गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )
फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का
***
अब तक न याद आई थी उसको अवाम की
क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का
***
दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-
"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "
***
बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )
गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:30pm — 14 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
अब किसी के मुख न उभरे कातिलों के डर दिखें
इस वतन में हर तरफ खुशहाल सब के घर दिखें।१ ।
काम हासिल हो सभी को जैसा रखते वो हुनर
फैलते सम्मुख किसी के अब न यारो कर दिखें।२।
भाईचारा जब हो कहते हम सभी के बीच तो
आस्तीनों में छिपाये लोग क्यों खन्जर दिखें।३।
हौसला कायम रहे यूँ सच बयानी का सदा
आईनों के सामने आते न अब पत्थर दिखें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 10:51am — 3 Comments
फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फेलुन
क़ैद मैं, कैसे दायरे में हूँ
कौन है जिसके सिलसिले में हूँ
आप तो मीठी नींद सोते हैं
और मैं सदियों…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on December 26, 2018 at 7:00am — 4 Comments
गुनगुनी सी आहटों पर
खोल कर मन के झरोखे
रेशमी कुछ सिलवटों पर सो चुके सपने जगाऊँ..
इक सुबह ऐसी खिले जब जश्न सा तुझको मनाऊँ..
साँझ की दीवानगी से कुछ महकते पल चुराकर
गुनगुनाती इक सुबह की जेब में रख दूँ छिपाकर
थाम कर जाते पलों का हाथ लिख दूँ इक कहानी
उस कहानी में लिखूँ बस साथ तेरा सब मिटाकर
हर छुपे एहसास को…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 25, 2018 at 11:12pm — 7 Comments
आज मन फिर से हरा है। कहें या न कहें, भीतरी तह में यह मरुआया-सा ही रहा करता है। कारण तो कई हैं। आज हरा हुआ है। इसलिए तो नहीं, कि बेटियाँ आज इतनी बड़ी हो गयी हैं, कि अपनी छुट्टियों पर ’घर’ गयी हैं, ’हमको घर जाना है’ के जोश की ज़िद पर ? चाहे जैसे हों, गमलों में खिलने वाले फूलों का हम स्वागत करते हैं। मन का ऐसा हरापन गमलों वाला ही फूल तो है। इस भाव-फूल का स्वागत है।
अपना 'तब वाला' परिवार बड़ा तो था ही, कई अर्थों में 'मोस्ट हैप्पेनिंग' भी हुआ करता था। गाँव का घर, या कहें,…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on December 25, 2018 at 2:00pm — 2 Comments
आज उसके छह महीने पूरे हो रहे थे, कल से वह वापस अपनी खूबसूरत और आरामदायक दुनिया में जा सकता था. उसे याद आया, जब से सरकार ने नियम बनाया था कि हर डॉक्टर को छह महीने गांव में प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, उसके लिए यह करना सबसे कठिन था. पिताजी की अच्छी खासी दुनिया थी उस महानगर में, बड़ी हवेली, भरा पूरा परिवार और हर तरह की सुख सुविधा. एम बी बी एस करने के बाद सबने यही कहा था कि छह महीने तो फटाफट गुजर जायेंगे और उसके बाद पिताजी महानगर में ही सब इंतज़ाम करा देंगे.
गांव में जिसके घर वह रह रहा था,…
Added by विनय कुमार on December 25, 2018 at 1:12pm — 6 Comments
2212 1212 2212 12
आती नहीं है नींद क्यों आँखों को रात भर
हमने तो उनसे की थी बस दो टूक बात भर //१
दिल में न और ज़िंदगी की ख्व़ाहिशात भर
हस्ती है सबकी नफ़सियाती पुलसिरात भर //२
पढ़ ले तू मेरी आँख में जो है लिखा हुआ
गरचे किताबे दिल नहीं है काग़ज़ात भर //३
हर आदमी में मौत की ज़िंदा है एक लौ
तारीकियों की बज़्म ये रौशन है रात भर //४…
Added by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 12:17pm — 15 Comments
विरासत ...
तुम
देर तक
ठहरे रहे
मेरे संग
बरसात में भीगते हुए
जो सोचा था
वो कह न सकी
जो कहा
वो सोचा न था
लबों की जुम्बिश से
यूँ लगता था जैसे
तुमने भी
मुझसे मिलकर
कुछ कहना था शायद
जो कह न सके
मेरी तरह
देर तक
तुम्हारी नज़रों के
लम्स
ख़ामोश अहसासात का
तर्ज़ुमा करते रहे
बरसात होती रही
अलफ़ाज़
इश्क की इबारत गढ़ते रहे
अपनी अपनी खामोशी में
हम…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 24, 2018 at 7:51pm — 4 Comments
(221 2122 221 2122 )
पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के
आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के
***
सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना
रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के
***
दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत
देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के
***
जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना
मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के
***
अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा
कटती है रात सारी करवट बदल बदल के
***…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 24, 2018 at 11:30am — 6 Comments
कुण्डलिया
जन को ढलना चाहिए, मौसम के अनुकूल
संकट होगा स्वास्थ्य पर, अगर करेंगे भूल
अगर करेंगे भूल, बात यह सही विचारो
खान-पान औ वस्त्र, सही ऋतुशः ही धारो
सतविंदर व्यवहार, सही हो रख पक्का मन
तन इसके अनुरूप, नहीं मन मौसम हो जन!
2.
जय-जय जय-जय हे अरुण!, तुम आभा भंडार
मिलती तुमसे जब किरण, तब चालित संसार
तब चालित संसार, प्रेरणा बात तुम्हारी
ऊर्जा तुमसे देव, मही अम्बर ने धारी
सतविंदर हर श्वास, सतत चलता है निर्भय
युग-युग रहो…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 24, 2018 at 7:00am — 8 Comments
Added by विनय कुमार on December 24, 2018 at 12:07am — 4 Comments
पिछले महीने की ही बात है। गुड्डू को लेकर हम सभी सपरिवार अपने बच्चों के स्कूल में आयोजित 'फ़न-फ़ेअर' दिखाने ले गये। उसके दोनों बड़े भाई-बहन ने मेले में समोसे-पकोड़े की स्टॉल में सहभागिता की थी। बच्चों के प्रोत्साहन और टिकट-ड्रॉ की लालसा में हमने बीस टिकट पहले ही ख़रीद लिये थे, जो गुड्डू के ही पर्स में सुरक्षित रखे हुए थे।
"वाओ! कितना सुंदर गेट सज़ा है! हमारे स्कूल का फ़न-फ़ेअर देखते ही रह जाओगे आप लोग!" वह ऐसे बोला जैसे कि वह यह मेला पहले ही घूम चुका हो या बहुत जानकारी हासिल कर चुका हो।…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 23, 2018 at 5:30pm — 3 Comments
बह्र- 2122-2122-2122-22
है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।
जो समझ पाए न तुम क्या फायदा कहकर है।।
शोर कितना ही मचाये, या करे अब बकझक।
मैं समझ लेता हूँ मेरा दिल भी इक दफ्तर है।।
खुश नशीबी है मेरी नफ़रत मुहब्बत जंग की।
हार कर भी जीतने जैसा ही इक अवसर है।।
अब मैं ढक लेता हूँ खुद-का ये बदन अच्छे से।
अब नहीं मैं पहले जैसा गन्दगी अंदर है।।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on December 23, 2018 at 3:01pm — 2 Comments
ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते
हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )
***
बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर
न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )
***
तुम्हारी आँख की मय को अगर पीते ज़रा सी हम
तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक )
***
बनाया हिज़्र को हमने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 23, 2018 at 2:00pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2018 at 10:23am — 10 Comments
1222 1222 122
नए हालात पढ़ पाए नहीं क्या ।
अभी तुम होश में आए नहीं क्या ।।
उठीं हैं उंगलियां इंसाफ ख़ातिर ।
तुम्हारे ख़ाब मुरझाए नहीं क्या ।।
सुना उन्नीस में तुम जा रहे हो ।
तुम्हें सब लोग समझाए नहीं क्या ।।
किया था पास तुमने ही विधेयक ।
तुम्हारे साथ वो आए नहीं क्या ।।
जला सकती है साहब आह मेरी ।
अभी तालाब खुदवाए नहीं क्या ।।
है टेबल थप थपाना याद मुझको ।
अभी तक आप शरमाए…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2018 at 5:36pm — 3 Comments
बे-हया निशानी .....
हिज़्र की रातों में
तन्हा बरसातों में
खामोश बातों में
अश्कों की सौगातों में
मेरे नफ़्स में
साँसों के क़फ़स में
चांदनी बन कसमसाती
धड़कनों से बतियाती
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम हो
बारिशों के पानी में
प्यासी कहानी में
नादान जवानी में
लहरों की रवानी में
अंगड़ाई की बेचैनी में
लबों की निशानी में
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम…
Added by Sushil Sarna on December 21, 2018 at 5:30pm — 8 Comments
बह्र -बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
अरकान -मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
मापनी-1222 1222 1222 1222
***
फरेब-ओ-झूठ की यूँ तो सदा जयकार होती है,
मगर आवाज़ में सच की सदा खनकार होती है।
**
हुआ क्या है ज़माने को पड़ी क्या भाँग दरिया में
कोई दल हो मगर क्यों एक सी सरकार होती है
***
शजर में एक साया भी छुपा रहता है अनजाना
मगर उसके लिए…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 21, 2018 at 5:00pm — 15 Comments
उन्हें कौन पूछे उन्हें कौन तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
उदासी उदासी उदासी घनेरी
विरह वेदना प्रीत की है चितेरी
अँधेरे खड़े द्वार पे सिर झुकाये
तभी रात ने स्वप्न इतने सजाये
उसी रात को छल गये चाँद तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
लगी रात की आँख भी छलछलाने
अँधेरा मगर बात कोई न माने
क्षितिज पे कहीं मुस्कुराया सवेरा
तभी रूठ कर चल दिया है अँधेरा
नजर रोज सुनसान राहें बुहारे
युगों से जुदा हैं नदी के…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 21, 2018 at 4:30pm — 10 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
हुआ कुर्सी का अब तक भी नहीं दीदार जाने क्यों
वो सोचें बीच में जनता बनी दीवार जाने क्यों।१।
बड़ा ही भक्त है या फिर जरूरत वोट पाने की
लिया करता है मंदिर नाम वो सौ बार जाने क्यों ।२।
तिजारत वो चुनावों में हमेशा वोट की करते
हकों की बात भी लगती उन्हें व्यापार जाने क्यों ।३।
नतीजा एक भी अच्छा नहीं जनता के हक में जब
यहाँ सन्सद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2018 at 3:35pm — 12 Comments
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