कर्तव्यनिष्ठ - ( लघुकथा ) -
"सुषमा जी,यह क्या देख रहा हूं! कन्या गुरुकुल की लडकियों को अस्त्र शस्त्र और मार्शल आर्ट्स सिखाया जा रहा है!
"जी सर"!
"सुषमा जी, आपने किसकी अनुमति से यह शुरु किया है"!
"सर, इसकी अनुमति ज़िलाधीश महोदय ने दी है, जो कन्या गुरुकुल के अध्यक्ष हैं"!
"और इसका खर्चा कौन देगा"!
"उसकी व्यवस्था भी ज़िलाधीश महोदय ने किसी समाज़ सेवी संस्था के द्वारा कराई है"!
"मगर सुषमा जी इसकी क्या आवश्यकता थी"!
"सर आपने देखा नहीं,…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 16, 2015 at 11:10am — 3 Comments
एक हाथ से कन्या पूजन दूजे हाथ से कन्या हनन
माँ को खुश करने का कैसा है ये आयोजन
धन वैभव की चाहत में सुख संपत्ति के आगत में
मनाते सभी त्यौहार लक्ष्मी जी के स्वागत में
पर ये कैसा अनर्थ जो गृहलक्ष्मी पर भारी
घर अस्पताल में चलती इस लक्ष्मी पर आरी
माँ की ममता बेबस और निष्ठुर पिता का साया
उस घर में बेटी का जन्म क्यूँ न किसी को भाया
कैसी स्वार्थी कैसी निर्दयी ये दुनिया की मंडी
जहाँ बेबस है शक्ति स्वरूपा दुर्गा काली और चंडी
जिन हाथों से डाली जाती है…
Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on October 15, 2015 at 10:00pm — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — 1 Comment
बह्र : ११२१ २१२२ ११२१ २१२२
हो ख़ुशी या ग़म या मातम, जो भी है यहीं अभी है
न कहीं है कोई जन्नत, न कहीं ख़ुदा कोई है
जिसे ढो रहे हैं मुफ़लिस है वो पाप उस जनम का
जो किताब कह रही हो वो किताब-ए-गंदगी है
जो है लूटता सभी को वो ख़ुदा को देता हिस्सा
ये कलम नहीं है पागल जो ख़ुदा से लड़ रही है
जहाँ रब को बेचने का, हो बस एक जाति को हक
वो है घर ख़ुदा का या फिर, वो दुकान-ए-बंदगी है
वो सुबूत माँगते हैं, वो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 15, 2015 at 6:13pm — 10 Comments
2122 – 2122 – 2122 – 212 |
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चाँदनी जब रात, गुमसुम क्यों नदी का तीर है? |
मौन है जल किसलिए, पूछो कि क्यों गंभीर है? |
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प्यार के झुरमुट अंधेरों से लिपट सोते… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 2:44pm — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 12:49am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:15pm — 5 Comments
212—-212---212---212 |
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पूछते रह गए आप क्या कर चले? |
वो मेरी जिंदगी हादसा कर चले. |
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गुमटियाँ शह्र से जो हटा कर चले… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 4:30pm — 23 Comments
अंजामे मुहब्बत .......
कितनी अज़ीब हैं ज़िंदगी की राहें
हर मोड़
एक उलझी पहेली
हर राह पर फिसलन
हर नफ़स एक चुभन
गर्द में दफ़्न
वफ़ा और ज़फ़ा के अनसुने अनकहे
वो अफ़साने
जिन्हें सुनना चाहे
ये दिल बार बार
हर बार
कोई लफ्ज़ लबे दहलीज़ पे
इज़हार से शरम खाता है
और अश्के रवां रुखसार पे रुक जाता है
कह देती है सांस
साँसों में तपते अहसासों को
दे देती है खामोश धड़कनों को
अपनी धड़कनों की आवाज़
वो बात मुहब्बत की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 14, 2015 at 2:16pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 2:00pm — 9 Comments
सुनयना की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे कि उसकी सास का फ़ोन आगया,"समधन जी, ज़रा फ़ुरसत निकाल कर अपनी लाडली को ले जाना"! और आगे बिना कुछ कहे सुने फ़ोन काट दिया!शाम को सुनयना के मॉ बापू पहुंच गये उसके ससुराल!
"कोई भूल हो गयी क्या हमारी सुनयना से"!
"नहीं जी, भूल तो हमसे हुयी जो इसकी भोली सूरत और एम. बी. ए. की डिग्री से धोखा खा गये"!
"आखिर हुआ क्या, बहिनजी, कुछ बताइये तो सही"!
"कोई एक बात हो तो बतायें! बिना उठाये सुबह उठती नहीं, महारानीजी, बिस्तर पर ही चाय चाहिये,रसोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 14, 2015 at 12:00pm — 6 Comments
दोहा छ्न्द-----नवरात्रि-उपहार
प्रथम शैलपुत्री मनन, है नवरात्रि विधान.
वृद्धि करें वन जीव जड, तप बल योग प्रमाण.1
ब्रह्मचारिणी मां प्रखर, दिव्य ज्योति की सार.
सकल सिद्धि यश विजय का, देती हैं उपहार.2
देवि चंद्र घंटा करें, रोग - दोष से मुक्त.
सुखद शांति सुख सम्पदा, वर देतीं उपयुक्त.3
दिव्य हास्य से प्रकट कर, सकल ब्रह्म रस छ्न्द.
खुले हृदय से बांटतीं, कूष्माण्डा मां कंद.4
शक्ति पांचवीं स्कंद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 14, 2015 at 10:30am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 13, 2015 at 11:39pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 9:30pm — 5 Comments
बाजार में बहुत भीड़ थी आज । क्यों ना हो ,नवरात्रि का पहला दिन, लोग सुबह से ही स्नान ध्यान कर पूजा-पाठ की तैयारी में लगे हुए थे ।
मै भी स्नान कर ,कोरी साड़ी पहन, नंगे पैर माता रानी को लिवाने आई थी । फुटपाथ के उसी निश्चित कोने में , माता रानी विविध रूपों में मुर्ति रूप लिये दुकानों में सज रही थी । कहीं तीन मुंह वाली शेर पर सवार थी , कहीं अपने अष्टभुजा में सम्पूर्ण शस्त्रों के साथ , तो कहीं दस भुजा लेकर महिषासुर का वध करती हुई । काली ,चामुण्डा सबके दर्शन हुए लेकिन मै लेकर…
Added by kanta roy on October 13, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
"चाचीजी, मेरे मन में वर्षों से एक सवाल है, यदि आप बुरा ना मानो तो पूछ लूं"!
"बिरज़ू बेटा, पूछ ले क्या शंका है तेरे मन में"!
"चाचीजी, पूरे खानदान में आपकी और चाचाजी की जोडी सबसे अब्बल है! सुंदर ,स्वस्थ और आकर्षक, मगर संतान हीन!क्या आपने कभी इस बारे में नहीं सोचा!कोई जांच आदि नहीं कराई"!
"क्या करेगा अब ये गढे मुर्दे उखाडकर, जाने भी दे"!
"चाचीजी, बताइये ना, ऐसा क्यों हुआ"!
"तो सुन, जब मैं व्याह के आयी थी तो पहले ही दिन मुझे घर की औरतों ने बताया कि तेरे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 13, 2015 at 2:00pm — 6 Comments
"फोन करने और 'ईद मुबारक़' कहने की क्या ज़रूरत थी ?" शबाना ने एतराज़ जताते हुए कहा।
" तो तुमने इतने सालों बाद भी मेरी आवाज़ पहचान ली थी ! फिर तुमने अपने शौहर को क्यों दे दिया फोन ?" कुछ नाराज़गी के लहज़े में आफताब ने पूछा।
"ग़ैर मर्दों से यूँ फोन पर बातें करना हमारे यहाँ मना है। आवाज़ क्या, तुम्हारी तो रग-रग से वाकिफ हूँ मैं तो !" लम्बी साँस लेते हुए शबाना ने उसे समझाया- " देखो, गढ़े मुर्दे उखाड़ कर ज़ख़म कुरेदने से कोई फायदा नहीं ! तुम्हारे वालिद साहब ही घर आये थे और उन्होंने बहुत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 8:00am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2015 at 8:48am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 10:39pm — 4 Comments
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