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विदाई से पहले : 4 क्षणिकाएं

विदाई से पहले : 4 क्षणिकाएं

क्या संभव है

अनंतता को प्राप्त करना

महाशून्य की संख्याओं को

विलग करते हुए

........................................

उड़ने की तमन्नाएँ

आशाओं के बवंडर के साथ

भेदती रही नीलांबर को

अपने कर्णभेदी

अश्रुहीन रुदन से

......................................

मैं चाहता था

तुम्हें चाँद तक पहुंचाना

अपनी बाहों के घेरे में घेरकर

गिर गया स्वप्न

फिसल कर

आँखों के फलक से

हकीकत के…

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Added by Sushil Sarna on May 27, 2019 at 11:44am — 4 Comments

सच क्या है कोई पूछे, मैं श्याम बता दूँगा-----ग़ज़ल पंकज मिश्र

221 1222 221 1222

किस्मत की लकीरों पर खुश-रंग चढ़ा दूँगा

मैं दर्द के सागर में पंकज को खिला दूँगा

ज्यादा का नहीं केवल छोटा सा है इक दावा

ग़र वक्त दो तुम को मैं खुद तुम से मिला दूँगा

कुछ और भले जग को दे पाऊँ नहीं लेकिन

जीने का सलीका मैं अंदाज़ सिखा दूँगा

कंक्रीट की बस्ती में मन घुटता है रोता है

वादा है मैं बागों का इक शह्र बसा दूँगा

आभास की बस्ती है, अहसास पे जीती है

जन जन के मनस में मैं यह मंत्र जगा…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 27, 2019 at 12:43am — 6 Comments

कितना अफ़्कार में मश्ग़ूल हर इक इन्साँ है(४३ )

कितना अफ़्कार में मश्ग़ूल हर इक इन्साँ है 

कोई बेफ़िक्र अगर है तो सियासतदाँ है 

**

ख़ाक उड़ती है जिधर देखूँ उधर सहरा-सी 

इस क़दर दिल का नगर आज मेरा वीराँ है 

**

बात गुस्से में कही फिर से ज़रा ग़ौर तो कर 

"जी ले तू प्यार के बिन " कहना बहुत आसाँ है 

**

कोई अफ़सोस नहीं गर मेरी रुसवाई का 

शर्म से क्यों हुई ख़म यार तेरी मिज़गाँ…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 26, 2019 at 9:30pm — 2 Comments

छुट्टियों में हिंदी (संस्मरण)

विद्यालयीन हिंदी विषय पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य की विभिन्न गद्य या काव्य विधायें बच्चे क्यों पसंद नहीं करते/कर सकते? यह सवाल मेरे मन में अक्सर उठता है।

मैं मानता हूँ कि यदि विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य विधाओं की छोटी रचनायें कहानियां आदि/अतुकांत कविताएं/ क्षणिकाएं/कटाक्षिकायें आदि सम्मिलित की जायें; योग्य हिंदी शिक्षकों द्वारा बढ़िया समझाई जायें, तो विद्यार्थी उन्हें अधिक पसंद करेंगे।

अभी विद्यालयों में हिंदी पाठ भलीभांति कहाँ समझाये जा रहे हैं? मुख्य कठिन विषयों…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 26, 2019 at 9:30am — No Comments

चाँद बता तू कौन हमारा लगता है

चौदहवीं पे कितना प्यारा लगता है।

कितना दिलकश ये नज़्ज़ारा लगता है।।

आँख मिलाए और कभी शर्माए तू।

चांद बता तू कौन हमारा लगता है।।

चांदनी हरदम पास हमारे रहती है।

चांद मगर क्यों हमसे पराया लगता है।।

तुझसे पहले आंखों में यह चुभते हैं।

तुझ पे क्यों तारों का पहरा लगता है।।

उसका अक्स जो पलकों में धर लेते हैं।

क़ैदी सा फिर चांद हमारा लगता है।।

आसिफ़ तुम दरिया बन जाते हो जो कभी।

उसमें तुम्हारा चांद…

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Added by Asif zaidi on May 26, 2019 at 12:30am — No Comments

मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है,,,

बहर :- 22-22-22-22-22-2



तुम हो शातिर तुमको ऐसा लगता है ।।

मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है।। 

मैं करता तुमसे कैसे दिल की बातें।

तुमको मेरा प्रेम ही' सौदा लगता है।।

वो मंदिर में गिरजाघर में मस्जिद में।

मुझमें तुझमें पहरा जिसका लगता है।।

वो पत्थर ख़ुद को समझे क़िस्मत वाला।

जिसको छैनी और हथौड़ा लगता है ।।

आन पड़े जब मुश्किल घड़ियां जीवन में।

एक रु'पइया एक हजारा लगता है ।।

हिन्दू मुस्लिम भाई…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2019 at 5:46pm — No Comments

रैन पर कुछ शृंगारिक दोहे :

रैन पर कुछ शृंगारिक दोहे :

अंतर्मन के रात को , उदित हुए जज़्बात।

नैन लजीले कह गए,शरमीली सी बात।1।
विभावरी से कह रहा, रजनीपति ये बात।

प्रीत झील में कौमुदी,स्वरित करे जज़्बात।2।
बिना पिया के हो गई, रैन अभागन आज।

ओजहीन जीवन लगे,द्रवित हुए सब राज़ ।3।…
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Added by Sushil Sarna on May 24, 2019 at 4:00pm — No Comments

कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे.....

1211-22-1221-212


दरोज बुझाया जलाया गया मुझे।।
कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे।।

यूँ पहली नजर की मुहब्बत ही नेक थी ।
गलत है क़े रस्ता दिखाया गया मुझे।।

मुँड़ेर से महताब जैसा दिखाई दूँ।
वही एक रोगन चढ़ाया गया मुझे।।

मुझे भी यही दौर आसान कह रहा ।
वो दौर बता जो बताया गया मुझे।।

गुलाब सी खुश्बू बिखेरुं कभी कहीं।
कलम से कलम कर लगाया गया मुझे।।

आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित

Added by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2019 at 1:28pm — No Comments

आदमी - ग़ज़ल

है कहाँ फूल जैसा खिला आदमी

हो गया है ग़मों का किला आदमी

 

मंदिरों, मस्जिदों में रहे ढूँढते  

जब मिला आदमी में मिला आदमी

 

गाँठ दिल में लगी तो खुली ही नहीं

भूल पाया न शिकवा-गिला आदमी

 …

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Added by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2019 at 10:07am — 9 Comments

गंगा - लघुकथा -

गंगा - लघुकथा -

शंकर सेना में  हवलदार था। उसकी पोस्टिंग सिलीगुड़ी में थी। आज उसका अवकाश था तो अपनी साईकिल उठा कर शहर घूमने निकल गया। घूमते घूमते एक घर के दरवाजे पर उसकी निगाहें अटक गयीं। एक खूबसूरत युवती खड़ी थी। उसकी शक्ल हूबहू उसकी बचपन की दोस्त गंगा से मिल रही थी।

गंगा लगभग आठ दस साल की थी कि तभी कोई ठग उसे बहला फ़ुसला कर उड़ा ले गया था। यह घटना दिल्ली में हुई थी। परिवार ने बहुत खोज बीन की लेकिन गंगा का कुछ पता नहीं लगा। पुलिस में भी रिपोर्ट दी गयी थी।

शंकर कुछ देर असमंजस…

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Added by TEJ VEER SINGH on May 22, 2019 at 10:11pm — 4 Comments

मेरा भारत महान - लघुकथा -

मेरा भारत महान - लघुकथा -

राजू का इस बार वोट देने का पहला अवसर था। वोटर लिस्ट में भी नाम आ गया था। वोटर स्लिप भी घर आ गयी थी। वह बहुत रोमांचित हो रहा था। पहली बार मतदान का कैसा अनुभव होता है, अपने मित्रों से पूछता फिरता था।

वे उसे अपने अपने अनुभवों के आधार पर किस्से सुनाते तथा साथ ही सलाह भी देते कि किसको वोट देना है। लेकिन उसने सोच रखा था कि वोट तो अम्मा द्वारा बताये नेता को ही दूँगा। इस दुनियाँ में उसकी सब कुछ अम्मा ही थी। बापू तो बचपन में ही गुजर गये थे।अम्मा ने बड़े दुख झेल…

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Added by TEJ VEER SINGH on May 21, 2019 at 10:17am — 8 Comments

ग़लतफ़हमी-लघुकथा

"याद पिया की आए" ठुमरी लैपटॉप में मद्दम स्वर में बज रही थी, बाहर बरसती हुई बूंदों का शोर मन में हलचल मचाना चाह रही थी. उसने अपनी चाय की प्याली उठायी और होठों से लगा लिया. चाय कुछ ठंडी हो गई थी लेकिन उसे इसका एहसास नहीं था. उसे तो अधखुली आँखों से खिड़की के बाहर टपकती बारिश की बूंदें दिख रही थी और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली साहब की जादुई आवाज सुनाई दे रही थी.

अक्सर ऐसे मौकों पर, जब वह नितांत अकेले ही रहना चाहता है, फ़ोन को साइलेंट मोड में कर देता है. लेकिन आज न जाने कैसे वह भूल गया था और फोन का…

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Added by विनय कुमार on May 20, 2019 at 8:00pm — 4 Comments

शृंगारिक दोहे :

शृंगारिक दोहे :



नैनों से बरखा बहे, जब से छूटा हाथ।

नींदें दुश्मन हो गईं, कब आओगे नाथ।1।

एक श्वास तुम साथ हो, एक श्वास तुम दूर।

कैसी है ये दिल्लगी, कुछ तो कहो हुज़ूर।2।

कातिल हसीन शोखियाँ, हैं आपकी हुजूर।

नज़र न कर बैठे कहीं , बहका हुआ कुसूर।3।

सावन की बौछार में, भीगा हुआ शबाब।

बहके रिंदों की कहीं, नीयत हो न ख़राब ।4।

तुम तो साजन रात के, तुम क्या जानो पीर।

भोर हुई तुम चल दिए, नैन बहाएँ…

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Added by Sushil Sarna on May 20, 2019 at 4:00pm — 8 Comments

प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना------गीत

प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।

भूख प्यास नींद चैन सब गँवा कर

अवधान में एकल उद्दीपक बसा कर

उस तक पहुँचने का सतत यत्न करना

प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।

इच्छित के प्रति समर्पण है प्रेम

उद्देश्य के प्रति अभ्यर्पण है प्रेम

लक्ष्य के प्रति अनवरत गतिशील रहना

प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।

प्रेयसी के अंक पाश तक सीमित नहीं

काम जनित आकर्षण तो किंचित नहीं

कामना के केंद्र-बिंदु पर…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 20, 2019 at 1:01pm — No Comments

अथ अभिकल्पित-आचार-संहिता (आलेख)

बच्चों को शुरू से अध्यात्म, आराधना,  वंदना आदि का व्यावहारिक अभ्यास 'लर्न विद़ फ़न, लर्न विद़ कर्म' या 'देखो, करो और सीखो' पद्धति से कराया जा सकता है। प्रवचन, भाषण, गायन, पुस्तकीय पठन-पाठन मात्र से नहीं। इसके लिए तो हर सरकारी दस्तावेज़ जारी या उपलब्ध कराने, विवाह, गर्भधारणा और उपाधियां देने से पहले, नागरिकता, आधार कार्ड, राशनकार्ड, परिचय पत्र, बैंक अकाउंट, सिमकार्ड, मताधिकार, ड्राइविंग लाइसेंस आदि उपलब्ध कराने से पहले भारत में जन्मे हर भारतवासी को भारत की सर्वधर्म समभाव वाली, …
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2019 at 11:31pm — 3 Comments

दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

दोहे



तरुवर  देते  फूल फल, नदिया  देती  नीर

मानव मानव को मगर देता नित क्यों पीर।१।



ओछा मन हद तोड़ता, ओछी नदिया कूल

जैसे चन्दन  से  अधिक, माथे चढ़ती धूल।२।



जो बोता  है  पेड़  इक, बाँटे सबको छाँव

काटे जो वट रात दिन, जलते उसके पाँव।३।



अर्थी, पूजा, प्रीत को, मिले न आगन फूल

इस युग बोने सब लगे, कैक्टस कैर बबूल।४।



मरने पर जिसको रही, गंगाजल की चाह

उसने  गंगा  ओर  की, हर  नाले की राह।५।



जहाँ पसीना…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2019 at 6:03pm — 8 Comments

ग़ज़ल _किसी से प्यार किसी से क़रार ख़ैर ख़ुदा

ग़ज़ल

( मफाइलुन_फ इ लातुन_मफाइलुन_फेलुन) 

किसी से प्यार किसी से क़रार ख़ैर ख़ुदा

करे वो तीर से दो दो शिकार ख़ैर ख़ुदा

अलम छुपाने की कोशिश तो हँस के की लेकिन

निगाहे नम ने किया आश कार ख़ैर ख़ुदा

नज़र पे पहरा है दीवाना फ़िर भी कूचे में

सनम को अपने रहा है पुकार ख़ैर ख़ुदा

तवक्को उनसे है फैसल की, कर रहे हैं जो

फरेबियों में हमारा शुमार ख़ैर ख़ुदा

लगा ये देख के उनको उदास महफ़िल में

खिज़ा के साथ…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 18, 2019 at 12:34pm — 4 Comments

बौना आदमी - लघुकथा -

बौना आदमी - लघुकथा -

रहीम ने अपने लंबे कुर्ते की झोली में ढेर सारे गेंहू लेकर जैसे ही घर की देहरी पर क़दम रखा, उसकी अम्मी की तेज़ नज़रों में पकड़ा गया,"रहीम यह क्या है तुम्हारे कुर्ते की झोली में?"

"अम्मीजी, इसमें गेंहू हैं।"

"गेंहू कहाँ से मिले तुम्हें?"

"अम्मीजी,चौधरी काका के खलिहान से उनकी गेंहू की फ़सल बैलगाड़ी से घर लाई जा रही थी।उनकी बोरियों में किसी बोरी में छेद रहा होगा तो उसमें से गेंहू नीचे जमीन पर गिरते जा रहे थे।मैं उस बैलगाड़ी के पीछे आ रहा था।सो मैं वह उठा…

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Added by TEJ VEER SINGH on May 18, 2019 at 10:36am — 10 Comments

गीत

सदानीरा बहे कल - कल , गगन पर चाँद तारे हैं ।

अलौकिक दृश्य वसुधा पर ,सुभग मनहर नजारे हैं ।।

उजालों ने चुगा शशि है , उषा आयी उगा रवि है ।

मही पर पुष्प शुचि कुसुमित,उड़े नभ पर विहग प्रमुदित ।।

झरे सित पुष्प शिउली के ,हवाओं ने बुहारे हैं ।

अलौकिक दृश्य वसुधा पर , सुभग मनहर नजारे हैं ।।

लली वृषभानु की राधा , ढके मुख घूँघटा आधा ।

चली पनघट लिये गागर ,खड़े हैं गैल नटनागर ।।

हुयीं लखि लाज से दुहरी , मदन करते इशारे…

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Added by Anamika singh Ana on May 17, 2019 at 9:30pm — 6 Comments

कुण्डलिया छंद-

1-

भाई भाई के लिए, हो जाता कुर्बान।

रिश्ता है यह खून का, ईश्वर का वरदान।।

ईश्वर का वरदान, नहीं है जिसका सानी।

पाण्डव हों या राम, सभी की यही कहानी।।

सुलझाकर मतभेद, न मन में रखें खटाई।

बुरे वक्त में काम, सिर्फ आता है भाई।।

2-

भाई का रिश्ता अमर, जैसे लक्ष्मण राम।

मगर विभीषण ने किया, इसे बहुत बदनाम।।

इसे बहुत बदनाम, और भेदी कहलाया।

देकर सारे भेद, नाश कुल का करवाया।।

तुलसी ने रच ग्रंथ, इन्हीं की महिमा गाई।

दशरथ नंदन राम, भरत लक्ष्मण…

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Added by Hariom Shrivastava on May 17, 2019 at 9:40am — 4 Comments

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