टेढ़ा-मेढ़ा हास्य-रस
बड़बोलापन, बस!
सुबुद्धि हुई कुबुद्धि
धन-सिद्धि हो, बस!
तेरा-मेरा हास्य-रस
जीवन जस का तस
बुद्धियांँ हो रहीं ठस!
बच्चे-युवा हैं बेबस!
भोंडा-ओछा हास्य-रस
टीवी टीआरपी तेजस!
हास्यास्पद लगती बहस
सेल्फ़ी रहस्य दे बरबस!
स्वच्छ, स्वस्थ हास्य-रस
स्वाभाविक बरसता बस!
बाल-बुज़ुर्ग-मुख के वश
या फ़िर दे कार्टून, सर्कस!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 5, 2019 at 10:28pm — 2 Comments
करे वोट से चोट जो हैं लुटेरे, खरे मानकों पे चुनें आप नेता
खड़ा सामने भ्रात हो या भतीजा, भले जो लगे आपको वो चहेता
नहीं वोट देना उसे ज़िन्दगी में, कभी आपको जो नहीं मान देता
सदा जो करे पूर्ण निःस्वार्थ सेवा, उसे ही यहाँ पे बनाएँ विजेता।1।
कहीं जाति की है लड़ाई बड़ी तो, कहीं सिर्फ है धर्म का बोलबाला
इसे मुल्क में भूल जाएं सभी तो, चुनावी लड़ाई बने यज्ञशाला
अकर्मी विधर्मी तथा भ्रष्ट जो है, वही देश का है निकाले दिवाला
चुनें वोट दे के उसी आदमी को, दिखे जो प्रतापी…
Added by नाथ सोनांचली on May 4, 2019 at 9:41pm — 7 Comments
यह तीसरी बार था जब वह व्यक्ति चिल्ला रहा था और उठ कर भागने का प्रयास कर रहा था "मुझे कुछ नहीं हुआ है, मुझे जाने दो". खून का बहना अभी तक रुका नहीं था और उसके चेहरे से लेकर कपड़ों तक फ़ैल गया था. दो कम्पाउंडरों ने उसे पकड़ कर वापस लिटा दिया और डॉक्टर फिर से उसके सर पर दवा लगाकर पट्टी बांधने की तैयारी कर रहा था.
बमुश्किल आधे घंटे पहले ही उसने सड़क के दूसरी तरफ इस एक्सीडेंट को होते हुए देखा था और रात के सन्नाटे में वह अपनी गाड़ी मोड़कर वापस आया. वहां मौजूद लोगों की मदद से उसने उसे इस हस्पताल में…
Added by विनय कुमार on May 4, 2019 at 6:19pm — 6 Comments
बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी तीन रंगमंचीय कलाकार थिएटर में फुरसत में मज़ाकिया मूड में बैठे हुए थे।
"तुम दोनों धृतराष्ट्र की तरह स्वयं को अंधा मानकर अपनी आंखों में ये चौड़ी और मोटी काली पट्टियां बांध लो!" उनमें से एक ने शेष दो साथियों से कहा, "पहला अंधा सुबुद्धि और दूसरा अंधा कुबुद्धि कहलायेगा! ... ठीक है!"
दोनों ने अपनी आंखों में पट्टियां सख़्ती से बंधवाने के बाद उससे पूछा, " ... और तुम क्या बनोगे, ऐं?"
"मैं! .. मैं बनूंगा तुम्हारी और आम लोगों की 'दृष्टि'!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 4, 2019 at 3:30am — 2 Comments
नैन पर चंद दोहे :
नैन नैन में हो गई, अंतर्मन की बात।
नैन गाँव को मिल गयी, सपनों की सौग़ात।।
रीत निभा कर प्रीत ने, दिल पर खाई चोट।
आँस न स्रावित हो सकी, थी पलकों की ओट।।( आँस=वेदना )
नैन झुके तो शर्म है, नैन उठें बेशर्म।
नैन जानते नैन के, कैसे होते कर्म।।
नैन बड़े बेशर्म हैं ,नैनों का क्या धर्म।
प्रीत सयानी जानती, प्रीत नैन का मर्म।।
नैन नैन को भेजते,अंतस के सन्देश
बिना दरस के नैन को, लगता ज्योँ…
Added by Sushil Sarna on May 3, 2019 at 1:20pm — 6 Comments
221 1222 22 221 1222 22
गुज़री है मेरे दिल पर क्या क्या अब हिज्र का आलम पूछ रहे ।।
मालूम तुम्हें जब गम है मेरा क्यूँ आंखों का पुरनम पूछ रहे ।।1
इक आग लगी है जब दिल में चहरे पे अजब सी बेचैनी ।
इकरारे मुहब्बत क्या होगी ये बात वो पैहम पूछ रहे ।।2
कुछ फ़र्ज़ अता कर दे जानां कुछ खास सवालातों पर अब ।
होठों पे तबस्सुम साथ लिए जो वस्ल का आगम पूछ रहे ।।3
हालात मुनासिब कौन कहे जलती है जमीं जलता भी है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 3, 2019 at 12:30am — 3 Comments
1-
राह बताते और को, स्वयं लाँघते भीत।
जग का यही विधान है,यही आज की रीत।।
यही आज की रीत, सभी को प्रवचन देते।
लेकिन वही प्रसंग, अमल में कभी न लेते।।
खुद करते पाखंड, दूसरों को भरमाते।…
ContinueAdded by Hariom Shrivastava on May 2, 2019 at 11:01pm — 6 Comments
सितारे-चाँद, अच्छे दिन, ऋणों की बात जपनी है
सजा कर बेचना है स्वप्न ये पहचान छपनी है
बनाते हम बड़ी बातें तथा जुमले खपाते हैं
सियासत तुम समझते हो मगर दूकान अपनी है
जिन्हें तो चिलचिलाती धूप का अनुभव नहीं होना
कभी हाथों जिन्हें सामान कोई इक नहीं ढोना
जिन्हें ज़ेवर लदी उड़ती-मचलती औरतों का साथ
वही मज़दूर-मेहनत औ’ ग़मों का रो रहे रोना
सियासत की, धमक से औ’ डराया ख़ूब अफ़सर भी
लिखा है पत्रिका में इंकिलाबी लेख जम कर भी
उठा कर…
Added by Saurabh Pandey on May 2, 2019 at 7:30pm — 14 Comments
"देखो आज का अखबार, एक लड़के ने जिसे कोई भी सहूलियत हासिल नहीं थी, राज्य सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली. जिसे करना होता है ना, वह लैंप पोस्ट की रौशनी में भी पढ़ लेता है", पिताजी आज फिर उबल रहे थे. इस बार भी राकेश असफल हो गया, वह खुद बहुत उदास था.
"लक्ष्य तो निर्धारित करते नहीं ठीक से, बस साधनों का रोना रोते रहोगे. मुझे लगता था कि मेरे रिटायर होने से पहले मैं भी सुनूंगा कि एक बाबू का लड़का बड़ा अधिकारी बन गया. लेकिन जनाब को तो कोई मतलब ही नहीं है इन सब से", अभी तक उनका बड़बड़ाना जारी था.
पहले…
Added by विनय कुमार on May 2, 2019 at 5:45pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 2, 2019 at 10:00am — 6 Comments
हस्ताक्षर....एक क्षणिका....
स्वरित हो गए
नयन
अंतर्वेदना की वीचियों से
वाचाल हुए
कपोल पर
मूक प्रेम के
खारे
हस्ताक्षर
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशसित
Added by Sushil Sarna on May 1, 2019 at 8:11pm — 4 Comments
खड़ा आपके सामने हाथ जोड़े, लिए स्नेह आशीष की कामना को
करूँ शिल्पकारी सदा छंद की मैं, न छोड़ूँ नवाचार की साधना को
लिखूँ फूल को भी लिखूँ शूल को भी, लिखूँ पूर्ण निष्पक्ष हो भावना को
कभी भूल से भी नहीं राह भूलूँ, लिखूँ मैं सदा राष्ट्र की वेदना को
शिल्प -यगण ×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on May 1, 2019 at 6:38pm — 6 Comments
स्थानीय पार्क में शाम की चहल-पहल। सभी उम्र के सभी वर्गो के लोग अपनी-अपनी रुचि और सामर्थ्य की गतिविधियों में संलग्न। मंदिर वाले पीपल के पेड़ के नीचे के चबूतरे पर अशासकीय शिक्षकों का वार्तालाप :
"हम टीचर्ज़ तो कोल्हू के बैल हैं! मज़दूर हैं! यहां आकर थोड़ा सा चैन मिल जाता है, बस!" उनमें से एक ने कहा।
"महीने में हमसे ज़्यादा तो ये अनपढ़ मज़दूर कमा लेते हैं! अपन तो इनसे भी गये गुजरे हैं!" दूसरे ने मंदिर के पास पोटली खोलकर भोजन करते कुछ श्रमिकों को देख कर कहा।
उन दोनों को कोल्ड-ड्रिंक्स…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 1, 2019 at 5:32pm — 3 Comments
ये दिल.....
फिर
धोखा दे गया
धड़क कर
ये दिल
वादा किया था
ख़ुद से
टुकड़े
ख़्वाबों के
न बीनूँगा मैं
सबा ने दी दस्तक
लम्स
यादों के
जिस्म से
सरगोशियाँ करने लगे
भूल गया
खुद से किया वादा
बेख़ुदी में
खा गया धोखा
किसी की करीबी का
भूल गया हर कसम दिल
डूब गया
सफ़ीना यादों का
बेवफ़ा
हो गया साहिल
लाख
पलकें बंद कीं
बुझा दिए चराग़
तारीकियों में…
Added by Sushil Sarna on May 1, 2019 at 3:53pm — 8 Comments
खेती में घाटा हुआ, कृषक हुए मजबूर।
क्षुधा मिटाने के लिए, बने आज मजदूर।।
बने आज मजदूर, हुए खाने के लाले।
चले गाँव को छोड़, घरों में डाले ताले।।
खाली है चौपाल, गाँव में है सन्नाटा।
फाँसी चढ़े किसान, हुआ खेती में घाटा।।
2-
बिकने को बाजार में, खड़ा आज मजदूर।
फिर भी देश महान है, उनको यही गुरूर।।
उनको यही गुरूर,नहीं अब रही गरीबी।
वह खुद हुए धनाड्य,साथ में सभी करीबी।।
नेता शासक वर्ग, सभी लगते घट चिकने।
लेते आँखें मूँद, खड़ा है मानव…
Added by Hariom Shrivastava on May 1, 2019 at 3:11pm — 8 Comments
जनाब अहमद फराज़ साहब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल
221 1221 1221 122
बुझते हुए दीये को जलाने के लिए आ
आ फिर से मेरी नींद चुराने के लिए आ //१
दो पल तुझे देखे बिना है ज़िंदगी मुश्किल
मैं ग़ैर हूँ इतना ही बताने के लिए आ //२
तेरे बिना मैं दौलते दिल का करूँ भी क्या
हाथों से इसे अपने लुटाने के लिए आ //३
तेरा ये करम है जो तू आता…
Added by राज़ नवादवी on May 1, 2019 at 12:00am — 9 Comments
ग़ज़ल _(वो कुछ न इसके सिवा करेंगे)
(मफा इला तुन _मफा इला तुन)
वो कुछ न इसके सिवा करेंगे l
बना के अपना दगा करेंगे l
किसी से हो जाए उनको उलफत
यही ख़ुदा से दुआ करेंगे l
सितम जफ़ा जिनकी ख़ास फितरत
वो कह रहे हैं वफ़ा करेंगे l
कभी हमें आज़मा के देखो
ये दिल है क्या जाँ फिदा करेंगे l
नज़र पे पहरे अगर लगे तो
खयाल में हम मिला करेंगे l
लगा के इलज़ामे बे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 30, 2019 at 1:14pm — 6 Comments
2122 1212 22
अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब
और ख़ुश्बू निचो रही है शब
oo
मेरे ख़ाबों की ओढ़कर चादर
मेरे बिस्तर पे सो रही है शब
oo
अब अंधेरों से जंग की ख़ातिर
कुछ चराग़ों को बो रही है शब
oo
सुब्ह-ए-नौ के क़रीब आते ही
अपना अस्तित्व खो रही है शब
oo
दिन के सदमों को सह रहा है दिन
रात का बोझ ढो रही है शब
___________________
"मौलिक व…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on April 29, 2019 at 10:51am — 6 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
सजती चुनाव में यहाँ जब तस्तरी बहुत
फिर भी बढ़े है रोज क्यों ये भुखमरी बहुत।१।
उतरा न मन का मैल जो सियासत ने भर दिया
दे कर भी हमने देख ली है फ़िटकरी बहुत।२।
अब खेल वो दिखाएगी उसको चुनाव में
जनता से जिसने है करी बाज़ीगरी बहुत।३।
नेता न आया एक भी सेवा की राह पर
लोगों ने कह के देख ली खोटी खरी बहुत।४।
क्या होगा उनके राज का जनता बतायेगी
करते सदन में जो रहे गत मशखरी बहुत।५।
आता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2019 at 7:04pm — 11 Comments
धरें वेशभूषा तपस्वी सरीखा, जियें किन्तु जो ऐश की जिंदगानी
सने हाथ हैं खून से भी उन्हीं के, सदा बोलते जो यहाँ छद्म बानी
पता ही नहीं मूल क्या ज़िन्दगी का, लगे एक सा जिन्हें आग पानी
उन्हें आप यूँ ही मनस्वी न बोलो, जुबाँ से भले वे लगें आत्म ज्ञानी।।
शिल्प -यगण ×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on April 28, 2019 at 2:36pm — 6 Comments
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