नहीं वक़्त है ज़िन्दगी में किसी की, सदा भागते ही कटे जिन्दगानी
कभी डाल पे तो कभी आसमां में, परिंदों सरीखी सभी की कहानी
ख़ुशी से भरे चंद लम्हे मिले तो, गमों की मिले बाद में राजधानी
सदा चैन की खोज में नाथ बीते, किसी का बुढ़ापा किसी की जवानी।।
शिल्प-लघु-गुरु-गुरु (यगण)×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2019 at 6:47am — 8 Comments
हजज़ मुरब्बा मक़बूज
अरकान :- मुफाइलुन मुफाइलुन (1212-1212)
मुझे उसी से प्यार हो ।।
जो तीर दिल के पार हो ।।
पहाड़ जैसी' जिंदगी ।
कोई तो दाबे'दार हो।।
सवाल बस मेरा यही ।
अदब ओ ऐतबार हो।।(शिष्टाचार,विश्वास)
नफ़स की धुन नहीं थमें।(आत्मा,soul)
कोई भी कितना यार हो।।
लुग़त* की …
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on April 24, 2019 at 11:00pm — 1 Comment
जाल .... ( 4 5 0 वीं कृति)
बहती रहती है
एक नदी सी
मेरे हाथों की
अनगिनित अबोली रेखाओं में
मैं डाले रहता हूँ एक जाल
न जाने क्या पकड़ने के लिए
हाथ आती हैं तो बस
कुछ यातनाएँ ,दुःख और
काँच की किर्चियों सी
चुभती सच्चाईयाँ
डसते हैं जिनके स्पर्श
मेरे अंतस में बहती
जीत और हार की धाराओं को
काले अँधेरों में भी मुझे
अव्यक्त अभियक्तियों के रँग
वेदना के सुरों पर
नृत्य करते नज़र आते हैं
नदी
हाथों की…
Added by Sushil Sarna on April 24, 2019 at 1:24pm — 5 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
एक ताज़ा ग़ज़ल
आदमी सोच के कुछ चलता है,दुनिया में हो जाता कुछ।
मानव की इच्छाएं कुछ है, अर मालिक का लेखा कुछ ।
अपने अपने दुख के साये मैं हम दोनों जिंदा है ,
तू क्या समझे,मैं क्या समझूं, तेरा कुछ है, मेरा कुछ ।
दुनिया के ग़म ,रब की माया और सियासत की बातें ,
खुद से बाहर आ सकता तो, इन पर भी लिख देता।
एक जरा सी बात हमारी हैरानी का कारण है,
ख्वाब में हमने कुछ देखा था ,आंख खुली तो…
Added by मनोज अहसास on April 23, 2019 at 10:51pm — 5 Comments
वह ताश की एक गड्डी हाथ में लिए घर के अंदर चुपचाप बैठा था कि बाहर दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़ा खोला तो देखा कि बाहर कुर्ता-पजामाधारी ताश का एक जाना-पहचाना पत्ता फड़फड़ा रहा था। उस ताश के पत्ते के पीछे बहुत सारे इंसान तख्ते लिए खड़े थे। उन तख्तों पर लिखा था, "यही है आपका इक्का, जो आपको हर खेल जितवाएगा।"
वह जानता था कि यह पत्ता इक्का नहीं है। वह खीज गया, फिर भी पत्ते से उसने संयत स्वर में पूछा, "कल तक तो तुम अपनी गड्डी छोड़ गद्दी पर बैठे थे, आज इस खुली सड़क में फड़फड़ा…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 23, 2019 at 10:20pm — 3 Comments
अम्मा को चारपाई पर लेटे देख बिटिया किशोरी भी उसके बगल में लेट गई और दोनों हाथों से उसे घेर कर कसकर सीने से लगाकर चुम्बनों से अपना स्नेह बरसाने लगी। इस नये से व्यवहार से अम्मा हैरान हो गई। उसने अपनी दोनों हथेलियों से बिटिया का चेहरा थामा और फ़िर उसकी नम आंखों को देख कर चौंक गई। कुछ कहती, उसके पहले ही बिटिया ने कहा :
"अम्मा तुम ज़मीन पे चटाई पे लेट जाओ!"
जैसे ही वह लेटी, किशोरी अपनी अम्मा के पैर वैसे ही दाबने लगी, जैसे अम्मा अपने मज़दूर पति के अक्सर दाबा करती…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 23, 2019 at 6:19pm — 4 Comments
महाभुजंगप्रयात सवैया
कड़ी धूप या ठंड हो जानलेवा न थोड़ी दया ये किसी पे दिखाती।
कि लेती कभी सब्र का इम्तिहां और भूखा कभी रात को ये सुलाती।।
जरूरी यहाँ धर्म-कानून से पूर्व दो वक्त की रोटियाँ हैं बताती।
गरीबी न दे ऐ खुदा! जिंदगी में कि इंसान से ये न क्या क्या कराती?
शिल्प-लघु गुरु गुरु(यगण)×8
रचनाकार- रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on April 23, 2019 at 5:23pm — 5 Comments
प्रतीक्षा लौ ...
जवाब उलझे रहे
सवालों में
अजीब -अजीब
ख्यालों में
प्रतीक्षा की देहरी पर
साँझ उतरने लगी
बेचैनियाँ और बढ़ने लगीं
ह्रदय व्योम में
स्मृति मेघ धड़कने लगे
नैन तटों से
प्रतीक्षा पल
अनायास बरसने लगे
सवाल
अपने गर्भ में
जवाबों को समेटे
रात की सलवटों पर
करवटें बदलते रहे
अभिव्यक्ति
कसमसाती रही
कौमुदी
खिलखिलाती रही
संग रैन के
मन शलभ के प्रश्न
बढ़ते रहे
जवाब…
Added by Sushil Sarna on April 22, 2019 at 6:25pm — 8 Comments
छकपक ... छकपक ... करती आधुनिक रेलगाड़ी बेहद द्रुत गति से पुल पर से गुजर रही थी। नीचे शौच से फ़ारिग़ हो रहे तीन प्रौढ़ झुग्गीवासी बारी-बारी से लयबद्ध सुर में बोले :
पहला :
"रेल चली भई रेल चली; पेल चली उई पेल चली!"
दूसरा :
"खेल गई रे खेल गई; खेतन खों तो लील गई!"
फ़िर तीसरा बोला :
"ठेल चली; हा! ठेल चली; बहुतन खों तो भूल चली!"
दूर खड़े अधनंगे मासूम तालियां नहीं बजा रहे थे; एक-दूसरे की फटी बनियान पीछे से पकड़ कर छुक-छुक…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 22, 2019 at 3:32pm — 2 Comments
कनक मंजरी छंद "गोपी विरह"
तन-मन छीन किये अति पागल,
हे मधुसूदन तू सुध ले।
श्रवणन गूँज रही मुरली वह,
जो हम ली सुन कूँज तले।।
अब तक खो उस ही धुन में हम,
ढूंढ रहीं ब्रज की गलियाँ।
सब कुछ जानत हो तब दर्शन,
देय खिला मुरझी कलियाँ।।
द्रुम अरु कूँज लता सँग बातिन,
में यह वे सब पूछ रही।
नटखट श्याम सखा बिन जीवित,
क्यों अब लौं, निगलै न मही।।
विहग रहे उड़ छू कर अम्बर,
गाय रँभाय रही सब हैं।
हरित सभी ब्रज के तुम पादप,
बंजर…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 22, 2019 at 10:54am — 4 Comments
(1).चेतना :
ग़ुलामी ने आज़ादी से कहा, "मतदाता सो रहा है, उदासीन है या पार्टी-प्रत्याशी चयन संबंधी किसी उलझन में है, उसे यूं बार-बार मत चेताओ; हो सकता है वह अपने मुल्क में किसी ख़ास प्रभुत्व या किसी तथाकथित हिंदुत्व या किसी इमरजैंसी के ख़्वाब बुन रहा हो!"
आज़ादी ने उसे जवाब दिया, "नहीं! हमारे मुल्क का मतदाता न तो सो रहा है; न ही उदासीन है और न ही किसी उलझन में है! उसे चेताते रहना ज़रूरी है! हो सकता है कि वह तुष्टीकरण वाली सुविधाओं, योजनाओं, क़ानूनों से आज़ादी का मतलब भूल गया हो या…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on April 21, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
श'हर में शोर ये फैला हुआ है ।।
पडोसी गाँव में मुजरा हुआ है।।
कोई तो दीद के क़ाबिल है आया ।
यहाँ दो दिन से ही परदा हुआ है।।
वतन की आबरू कैसे बचाए।
म'सलतन आज ही सौदा हुआ है।।
जरा देखूं सराफ़त छोड़ कर के ।
सुना है नाम कुछ अच्छा हुआ है।।
अजां पढ़ ले या बुत की आरती को ।
सभी कुछ आज…
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 21, 2019 at 10:47am — 3 Comments
अधूरी सी ज़िंदगी ....
कुछ
अधूरी सी रही
ज़िंदगी
कुछ प्यासी सी रही
ज़िंदगी
चलते रहे
सीने से लगाए
एक उदास भरी
ज़िंदगी
जीते रहे
मगर अनमने से
जाने कैसे
गुफ़्तगू करते
कट गयी
अधूरी सी ज़िंदगी
ढूंढते रहे
कभी अन्तस् में
कभी जिस्म पर रेंगते
स्पर्शों में
कभी उजालों में
कभी अंधेरों में
निकल गई छपाक से
जाने कहाँ
हमसे हमारी
अधूरी सी ज़िंदगी
बरसती रही…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 20, 2019 at 7:26pm — 6 Comments
मापनी २२१२ १२१ १२२ १२१२
हमने रखा न राज़ सभी कुछ बता दिया
खिड़की से आज उसने भी परदा हटा दिया
बंजर जमीन दिल की’ हुई अब हरी-भरी
सींचा है उसने प्रेम से’ गुलशन बना दिया
जज्बात मेरे’ दिल के’ मचलते चले…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2019 at 9:00pm — 3 Comments
१२२२ १२२२ १२२
उदासी से घिरी तन्हा छते हैं
कई किस्से यहाँ के घूरते हैं
परिंदों के परों पर घूमते हैं
हम अपने घर को अकसर ढूंढते हैं
नहीं है इश्क पतझड़ तो यहाँ क्यों
सभी के दिल हमेशा टूटते हैं
मेरा स्वेटर कहाँ तुम ले गई थीं
तुम्हारी शाल से हम पूछते हैं
नए रिश्तों में कितनी भी हो गर्मी
कहाँ रिश्ते पुराने छूटते हैं
कभी तो राख़ हो जाएंगी यादें
तुम्हे सिगरेट समझ कर फूंकते…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on April 19, 2019 at 8:22pm — 6 Comments
२२१/ २१२१/२२२/१२१२
लेकर शराब साड़ियाँ मतदान कीजिए
फिर पाँच साल जिन्दगी हलकान कीजिए।१।
देता है जो भी सीख ये तुमको चुनाव में
फूलों से ऐसे नेता का सम्मान कीजिए।२।
बाँटेंगे जात धर्म की सरहद में खूब वो
मत खाक उनका आप ये अरमान कीजिये।३।
सीढ़ी हो उनके वास्ते कुर्सी की राह पर
हर लक्ष्य उनका आप ही परवान कीजिए।४।
सेवक हैं उनको आप मत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2019 at 8:04pm — 5 Comments
1-
नेता आपस में लड़ें, रोज जुबानी जंग।
मर्यादाएँ हो रहीं, इस चुनाव में भंग।।
इस चुनाव में भंग, सभी ने गरिमा खोई।
फैलाकर उन्माद, परस्पर नफरत बोई।।
जनता का इस बार, बनेगा वही चहेता।
जो कर सके विकास, चाहिए ऐसा नेता।।
2-
बातें बेसिरपैर कीं, नेता करते रोज।
मर्यादाएँ तोड़कर, दिखलाते हैं ओज।।
दिखलाते हैं ओज, मंच से देते गाली।
खुद की ठोकें पीठ,बजावें खुद ही ताली।।
संसद में जो लोग, चलाते मुक्के लातें।
गरिमा के विपरीत, वही करते हैं…
Added by Hariom Shrivastava on April 19, 2019 at 10:00am — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 18, 2019 at 11:22pm — 3 Comments
अहीर छंद "प्रदूषण"
बढ़ा प्रदूषण जोर।
इसका कहीं न छोर।।
संकट ये अति घोर।
मचा चतुर्दिक शोर।।
यह दावानल आग।
हम सब पर यह दाग।।
जाओ मानव जाग।
छोड़ो भागमभाग।।
मनुज दनुज सम होय।
मर्यादा वह खोय।।
स्वारथ का बन भृत्य।
करे असुर सम कृत्य।।
जंगल करत विनष्ट।
सहे जीव-जग कष्ट।।
प्राणी सकल…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 18, 2019 at 1:18pm — 6 Comments
1212 1122 1212 22/112
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जनाबे मीर के लहजे की नाज़ुकी कि तरह
तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह
oo
शगुफ्ता चेहरा ये ज़ुलफें ये नरगिसी आँखे
तेरा हसीन तसव्वुर है शायरी की तरह
oo
अगर ऐ जाने तमन्ना तू छत पे आ जाए
अंधेरी रात भी चमकेगी चांदनी की तरह
oo
यूँ ही न बज़्म से तारीकियाँ हुईं ग़ायब
कोई न कोई तो आया है…
Added by SALIM RAZA REWA on April 18, 2019 at 9:55am — 7 Comments
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