किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
शजर पर गर हैं सूखी पत्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
**
बसाने को बसा लो ज़ुर्म की अपनी हसीं दुनिया
मगर बदनाम जो हों बस्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
नुमाइश कर रहे हो जिस्म की अच्छी नज़र चाहो
हुज़ूर ऐसी कभी ख़ुशफ़हमियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
मुसीबत, मुश्किलें, आफ़ात, चिंता और ग़म भी संग
घरोंदे में घुसी ये मकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन
मिलें उसको…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 24, 2019 at 12:00pm — 12 Comments
2122, 1122, 1122, 22/112
सुर्ख़रू शोख़ बहारों सा चहक जाओगे
इश्क़ के बाग़ में आओ तो गमक जाओगे
गर इरादे हुए हैं बर्फ़ से ख़ामोश तो क्या
गर्मी-ए-इश्क़ में आ जाओ दहक जाओगे
इश्क़ की ताब का अंदाज़ा भला है तुमको
इसकी ज़द में ही फ़क़त आओ लहक जाओगे
रौनक-ए-इश्क़ की ताक़त को न ललकारो तुम
ख़ूब ज़ाहिद हो मगर तुम भी बहक जाओगे
इश्क़ ख़ुश्बू है इसे बांधने की ज़िद न करो
इसमें घुल जाओ तो दुनिया में महक जाओगे
इश्क़ के रंग व…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on January 23, 2019 at 5:30pm — 7 Comments
तुम्हारी अगुवानी में....
ज़रा ठहरो
मुझे पहले
तुम्हारी अगुवानी में
इन कमरों की बंद खिड़कियों को
खोल लेने दो
जब से तुम गए हो
हवा ने भी आना छोड़ दिया
अब तुम आये हो तो
साँसों को
ज़िंदगी का मतलब
समझ आया है
ज़रा ठहरो
पहले मुझे
तुम्हारी अगुवानी में
मन की दीवारों से
सारी उलझनों के जाले
उतार लेने दो
ताकि तुम्हें
बाहर जैसी खुली हवा का
अहसास दिला सकूं
इन घर की दीवारों…
Added by Sushil Sarna on January 23, 2019 at 2:06pm — 6 Comments
2122 2122 2122
.
गांव भी अब तो शहर बनने लगा है
प्यार औ सद्भाव भी घटने लगा है
खुल गई है खूब शिक्षा की दुकानें
ज्ञान भी अब दाम पर बिकने लगा है
हो गये है लोग बैरी अब यहां भी
खून सड़कों पर बहुत बहने लगा है
गांव के हर मोड़ पर टकराव है अब
खेत औ खलियान तक जलने लगा है
सोच ’‘मेठानी‘’ हुआ है, क्या यहां पर
जो कभी बोया वही उगने लगा है
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on January 23, 2019 at 12:00pm — 21 Comments
मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया
लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया
वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया
आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक
सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया
छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए
माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया
भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on January 23, 2019 at 9:30am — 13 Comments
कुछ हाइकु :
1-
तेजस्वी नेता
ख़ून दो, आज़ादी लो
सदी-आह्वान
2-
नेताजी बोस
तेईस जनवरी
क्रांति उद्भव
3-
सच्चाई, फ़र्ज़
जीवन-बलिदान
बोस-आह्वान
4-
शहीद-मौत
स्वतंत्रता-मार्ग
इच्छा-शक्ति से
5-
शक्ति-संचार
असली राष्ट्रवाद
बोस-चिंतन
6-
नेताजी बोस
सैनिक आध्यात्मिक
भक्ति…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2019 at 8:06pm — 4 Comments
२२१/२१२१/ २२२/१२१२
पाषाण पूजने को जब अन्दर किया गया
हर एक देवता को तब पत्थर किया गया।१।
उनके वतन से थी अधिक कुर्सी निगाह में
दूश्मन को इसके वास्ते सहचर किया गया।२।
यूँ तो चुनाव जीतने बातें विकास की
पर हाल देश का सदा कमतर किया गया।३।
शासक कमीन दे गये हमको वफा का दंड
गद्दार बन गये जो ढब आदर किया गया।४।
जन की भलाई में बहुत करना था काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2019 at 8:05pm — 7 Comments
१.हास्य
उठाई है़ किसने ये दीवार छत पर
अब आएगा कैसे मेरा यार छत पर
अगर उसके वालिद का ये काम होगा
बिछा दूँगा बिजली का मैं तार छत पर
बताकर तू पढ़ती ख़बर नौकरी की
चली आना लेकर तू अख़बार छत पर
सुखाने को पापड़ या चटनी मुरब्बा
करा मुझको अपना तू दीदार छत पर
गया उसके घर पे जो छुपते छुपाते
बहुत ही कुटा मैं पड़ी मार छत पर
न तारे दिखे फ़िर हुआ चाँद ग़ायब
सुनी हड्डियों की जो झंकार छत पर…
Added by rajesh kumari on January 22, 2019 at 11:45am — 13 Comments
कहते हैं देख लेता है नजरों के पार तू
मेरी तरफ भी देख जरा एक बार तू
हर बार मान लेता हूं तेरी रजा को मैं
हर बार तोड़ता है मेरा एतबार तू
करने से मेरे कुछ नहीं होना अगर तो
अहसासे बेनियाजी दे मुझ में उतार तू
सूनी पड़ी है तेरे बिना दिल की महफिलें
दो पल तो इस दयार में आकर गुजार तू
मेरी रगों में भर गई है कितनी उलझनें
है थोड़ा सा चैन दे भी दे मुझको उधार तू
मेरी पुकार में नहीं है असलियत कोई
या फिर…
Added by मनोज अहसास on January 21, 2019 at 10:05pm — 4 Comments
क़ज़ा के वास्ते ये इंतिज़ाम किसका है ।
तेरे दयार में जीना हराम किसका है ।।
उसे है ख़ास ज़रूरत जरा पता करिए ।
बड़े सलीके से आया सलाम किसका है ।।
दिखे हैं रिन्द बहुत तिश्नगी के साथ वहाँ ।
कोई बताए गली में मुकाम किसका है ।।
है जीतना तो ख़यालात ऐब…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on January 21, 2019 at 8:30pm — 3 Comments
तीन क्षणिकाएं :
बन जाती हैं
बूँदें
घास पर
ओस की
जब कभी
रोता है मयंक
कौमुदी के वियोग में
.............................
एक भारहीन अतीत
हृदय कलश में
पिउनी पुष्प सा
सुवासित होता रहा
मैं
देर तक
समर्पित रही
अधर तटों के
क्षितिज पर
.........................
जीत दम्भ की
प्राचीर को तोड़ते
जब
दोनों हार गए
तो
प्रचीर भी
हार गई
जीत की
स्वीकार पलों…
Added by Sushil Sarna on January 21, 2019 at 7:13pm — 4 Comments
वह नंगा हो चुका था। फिर भी इतरा रहा था। घमंड का भूत अब भी सवार था।
"आयेगा.. वह आयेगा, मेरी ही छत्रछाया में!" विदेशी धरती, देशी राजनीति, देशी-विदेशी उद्योग-जगत और देशी-विदेशी ग्लैमर-जगत की छतरियां बारी-बारी से अपने अनुभव आधारित दावे पेश करने लगीं।
"तुम सबने इसे नंगा तो कर ही दिया है! न ईमान रहा इसके पास, न ही धर्म! तन अंदर से खोखला कर लिया है इसने और मन.. मन का धन कर रहा है इसका!" उसके तन को सहारा देती रीढ़ की हड्डी के ऊपरी यानि कंधों वाले भाग पर बोझिल गठरी ने…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2019 at 11:00pm — 6 Comments
11212 *4
बने हमसफ़र तेरी ज़ीस्त में कोई मेहरबाँ वो तलाश कर
जो हयात भर तेरा साथ दे कोई जान-ए-जाँ वो तलाश कर
***
तेरे सुर में सुर जो मिला सके तेरे ग़म में साथ निभा सके
तेरे संग ख़ुशियाँ मना सके कोई हमज़बाँ वो तलाश कर
***
कहीं डूब जाये न दरमियाँ कभी सुन के बह्र की धमकियाँ
चले नाव ठीक से ज़ीस्त की कोई बादबाँ वो तलाश कर
***
भला लुत्फ़ क्या मिले प्यार में नहीं गर अना रहे यार में
जो अदा से जानता रूठना कोई सरगिराँ वो तलाश कर
***
ये…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
बह्र
1222-1222-1222-12
चलो हमदर्द बन जाओ, ख़यालों की तरह।।
कोई खुश्बू ही बिखराओ गुलाबों की तरह।।
बहुत थक सा गया हूँ जिंदगी से खेल कर।
कजा आगोश में भर लो दुशालों की तरह।।
मुझे बंजर में नफरत से कहीं भी फेंक दो।
वही उग आऊंगा मैं भी, अनाजों की तरहा।।
मुझे पढ़ना अगर चाहो तो पढ़ लेना यूँ ही ।
हुँ यू के जी के बस्ते में, किताबों की तरह।।
मेरी तुलना न कर उल्फ़त, गुलों की बस्ती' से।
मैं काफिर मैकदे में…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 20, 2019 at 7:00am — 1 Comment
एक ताज़ा ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
उदासी घिर के आई है चलो फिर कुछ नया कह दें
पलक को बेवफा कह दें या पैसे को खुदा कह दें
यहाँ से टूट कर जुड़ना नहीं मुमकिन मगर फिर भी
चलो एक बार फिर से आंसुओं को अलविदा कह दें
समंदर सी बड़ी नाकामियां है सामने अपने
ये सोचा है कि अपना नाम मिट्टी पर लिखा कह दें
तुम्हारे आने की उम्मीद की भी क्या जरूरत है
हमें ही लोग शायद कुछ दिनों में जा चुका कह दें
ये धड़कन…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 19, 2019 at 10:39pm — 4 Comments
122 122 122 122
ग़ज़ल
****
है दुनिया में कितनी रवानी न पूछो
महकती है कितनी कहानी न पूछो
इसे चाँद के पार जाना था मिलने
कहाँ रह गई ज़िंदगानी न पूछो
रहा दर बदर आशिक़ी का मैं मारा
गई बीत कैसे जवानी न पूछो
तेरे इश्क़ में मैंने गोता लगाया
मिली मुझको क्या क्या निशानी न पूछो
मुहब्बत की रस्में निभाते निभाते
रहा चश्म में कितना पानी न पूछो
कभी ग़म के बादल कभी सर्द आहें
पड़ीं कितनी बातें भुलानी न…
Added by क़मर जौनपुरी on January 19, 2019 at 4:07pm — 8 Comments
एक तो पिछला कर्ज ही अभी तक माफ नहीं हुआ था उस पर इस बार फिर फसल के चौपट होने और साहूकार के ब्याज की दोहरी मार उसके लिए असहनीय थी, घर में सभी को कुपोषण और बीमारी ने घेर रखा था। इस बार ना तो मदद को सरकार थी, ना ही लोग।
आखिरकार उसने शहर जाकर मजदूरी या कुछ और कर कमाने का फैसला लिया और जब वह लगभग नग्न बदन, एक बोझ भरी गठरी जिसमें कुछ सुखी रोटी और प्याज थी, लेकर , शहर के चौराहे नुमा पुल पर पहुंचा तो उसने पाया की उसके लिए सभी रास्ते बंद हैं और अवसाद ग्रस्त होकर उसने उसी पुल से नीचे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ
खेल करते हैं वतन की नई तामीर के साथ
***
ख़्वाब देखोगे न तो खाक़ मुकम्मल होंगे
ये तो पैवस्त* हुआ करते हैं ताबीर के साथ
***
जो बना सकते नहीं चन्द निशानात कभी
हैफ़* क्या हश्र करेंगे वही तस्वीर के साथ
***
ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे
कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 19, 2019 at 2:30am — 8 Comments
आसमान का चाँद :
शीत रैन की
धवल चांदनी में
बैचैन उदास मन
बैठ जाता है उठकर
करने कुछ बात
आसमान के चाँद से
मैं अकेली
छत की मुंडेर पर
उसकी यादों में
स्वयं को आत्मसात कर
मांगती हूँ अपना प्यार
आसमान के चाँद से
केसरिया चांदनी में
उसका प्यार
लेकर आया था
मेरे पास
मौन चाहतें
उदास प्यास
अदृश्य समर्पण
कहती रही
मौन व्यथा
देर तक
आसमान के चाँद…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2019 at 5:30pm — 3 Comments
बह्र 1222-1222-1222-1222
बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।
अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।
तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।
भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।
गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।
मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।
बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 17, 2019 at 6:35pm — 2 Comments
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