्यारा हूं अपने बेटे के मासूम बचपन का
मैं हत्यारा हूं अपनी बेटी के खिलते हुए यौवन का
मैं हत्यारा हूं मां-बाप की बूढ़ी आस का
मैं हत्यारा हूं अपनी पत्नी के कमज़ोर से…
Added by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 2, 2015 at 10:00am — 13 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 1, 2015 at 11:49pm — 12 Comments
टीस.....
चलो न
कुछ और बात करते हैं
अपनी अपनी टीस से
मुलाक़ात करते हैं
नेह से देह की थकान
तो अधरों से तृप्ति हारी है
सच कहूँ तो
बीती हुई रात की
चुपके से हुई बात
कुछ तेरी पलक पर
तो कुछ मेरी पलक पर
अभी तक भारी है
जूही के फूलों में लिपटे
वो स्वप्निल लम्हे
अस्त व्यस्त से सलवटों में
अपनी गंध से
अलौकिक अनुभूति की
व्याख्या करते प्रतीत होते हैं
निर्वसन शरीर के उजास की चांदनी
एकान्तता से लिपट…
Added by Sushil Sarna on December 1, 2015 at 7:45pm — 10 Comments
फ़िरोज़ा बेगम –लघुकथा -
असली नाम तो उसका शबनम बानो था मगर पूरा गॉव उसे फ़िरोज़ा बेगम पुकारता था!इसकी वज़ह थी कि वह निकाह वाले दिन फ़िरोज़ी सूट पहनी थी!सबने मना किया था कि यह शुभ रंग नहीं है!लेकिन वह ज़िद पर अडी रही! क्योंकि फ़िरोज़ी रंग उसका पसंदीदा रंग था!वह वैसे भी शुभ अशुभ में विश्वास नहीं करती थी!
शकील अहमद से उसकी मुलाक़ात एक शादी में हुई थी!शकील का व्यक्तित्व भी गज़ब का था!वह भी अप्रतिम सौंदर्य की मालकिनथी ! दौनों ने एक दो मुलाक़ात में ही निक़ाह का फ़ैसला कर लिया !
शकील की…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 1, 2015 at 6:46pm — 15 Comments
Added by jyotsna Kapil on December 1, 2015 at 12:43pm — 12 Comments
2122 2122 2222
वक्त बनके आ गये हो टल जाओगे
गर्दिशें कर तो अभी ही ढल जाओगे।
बुझ रहे दीये अभी रोशन जो रफ्ता
रोशनी बख्शो नजर में पल जाओगे।
हम बिठा लेते नयन में भूलें सब कुछ
कर भला वरना नजर से चल जाओगे।
आग उर में ले चले तो रौशन कर मग
बेवजह बाँटो तपिश मत जल जाओगे।
छल गये हो बार कितनी पूछो खुद से
सच न हो एक बार फिर अब छल जाओगे।
.
मौलिक व अप्रकाशित@
Added by Manan Kumar singh on December 1, 2015 at 10:00am — 2 Comments
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