है खोया क्या किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,
गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।
सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,
सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।
उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,
वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।
कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,
दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।
यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,
जो अब तक खो दिया है…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on August 30, 2015 at 8:30am — 14 Comments
Added by kanta roy on August 30, 2015 at 6:33am — 24 Comments
आवरण छोड़ कर तुम चले तो गये, आभरण आज उसका उतारा गया।
आज फिर इक सुहागन अभागन हुई, उसका सिन्दूर धुल के बहाया गया।।
मयकदे से तुम्हारी लगन क्या लगी, देख ले ना गृहस्थी अगन में जली।
आचरण के असर से भले तुम गये, एक दुल्हन को बेवा बनाया गया।।
कल्पना से परे चेतना से परे, जाने संसार में कौन से तुम गये।
हे भ्रमर किस सफर पर चले तुम गये, रंग तेरे सुमन का मिटाया गया।।
कितने संताप आँखों के रस्ते बहे, कितने सपने सुलग कर भशम हो…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2015 at 11:58pm — 7 Comments
तुम गोलाई में तलाशते हो कोण
सीधी सरल रेखा को बदल देते हो
त्रिकोण में
हर बात में तुम तलाशते हो
अपना ही एक कोण
तुम्हें सुविधा होती है
एक कोण पकड़कर
अपनी बात कहने में
बिन कोण के तुम
भीड़ के भंवर में
उतरना नहीं चाहते
तुम्हें या तो तैरना नहीं आता
या तुम आलसी हो
स्वार्थी और सुविधा भोगी भी
तुम्हें सत्य और झूठ से भी मतलब नहीं है
इस इस देश में गढ़ डाले है
तुमने हजारो लाखों कोण
हर कोण से तुम दागते हो तीर
ह्रदय को…
Added by Neeraj Neer on August 29, 2015 at 11:14am — 12 Comments
दोहा गीत -
रक्षा बंधन पर्व में,
दुनिया भर का प्यार
ऐसा पावन पर्व यह, है भारत की शान
सम्बन्धों की डोर का, बढे खूब सम्मान |
राखी धागे में बँधी, रक्षा की पतवार
बहन लुटाती भ्रात पर, दुनिया भर का प्यार
राखी धागा प्रेम का, बहना देती मान,
आत्महीन भाई वही दे न सके सम्मान |
रिश्ते ही परिवार में, जीने का आधार
भाई के उपहार में, दुनिया भर का प्यार
रक्षा बंधन पर्व में, छुपी खूब यह प्रीत
सबसे ऊपर…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 29, 2015 at 10:30am — 10 Comments
सुनो भैया !
कहीं मन नहीं लगता
जिधर देखती हूँ
तुम ही दिखाई देते हो
कभी आँगन में
माँ के साथ बैठे हुए, कभी
द्वार पर माँ के साथ
मन की बात करते हुए
मै जब भी आती थी
माँ के साथ-साथ तुम्हारे चेहरे पर भी
चमक आ जाती थी
माँ के आँचल की छाँव में
हम दोनों बचपन की यादें
याद कर खुश होते
और माँ भी युवा हो जाती थी
दिन कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता
अब वही घर है वही आँगन
पर ना तुम हो ना माँ…
Added by Meena Pathak on August 29, 2015 at 9:30am — 4 Comments
Added by Samar kabeer on August 28, 2015 at 10:46pm — 9 Comments
1222---1222---1222-1222 |
|
सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का |
नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का |
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पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 8:30pm — 32 Comments
Added by Rajan Sharma on August 28, 2015 at 5:00pm — 2 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
चार मित्रों, चार चेलों से मिली क्या वाह वाह
मैं समझने लग गया ख़ुद को ग़ज़ल का बादशाह
एक चेले की जुबाँ दी काट मैंने इसलिए
बात मेरी काटने का कर दिया उसने गुनाह
बात क्या है, क्यूँ है, कैसे है मुझे मतलब नहीं
मंच पर पहुँचूँ तो फिर मैं बोलता धाराप्रवाह
अब सिवा मेरे न इसको प्यार कर सकता कोई
हो गया है शाइरी का आजकल मुझसे निकाह
चार छः चमचे मिले, माइक मिला, माला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 9:56pm — 10 Comments
Added by Archana Tripathi on August 27, 2015 at 4:34pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2015 at 9:26am — 8 Comments
121-22---121-22---121-22---121-22 |
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नसीब को जो कभी न रोया, उसी को किस्मत फली-फली है |
जो काम आये तुरंत कर लो, गलीज़ आदत टला-टली है |
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कुछ इस तरह से मुहब्बतों के… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 27, 2015 at 3:30am — 16 Comments
Added by Seema Singh on August 27, 2015 at 12:23am — 12 Comments
Added by shashi bansal goyal on August 26, 2015 at 10:52pm — 19 Comments
2212 1222 2222 12
...
चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,
वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |
ज़ब्रो ज़फ़ा गरीबों पर जिस-जिस ने की अगर,
हर जुर्म खुद खुदा को वो लिखवाते ही मिले |
बदनाम वो शहर में पर, काबे का था मरीज़,
हर चोट भी ख़ुशी से सब बतियाते ही मिले |
वो यार था अजीजों सा, दुश्मन भी था मगर,
हर राज-ए-दिल उसे पर हम बतलाते ही मिले |
इस दौर में जिधर भी देखो गम ही गम हुए,
ऐ ‘हर्ष’ ज़िन्दगी में वो भी आधे ही…
Added by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 10:09pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 25, 2015 at 9:57pm — 5 Comments
Added by Samar kabeer on August 25, 2015 at 5:18pm — 19 Comments
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