किसी के प्यार की ख़ातिर हमारा दिल तरसे
घटा-ए-इश्क़ तो छाई न जाने कब बरसे
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न तीर दिल पे चला यार ज़ख़्म गर देना
कि इस पे ज़ख़्म हुआ करते जब गुल-ए-तर से
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क़दम बढ़ाना भी मुश्किल है जानिब-ए-मंज़िल
मिला फ़रेब हमें इस क़दर है रहबर से
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करेगा चूर अगर ज़ुल्म की हदें टूटें
उमीद और है क्या आईने को पत्थर से
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ख़ुदाया देख ज़रा भी किसी को, दर्द नहीं
किसी के दर्द बड़े हो गए समंदर से
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लकीरें हाथों की जिसने बनाई मेहनत से
उसे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 18, 2019 at 1:00am — 2 Comments
मेरा बचपन का दोस्त कबीर इस बार तीन साल बाद दुबई से ईद मनाने खास तौर पर अपने देश आया था। मुझे खाने पर बुलाया था। तीन साल पहले वह आया था तो नया मकान बनवाया था। मैं उस समय देश से बाहर था तो नहीं जा पाया था। इस बार तो जाना ही था। दोस्तों से सुना था कि खूब कमाई कर रहा है दुबई में।
शाम को कुछ मिष्ठान, चॉकलेट और गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लेकर खोजते पूछते पहुंचा तो घर का बाहरी आवरण देख कर बड़ी निराशा हाथ लगी।घर की बाहरी दीवार पर सीमेंट भी नहीं था।पानी की निकासी की नाली में बिजली का पोल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 17, 2019 at 10:00am — 2 Comments
सुनो
वहम है तुमको
कि स्वर मिला स्वर में तुम्हारे.
मैं कृत -कृत हो जाऊंगी…
Added by amita tiwari on August 17, 2019 at 2:00am — No Comments
तिरंगे तुझे सुनानी है ....
सन ४७ की रात में
आज़ादी की बात में
दर्दीले आघात में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के शोलों में
रंग बसन्ती चोलों में
जय हिन्द के बोलों में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
राजगुरु सुखदेव भगत
और मंगल पण्डे लक्ष्मी बाई
गाँधी शेखर और शिवा की
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के दीवानों की
सरहद के जवानों की…
Added by Sushil Sarna on August 16, 2019 at 6:44pm — 2 Comments
छंद - मत्तगयंद सवैया
******************************
शिल्प= भगण×7+2 गुरु ,
23 वर्ण यति 12,11
सावन मास रही तिथि पूनम,
क्रूर महा शिशुपाल सँहारे।
युध्द मझार उतार दिया रिपु ,
शीश सुदर्शन को कर धारे।
घायल अंगुलिका हरि रक्षति,
द्रौपदि अंबर को निज फारे।
वस्त्र हरे बलवान दुशासन,
चीर बढा हरि कर्ज उतारे।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on August 15, 2019 at 8:07pm — No Comments
Added by Pratibha Pandey on August 15, 2019 at 5:30pm — 2 Comments
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा
उजड़ने न देंगे चमन ये हमारा
वतन के लिए जो मेरी जान जाए
ख़ुदारा यहीं फिर जनम लें दुबारा
…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on August 15, 2019 at 11:30am — 3 Comments
बरसों से जो ख्वाब थे देखे, पूरे हमने कर डाले
मंसूबे हर एक दुश्मन के, बिना सर्फ़ के धो डाले
धाराओं के जाल में, मज़लूमों का जो हक थे मार रहे
हमने ऐसी धाराओं के हर्फ वो सारे धो डाले
सदियों से जो जमी हुई थी, साफ़ नही कर पाया कोई
हमने ऐसी जमी मैल के, बर्फ वो सारे धो डाले
तीन दुकाने चलती रहती थीं, कश्मीर की घाटी में
हमने ऐसे बीन बीन कर, ज़र्फ वो सारे धो डाले
बार बार समझाया सबको, पर वो समझ नही पाए
हमने 'दीप' फ़िर मजबूरी में कम-ज़र्फ़…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 15, 2019 at 9:00am — 3 Comments
221 2121 1221 212
लेती है इम्तिहान ये उल्फ़त कभी. कभी ।
लगती है राहे इश्क़ में तुहमत कभी कभी ।।
आती है उसके दर से हिदायत कभी कभी ।
होती खुदा की हम पे है रहमत कभी कभी ।।
चहरे को देखना है तो नजरें बनाये रख ।
होती है बेनक़ाब सियासत कभी कभी ।।
यूँ ही नहीं हुआ है वो बेशर्म दोस्तों ।
बिकती है अच्छे दाम पे गैरत कभी कभी ।।
मुझ पर सितम से पहले ऐ क़ातिल तू सोच ले ।
देती सजा ए मौत है कुदरत कभी कभी…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2019 at 6:42pm — 4 Comments
दोहे
***
वो तो बढ़चढ़ बाँटते, नफरत जिसका नाम
जन्नत में सद्भावना, शेष वतन का काम।१।
****
वैसे तो हम सब रहे, विविध रंग के फूल
किन्तु सूख अब हो गये, जैसे तीखे शूल।२।
****
पड़े जंग आतंक की, निसदिन जिन पर मार
उन्हें जिन्दगी फिर लगे, बोलो क्यों ना भार।३।
****
तन से तो अब देश में, बिलय हुआ कश्मीर
मन से भी जब हो बिलय, बदलेगी तस्वीर।४।
****
बिस्थापित थे जो हुये, समझो उनकी पीर
जा पायें निज ठाॅ॑व वो, कश्मीरी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2019 at 6:55am — No Comments
बरकत - लघुकथा -
सासुजी के देहांत के पश्चात सुधा के ससुर जी गाँव से शहर आ गये थे। उनके आने से सुधा की गृहस्थी तितर बितर हो रही थी। बात बात पर ससुर जी का हस्तक्षेप सुधा को अखरता था। उसने एक दो बार सुरेंद्र से भी इस मामले में चर्चा की लेकिन उसका रवैया बिलकुल तटस्थ था। क्योंकि उसे अपने पिता की सीरत का पूरा ज्ञान था। वे अनुशासन और संस्कार के कट्ट्रर पक्षधर थे।
आज तो उन्होंने हद ही कर दी। उधर सुधा भी आर पार की स्थिति में आ गयी। बात थी तो मामूली लेकिन दोनों की ज़िद के कारण…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 10, 2019 at 3:30pm — 10 Comments
दिन ढला तो शाम हुई, शाम ढली तो रात,
रात जो आई तो ख़ुश हुए, चाँद और तारे हज़ार||
तारे बोले ऐ चाँद,
तरसते रहते दिनभर, हम तेरे दीदार को,
पर सूरज भैया को कैसे धमकाएँ,
राज करते धरती और आसमान पर जो||…
Added by Pratibha Pandey on August 9, 2019 at 5:01pm — 8 Comments
‘छी: कितने गंदे, कुत्सित और बदबूदार हो तुम I तुम्हें देखकर घिन आती है I’ नदी ने मुंह बनाते हुए नाले से कहा I
‘बुरा न मानना दीदी आजकल तुम्हारी दशा भी मुझसे अच्छी नहीं है I’ नाले ने मुस्कराते हए जवाब दिया I
(मौलिक ?अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2019 at 10:30am — 14 Comments
अचानक अजीब मनोदशा
अँधेरी हो रही हैं धुँधली आँखें
कुछ नहीं जानता मैं अब भँवर में
कुछ भी नहीं पहचानता हूँ अंत में
यह निसत्बध्ता, यह काया
एकाकार हो रहे हैं क्या ?
साथ बंधी आ रही हैं कभी की
रात देर तक करी हमारी बातें
समुद्र की लहर-सी छलकती
अमृत के झरनों-सी हम दोनों की हँसी
आँखों में ठहरे कभी के अनुच्चरित प्रश्न
पल में तुम्हारा परिचित चिंता में डूब जाना
उफ़्फ़.. इतने वर्षों के बाद भी वही है…
ContinueAdded by vijay nikore on August 8, 2019 at 6:14pm — 8 Comments
संतान (क्षणिकाएं ) ....
बुझ गए बुजुर्ग
करते करते
रौशन
अपने ही चिराग
.....................
कर रही
वृक्षारोपण
वृद्धाश्रम में
वृद्धों की हाथों
उनकी ही संतान
.......................
हो गया
संस्कारों का
दाहसंस्कार
मौन बिलखता रहा
कहकहों में
संतान के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 12:57pm — 6 Comments
2×15
कोई अपना साथ न आए, हर कोशिश नाकाम लगे
मेरे पास चले आना जब, जीवन ढलती शाम लगे
इसको पिछले जन्मों का फल,कहते हैं दुनिया वाले
पेड़ बबूल के बोये फिर भी,उसके हाथों आम लगे
बिक जाने की लाचारी का,एक तजुर्बा ये भी है
जितनी ज्यादा खुद्दारी थी,उतने ही कम दाम लगे
चौथ का चांद देखने वाले,पर लगता है झूठा दोष
हमने तो पूनम को देखा फिर भी सौ इल्जाम लगे
टूटा मन है ,रोगी तन है, रिश्तों में बेगानापन
यारो कुछ…
Added by मनोज अहसास on August 7, 2019 at 9:13pm — 4 Comments
उद्मम करते जो सदा
कर्मनिष्ठ , मतिधीर
वे सम्पन्न समाज की
रखते नींव , प्रवीर
श्रमेव जयते में सदा
जिनका है विश्वास
उनके ही श्रम विन्दु से
ले वसुन्धरा श्वास
मेहनत भी एक साधना
नहीं कोई यह भोग
लक्ष्य केन्द्रित वृत्ति ही
बन जाए फिर योग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 6, 2019 at 7:00pm — 3 Comments
अभिव्यक्ति का संत्रास ...
वरण किया
आँखों ने
यादों का ताज
पूनम की रात में
होती रही स्रावित
यादें
नैन तटों से
अविरल
तन्हा बरसात में
वीचियों पर
यादों की
तैरती रही
परछाईयाँ
देर तक
तन्हा अवसाद में
कर न सके व्यक्त
अधरों से
अन्तस् के
सिसकते जज्बातों की
अव्यक्त अभिव्यक्ति का संत्रास
शाब्दिक अनुवाद में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 6, 2019 at 5:06pm — 10 Comments
मुझसे ना उलझे कोई ये जान ले
मैं कोई श्लाघा नही ताकीद हूँ
तेरी मंज़िल तक तुझे पहुँचाऊगाँ
मैं कोई छलिया नही मुर्शिद हूँ
हंस रहे हैं मुझपे वो ये जान…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 6, 2019 at 4:30pm — 5 Comments
2122 1212 112/22
जिस्म में पहले जान फूँकता है
बाद-अज़-जाँ अज़ान फूँकता है
सब्र कर शब गुज़र ही जाएगी
क्यों ये अपना मकान फूँकता है
अपनी नफ़रत की आग से कोई
देखो हिंदौस्तान फूँकता है
पास आकर वो गर्म साँसों से
मेरे दिल का जहान फूँकता है
आग तो सर्द हो चुकी कब की
क्यों अबस राखदान फूँकता है
हुक्म से रब के ल'अल मरयम का
देखो मुर्दे में जान फूँकता है
रोज़ आयात पढ़…
ContinueAdded by Samar kabeer on August 6, 2019 at 3:00pm — 19 Comments
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