2122 1122 22
आपने जुमलों में असर पैदा कर ।
कुछ तो जीने का हुनर पैदा कर ।।
दिल जलाने की अगर है ख्वाहिश ।
तू भी आंखों में शरर पैदा कर ।।
गर ज़रूरत है तुझे ख़िदमत की ।
मेरी बस्ती में नफ़र पैदा कर ।।
हर सदफ जिंदगी तो मांगेगी ।
इस तरह तू न गुहर पैदा कर ।।
देखता है वो तेरा जुल्मो सितम।
दिल में भगवान का डर पैदा कर ।।
अब तो सूरज से है तुझे खतरा…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2019 at 1:35pm — 4 Comments
2122 1212 22
फासले बेकरार करते हैं ।
और हम इतंजार करते हैं ।।
इक तबस्सुम को लोग जाने क्यूँ ।
क़ातिलों में सुमार करते हैं ।।
सिर्फ धोखा मिला ज़माने से ।
जब कभी ऐतबार करते हैं ।।
मैं तो इज्ज़त बचा के चलता हूँ ।
और वह तार तार करते हैं ।।
उम्र गुज़री है बस चुकाने में ।
आप जब भी उधार करते हैं।।
उनको गफ़लत हुई यही यारो…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 15, 2019 at 3:47pm — 2 Comments
धरती से तो आसमान का, हो जाता अनुमान।
किंतु न खुद की छत से दिखता,खुद का कभी मकान।।
जो जमीन पर पैर जमाकर, करे लक्ष्य संधान।
वही बनाता है इस जग में, नये-नये प्रतिमान।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-
Added by Hariom Shrivastava on May 14, 2019 at 2:00pm — 4 Comments
हुन-हुना रे हुन-हुना
गुण गिना के गुनगुना
ज़ोर लगा के हय्शा
वोट-पथ पर नैया
अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया
मुश्किल में वोटर भैया
हुआ-हुआ जो बहुत हुआ
अपशब्दों का खेल हुआ
जुआ-जुआ सा हो गया
मतदाता खप-बिक गया
जनतंत्र पर क्या मंत्र हुआ
दुआ-दुआ करो, न बददुआ
संविधान का कर दो भला
कर भला , सो सबका भला
टाल सको, तो अब टाल बला
हुन-हुना रे हुन-हुना
गुण गिना के गुनगुना
ज़ोर लगा के हय्शा
वोट-पथ पर नैया
अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2019 at 9:00am — 3 Comments
1~
बचपन की यादों में जब मैं, मातृ दिवस पर लौटा।
पाया खुद के ही मुखड़े पर, नकली एक मुखौटा।।
लौट गया मैं गाँव अचानक, माँ से करने बातें।
माँ तो वहाँ न थी लेकिन थीं, यादों की बारातें।।
2~
माता माता मन्दिर जाती, रखे हाथ पर लोटा।
सीढ़ी चढ़ने में साड़ी का, लेती सदा कछोटा।।
माँ के पीछे-पीछे चलकर, हम बच्चे भी जाते।
माता को चुपचाप देखते, माता से बतियाते।।
3~
माँ ने अपनी खातिर माँ से, कभी नहीं कुछ माँगा।
उन मधुरिम यादों को हमने, क्योंकर खूँटी…
Added by Hariom Shrivastava on May 13, 2019 at 11:30am — 2 Comments
हमारी बात भारी हो रही है।
ये देखो इश्तेहारी हो रही है।
खफा हो मुझसे तुम ये लग रहा है ,
की मीठी शय भी खारी हो रही है।
तरसती है ख़ुशी को जिन्दगानी ,
ये अब तो गम की मारी हो रही है।
तपन हरगिज ना इसको आंकना कम ,
बुलंदी पर ये नारी हो रही है।
- मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Tapan Dubey on May 12, 2019 at 12:30pm — No Comments
मातृ-दिवस विशेष
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2122/ 2122/2122/212
इक ही दिन काफ़ी नही है ममता के सम्मान को
कम पड़ेंगे सौ जनम भी, माँ तेरे गुणगान को
जो बना देती है क़ाबिल एक नन्हीं जान को
है ज़रूरत माँ कि ममता की बहुत इंसान को
लाख लानत भेजिए उस सरफिरे नादान को
माँ को खुद से दूर करके ढूँढे जो भगवान को
माँ का दिल इससे बड़ा है जिसमें तुम रहते मियाँ
नाज़ से देखो न अपने बंग्ले आलीशान…
Added by Gajendra shrotriya on May 12, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
गरीबी मिटे औ कटे विघ्न बाधा, तमन्ना! बने स्वर्ग सा देश प्यारा
पले विश्व बंधुत्व की भावना औ, बने आदमी आदमी का सहारा
यहाँ सत्य का ही रहे बोलबाला, सदा के लिये झूठ से हो किनारा
निरोगी प्रतापी प्रभावी सभी हों, बने स्वाभिमानी लगे एक नारा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on May 10, 2019 at 6:30pm — 5 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
तुम ही बताओ साधु फकीरों तुमने तो देखा होगा ।
इस झूठी दुनिया का वो सच्चा मालिक कैसा होगा ।
जिसकी सोच के हर कतरे में मौत का खौफ समाया हो ,
सोच के देखो दुनिया वालों कैसे वो जीता होगा ।
जिस रास्ते पर चलते चलते मैं तुझको भी भूल गया ,
वो रस्ता तू समझ ले दिलबर कितना पथरीला होगा।
पल पल अपने जीवन का बस इस चिंता में घुलता है ,
बीते कल में ऐसा क्यों था ,आते कल में क्या होगा ।
धोखे ने सौ शक्लें…
ContinueAdded by मनोज अहसास on May 10, 2019 at 4:00pm — No Comments
स्वप्न के सीवान में ज़ुल्फ़ों के बादल छा गए
चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।
चूम कर नज़रों से नज़रें, गुदगुदा कर मन गई
रूपसी जादू भरी थी मन की अभिहर* बन गई
तन सुरभि का यूँ असर खुद को भुला कर आ गए
चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।
मन्द सी मुस्कान उसके होठों पर जैसे खिली
इस हृदय की बन्द साँकल खुद अचानक से खुली
हम मनस में रूप उसका लो सजा कर आ गए
चाँद क्या आया नज़र हम दिल…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2019 at 9:00am — 4 Comments
माँ बहुरूपी
मौजूद इर्द-गिर्द
पहचाना मैं!
ममता बरसाती
नि:स्वार्थ वामा
प्रकृति महायोगी
रोगी-भोगी मैं!
है त्यागी, चिकित्सक
सहनशील
सामंजस्य-शिक्षिका
शिष्य, लोभी मैं!
व्यक्तित्व बहुमुखी
चरित्रवान
परोक्ष-अपरोक्ष
लाभान्वित मैं!
विवादित-शोषित
कोमलांगिनी
अग्निपथ गमन
स्वाभिमानी माँ
यामिनी या दामिनी
अभियुक्त मैं!
बहुजन सुखाय
आत्म-दुखाय
उर्वीजा देवी तुल्य
है पूज्यनीय
पाता माता में…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 10, 2019 at 3:00am — 1 Comment
1~
भवन और सड़कें पुल-पुलियाँ,मजदूरों की माया।
ईंटे पत्थर ढोते-ढोते, सिकुड़ी इनकी काया।।
श्रम के कौशल से भारत में, ताजमहल बन पाया।
लेकिन मजदूरों के हिस्से, हाथ कटाना आया।।
2~
भूख मिटाने की खातिर ही, श्रम करतीं महिलाएँ।
यदाकदा मजदूरी करते, बाल श्रमिक भी पाएँ।।
शिक्षा से वंचित रह जातीं, इनकीं ही संतानें।
मगर नीति निर्धारक शिक्षा, सौ प्रतिशत ही मानें।।
3~
सबकी खातिर महल अटारीं, जो मजदूर बनाते।
भूमिहीन होकर बेचारे, बेघर ही रह…
Added by Hariom Shrivastava on May 9, 2019 at 9:28pm — 2 Comments
मित्र पर चंद दोहे :
अपने मन को जानिए, अपना सच्चा मित्र।
दिखलाता हर कर्म का, श्वेत श्याम हर चित्र।।
किसको अपना हम कहें, किसको जानें ग़ैर।
मृदु शब्दों की आड़ में, मित्र निकालें बैर।।
सुख में हर जन साथ है, दुख में दीनानाथ।
दुःख में जब सब छोड़ दें, नाथ थामते हाथ।।
जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।
कदम कदम विश्वास का ,हो जाता अवसान।।
मन को रोगी कर दिया, मित्र दे गया घात।
थामो मेरा हाथ…
Added by Sushil Sarna on May 9, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 9, 2019 at 6:00pm — 1 Comment
साँसों की बैसाखी :
जोड़ता है
अनजाने रिश्ते
तोड़ता है
पहचाने रिश्ते
जाने और अनजाने में
जान से कीमती
मोबाइल
साँसों का पर्याय है
जीवन का अध्याय है
किसी की जीत है
किसी की मात है
न उदय का भान है
न अस्त का ज्ञान है
हाथों में जहान है
स्वयं से अनजान है
इंसान को चलाता
एक और इंसान है
मोबाइल
चुपके से हंसाता है
चुपके से रुलाता है
सन्देश आता है
सन्देश जाता है…
Added by Sushil Sarna on May 9, 2019 at 12:55pm — 1 Comment
तोटक छंद "विरह"
सब ओर छटा मनभावन है।
अति मौसम आज सुहावन है।।
चहुँ ओर नये सब रंग सजे।
दृग देख उन्हें सकुचाय लजे।।
सखि आज पिया मन माँहि बसे।
सब आतुर होयहु अंग लसे।।
कछु सोच उपाय करो सखिया।
पिय से किस भी विध हो बतिया।।
मन मोर बड़ा अकुलाय रहा।
विरहा अब और न जाय सहा।।
तन निश्चल सा बस श्वांस चले।
किस भी विध ये अब ना बहले।।
जलती यह शीत बयार लगे।
मचले मचले कुछ भाव जगे।।
बदली नभ की न जरा…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 8, 2019 at 2:21pm — 6 Comments
Added by Hariom Shrivastava on May 8, 2019 at 10:30am — 2 Comments
१. फुल स्टॉप .... ३ क्षणिकाएं
फुल स्टॉप
अर्थात
अंतिम बिंदु
अर्थात
जीवन रेखा का
जीवन बिंदु में विलय
अर्थात
समाहित हो गई
सूक्षम में
श्वास की लय
.......................
२. नो मोर ...
नो मोर
वन्स मोर
अंतिम छोर
उड़ गया पंछी
हर बंधन
पिंजरे के तोड़
.......................
३. रेखाएँ ....
रेखाएँ
हथेलियों की
मृत देह पर
जीवित देह सी रहीं
बस…
Added by Sushil Sarna on May 7, 2019 at 7:41pm — 8 Comments
विकास - लघुकथा -
"शक़ूर भाई, चलो भी अब, चार बज गये। नेताजी के आने का समय हो गया।"
"मुन्ना जी, हमारे देश के नेता कभी समय से आते हैं क्या? अगर ये लोग इतने ही समय के पाबंद होते तो आज देश की ये हालत नहीं होती।"
"वह सब तो ठीक है पर अपने को इन सब बातों से क्या लेना देना।अपने को तो अपनी दिहाड़ी से मतलब|"
"अरे यार मुझे तो इसका भाषण भी सुनने को मन नहीं करता। अपने ऑटोवालों की यूनियन लीडर से भी घटिया भाषा प्रयोग करता है।"
"भाई जी, हम उसके संस्कार तो बदल नहीं सकते। वैसे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 7, 2019 at 10:15am — 12 Comments
2122 2122 212
जब लबों पर वह तराना आ गया ।
याद फिर गुजरा ज़माना आ गया ।।
शब के आने की हुई जैसे खबर ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।
मैकदे को शुक्रिया कुछ तो कहो।
अब तुम्हें पीना पिलाना आ गया ।।
वस्ल की इक रात जो मांगी यहां ।
फिर तेरा लहजा पुराना आ गया ।।
छोड़ जाता मैं तेरी महफ़िल मगर ।
बीच मे ये दोस्ताना आ गया ।।
जब भी गुज़रे हैं गली से वो मेरे ।
फिर तो…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 5, 2019 at 11:43pm — 3 Comments
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