सभी सहह्रदयी सदस्यों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएँ
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2013 at 2:30pm — 21 Comments
हार गया समय ... !
कि जैसे अतिशय चिन्ता के कारण
आसमान काँपा
आज कुछ ज़्यादा अकेला
थपथपा रहा हूँ
कोई भीतरी सोच और
अनुभवों की द्दुतिमान मंणियाँ ...
तुम्हारी स्मृतिओं की सलवटों के बीच
मेरे स्नेह का रंग नहीं बदला
हार गया समय
समझौता करते ...
एकान्त-प्रिय निजी कोने में
दम घुटती हवा
अँधेरे का फैलाव, उस पर
कल्पना का नन्हा-सा आकाश
टंके हुए हैं वहाँ…
ContinueAdded by vijay nikore on December 31, 2013 at 1:00pm — 32 Comments
नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम
वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......
गत्य धुरी पर आगत नित नव
युग्म सतत, प्रति क्षण हो उत्सव,
सद्विचार सन्मार्ग नियामक
ऊर्ध्व करें मानवता मस्तक,
मिटे कलुषता का अँधियारा, हृदय ज्ञान से ज्योतिर्मय हो ......
नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम, वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......
परिष्कार को प्रतिक्षण तत्पर
संकल्पित अभ्यास सतत कर,
नित्य ज्ञान हित सर्व समर्पित
क्षुद्र अहम् कर पूर्ण…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 31, 2013 at 11:30am — 43 Comments
इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या
तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले…
Added by ajay sharma on December 31, 2013 at 1:00am — 11 Comments
पूर्व संध्या की हुई विदाई
भाव भीनी भीनी
राजा जी का महल जागा
नव वर्ष की कर अगवानी
*
मंदिर का बजा घण्टा
ले टीका चंदन का
धूप दीप कर्पूर की आरती
पूरी घाटी महकी चंदन सी
*
सूरज अलसाता जागा
बादलों का मोह न छोड़ा
रहा दिन सोया सोया
सांझ पर न पहरा कोई
*
कुछ बुँदों की टीप टाप
पवन में सुर न जागा
आधि दुनिया में हो-हल्ला
आधि दुनिया खोयी खोयी.
*
कहीं आदि कहीं अंत
कहीं मातम कहीं खुशी
दक्षिणी…
Added by coontee mukerji on December 30, 2013 at 10:30pm — 17 Comments
212221222122
पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।
ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,
थम गए तूफान, नूतन साल आया।
गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।
पूछता है रब कि तेरी, क्या रज़ा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 30, 2013 at 10:00pm — 31 Comments
जब भी उनपे दांव खेला हम हारकर हर बार निकले,
हमारी तबाही की साजिश में एक दो नहीं हज़ार निकले.
रो भी ना पाये यह जानकर अपनी…
ContinueAdded by Malendra Kumar on December 30, 2013 at 8:00pm — 8 Comments
आकर्षण – विकर्षण
चुम्बक मे ही नहीं होता
भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं
भावों को ।
बस , नियम उलटा है
चुम्बक से ।
एक ही भावों होता है खिचाव …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 7:30pm — 22 Comments
तेरी सूरत का नज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
बस धड़कने का सहारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
बेवफाई कि खिजां में खो गया था जो कभी ,
प्यार का मौसम दुबारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
जिनकी कातिल सी अदा पर मर मिटा था ये कभी ,
उन निगाहों का इशारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,
आज फिर टूटा सितारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।
भूलकर दुनिया के सारे आशियाँ और मकाँ ,
तेरे आँचल में गुज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on December 30, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
सूखे पत्तों के ढेर में
उम्मीद का
एक अंकुर फूटा
सूखे पत्ते मानो,
लाशें हैं
लाश हारे हुये लोगों की
लाश,
पराधीनता को किस्मत समझ
डर-डर के जीने वालों की
वो अंकुर है
भाग्योदय का
कीचड़ में उतर
परजीवियों को
साफ कर
समाज से
बीमारी हटाने वालों का
जो एक ज़र्रा था कल तक
आज
ज़माना उसकी चमक देख रहा है
अपनी नन्हीं आँखें खोल
मानो, कह रहा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2013 at 10:52am — 32 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on December 28, 2013 at 11:00pm — 27 Comments
मेरी रचना ऐसी हो
मेरी रचना वैसी हो
घूंघट में है रचना मेरी
न जाने वो कैसी हो
शृंगार करूँ मैं सदा कलम का
नित्य हृदय के भावों से
उस पलक द्वार पर देगी दस्तक
जो मेरी रचना की अभिलाषी हो
मौन अधर हों
मौन नयन हों
मौन प्रेम का
हर बंधन हो
बिन बोले जो
कह दे सब कुछ
मेरी रचना ऐसी हो,
हाँ ,मेरी रचना ऐसी हो…….
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 28, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
ठिठुरती उँगलियाँ
ठिठुरती काँपती उँगलियाँ
तैयार नहीं छूने को कागज़ कलम
कैसे लिखू अब कविता मैं
बिन कागज़ बिन कलम
भाव मेरे सब घुल रहे हैं
गरम चाय की प्याली में
निकले कंठ से स्वर भी कैसे
जाम लग गया ,कंठ नली में
धूप भी किसी मज़दूरन सी
थकी हारी सी आती है
कभी कोहरे की चादर ओढे
गुमसुम सी सो जाती है
सुबह सवेरे ओस कणों से
भीगी रहती धरती सारी
शायद, रात कहर से आहत…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on December 28, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव
धधक रही भठ्ठी में
महुवा महक रहा है
धनिया की हंसुली पर
सुनरा लहक रहा है
कारतूस की गंध
अभी तक नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती
या, फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव !
माहू से सरसों, गेहूं को
चलो बचाएं जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 28, 2013 at 2:30pm — 40 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२
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इश्क जबसे वो करने लगे
रोज़ घंटों सँवरने लगे
गाल पे लाल बत्ती हुई
और लम्हे ठहरने लगे
दिल की सड़कों पे बारिश हुई
जख़्म फिर से उभरने लगे
प्यार आखिर हमें भी हुआ
और हम भी सुधरने लगे
इश्क रब है ये जाना तो हम
प्यार हर शै से करने लगे
कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप डरने लगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 27, 2013 at 11:39pm — 13 Comments
क्यूँ
हाँ क्यूँ
मेरा मन
मेरा कहा नहीं मानता
क्यूँ मेरा तन
मेरे बस में नहीं
न जाने इस पंथ का अंत क्या हो
किस इच्छा के वशीभूत हो
मेरे पाँव
अनजान उजाले की ओर आकर्षित हो
निरंतर धुल धूसरित राह पे
बढ़ते ही जा रहे हैं
ये तन
उस मन के वशीभूत है
जो स्थूल रूप में है ही नहीं
न जाने मैं इस राह पे
क्या ढूढने निकला हूँ
क्या वो
जो मैं पीछे छोड़ आया
या वो
जो मेरे मन की
गहरी कंदराओं में…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
कहते हैं की इन्सान दुनिया से मुँह चुरा सकता है पर स्वयं से नहीं। जब भी हम कुछ करते हैं अच्छा या बुरा हम स्वयं ही उसके गवाह और न्यायाधीश होते हैं, अगर अच्छा करते हैं तो खुद को शाबासी देते हैं और बुरा करते हैं तो स्वयं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं,क्योंकि हम खुद के प्रति उत्तरदायी होते हैं पर ये सारी क्रिया हम दुनिया के सामने करने का साहस कर सकते हैं … ??? नहीं … ना …!! क्योंकि हम दुनिया से मुँह चुरा रहे होते हैं। हमारे कार्य जीवन के प्रति हमारे नजरिये से जुड़े होते हैं। हम क्या अच्छा करते…
ContinueAdded by Veena Sethi on December 27, 2013 at 5:30pm — 4 Comments
नयी धूप मै ले आऊँगा !
नए साल मे ,
नया सवेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
सपनों के डोले से ,
हर पल –
खुशियाँ सब पर बरसाऊंगा ।
मांगूंगा मै ,
ढेरों खुशियाँ -
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे मे I
सुख, शांति की बारिश होगी
भारत के हर घर बारे मे ।
शांति प्रेम का संदेशा ले ,
मै तो अब –
घर घर जाऊंगा ।
नए साल मे ,
नया सबेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
~~~ मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by S. C. Brahmachari on December 27, 2013 at 5:00pm — 21 Comments
Added by Satyanarayan Singh on December 27, 2013 at 5:00pm — 17 Comments
Added by Sarita Bhatia on December 27, 2013 at 4:21pm — 9 Comments
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