सूखे पेड़ों से मैंने डटकर के जीना सीखा है,
हरे-भरे पेड़ों से मैंने झुककर जीना सीखा है,
मस्त घूमते मेघों ने सिखलाया मुझको देशाटन,
और बरसते मेघों से सब कुछ दे देना सीखा है।
हर दम बहती लहरों से सीखा है सतत् कर्म करना,
रुके हुए पानी से मैंने थम कर जीना सीखा है,
जलती हुई आग से सीखा है जलकर गर्मी देना,
जल की बूंदों से औरों की आग बुझाना सीखा है।
सागर से सीखा है सागर जितना बड़ा हृदय रखना,
धरती से सब की पीड़ा का भार उठाना…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 18, 2012 at 10:06pm — 4 Comments
शुरू में सब ठीक था
जब धरती पर
प्रारम्भिक स्तनधारियों का विकास हुआ
नर मादा में कुछ ज्यादा अन्तर नहीं था
मादा भी नर की तरह शक्तिशाली थी
वह भी भोजन की तलाश करती थी
शत्रुओं से युद्ध करती थी
अपनी मर्जी से जिसके साथ जी चाहा
सहवास करती थी
बस एक ही अन्तर था दोनों में
वह गर्भ धारण करती थी
पर उन दिनों गर्भावस्था में
इतना समय नहीं लगता था
कुछ दिनों की ही बात होती थी।
फिर क्रमिक विकास में बन्दरों का उद्भव हुआ
तब जब हम…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2012 at 8:04pm — 2 Comments
१. मनमीत रे
Added by दुष्यंत सेवक on February 18, 2012 at 5:30pm — 5 Comments
आरोग्य दोहावली
१
दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय.
होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..
२
बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल.…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on February 18, 2012 at 2:30pm — 11 Comments
मेरे मन ,
बसंत के गाँव चल तो सही
सब कुछ है वहीं
उमंग उल्लास का गाँव है, रे
प्रीत की डोर थामे ,चल तो सही | सब कुछ…
Added by mohinichordia on February 18, 2012 at 11:16am — 3 Comments
Added by dilbag virk on February 16, 2012 at 8:00pm — 9 Comments
सुस्त वृक्ष का जीवन बोला
क्या होगा अब मेरा ?
खिर गए सब पान पल्लव
सूख गया रस मेरा |
खडा रहा वह ठूँठ सा
कुछ मुरझाया कुछ सुस्ताया
समय गुजरा, पास की मिटटी में उग आयी
एक बेल ने,…
ContinueAdded by mohinichordia on February 16, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
सरहद पर जाते वक्त
Added by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 4:00pm — 14 Comments
रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी
अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी
वर्ना ये गर्द उठेगी अभी तूफां बनकर
ख्वाब आँखों के सभी चुभने लगेंगे तुमको
बनके आंसू अभी टपकेंगे तपते रस्ते पर
मगर ये पाँव के छालों को न राहत देंगे !
तपिश तो और अभी और बढ़ेगी साथी
तब भी क्या प्यार में जल पाओगी शमां बनकर ?
पाँव रक्खोगी जब जलते हुए अंगारों पर
शक्लें आँखों में ही रह जाएंगी धुआं बनकर !
मैं जानता हूँ कि अब कुछ नही होने वाला
वक्त को…
Added by Arun Sri on February 16, 2012 at 12:05pm — 2 Comments
बहुत सताया हमको अब वो दिन अंधियारे चले गये,
हमको गाली देने वाले गाली खाकर चले गये।
बहुत मचाई गुंडागर्दी तुमने शहरों-गावों में,
बहुत चुभाए कांटे तुमने धूप से जलते पांवों में,
आंधी जब हम लेकर आए तिनके जैसे चले गये।
जाने कितनों को रौंदा-कुचला था अपने पैरों में,
कितनों की इज्जत लूटी थी सामने अपने-गैरों में,
जब हमने हुंकार भरी तो पूंछ दबाकर चले गये।
बहुत विनतियां कीं थीं हमने लाख दुहाई दी तुमको,
रो रो कर…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 15, 2012 at 7:55pm — 1 Comment
इन आंखों की गहराई में,
डूबा दिल दीवाना है.
मस्ती को छलकाती आंखें,
मय से भरा पैमाना हैं.
ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,
ये तो मन का दर्पण हैं .
दिल में उमड़ी भावनाओं का,
करती हर पल वर्णन हैं.
ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,
जीवन में ज्योति भरती हैं.
भटके मन को राह दिखाती,
पथ आलोकित करती हैं.
इन आंखों में डूब के प्यारे,
कौन भला निकलना चाहे.
ये आंखे तो वो आंखे हैं ,
जिनमें हर कोई बसना चाहे.
.…
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 15, 2012 at 5:00pm — 8 Comments
पता नहीं क्यों मेरा मन॥ फ़िदा हुआ है आप पे॥
कर सिंगार मै कड़ी सामने॥ आप क्यों नहीं ताकते॥
देखो कलियाँ खिल रही है॥ ताक रही है आप को॥
बातो को कैसे सुन रही है॥ समझ रही है बात को॥
अब तुम भी तो समझ गए हो॥ क्यों नहीं फिर भापते॥
आँखों में अब तुम बसे हो॥ तुम ही मेरी जुबान हो॥
तुम तमन्ना हो मेरी॥ तुम ही मेरी शान हो॥
पा के मौसम की आहट॥ दिल को नहीं रोकते॥
Added by shambhu nath on February 15, 2012 at 12:30pm — No Comments
राह में खड़े हो यूँ घर-बार बेच के,
Added by AVINASH S BAGDE on February 15, 2012 at 11:00am — 4 Comments
Added by satish mapatpuri on February 15, 2012 at 1:08am — 5 Comments
Added by rajesh kumari on February 14, 2012 at 10:00am — 3 Comments
आये थे हमसे लड़ने को पर शरमा कर चले गये,
जरा हाथ ही पकड़ा और वो हाथ छुड़ा कर चले गये।
छिप-छिप कर चिलमन से तुमने बहुत इशारे किये प्रिये,
ज़ख्म दिये हर बार जो तुमने सहा किये और सिया किये,
कस कर जरा कलाई थामी दैया कह कर चले गये।
बहुत किया बदनाम ’सरन’ को, सबसे मेरी बातें कीं,
एक एक का हाल बताया हमने जो मुलाकातें कीं,
हमने जब कुछ कहना चाहा, हया दिखा कर चले गये।
खूब पिटाया तुमने हमको यारों-रिश्तेदारों से,
खूब…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 14, 2012 at 5:57am — No Comments
माँ
आज फिर घर पर बहुत झगड़ा हुआ। “अब मैं घर वापिस नहीं आउंगा, नदी में डूब कर मर जाउंगा।” गुस्से से अपनी माँ को बोलकर वो घर से निकल पड़ा।
“माँ, मुझे माफ कर दे, उठ माँ! आंखे खोल। तू आंखे क्यों नहीं खोलती” दोपहर को जब वो गुस्सा शांत होने के बाद घर वापिस आया तो आंगन में पड़ी अपनी माँ से लिपट कर जोर जोर से बोल रहा था।
Added by Ravi Prabhakar on February 13, 2012 at 6:32pm — 2 Comments
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 13, 2012 at 5:08pm — 8 Comments
ज़ाहिर है पाक साफ़ तख़य्युल ख़राब है,
चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है।
कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,
राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।
अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,
उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।
करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,
इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।
इक राह आख़िरी थी बची वो भी खो गई,
लगता है ये नसीब मुकम्मिल ख़राब है।
इक दौर में बुलन्दी मेरी…
ContinueAdded by इमरान खान on February 12, 2012 at 1:10pm — 7 Comments
दशहरा मनाते हर साल हम,
पुतला जलाते सदियों बीतीं
कहाँ मरा है रावण अब भी ?
कहा है सुरक्षित अब भी सीता ?.
.
रंग गुलाल उड़ते थे कभी
आती थी जब जब भी होली
भर रहा है बच्चा वच्चा
बम बारूद से अपनी झोली
.
खुशियों के दीप जलते थे
जगमग करती थी दिवाली
लपटें उठती हैं शोलों से
बस्ती जलती है अब खली
.
एकता का पाठ भूले हम
भूल गए मानवता के नारे
काम, क्रोध, लोभ की आग में
सुख शांति सब जल…
Added by praveen singh "sagar" on February 12, 2012 at 10:00am — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |