बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
अपनी ताक़त के बलबूते हाथी ज़िन्दा है
मिल-जुलकर रहती है सो चींटी भी ज़िन्दा है
कैसे मानूँ रूठ गया है मेरा रब मुझसे
मैं ज़िन्दा हूँ, पैमाना है, साकी ज़िन्दा है
सारे साँचे देख रहे हैं मुझको अचरज से
कैसे अब तक मेरे भीतर बागी ज़िन्दा है
लड़ते हैं मौसम से, सिस्टम से मरते दम तक
इसीलिए ज़िन्दा हैं खेत, किसानी ज़िन्दा है
सबकुछ बेच रही, मानव से लेकर ईश्वर तक
ऐसे थोड़े ही…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 2, 2015 at 12:34pm — 14 Comments
तुम्हारे जाने के बाद
सोचा था,भुला दूंगा तुम्हें
जी लूँगा,उसी तरह
जैसे जीता था
जब तुम नहीं थे ज़िन्दगी में।
काटता रहा ज़िन्दगी...पल-पल
इसी भ्रम में
जी कहाँ पाया तब से?
काश!पहले पता होता
कमबख्त..यादें मरा नहीं करतीं
दिनभर की आपाधापी के बाद
साँझ ढले लौट आती हैं,घोंसले में
किसी उन्मुक्त पंछी की तरह
बहुत प्रयास किये
तिनका-तिनका नोच फेंकने के बाद भी
उजाड़ न पाया इनका बसेरा
सदा के लिए।
इनके कलरव हरपल
कांटे…
Added by जयनित कुमार मेहता on September 2, 2015 at 12:08pm — 4 Comments
“तुम ऐसा नहीं कर सकते आकाश, तुम इस तरह मुझे धोखा नहीं दे सकते I”
“परी मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा हूँ मैं तो उल्टे तुम्हें सच बता रहा हूँ I अगर मैं चाहता तो दोनों रिलेशंस बनाये रखकर तुम्हें आसानी से चीट कर सकता था पर मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैं झूठ में विश्वास नहीं करता I जब हमारे रिश्ते में कुछ बचा ही नहीं है तो फिर इसे घिसटने का कोई मतलब नहीं है कम से कम अब तुम मुझसे आज़ाद होकर अपने जीवन की नयी शुरुआत तो कर सकती हो वैसे भी अगर यह सब हमारी शादी के बाद होता तो तुम्हें अधिक दुख…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on September 2, 2015 at 11:30am — 13 Comments
“आप को अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए गिरफ्तार किया जाता है.”
“इंस्पेक्टर साहब ! मेरी बात सुनिए. मैं बेकसूर है. वह मुझ से इजाजत ले कर अपने पूर्व प्रेमी यानि पति के पास गई थी.”
“मैं कुछ नहीं जानता. वह अपने ‘सुसाइड नोट’ में लिख कर गई है कि मैं अपने पति के धोखे की वजह से आत्महत्या कर रही हूँ. इसलिए अब जो कुछ कहना है कोर्ट में कहना.” कह कर इंस्पेक्टर ने हाथ में हथकड़ी लगा दी.
यह देख पति की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, “ वाह ! तू मुझ से इजाजत ले कर अपने हिस्से का उजाला ढ़ूंढ़ने…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on September 2, 2015 at 7:30am — 17 Comments
"मम्मा ,देखो आपके वाइट बाल.. वन ,टू.." लाड़ से उसके बालों में कंघी करते हुए, उसकी सात साल की बेटी चिल्लाई I
"मेरे बालों में दर्द हो रहा है, अब छोड़ " किताब में आँखें गड़ाए वो बोली I
बिटिया अचानक चुप हो गई थी I कंघी करते हुए हाथ भी रुक गए थे I
"क्या हुआ "? उसने बेटी को आगे खींचते हुए पूछा I
"मम्मा ,जिसके बाल वाइट हो जाते हैं वो ओल्ड हो जाता है ना ? बंटी की दादी के भी बाल वाइट हैं ,वो अलग कमरे में रहती हैं ,कोई उनके पास भी नहीं जाता I मम्मा क्या आप भी कभी ओल्ड हो…
ContinueAdded by pratibha pande on September 1, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
महाराज युधिष्ठिर अपने कक्ष में सामंतों के साथ व्यस्त थे!तभी बाह्य द्वार पर युद्ध विजय के विजय घोष और शंख, नगाडे,ढोल आदि वाद्यों की आवाज़ हुई!युधिष्ठिर बाहर आये तो देखा कि लघु भ्राता भीम वाद्य-यंत्र वादकों को निर्देश दे रहे थे!
"भ्राता भीम, अभी कोई युद्ध नहीं हुआ और ना कोई युद्ध विजय तो यह वाद्य यंत्र क्यों बजाये जा रहे हैं"!
"महाराज, क्षमा करें, आज आपने युद्ध से भी बडी विजय प्राप्त की है"!
"हम आपका आशय समझने में असमर्थ है, भ्राता भीम"!
"महाराज, अभी आपके पास…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 1, 2015 at 10:00pm — 16 Comments
१२१२ १२१२ १२१२ १२१२
हरेक संत देखिये कतार ही कतार है
ये ज़िन्दगी बिमार है ये ज़िन्दगी बिमार है
अभी जो लूट है मची कहो ये कौन रोके अब
यहाँ पे भ्रष्ट आदमी लगे कि बेशुमार है
सवाल आँख ने किया जवाब आँख ने दिया
बे - लफ्ज़ बात हो गयी अजब यही तो प्यार है
जो कर्ज की मियाद थी वो ख़त्म ही नहीं हुई
लगे कि मेरे भाग में उधार ही उधार है
मुहासे जिनको कह रहे शबाब की हैं चिठ्ठियाँ
कि जान लो वो…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on September 1, 2015 at 7:30pm — 6 Comments
चाँद के माथे पे शायद .......
चाँद के माथे पे शायद
दुनिया के लिए सिर्फ दाग है
पर दाग वाला चाँद ही
आसमां का ताज़ है
करता वो अपनी चांदनी से
मुहब्बतों की बरसात है
है नहीं वो दिल ज़मीं पे
जिसमें वो बसता नहीं
हों खुली या बंद पलकें
ये हर पलक का ख़्वाब है
अब्र से सावन में छुपकर
वो झांकता है इस तरह
हो रही ज़ुल्फ़ों से जैसे
नूर की बरसात है
हर खुशी के लम्हों में
होते हैं पल कुछ ऐसे भी
बीती शब के दर्द के…
Added by Sushil Sarna on September 1, 2015 at 5:41pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 1, 2015 at 4:30pm — 10 Comments
2122 1212 22
आज इस बात पर ही हँसते है
अश्क़ खुशियों से कितने सस्ते है
तुझसे मिलने में वो ही बंदिश है
सारी दुनिया में जितने रस्ते है
वो मुझे रात दिन सताते है
तेरी आँखों से जो बरसते है
जब तेरा ज़िक्र कहीं आता है
होठ कुछ कहने को तरसते है
चल ज़रा बेखुदी में चलते है
बस वहीँ इश्क़ वाले बसते है
मुझमे रोती थी उनकी नादानी
वो मेरी बेबसी पे हँसते है
देखकर तेरे चेहरे की जर्दी
बेबसी मुठ्ठियों…
Added by मनोज अहसास on September 1, 2015 at 2:30pm — 12 Comments
22---22---22---22 |
|
सूखा है, घर के नल जैसा |
जीवन उजड़ा नक्सल जैसा |
|
हुक्कामों से प्रश्न हुआ तो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 1, 2015 at 9:30am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 31, 2015 at 5:38pm — 2 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on August 31, 2015 at 3:16pm — 8 Comments
अंगूठी (लघु कथा )
'नहीं,नहीं … देखो अब इस घर में रहना शायद मुमकिन नहीं है। 'रेनू ने गुस्से में अपने पति रणधीर से कहा और बैग में अपने कपड़ों को रखने लगी। ''दीपू चलो अपने खिलोने उठाओ और अपने बैग में रखो। ''रेनू ने अपने सात साल के बेटे को करीब करीब डांटते हुए कहा। दीपू भौंचका सा डर कर अपने पापा की तरफ देखकर अपने खिलौने बैग में रखने लगा। ''देखो रेनू ! यूँ छोटी छोटी बातों पर रूठ कर ज़िंदगी के बड़े फैसले नहीं लिए जाते। क्या हुआ अगर मम्मी ने तुम्हें बर्तन साफ़ करने के लिए कह दिया। उनकी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 31, 2015 at 2:39pm — 10 Comments
1222---1222---1222-1222 |
|
मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ। |
तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ। |
|
कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:03pm — 28 Comments
122 122 122 122
कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में
महकते कई फूल पुरवाइयों में
दिखाई न दी आज दीवार उनकी
अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?
ग़मों के भँवर में जो खोया था बचपन
मिला आज यादों की परछाइयों में
पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर
फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में
उजाले में दिन के छुपे रहते बुजदिल
उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में
न कद से समंदर की औकात…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2015 at 11:57am — 15 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 31, 2015 at 10:42am — 6 Comments
कैसे हम आजाद हैं, है विचार परतंत्र ।
अपने पन की भावना, दिखती नहीं स्वतंत्र ।।
भारतीयता कैद में, होकर भी आजाद ।
अपनों को हम भूल कर, करते उनको याद ।
छुटे नही हैं छूटते, उनके सारेे मंत्र । कैसे हम आजाद हैं....
मुगल आक्रांत को सहे, सहे आंग्ल उपहास ।
भूले निज पहचान हम, पढ़ इनके इतिहास ।।
चाटुकार इनके हुये, रचे हुये हैं तंत्र । कैसे हम आजाद हैं...
निज संस्कृति संस्कार को, कहते जो बेकार ।
बने हुये हैं दास वो, निज आजादी हार…
Added by रमेश कुमार चौहान on August 31, 2015 at 10:00am — 6 Comments
दुःख से अब तक नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
ज्ञान ध्यान की बातें सारी
सुख सुविधा संग लगती प्यारीI
चेहरे पर पुस्तक चिपकाये
दूजों को ही पाठ पढ़ाये
खुद उनको तुम सीख न पाए I
खुद को पढ़ना भूल गए हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
चीज़ों का बस संचय करना
अलमारी को हर दिन भरना I
नया जूता जो देता छाला
लगता कितना पीड़ा वाला I
नंगे पैरों के छालों से
अब तक शायद नहीं मिले…
ContinueAdded by pratibha pande on August 30, 2015 at 6:00pm — 9 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
भेड़िये यूँ घूमते हैं झोपड़ी के सामने
डालते वहशी नज़र सब छोकरी के सामने
जेब खाली देखकर ये रेजगारी कह उठी
जेब खाली मत दिखाना तुम किसी के सामने
पेट बच्चा भर ना पाता बूढ़े से माँ बाप का
रोज मजमा जो लगाता घर गली के सामने
इस नशे में देखिये तो घर उजाड़े हैं बहुत
ये नशा दीवार है घर की ख़ुशी के सामने
शाम से ही सज रही मजबूर सी ये लडकियाँ
ज़ख्म ढक के आ गयीं हैं अब सभी के…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on August 30, 2015 at 8:37am — 7 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |