For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

December 2013 Blog Posts (225)

रोज नया त्यौहार (दोहे)- लक्ष्मण लडीवाला

सभी सहह्रदयी सदस्यों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएँ

 

स्वागत हो नव वर्ष का, दे सुन्दर उपहार,
मधुर गीत रच दे सके, शब्द सुमन मनुहार |
 
नए वर्ष की प्रथम किरण, दे सुन्दर अहसास,
नया जोश संचित करे, रचे नया इतिहास |
 
नवजीवन श्रृंगार से, रच नूतन संगीत,
नयी चेतना दे सके, नया सुगम नवगीत | 
 
सात्विक मन की सोच से,नित नूतन आकार 
नए वर्ष की भोर का, सुधि मन से…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2013 at 2:30pm — 21 Comments

हार गया समय ..(विजय निकोर)

हार गया समय ... !

 

 

कि जैसे अतिशय चिन्ता के कारण

आसमान काँपा

आज कुछ ज़्यादा अकेला

थपथपा रहा हूँ

कोई भीतरी सोच और

अनुभवों की द्दुतिमान मंणियाँ ...

तुम्हारी स्मृतिओं की सलवटों के बीच

मेरे स्नेह का रंग नहीं बदला

हार गया समय

समझौता करते ...

 

 

एकान्त-प्रिय निजी कोने में

दम घुटती हवा

अँधेरे का फैलाव, उस पर

कल्पना का नन्हा-सा आकाश

टंके हुए हैं वहाँ…

Continue

Added by vijay nikore on December 31, 2013 at 1:00pm — 32 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......... डॉ० प्राची

नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम

वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......

 

गत्य धुरी पर आगत नित नव

युग्म सतत, प्रति क्षण हो उत्सव,

सद्विचार सन्मार्ग नियामक

ऊर्ध्व करें मानवता मस्तक,

मिटे कलुषता का अँधियारा, हृदय ज्ञान से ज्योतिर्मय हो ......

नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम, वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......

 

परिष्कार को प्रतिक्षण तत्पर

संकल्पित अभ्यास सतत कर,

नित्य ज्ञान हित सर्व समर्पित

क्षुद्र अहम् कर पूर्ण…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on December 31, 2013 at 11:30am — 43 Comments

आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या

इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या

दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या

खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर

अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर

हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी

तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,

आँसू  के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या

तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को

मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले…

Continue

Added by ajay sharma on December 31, 2013 at 1:00am — 11 Comments

शुभ नवल वर्ष

पूर्व संध्या की हुई विदाई

भाव भीनी भीनी

राजा जी का महल जागा

नव वर्ष की कर अगवानी

*

मंदिर का बजा घण्टा

ले टीका चंदन का

धूप दीप कर्पूर की आरती

पूरी घाटी महकी चंदन सी

*

सूरज अलसाता जागा

बादलों का मोह न छोड़ा

रहा दिन सोया सोया

सांझ पर न पहरा कोई

*

कुछ बुँदों की टीप टाप

पवन में सुर न जागा

आधि दुनिया में हो-हल्ला

आधि दुनिया खोयी खोयी.

*

कहीं आदि कहीं अंत

कहीं मातम कहीं खुशी

दक्षिणी…

Continue

Added by coontee mukerji on December 30, 2013 at 10:30pm — 17 Comments

नूतन साल आया (गज़ल) - कल्पना रामानी

212221222122

 

पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।

जाग रे इंसान, नूतन साल आया।

 

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,

थम गए तूफान, नूतन साल आया।

 

गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,

छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।

 

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,

बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

 

मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,

हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।

 

पूछता है रब कि  तेरी, क्या रज़ा…

Continue

Added by कल्पना रामानी on December 30, 2013 at 10:00pm — 31 Comments

हमारी तबाही की साजिश में एक दो नहीं हज़ार निकले (ग़ज़ल)

जब भी उनपे दांव खेला हम हारकर हर बार निकले,

हमारी तबाही की साजिश में एक दो नहीं हज़ार निकले.

 

रो भी ना पाये यह जानकर अपनी…

Continue

Added by Malendra Kumar on December 30, 2013 at 8:00pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आकर्षण के नियम (अतुकांत) -गिरिराज भंडारी

आकर्षण – विकर्षण 

चुम्बक मे ही नहीं होता  

भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं

भावों को ।

बस , नियम उलटा है

चुम्बक से ।

एक ही भावों होता है खिचाव …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 7:30pm — 22 Comments

ढूँढ़ता है दिल मेरा

तेरी सूरत का नज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

बस धड़कने का सहारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

बेवफाई कि खिजां में खो गया था जो कभी ,

प्यार का मौसम दुबारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

जिनकी कातिल सी अदा पर मर मिटा था ये कभी ,

उन निगाहों का इशारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,

आज फिर टूटा सितारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

भूलकर दुनिया के सारे  आशियाँ और मकाँ ,

तेरे आँचल में गुज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा…

Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 30, 2013 at 2:30pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
नये युग की शुरुआत लिखें

सूखे पत्तों के ढेर में

उम्मीद का

एक अंकुर फूटा

 

सूखे पत्ते मानो,

लाशें हैं

लाश हारे हुये लोगों की

लाश,

पराधीनता को किस्मत समझ

डर-डर के जीने वालों की

 

वो अंकुर है

भाग्योदय का

कीचड़ में उतर

परजीवियों को

साफ कर

समाज से

बीमारी हटाने वालों का

जो एक ज़र्रा था कल तक

आज

ज़माना उसकी चमक देख रहा है

 

अपनी नन्हीं आँखें खोल

मानो, कह रहा…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2013 at 10:52am — 32 Comments

सुबह का सूरज --नवगीत !

नवगीत 
********
सुबह का सूरज 
आसमान में चढ़ जाये 
 
नव प्रभात के 
शब्द-सुमन ले 
कलरव का 
उसमे चिंतन ले 
किरणो के कुछ छंद 
सलोने गढ़ जाये    …सुबह का सूरज 
 
होते इस परिपक्व 
दिवस में 
किरणे घुल जाती 
नस-नस में 
कदमों पर आरोप 
थकन के मढ़ जाये …सुबह का सूरज 
 
ढलती ये 
संध्या…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on December 28, 2013 at 11:00pm — 27 Comments

मेरी रचना …

मेरी रचना ऐसी हो
मेरी रचना वैसी हो
घूंघट में है रचना मेरी
न जाने वो कैसी हो
शृंगार करूँ मैं सदा कलम का
नित्य हृदय के भावों से
उस पलक द्वार पर देगी दस्तक
जो मेरी रचना की अभिलाषी हो
मौन अधर हों
मौन नयन हों
मौन प्रेम का
हर बंधन हो
बिन बोले जो
कह दे सब कुछ
मेरी रचना ऐसी हो,

हाँ ,मेरी रचना ऐसी हो…….

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 28, 2013 at 4:30pm — 12 Comments

ठिठुरती उँगलियाँ

ठिठुरती उँगलियाँ 

ठिठुरती काँपती उँगलियाँ  

तैयार नहीं छूने को कागज़ कलम

कैसे लिखू अब कविता मैं

बिन कागज़ बिन कलम

भाव मेरे सब घुल रहे हैं

गरम चाय की प्याली में

निकले कंठ से स्वर भी कैसे

जाम लग गया ,कंठ नली में

धूप भी किसी मज़दूरन सी

 थकी हारी सी आती है 

कभी कोहरे की चादर ओढे

गुमसुम सी सो जाती है 

सुबह सवेरे ओस कणों से

भीगी रहती धरती सारी

शायद, रात कहर से आहत…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on December 28, 2013 at 3:30pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
एक गीत: राणा प्रताप सिंह

नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव

आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव

 

धधक रही भठ्ठी में

महुवा महक रहा है

धनिया की हंसुली पर

सुनरा लहक रहा है  

कारतूस की गंध

अभी तक नथुनों में है

रोजगार गारंटी अब तक

सपनों में है

हो लखीमपुर खीरी, बस्ती

या, फिर हो डुमरांव

कब तक पानी पर तैरायें

काग़ज़ वाली नांव !

 

माहू से सरसों, गेहूं को

चलो बचाएं जी

नील गाय अरहर की बाली

क्यों…

Continue

Added by Rana Pratap Singh on December 28, 2013 at 2:30pm — 40 Comments

ग़ज़ल : इश्क जबसे वो करने लगे

बह्र : २१२ २१२ २१२

------------

इश्क जबसे वो करने लगे

रोज़ घंटों सँवरने लगे

 

गाल पे लाल बत्ती हुई

और लम्हे ठहरने लगे

 

दिल की सड़कों पे बारिश हुई

जख़्म फिर से उभरने लगे

 

प्यार आखिर हमें भी हुआ

और हम भी सुधरने लगे

 

इश्क रब है ये जाना तो हम

प्यार हर शै से करने लगे

 

कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ

भूत से आप डरने लगे

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 27, 2013 at 11:39pm — 13 Comments

उलझे प्रश्नों में हँसता मन

क्यूँ

हाँ क्यूँ

मेरा मन

मेरा कहा नहीं मानता

क्यूँ मेरा तन

मेरे बस में नहीं

न जाने इस पंथ का अंत क्या हो

किस इच्छा के वशीभूत हो

मेरे पाँव

अनजान उजाले की ओर आकर्षित हो

निरंतर धुल धूसरित राह पे

बढ़ते ही जा रहे हैं

ये तन

उस मन के वशीभूत है

जो स्थूल रूप में है ही नहीं

न जाने मैं इस राह पे

क्या ढूढने निकला हूँ

क्या वो

जो मैं पीछे छोड़ आया

या वो

जो मेरे मन की

गहरी कंदराओं में…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 27, 2013 at 8:00pm — 24 Comments

आत्म विश्लेषण क्यों न करे एक बार..........

कहते हैं की इन्सान दुनिया से मुँह चुरा सकता है पर स्वयं से नहीं। जब भी हम कुछ करते हैं अच्छा या बुरा हम स्वयं ही उसके गवाह और न्यायाधीश होते हैं, अगर अच्छा करते हैं तो खुद को शाबासी देते हैं और बुरा करते हैं तो स्वयं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं,क्योंकि हम खुद के प्रति उत्तरदायी होते हैं पर ये सारी क्रिया हम दुनिया के सामने करने का साहस  कर सकते हैं … ??? नहीं … ना …!! क्योंकि हम दुनिया से मुँह चुरा रहे होते हैं। हमारे  कार्य जीवन के प्रति हमारे नजरिये से जुड़े होते हैं। हम क्या अच्छा करते…

Continue

Added by Veena Sethi on December 27, 2013 at 5:30pm — 4 Comments

नयी धूप मै ले आऊँगा !

नयी धूप मै ले आऊँगा !
नए साल मे ,
नया सवेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
सपनों के डोले से ,
हर पल –
खुशियाँ सब पर बरसाऊंगा ।
मांगूंगा मै ,
ढेरों खुशियाँ -
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे मे I
सुख, शांति की बारिश होगी
भारत के हर घर बारे मे ।
शांति प्रेम का संदेशा ले ,
मै तो अब –
घर घर जाऊंगा ।
नए साल मे ,
नया सबेरा -
नयी धूप मै ले आऊँगा ।
~~~ मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by S. C. Brahmachari on December 27, 2013 at 5:00pm — 21 Comments

प्रेम (अतुकांत)

(1)

प्रिये !

अपने मन की व्यथा को

मैं आज किसे सुनाऊँ

इस संसार में

तुम्हारे अलावा इस मन की व्यथा को

दूसरा कौन समझ सकता है

अपमान गरल को

कंठ से लगाकर तुम मीरा तो बन गयी

पर मैं चाहकर भी अब तक

नहीं बन पाया हूँ श्याम

यही मेरे मन की व्यथा है प्रिये !

जिसे तुम्हारे अलावा

और कोई नहीं समझ सकता

इस संसार में

(2)

प्रिये !

तुम्हारा मौन

बहुत कुछ कह जाता है

और बहुत बतियाती है

तुम्हारी आँखे

तुम्हारी मधुर… Continue

Added by Satyanarayan Singh on December 27, 2013 at 5:00pm — 17 Comments

जिन्दगी पर से भरोसा ही उठा है

2122 1122 1122

प्यार में हमने तो यूँ दर्द सहा है
प्यार के नाम से मन डरने लगा है /

मौत को देखा है कुछ पास से इतना
जिन्दगी पर से भरोसा ही उठा है /

लम्हा हर एक जिओ आखिरी ज्यों हो
मौत पर अपना कहाँ बस ही चला है /

है जमाने का ये दस्तूर अनोखा
अपनों ने आग हवाले यूँ किया है /

बाँट सरिता जो सको प्यार ही बांटो
नफरतों से तो सदा घर ही जला है /

..........................
मौलिक व् अप्रकाशित

Added by Sarita Bhatia on December 27, 2013 at 4:21pm — 9 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service