वेदना ...
अंतस से प्रस्फुरित हो
अधर तीर पर
ठहर गए कुछ शब्द
मौन के आवरण को
भेदने के लिए
अंतस के उजास पर
तिमिर का अट्हास
मानो वेदना का चरम हो
स्पर्शों की आँधी
निर्ग्रंथ देह पर
बिखरी अनुभूतियों के
प्रतिबिम्ब अलंकृत कर गई
रश्मियाँ अचंभित थी
निर्ग्रंथ देह पर
अनुभूतियों के
विप्रलंभ शृंगार को देखकर
क्या यही है प्रेम चरम की परिणीति
तृषा और तृप्ति के संघर्ष का अंत
नैनों तटों पर तैरती
अव्यक्त…
Added by Sushil Sarna on April 17, 2019 at 8:06pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
मौन रह अपनी ज़रूरत के लिए ए मित्रवर
तू समस्याओं पे काहें को फ़िराता है नज़र
यूँ भी सदियों से लुटेरे आबरू लूटा किए
रोकने की क्या ज़रूरत लूट लेंगे अब अगर
चाय अपनी दाल रोटी चल रही दासत्व से
तो भला ज़िद ठान बैठा है तू क्यूँ सम्मान पर
साख़ पर उल्लू हैं लाखों क्या हुआ, जाने भी दे
छोड़ चिंता बाग की, बस धन पे रख अपनी नज़र
क्या गरज तुझको पड़ी क्यूँ नींद अपनी खो रहा
यार पंकज, चुन सुकूँ, रख बन्द…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 17, 2019 at 1:27pm — 7 Comments
समय के साथ भी सीखा गया है ।।
ये गुजरा दौर भी बतला गया है ।।
मेरी मजबूरियां अब मत गिनो तुम ।
मेरे संग हो तो सब देखा गया है ।।
सभी उस्ताद बनकर ही नहीं हैं।
मुझे अधभर में ही रख्खा गया है ।।
ये तेरा प्रेम कब छूटेगा मुझसे ।
मेरे चहरे में ये बस सा गया है ।।
मेरे भी चाहने वाले मिलेंगे।
मुझे कहकर यही बिछड़ा गया है ।।
कभी वो इन्तेहाँ मेरा भी ले…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on April 17, 2019 at 11:30am — 5 Comments
सूत्र-सात यगण +गा; 122×7+2
पड़ी जान है मुश्किलों में करूँ क्या कि नैना मिले और ये हो गया।
गई नींद भी औ' लुटा चैन मेरा न जाने जिया ये कहां खो गया।।
जिया के बिना भी जिया जाय कैसे अरे! कौन काँटें यहां बो गया।
हुआ बावरा या नशा प्यार का है संभालो मुझे हाय! मैं तो गया।।
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on April 17, 2019 at 10:29am — 9 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
दिल से निकल के बात निगाहों में आ गयी
जैसे हसीना यार की बाहों में आ गयी।१।
धड़कन को मेरी आपने रुसवा किया हुजूर
कैसे हँसी, न पूछो कराहों में आ गयी।२।
रुतबा है आपका कि सितम रहमतों से हैं
हमने दुआ भी की तो वो आहों में आ गयी।३।
कैसा कठिन सफर था मेरा सोचिये जरा
हो कर परेशाँ धूप भी छाहों में आ गयी।४।
सौदा जो सिर्फ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2019 at 7:25am — 10 Comments
नयी सदी अपना एक चौथाई हिस्सा पूरा करने जा रही थी। तेज़ी से बदलती दुनिया के साथ मुल्क का लोकतंत्र भी मज़बूत होते हुए भी अच्छे-बुरे रंगों से सराबोर हो रहा था। काग़ज़ों और भाषणों में भले ही लोकतंत्र को परिपक्व कहा गया हो, लेकिन लोकतंत्र के महापर्व 'आम-चुनावों' के दौरान राजनीतिक बड़बोलेपन के दौर में यह भी कहा जा रहा था कि अमुक धर्म ख़तरे में है या अपना लोकतंत्र ही नहीं, मुल्क का नक्शा भी ख़तरे में है! कोई किसी बड़े नेता, साधु-संत, उद्योगपति, धर्म-गुरु या देशभक्त को चौड़ी छाती वाला इकलौता 'शेर' कह रहा था,…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on April 16, 2019 at 5:30pm — 5 Comments
ईट पत्थर से बना मकान
उसमें रहते दो इंसान
रिश्तों को वो कदर न करते
एक-दूजे से बात ना करते
कहने को एक मकान में रहते
पर एक-दूजे से घृणा करते
मकान की परिभाषा
को सिद्ध करते ||
कच्ची मिटटी का एक, छोटा घर
स्वर्ग से सुंदर, प्यारा घर
एक परिवार की जान था, जो
प्रेम की सुंदर मिशाल था, वो
सब सदस्य साथ में रहते
हसतें-खेलतें घुल-मिल रहते
नारी के सम्मान के संग सब
एक दूजे का आदर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 4:47pm — No Comments
आँखों में अश्रु निकल आते है मेरे
इतिहास में जा, जब खोजता हूँ
नारी उत्पीडन की प्रथाओ की
कड़ी से कड़ी मै जोड़ता हूँ
हैरान हो जाता हूँ, जब कभी
इतिहास में जा, जब खोजता हूँ
कैसी नारी कुचली जाती
चुप होके क्यों, सब सहती थी
बालविवाह जैसी, कुरूतियों की खातिर
सूली क्यों चढ जाती थी
सती होने की कुप्रथा में क्यों
इतिहास नया लिख जाती थी
चुप होके क्यों, सब सहती थी
सूली क्यों चढ जाती थी ||
जब कभी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 10:45am — 4 Comments
बहाव को रोकने के लिये किसी भी प्रकार के बंध या बंधन काम नहीं आ पा रहे थे। तेज बहाव के बीच एक टीले पर कुछ नौजवान अपनी-अपनी क्षमता और सोच अनुसार विभिन्न पोशाकें पहने, विभिन्न स्मार्ट फ़ोन, कैमरे और दूरबीनें लिए हुए बहती तेज धाराओं के थमने या थमाये जाने; बचाव दल के आने या बुलवाये जाने; नेताओं, मंत्री, यंत्री, धर्म-गुरुओं अथवा विशेषज्ञों के दख़ल करने या करवाने के भरोसे, प्रतीक्षा और शंका-कुशंकाओं के साथ माथापच्ची करते हुए एक-दूसरे के हाथ थामे खड़े हुए थे। कोई तटों की ओर देख रहा था, तो कोई आसमां की…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on April 15, 2019 at 9:31pm — 6 Comments
क्षणिकाएँ :
१.
झाँक सका है कौन
जीवन सत्य के गर्भ में
निर्बाध गति
मौन यति
शाँत या अशांत
बढ़ता है सदा
अदृश्य और अज्ञात लक्ष्य की ओर
हो जाता है सम्पूर्ण
एक अपूर्णता के साथ
एक जीवन
२.
लिख गया कोई
खारी बूँदों से
रक्तिम गालों पर
विरह के
स्मृति ग्रन्थ
रह गई दृष्टि
निहारती
सूने चिन्हों से अलंकृत
अवसन्न से
प्रेम पंथ
३.
हो गई समर्पित
जिसे अपना मान
कर गया वही…
Added by Sushil Sarna on April 15, 2019 at 7:59pm — 8 Comments
(फाइ ला तुन _मफा इलुन _फ़ेलुन)
रहबरी उनकी मुझको हासिल है l
अब भला किसको फिकरे मंज़िल है l
दे सफ़ाई न क़त्ल पर वर्ना
लोग समझेंगे तू ही क़ातिल है l
उस हसीं से गिला है सिर्फ यही
वो वफ़ाओं से मेरी गाफिल है l
दोस्तों से वो राय लेते हैं
सिर्फ़ उलफत में ये ही मुश्किल है l
ढूँढ कर लाए तो कोई ऎसा
मेरा महबूब माहे कामिल है l
जो बचाता है बदनज़र से उन्हें
उनके रुखसार का ही वो तिल है…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 15, 2019 at 12:00pm — 11 Comments
मापनी - 2122, 1122,1122, 22(112)
दूर साहिल हो भले, पार उतर जाता है
इश्क में जब भी कोई हद से गुज़र जाता है
है तो मुश्किल यहाँ तकदीर बदलना लेकिन
माँ दुआ दे तो मुकद्दर भी सँवर जाता है
हमसफ़र साथ रहे कोई…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 15, 2019 at 9:30am — 6 Comments
भीमराव बहुजन के त्राता
जनजीवन के भाग्य विधाता
सदा विषमता से टकराए
ज्वलित दलित हित आगे आए ll
लड़कर भिड़कर भेद मिटाए
पग पीछे को नहीं हटाए
सहकर ठोकर राह बनाए
तम से गम से ना घबराए ll
बोधिसत्व भारत के ज्ञानी
भारतरत्न भीम हैं शानी
दूर किये अश्पृश्य बुराई
वर्णभेद की पाटे खाई ll
छुआछूत का भूत भगाए
समरसता समाज में लाए
बहुजन हित की लड़े लड़ाई
वंचित को अधिकार दिलाई ll
शोषित कुचले जन के…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 14, 2019 at 6:47pm — 8 Comments
राजनीति - लघुकथा -
आज शहर में देश के जाने माने और सबसे बड़े नेता जी की चुनावी रैली थी। समूचा शहर उमड़ पड़ा था। हर तबके और हर समुदाय के लोग मौजूद थे। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी लोगों ने नेता जी से बड़ी आशायें लगा रखी थीं।
एक तो पहले ही नेताजी तीन घंटे देरी से आये। धूप और गर्मी से लोग परेशान थे। मगर फिर भी सब डटे हुए थे क्योंकि अधिकाँश लोग तो पैसे लेकर सभा में आये थे। बचे हुए लोग भविष्य में कुछ मिलने की आशायें लगाये थे। नेताजी ताबड़तोड़ डेढ़ घंटे अपना चिर परिचित भाषण देकर चले…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 14, 2019 at 11:22am — 8 Comments
कई दिनों से टल रहा काम निबटा कर, थके-हारे मिर्ज़ा मासाब अपने अज़ीज़ दोस्त पंडित जी के साथ अपने घर वापस पहुंचे। अपनी नाराज़ बेगम साहिबा को कुछ इस अंदाज़ में देखने लगे कि बेगम का ग़ुस्सा फ़ुर्र से उड़ गया!
"क्या बात है पंडित जी! आज ये हमें इस तरह क्यूँ घूर रहे हैं!" कुछ शरमा कर मुस्कराते हुए बेगम ने अपने पल्लू की आड़ लेकर कहा।
"डाटा रिकवरी करवा कर आये हैं मिर्ज़ा जी के लेपटॉप की!" पंडित जी ने दोस्त का कंधा दबाते हुए कहा।
"अच्छा! वो तो बहुत बढ़िया किया आपने। बहुत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2019 at 11:30pm — 5 Comments
लेकर आये
हैं जुगाड़ से,
रंग-बिरंगे झंडे
सजा रहे
हर जगह दुकानें,
राजनीति के पंडे
खंडित जन
विश्वास हो रहा…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2019 at 10:07pm — 6 Comments
आल्हा छंद (16, 15 अंत में गुरु लघु)
लोकतंत्र के महापर्व में, हुए सभी नेता तैयार
शब्द बाण से वार करें वे, छोड़ छाड़ के शिष्टाचार।।
युध्द भूमि सा लगता भारत, जहाँ मचा है हाहाकार
येन केन पाने को सत्ता, अपशब्दों की हो बौछार।।
खून करें वे लोकतंत्र का, जुमले हैं इनके हथियार
हित जनता का भूल गए वे, ऐसा इनका है आचार
हे जन मन तुम जाग उठो अब, व्यर्थ न जाये यह त्योहार
ऐसा कुछ इस बार करो तुम, राजनीति बदले आकार ।।
रंग बराबर बदलें ऐसे,…
ContinueAdded by Vivek Pandey Dwij on April 13, 2019 at 8:27am — 6 Comments
सूत्र-आठ यगण प्रति पद; 122x8
चुनो मार्ग सच्चा करो कर्म अच्छे जहां में तुम्हारा सदा नाम होगा।
करो यत्न श्रद्धा व निष्ठा भरे तो न पूरा भला कौन सा काम होगा।।
न निर्बाध है लक्ष्य की साधना जूझना मुश्किलों से सरे-आम होगा।
इन्हें जीतना पीढ़ियों के लिए भी तुम्हारा नया एक पैगाम होगा।।1।।
करे सामना धैर्य से मुश्किलों का न कर्तव्य से पैर पीछे हटाए।
नहीं हार से हार माने जहां में कभी कोशिशों से न जो जी चुराए।।
अँधेरा घना या निशा हो घनेरी…
Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2019 at 7:32am — 4 Comments
(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )
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मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है
उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है
**
किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर
ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है
**
किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई
जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 13, 2019 at 1:00am — 3 Comments
122 122 122 12
मुहब्बत की ख़ातिर ज़िगर कीजिये ।
अभी से न यूँ चश्मे तर कीजिये ।।
गुजारा तभी है चमन में हुजूऱ ।
हर इक ज़ुल्म को अपने सर कीजिये ।।
करेगी हक़ीक़त बयां जिंदगी ।
मेरे साथ कुछ दिन सफ़र कीजिये ।।
पहुँच जाऊं मैं रूह तक आपकी ।
ज़रा थोड़ी आसां डगर कीजिये ।।
वो पढ़ते हैं जब खत के हर हर्फ़ को ।
तो मज़मून क्यूँ मुख़्तसर कीजिए ।।
लगे मुन्तज़िर गर…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2019 at 10:34pm — 2 Comments
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