२२१/ २१२१/२२२/१२१२
दिखती भला है अब किधर उम्मीद की चमक
खोने लगी है खुद सहर उम्मीद की चमक।१।
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माझी को धोखा दे गयी पतवार हर कोई
दरिया में जैसे हो लहर उम्मीद की चमक।२।
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बाँटेगा सबको आ के सच थोड़ी मिले भले
लेकर चला है वो अगर उम्मीद की चमक।३।
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कहते उसे किसान हैं निर्धन बहुत भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक।४।
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लूटा गया है हर तरह उसको जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2020 at 7:38am — 8 Comments
माटी :कुछ दोहे
माटी मिल माटी हुआ, माटी का इंसान।
माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।।
माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।
माटी- माटी हो गया, साँसों का अभिमान।।
माटी -माटी हो गया, साँसों का अभिमान।
खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।।
खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।
पल भर में माटी हुआ माटी का परिधान।।
पल भर में माटी हुआ, माटी का परिधान।
माटी के पुतले यही, तेरी है पहचान।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 11, 2020 at 7:31pm — 3 Comments
ग़ज़ल
2122 2122 2122
मृत्यु के अनुरक्ति का अभिसार है क्या ।
मुक्ति पथ पर चल पड़ा संसार है क्या ।।
काल शव से कर चुका श्रृंगार है क्या ।
यह प्रलय का इक नया हुंकार है क्या ।।
आत्माओं का समर्पण हो रहा है ।
दृष्टिगोचर मृत्यु का उदगार है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 11, 2020 at 5:39pm — 4 Comments
( 2122 1122 1122 22 /112 )
है कोई आरज़ू का क़त्ल जो करना चाहे
कौन ऐसा है जहाँ में कि जो मरना चाहे
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तोड़ देते हैं ज़माने में बशर को हालात
अपनी मर्ज़ी से भला कौन बिखरना चाहे
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आरज़ू सबकी रहे ज़ीस्त में बस फूल मिलें
ख़ार की रह से भला कौन गुज़रना चाहे
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ज़िंदगी का हो सफ़र या हो किसी मंज़िल का
बीच रस्ते में भला कौन ठहरना चाहे
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देख क़ुदरत के नज़ारे है भला कौन बशर
जो कि ये रंग…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 11, 2020 at 5:30pm — 21 Comments
Added by Om Prakash Agrawal on May 11, 2020 at 12:04pm — 6 Comments
मैं जहाँ पर खड़ा हूँ वहाँ से हर मोड़ दिखता है
इस जहाँ से उस जहाँ का हरेक छोड़ दिखता है
ये वो किनारा है जहां सब खत्म हुआ समझो
सभी भावनाओं का जैसे अब अंत हुआ समझो
दर्द मुझे है बहूत मगर अब उसका कोई इलाज नहीं
मैं ना लगूँ खुश मगर, मैं किसी से नाराज़ नहीं
मैंने देखा है खुद को उसकी आँखों मे कई दफा मरते हुए
उसने ये सब सहा है, हर बार मगर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 11, 2020 at 9:28am — 3 Comments
Added by Anvita on May 10, 2020 at 11:23pm — 3 Comments
2122 2122 2122
अश्क धोकर आदमी थकने लगा है
सोचता - अब और रोना तो बला है।1
गर्दिशों का दौर बढ़ता,देखिए तो
शोर का कुछ भाव ज्यादा ही चढ़ा है।2
गुम हुई - सी जा रही पहचान फिर से
जिंदगी जो दे,उसे मरना पड़ा है।3
डंस रहा जाहिल अंधेरा आदमी को,
क्यूं उजाला रेत बन धुंधला हुआ है?4
कोसते हैं लोग कुछ भगवान को भी
जब संजोई गांठ में विष ही भरा है।5
ख्वाब चकनाचूर, आंखें पूछती हैं…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on May 10, 2020 at 9:45pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ख़ुद रही भूकी मुझे जी भर खिलाना याद है
मुफ़लिसी में टाट का 'स्वेटर' बनाना याद है
इम्तिहां कोई भी हो आशीष देती थी सदा
मां का हाथों से दही चीनी खिलाना याद है
एक मुर्शिद की तरह से हाथ सर पर फेरती
मैंने क्या कीं ग़लतियां इक इक गिनाना याद है
पाठशाला हम न जाएंगे ये ज़िद जब हमने की
पकड़े कान और खींच कर बस्ता थमाना याद है
बद-नज़र से दूर रखना था सियह टीका लगा
जो हरारत थोड़ी भी हो सहम जाना याद है
माँ सा तो…
Added by Om Prakash Agrawal on May 10, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
मातृ दिवस पर माँ को अर्पित कुछ दोहे :
माँ सृष्टि का नाम है, माँ में चारों धाम।
बिन माँ के संसार में, कहीं नहीं विश्राम।।
हौले -हौले गोद में, सोया माँ का लाल।
हुआ बड़ा तो देखिए, भूला माँ का हाल।।
नौ माह किया गर्भ में, माँ ने बड़ा ख़याल।
बिन बोले ही रो पड़ी, दुखी हुआ जब लाल।।
हर दम चाहे माँ यही, सुखी रहे संतान।
माँ देती संतान को, साँसों का वरदान।।
बिन देखे संतान को, मिटे न माँ की भूख।
भूख़ी हो संतान तो,…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2020 at 6:02pm — 3 Comments
हम वाणी जन हैं वाणी के
कवि लेखक हैं कलमकार।
मन जिनके निर्मल कोमल से
बहती निर्झर करुणा अपार।
हर तप्त हृदय की तपनक्रिया
का करते हैं सम्मान सदा।
जो दीन-हीन दुखियारे हैं
वे अपने हैं अभियान सदा।
जिनकी वाणी में द्रवित यहाँ
होता है बल नित अबला का।
जिनकी चर्चा में दुःख रहता
है मातृशक्ति हर विमला का।
जिनकी कलमों की धार सदा
निज संस्कृति का सम्मान करें।
जिनकी चिन्ता नित बाबू जी
की परिचर्चा का ध्यान…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 9, 2020 at 7:06pm — 1 Comment
Added by Anvita on May 9, 2020 at 6:03pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से
मशीनें अब यहाँ पर और महंगी क्यों नहीं होंगी?
वतन में मुफ़्त ही इंसान भी मिलने लगा जब से
हमारा शह्र छोटा था मगर मिलता नहीं था वो
हमें अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गयाा जब से
समय के साथ कम होगी यही हम सोच बैठे थे
ये दूरी कम नहीं होती मिटा है फासला जब से
नयी शक्लें दिखाता था कभी जब सामने आया
नहीं जाता…
Added by सालिक गणवीर on May 9, 2020 at 5:00pm — 17 Comments
(221 1221 1221 122 )
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देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक
ग़म देना हमें सिर्फ़ ज़रूरत के मुताबिक
**
ये ध्यान रहे कोई न दीवाना कभी हो
अल्लाह न दे इश्क़ भी चाहत के मुताबिक
**
कर ले न गिरफ़्तार अना जीत से हमको
हर जीत का हो दाम हज़ीमत के मुताबिक
**
दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 9, 2020 at 10:30am — 11 Comments
आकर वह आँचल में सोये
प्रेम दिखाए नैन भिगोये
मेरा है वह आज्ञापालक
क्या सखि साजन? ना सखि बालक।।1
समझो उसको ज्ञान प्रदाता
जो चाहो वह ढूँढ़ के लाता
बहुत चलन में आज और कल
क्या सखि शिक्षक? ना सखि गूगल।।2
नई बहू पर डाले फन्दा
सास ननद को रखे सुनन्दा
हर पत्नी का वो सहजीवी
क्या सखि गहना? ना सखि टीवी।।3
आता है वह स्वेद बहाने
ओंठ छुवन से प्यास बढ़ाने
बरते तनिक नहीं वह नरमी
क्या सखि साजन? ना सखि…
Added by नाथ सोनांचली on May 9, 2020 at 7:00am — 7 Comments
उत्कर्षा का सारा शरीर थककर चूर हो चुका था कब नींद के आगोश में चली गयी पता ही नहीं चला ।
"हे ईश्वर ये किस पाप की सजा दी है तूने ये जन्म देकर जहाँ दो घड़ी का चैन नहीं ।"
"ऐसा क्यों कहती हो ,सतत कर्मशीलता ही तो भरी है मैंने तुम्हारी पेशियों में . क्या गलत किया?"
"प्रभु ! मैं भी कोई मशीन तो नहीं हूँ की ये सतत परिश्रमशीलता.."
"जानता हूँ ये सब सोचकर ही मैंने तुम्हें अष्टभुजा का प्रतिक रूप दिया है।"
"अष्टभुजा??? या कि...सारा श्रेय तो ..किंतु…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on May 8, 2020 at 7:52pm — 2 Comments
शुतुरमुर्ग
सामने आई
विपदा देख
शुतुरमुर्ग सा
रेत में सिर धँसाये पड़ा,
बिल्ली को देख
कबूतर सा
आँखें मूँदे
सहमा बड़ा,
आज मानव
युद्ध सामने देखकर भी
क्यों कायर सम खड़ा,
काश! फिर कोई
जामवंत आये
हनुमान को
उनका बल
याद दिलाये।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Vandana Misra on May 8, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
कॉल बेल बजी।शुभ्रा ने द्वार खोला।बाबा को देख वह सकते में आ गयी।वह एक अनिर्णय की स्थिति में फ़ंस गयी थी।अजीब कशमकश थी। वह बाबा को अंदर आने के लिये कहने का साहस नहीं जुटा पा रही थी क्योंकि अंदर का दृश्य बाबा बर्दास्त नहीं कर पायेंगे|
शुभ्रा ने जैसे तैसे खुद को संयमित किया और चरण स्पर्श कर उसने भर्राई आवाज में पूछ ही लिया,
"बाबा आप यहाँ अचानक, बिना कोई पूर्व सूचना?"
घोष बाबू ने बेटी के प्रश्न को अनसुना करते हुए अपना सवाल दाग दिया,
"ये अंदर से कैसी आवाजें आ रही हैं?…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 8, 2020 at 11:30am — 4 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया, दूषित है हर कोना
जिसको दुनिया बोल रही है कोरोना -कोरोना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हिम्मत तनिक न खोना
यह केवल इक असुर शक्ति है, चीनी जादू टोना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सबको यह समझाएँ
अपने-अपने घर रह कर ही, आओ इसे हराएँ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हो सामाजिक दूरी
मास्क लगाकर घर से निकलें, जब हो बहुत जरूरी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सबको बात बताना
हाथ जोड़कर करें नमस्ते, हाथ न कभी…
Added by नाथ सोनांचली on May 8, 2020 at 11:18am — 7 Comments
विदा लेता है कोई मन से इस तरह
कि जैसे
पलक भर झुकी हो
और दृश्य बदल जाए।
रात भर ऑसुओ से भीगा गिलाफ तकिये का
सुबह धुल जाए।सूजी हुई आंखें
पानी के छींटो से ताजा दम हो
काजल और बिखर जाए।बाकी हो बहुत कुछ कहना
और सांस का तार टूट जाए।
सूरज पर रहती हैं निगाह चौकस
चांद का क्या पता, कब निकले कब
ढल जाए।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
अन्विता ।
Added by Anvita on May 7, 2020 at 9:00pm — 5 Comments
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