(11)
थक जाऊँ तो पास बुलाए।
नर्म छुअन से तन सहलाए।
मिले सुखद, अहसास सलोना।
क्या सखि साजन?
नहीं, बिछौना!
12)…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 10:30am — 16 Comments
वो मुझे याद है, उसने भुला दिया मुझको
आज की रात फिर उसने रुला दिया मुझको,
ये बताओ कि आजकल हो किसके साथ सनम
किसी को ना मिले, जैसा सिला दिया मुझको।
रुह तो मर गई लेकिन, शरीर जिंदा है
जहर वो कौन सा तुमने पिला दिया मुझको।
हमने उस शख्स को बरसों से नहीं देखा था
उसी की याद ने उससे मिला दिया मुझको।
वो तो कहती थी, उसके दिल का शहंशाह है अतुल
है करम उसको ये, शायर बना दिया मुझको।।
…
Added by atul kushwah on February 18, 2014 at 10:30pm — 3 Comments
दिलों में रंजिशें ना हों यहाँ ऐसा जहाँ इक हो
जो छत हो आसमां सारा यहाँ ऐसा मकाँ इक हो /
नया हर जो सवेरा हो मिले सुख शांति हर घर में
मिटे ना वक्त के हाथों जो ऐसा आशियाँ इक हो /
बुराई लोभ भ्रष्टाचार धोखा दूर हो कोसों
हो केवल प्यार हर घर में बसेरा अब वहाँ इक हो /
मिले केवल सुकूं अब और हो मुस्कान होठों पर
घुली मिश्री हो बातों में यहाँ ऐसी जुबाँ इक हो /
निशानी अब हसीं यादों की लम्हा लम्हा मुस्काये
हों चर्चे कुल जहां…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on February 18, 2014 at 3:44pm — 19 Comments
यक्ष प्रश्न
सास बहू के बिगड़ते सम्बन्धों पर बहुत ही प्रभावशाली जोशपूर्ण भाषण देने के बाद अब राधा देवी मीडिया वालों के सवालों के उत्तर दे रही थी.
"मैडम ! लोग बेटी और बहू में अंतर क्यों करते हैं?"
"यह लोगों की नादानी ही नहीं बल्कि घोर पाप है। जो लड़की अपना मायका छोड़ कर ससुराल घर आई हो उसको तो सोने मे तौल कर रखना चाहिए।"
"लेकिन मैडम, हम ने सुना है कि आपकी अपनी बहू से नहीं बनती और आपने उसे घर से निकाल दिया है और बेटे को भी नहीं मिलने देती है ।…
Added by annapurna bajpai on February 18, 2014 at 2:00pm — 15 Comments
दोहे
1) नारी है सुता ,दारा धारे रूप अनेक ।
बंधन बांधे नेह का धीरज धर्म विवेक ॥
2) ये नारी है सृजक नहि अबला कमजोर ।
रोम रोम ममता भरी सह पीड़ा घनघोर ॥
3) महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष ।
जीव जन्तु भटके सभी ऐसे महल विशेष ॥
4) माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥
5) सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान ।
सब मिल शुचिता…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 18, 2014 at 1:00pm — 15 Comments
ग़ज़ल –
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
है गांवों में भी विद्यालय जहां अक्सर नहीं आते |
कभी बच्चे नहीं आते कभी टीचर नहीं आते |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 18, 2014 at 12:30pm — 14 Comments
इस कविता के पूर्व थोड़ी सी प्रस्तावना मैं आवश्यक समझता हूँ. झारखंड के चाईबासा में सारंडा का जंगल एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ) का जंगल है , बहुत घना . यहाँ पलाश के वृक्ष से जब पुष्प धरती पर गिरते हैं तो पूरी धरती सुन्दर लाल कालीन सी लगती है . इस सारंडा में लौह अयस्क का बहुत बड़ा भण्डार है , जिसका दोहन येन केन प्राकारेण करने की चेष्टा की जा रही है .. इसी सन्दर्भ में है मेरी यह कविता :
सारंडा के घने जंगलों में
जहाँ सूरज भी आता है
शरमाते हुए,
सखुआ वृक्ष के घने…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 18, 2014 at 9:21am — 13 Comments
1222/1222/1222/1222
अरे नादान ये मय है जिगर को ये जला ही दे
मेरे इस दर्दे दिल के वास्ते कोई दवा ही दे
कभी जब खींच ले जाये समंदर साथ अपने तो
गुज़रती मौज कश्ती को किनारे पर लगा ही दे
तेरी आँखों में मेरे दर्द की तासीर है शायद (तासीर= असर)
उदासी भी तेरी इस बात की पैहम गवाही दे (पैहम= लगातार)
इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही
तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे
बचूँगा कब…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 7:30am — 19 Comments
2122 2122 2122 212
**
बचपने में चाँद को रोटी समझना भूल थी
कमसिनी में एक कमसिन से लिपटना भूल थी
**
तात ने डाटा किताबें पढ़, मुहब्बत में न पड़
तात से इस बात पर मेरा झगड़ना भूल थी
**
कोख में जब मात ने पाला न माना कुछ उसे
इक कली के द्वार पर माथा रगड़ना भूल थी
**
मिट गया वो, पात ने कर ली हवा से प्रीत जब
बेखुदी में डाल से उसका बिछड़ना भूल थी
**
लूटता इज्जत भ्रमर नित दोष उसको कौन…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2014 at 7:30am — 11 Comments
पत्नी जिस बस से आ रही थीं, उसे घर के पास से ही होकर गुजरना था. रात का समय था. हल्की ठण्ड थी. मैंने हाफ़ स्वेटर पहना और टहलता हुआ उस मोड़ तक पहुँच गया, जहाँ पत्नी को उतरना था. बस के वहाँ पहुँचने में अभी कुछ समय शेष था. ठंडी हवा शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी इसलिए उससे बचने की खातिर मैं फुटपाथ के किनारे बनी दुकान के चबूतरे पर जा बैठा.
कुछ लोग वहीँ जमीन पर सो रहे थे. पास का व्यक्ति चादर ओढे, अभी जग रहा था.
मैंने उत्सुकता वश पूछा 'भैया, यहीं रोज सोते हो?’
'हाँ', वह…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 18, 2014 at 12:00am — 14 Comments
कह मुकरियां
1.
श्याम रंग तुम्हरो लुभाये ।
रखू नैन मे तुझे छुपाये ।
नयनन पर छाये जस बादल ।
क्या सखि साजन ? ना सखि काजल ।
2.
मेरे सिर पर हाथ पसारे
प्रेम दिखा वह बाल सवारे ।
कभी करे ना वह तो पंगा ।
क्या सखि साजन ? ना सखि कंघा
3.
उनके वादे सारे झूठे ।
बोल बोले वह कितने मिठे ।
इसी बल पर बनते विजेता ।
क्या सखि साजन ? ना सखि नेता ।।
4.
बाहर से सदा रूखा दिखता ।
भीतर मुलायम हृदय रखता ।।
ईश्वर भी…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 17, 2014 at 9:28pm — 11 Comments
2122 2122 212 ( पूरा )
इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख
बाग मे पानी के फौव्वारे भी देख
सिर्फ सूखे तू शज़र देखा न कर
हो रहे पत्ते हरे सारे भी देख
तू अमा में चाँद खातिर , ज़िद न कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 6:00pm — 32 Comments
इशारों से दिल का, जलाना तेरा
अजब! हुस्नवाले, बहाना तेरा /१
हमें क्या फ़िकर, ग़र जमाना कहे
दीवाना- दीवाना, दीवाना तेरा /२
हुआ जब से रिश्ता, हयाई बढ़ी
यूँ साड़ी पहन के, लजाना तेरा /३
अभी तो जवां हूँ, है गुंजाइशें
जिगर पे उठा लूँ, निशाना तेरा /४
न नासाज कर दे, कहीं आपको
सनम सर्दियों में, नहाना तेरा /५
बड़प्पन कहीं से, दिखे तो कहूँ
सुना तो, बड़ा है घराना तेरा /६
ये तेवर, ये अंदाज़, आसां नहीं
ग़ज़ल, 'सारथी'…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on February 17, 2014 at 5:00pm — 11 Comments
रंग-रँगीले रथ पर चढ़कर।
रस-सुगंध की झोली भरकर।
फिर बसंत आया।
आज नई फिर धूप खिली है।
दिशा दिशा उजली उजली है।
कुहरे वाली बीती रातें।
नया सूर्य है, सुबह नई है।
नई इबारत फिर गढ़ने को
परिवर्तन लाया।
गाँव गाँव में झूल पड़ गए।
अमराई के भाग्य खुल गए।
अँबुआ पर नव अंकुर फूटे।
कुहू कुहू के बोल घुल गए।
मृदुल तान मृदु साज़ छेड़कर
कुंज-कुंज गाया।
देख-देख…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on February 17, 2014 at 10:30am — 17 Comments
वो मिल ही गयी.......
जिंदगी के हर मोड़ पर
बरसों से मै उसे देख रहा था
और वो मुझे देखती रहती थी
वक्त ही ना मिला जो उससे पूछता
क्यूँ वो मेरा इंतज़ार कर रही थी
अब थक सा गया था
धीरे धीरे दोड रहा था
आज मुझे वो ज्यादा करीब लगी
पूछ ही लिया रुक कर
मुद्दतों से देख रहा हूँ
तुम यूँ ही खड़ी हो
क्यूँ मुझसे मिलने की जिद्द पर अड़ी हो
मुस्कुरा कर बोली बस
तुम्हारा ही इंतज़ार था
मेरी भी मज़बूरी है,
इसलिए कंही नहीं…
Added by pawan amba on February 16, 2014 at 1:30pm — 10 Comments
ऐ जिन्दगी मुझ पे भरोसा ना करना
हमें तो है किसी की चाहत पे मरना
सवाँर पाओ ना तु बिखर जायेगे हम
आपकी दुनिया से चले जायेगें हम
हँसते रहेगें वो तुम रोते रहना
हमें तो है किसी की चाहत पे मरना
ऐ जिन्दगी मुझ पे भरोसा ना करना
आँख मे अश्क उसके दे जायेगें हम
तड़पते रहो तुम चले जायेगें हम
हमे हैं जमाने से कभी कुछ न कहना
हमें तो है किसी की चाहत पे मरना
ऐ जिन्दगी मुझ पे भरोसा ना करना
बैठा करे हम कभी नदीया किनारे
लेकर वो…
Added by Akhand Gahmari on February 16, 2014 at 12:18pm — 12 Comments
ज़िंदगी कसौटियों पर कस कर
निखरती सी गई
जितनी ये तबाह हुई
उतनी संभरती सी गई
आदमियत और गद्दारी में आकर
घुलती सी गई
कभी ये राम,रहीम ,नानक
में बँटती सी गई…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 16, 2014 at 10:25am — 12 Comments
मेरे जब वो करीब आती है
सांस रुककर हमें सताती है
बात दिल की जो कहना चाहूं तो
बात कुछ और निकल जाती है।।
ये जो चिट्ठी किसी की आई है
अब वो अपनी नहीं पराई है
खाक मिलता है मुझे जिंदगी से
जिंदगी जून है जुलाई है।।
उनका चेहरा जब नजर आया
मेरी बातों में तब असर आया
करने इजहार अपनी प्रेयसी से
जमीं पर आसमां उतर आया।।
- मौलिक व अप्रकाशित
Added by atul kushwah on February 15, 2014 at 11:30pm — 13 Comments
1-
हुआ प्रभात
उपासना मे लीन
ऋषी तल्लीन
कर जल अर्पण
हुआ प्रशन्न चित
2-
ऋतु बसंत
खिले कमल दल
स्वर्णिम धरा
पुष्प-पुष्प भ्रमर
करते रसपान
3-
रति-अनंग
नृत्य प्रेम मगन
शिव प्रचंड
भष्मित तन-मन
भयभीत हैं गण
४-
पाँव पखारें
कृष्ण गोपियों संग
देखते रास
शूल विधे असंख्य
नारी वेश में शिव
५-
कर श्रृंगार
नाग,देव,असुर
हरी में हर
नृत्य हुआ…
Added by Meena Pathak on February 15, 2014 at 7:55pm — 6 Comments
तन्हा क्यूँ हूँ मैं
तेरे होने के बाद भी,
प्यासी क्यूँ है सांस
इतना पीने के बाद भी..
दर दर की शराब
उतारी है हलक से,
तर…
ContinueAdded by DRx Ravi Verma on February 15, 2014 at 4:00pm — 6 Comments
2024
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