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All Blog Posts (18,936)

अलबेला चाँद

पत्नी या प्रेमिका

चांद जैसी नहीं

सचमुच चाँद होती है

कभी लगती हेम जैसी

कभी देवि कालिका 

कभी अंधकार

कभी मानस मरालिका

अंतस में अमिय-घट

स्वर्गंगा पनघट

राका एक छली नट

अभ्र बीच नाचे तू

चपला का शुभ्र पट 

स्वयं में मगन  इतना

शीतल तू आह कितना

सताये न अगन

चातक भी बैठा चुप   

सहेजे निज लगन  

सोलह कला चाँद में

अहो ! षोडश शृंगार में

अरे—रे---…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2014 at 3:00pm — 6 Comments

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।
सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1

चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।
जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2

अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।
माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 30, 2014 at 12:00pm — No Comments

सहेजना

सहेजना  

बिखराव में समझ आता है

सहेजे का मोल

मनचाही चीज़ जब

आसानी से नहीं मिलती तो

याद आती है माँ/पत्नी//बहन  

सुबह-सुबह खाना पकाती

सेकेण्ड-सुई से रेस लगाती

हर पुकार पे प्रकट हो जाती

मुराद पूर्ण कर फिर जाती

कितना आसान बना देती है

ज़िन्दगी को,माँ/पत्नी/बहन  

सहेजना एक कौशल है

पर रोज़-रोज़ एक जैसे

को सहेजना बिना आपा खोये

समर्पण है प्यार है त्याग है

औरतें रोज़ इन्हें सहेजती हैं

और एक…

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Added by somesh kumar on November 30, 2014 at 9:33am — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बह्र-ए-रमल

2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122

रात की काली सियाही जिंदगी में छा गई तो आप ही बतलाइये हम क्या करेंगे

चार दिन की चांदनी जब आदमी को भा गई तो आप ही समझाइये हम क्या करेंगे

जन्नतों के ख्वाब सारे टूटकर बिखरे हुए है, बस फ़रिश्ते रो रहे इस बेबसी को

दो जहाँ के सब उजालें तीरगी जो खा गई तो आप ही फरमाइये हम क्या करेंगे…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 29, 2014 at 10:30pm — 21 Comments

कविता जब तुम,होती हो संग-संग

जीवन जीने का चाव

जहां उग जाता है

कविता कहने का भाव

वहाँ से आता है

अनुभव के बाजारों से

जो लेकर आता हूँ 

उसे ही कविता बना के

जीवन में, मैं गाता हूँ

सुख-दुःख हों जीवन के

चाहे हों उत्थान-पतन

सब कविता की कड़ियों में

छिपा लेता हूँ , करके जतन

जीवन में रहते हैं मेरे नव-रंग

कविता जब तुम होती हो संग-संग !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

 

Added by Hari Prakash Dubey on November 29, 2014 at 9:00pm — 10 Comments

तब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी

212 212 212 2122



जब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी

तेरे चेहरे पे मेरी निगाहें रहेंगी



कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना

बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी



चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना 

मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी



हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे

इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी



अक्ल के शहर में आ गया एक पागल

कब तलक बेगुनाह को सजायें रहेंगी



आजकल बिक रही दौलतों से बहारें

बस अमीरें के घर में फिजायें…

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Added by umesh katara on November 29, 2014 at 10:30am — 8 Comments

तनहा तनहा ही रहना है ! (ग़ज़ल)

२२ २२ २२ २२

फेलुन - फेलुन - फेलुन - फेलुन



तनहा तनहा ही रहना है !

दर्द सभी अपने सहना  है !!



रहता वो अपने मैं गुमसुम !

शांत नदी जैसे बहना है !!



उसको साथ मिला अपनों का !

अब उसको क्या कुछ कहना है



वो है नेता का साला तो !

क्या अब उसको भी सहना है !!



घर से जाते तुमने देखा !

कहिये उसने क्या पहना है !!



लड़का उसका बिगड़ा है तो !

घर फिर तो इसका ढहना है !!

"मौलिक और अप्रकाशित…

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Added by Alok Mittal on November 28, 2014 at 4:30pm — 13 Comments

कहना है

मुझे जो कहना है कहूँगा

तुम चाहे जो सजा दो

छड़ी मार या तड़ी पार

फिर भी कहूँगा बारम्बार.

क्यों सपने दिखाते हो?

अपनी बातों में उलझाते हो

देश अब कराह रहा है

फिर भी तुम्हे सराह रहा है .

सपनों के साकार होने का

वख्त शायद आ गया है

अच्छे दिन कब आएंगे?

हर  जेहन में आ गया है.

जिस उंगली ने वोट किया

वो अब उठने लगी है,

शायद तुन्हारी इक्षाशक्ति

तुमसे रूठने लगी है.

कुछ करो न चमत्कार

जिसे जनता करे स्वीकार

फिर होगी…

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Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 27, 2014 at 9:30pm — 22 Comments

दर्द भरी सौगात मिली है

दर्द भरी सौगात मिली है।
तनहाई की रात मिली है।।

तेरे दिल में महफूज़ रहा।
ऐसी कोई बात मिली है।।

जिनके कारण जग से लड़ता।
उनसे ही अब मात मिली है।।

उनकी प्यास बुझाता कैसे।
खारेपन की जात मिली है।।

दर्द को ही तकिया बनाया।
ग़मों से अब निजात मिली है।।
*************************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 27, 2014 at 8:55pm — 15 Comments

अच्छा नहीं होता गुस्सा - जवाहर

अच्छा नहीं होता गुस्सा

पर हो जाता है

मन में गुस्सा

जब कभी

मन माफिक नहीं होता

कोई भी काम

नहीं मानते

अपने ही कोई बात

फिर क्या करें ?

हो जाएँ मौन ?

फिर समझ पायेगा कौन?

आप सहमत हैं या असहमत

क्योंकि

लोग तो यही कहेंगे

मौनं स्वीकृति लक्षणं

मन में रखने से कोई बात

हो जाता नहीं तनाव ?

तनाव और गुस्सा

दोनों है हानिकारक

तनाव खुद का करता नुक्सान

गुस्सा खुद के…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on November 27, 2014 at 10:20am — 18 Comments

मरघट का जिन्न (कहानी)

दो मित्र थे, |शेरबहादुर और श्रवणकुमार | नाम के अनुसार शेरबहादुर बहुत वीर और निर्भीक थे ,अन्धविश्वास से अछूते ,बिना विश्लेषण किसी घटना पर यकीन नहीं करते |दुसरे शब्दों में पुरे जासूस थे |बाल की खाल निकालना और अपनी और दूसरों की फजीहत करना उनका शगल था |श्रवणकुमार नाम के अनुसार सुनने की विशेष योग्यता रखते थे |एक तरह से पत्रकार थे ,मजाल है गाँव की कोई कानाफूसी उनके कानों से गुजरे बिना आगे बढ़ जाए |तीन में तेरह जोड़ना उनकी आदत थी इसलिए नारदमुनि का उपनाम उन्हें मिला हुआ था |पक्के अन्धविश्वासी और डरपोक…

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Added by somesh kumar on November 27, 2014 at 10:00am — 7 Comments

पैसों की बात (लघुकथा)

आज विधानसभा में मामला बहुत गर्म हो गया था। नेता विपक्ष के तो कपड़े तक फाड़ दिए। उनको धक्का-मुक्की में दो-चार थप्पड़-लात भी जड़ दिए गए।

"नेता जी, कल हमें आपका समर्थन चाहिए।"- मंत्री जी का फोन आया।

"कैसा समर्थन! हम कोई समर्थन-वमर्थन नहीं देंगें। कपड़े फाड़ने तक तो ठीक था लेकिन हमारी पिटाई भी हुई है।"- नेता जी ने नाराज होते हुए कहा।

"आपकी नाराजगी जायज है लेकिन कल अगर आपका समर्थन ना मिला तो हम सब की तनख्वाह ना बढ़ पाएगी।"

"अच्छा, पैसों की बात है! तो ठीक है हम मान जाते हैं…

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Added by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:30am — 19 Comments

गजल - "एक तरफा प्यार की ये बेबसी मत पूछिये"

2122 2122 2122 212



एक तरफा प्यार की ये बेबसी मत पूछिये ।

रात दिन रहती है कैसी बेखुदी मत पूछिये ।



अब खुशी का साथ छूटे एक अरसा हो गया ,

किस कदर गम से हुयी है दोस्ती मत पूछिये ।



बोलती आँखेँ हैँ मेरी और लब खामोश हैँ ,

किस तरह आवाज दिल की है दबी मत पूछिये ।



लाख रोयेँ लाख तडपेँ पर भला किस से कहेँ ,

वो दिखायेँ हमको कैसी बेरुखी मत पूछिये ।



वाह वाही कीजिये गर दिल छुये मेरी गज़ल ,

कैसे हम करने लगे हैँ शायरी मत पूछिये… Continue

Added by Neeraj Nishchal on November 27, 2014 at 3:06am — 26 Comments

तुम्हारा घोंसला

जैसे तुमने

तिनका तिनका जोड़ कर

धीरे-धीरे, बनाया अपना घोंसला

वैसे ही

तुमको देख-देख कर

बढ़ता रहा, मेरा भी हौसला

तुम एक- एक दाना चुग कर लायीं

अपने बच्चों को भोजन कराया

मैंने भी, वेसे ही खेतों में फसल लगायीं

दिन रात श्रम कर अन्न उगाया

धीरे धीरे रेत,बजरी ,सीमेंट ले आया

एक- एक ईंट जोड़कर

अपने सपनों का महल बनाया

जिस तरह तुमने अपने बच्चों को

उनके पैरों पर खड़ा किया

उड़ना सिखाया , उड़ा दिया, विदा किया…

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Added by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 10:30pm — 28 Comments

मन-भावक इतिहास - डॉo विजय शंकर

अच्छा लगता है
पुरखों को याद करना ,
उनकीं कथाएं , उनकीं उब्लब्धियाँ ,
सुनना और बयान करना ॥
एक गौरवपूर्ण अतीत और
उसकी सुनहरी स्मृतियाँ ॥
और , सुन्दर सपने देखना ,
फिर कोई भगीरथ आएगा
गंगा क्या , इस बार स्वर्ग ही
धरती पर उतार लाएगा ॥
अभी से दलाल या ठेकेदार
ढूँढ लो , उसके संपर्क में रहो,
स्वर्ग का टिकट वही न दिलाएगा ॥


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2014 at 10:30pm — 16 Comments

बड़ी सीख (लघुकथा )

"यार मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ "-सुजीत ने अपने दोस्त विपिन से कहा |

"प्यार, यार आजकल तो प्यार का ज़माना कहाँ हैं,बस मजे ले और उसे छोड़ दे"-विपिन ने उसे समझाते हुए कहा | 

"पर ,यार  मैं उस से प्यार करता हूँ,मैं किसी के साथ धोका नही कर सकता हूँ "-सुजीत ने उदास होते हुए कहा | विपिन -"यार  इसी में तो मजा है ,खैर कौन है वो लड़की मैं भी तो जानूँ "

सुजीत-"तेरी बहन ,यार "

इतना सुन कर विपिन कुछ न बोल सका | उसे एक बड़ी सीख मिल चुकी थी |

"मौलिक व…

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Added by maharshi tripathi on November 26, 2014 at 6:05pm — 13 Comments

ग़ज़ल: लौ मचलती रही.

साँस चलती रही, आस पलती रही.

रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.

 

वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,

चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.

 

कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,

जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.

 

मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,

मौत जाने किधर को टहलती रही.

 

इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,

जुगनुओं को यही बात खलती रही.

 

वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,

ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.

 

मैं…

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Added by harivallabh sharma on November 26, 2014 at 2:00pm — 23 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकान्त कविता : पगली (गणेश जी बागी)

अतुकान्त कविता : पगली

विवाहिता या परित्यक्तता

अबला या सबला

नही पता .......

पता है तो बस इतना कि

वो एक नारी है ।



साथ में लिए थे फेरे

फेरों के साथ

वचन निभाने के वादे

किन्तु .......

उन्हे निभाना है राष्ट्र धर्म

और इसे ……

नारी धर्म

पगली !!



उनकी सफलता के लिए

व्रत, उपवास, मनौती

मंदिरों के चौखटों पर

पटकती माथा

और खुश हो…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2014 at 10:30am — 48 Comments

माॅर्निंग अखबार (लघुकथा)

"अनुपमा, इस पुलिस की नौकरी की तनख्वाह से तो घर चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। कैसे इनको हम उच्च शिक्षा और सही परवरिश दे पाएंगे?"

"आप ठीक कह रहे हो लेकिन इसका समाधान भी तो नहीं है।"

"समाधान तो है अगर तुम साथ दो तो.....।"

"पहले बताओ तो! क्या समाधान है?"

"तुम्हें बस एक बार मंत्री जी के पास माॅर्निंग का अखबार लेकर जाना होगा। फिर मेरा ट्रांसफर ऐसी जगह हो जाएगा जहाँ तनख्वाह से कई गुना ऊपर की कमाई होगी।"

अनुपमा की माॅर्निंग अखबार की सहमति ने परिवार…

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Added by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 9:39am — 16 Comments

तुम मेरे कौन हो

तुम मेरे कौन हो?

तुम मेरे कौन हो ?

उषा सिंदूरी या चाँदनी रात

उषा जिससे ज़िन्दगी का अन्धेरा जाता है

जिसके स्पर्श से जीवन लहराता है

खिल उठते हैं जिसके दर्शन से बेल-बूटे…

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Added by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

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