१२१२ १२१२ ११२२ २२
वो मुझसे पेश रोज रोज यूं आता क्यूँ है
चरागे दिल जला जला के बुझाता क्यूँ है
निगाह से ही बात दिल की बताता क्यूँ है
वो बज्म में नजर यूँ हमसे चुराता क्यूँ है
निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके
घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है
है बात कुछ, नही पता है मुझे खुद जिसका
वो मुझको देख नजरें अपनी झुकाता क्यूँ है
रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो
ज़माने से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 3:00pm — 12 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2014 at 12:56pm — 7 Comments
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय आयोजन ‘’ मेरा शहर मेरा गीत ‘’ के लिए गत वर्ष अप्रैल २०१३ में वाराणसी शहर से प्राप्त करीब पांच सौ प्रविष्टियों में से बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी के नेतृत्व वाली ज्यूरी द्वारा चयनित गीत की दिनांक ०९ फरवरी २०१४ को वाराणसी के संपूर्णानंद स्टेडियम में समारोहपूर्वक भव्य लॉन्चिंग की गयी | इस गीत को दिल्ली एन. सी. आर.…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 15, 2014 at 7:16am — 13 Comments
Added by Abhinav Arun on February 15, 2014 at 7:08am — 19 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on February 14, 2014 at 10:54pm — 9 Comments
आज सुबह पूजा कर के कल्याणी देवी कमरे मे बैठ गयीं | ठण्ड कुछ ज्यादा थी तो कम्बल ओढ़ कर आराम से कमरे मे गूंज रही गायत्री मन्त्र का आनंद ले रही थी | आँखे बंद कर के वो पूरी तरह से गायत्री मन्त्र मे डूब चुकी थीं तभी अचानक खट-खट की आवाज से उन्होंने आँखे खोली | कोई दरवाजा खटखटा रहा था | बहू रसोई मे थी और पतिदेव पूजा कर रहे थे सो उनको ही मन मार कर कम्बल से निकलना पड़ा | अच्छे से खुद को शाल मे लपेटते हुए उन्होंने गेट खोला तो चौंक गईं | एक मुस्कुराता हुआ आदमी सुन्दर सा गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 14, 2014 at 5:18pm — 15 Comments
2122. 2122 2
कहनी क्या थी बात मत पूछो
कब ढ़लेगी रात मत पूछो
जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो
थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो
बैठ हँसते हर तरफ जाबिर
देश के हालात मत पूछो
देखना तासीर भी उनकी
आदमी की जात मत पूछो
जौफ़ ही है हर तरफ बरहम
रंग हैं क्यों सात मत पूछो
है यहाँ हर राह सरगश्ता
क्यों नहीं प्रभात मत पूछो
तासीर- गुण ,प्रभाव
जाबिर -…
Added by Poonam Shukla on February 14, 2014 at 10:00am — 9 Comments
2122 2122 2122 2122
राह में अवरोध जितने, ओ! जमाने तूँ लगा ले
है मुहब्बत चीज ऐसी, रास्ता फिर भी बना ले
हर जुनूँ कमतर है इसको, आग इसकी कौन रोके
आशिकी पीछे हटी कब, इम्तहाँ गर जो खुदा ले
कैश की हर पीर लैला, खीच लेती ओर अपनी
है मुहब्बत को बहुत कम, जुल्म जग जितने बढ़ा ले
इस मुहब्बत की बदौलत, शिव फिरे ले शव सती का
अंध देखे रंग दुनिया, नेह में जब मन रमा ले
खत्म …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2014 at 7:00am — 13 Comments
जाने क्या सोचकर
.......उसने भेजा
एक गुलाब
एक मुस्कान
एक चितवन
एक सरगोशी
एक कामना
एक आमंत्रण
और मैंने पलटकर
उसकी तरफ देखा भी नही
भाग लिया
उस तरफ
जहां काम था
चिंताएं थीं
अपूर्णताये थीं
सुविधाएं थीं
अनुकूलताएँ थीं
थकन और
स्वप्न-हीन निद्रा…
Added by anwar suhail on February 13, 2014 at 8:43pm — 6 Comments
अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा
यूँ लगा है की सितारों पे टहल जाऊंगा ll
जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो
तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll
रो लिया चुपके जरा हस लिया हमनें ऐसे
ज़ख्म तो दिल के दबाकर मैं बहल जाऊंगा ll
प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll
है कशिश तीरे नज़र टकरा गयी हमसे जो
इक छुवन से ही जरा उसके मचल जाऊंगा ll
तू खुदा, बंदा मैं हूँ , हाथ जो सर पे रख…
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on February 13, 2014 at 5:30pm — 8 Comments
मेरी आँखों के सामने
रूका हुआ है
धुएं का एक गुबार
जिस पर उगी है एक इबारत ,
जिसकी जड़ें
गहरी धंसी हैं
जमीन के अन्दर.
इसमें लिखा है
मेरे देश का भविष्य,
प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .
उसमे उभर आयें हैं ,
कुछ चित्र,
जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड
चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले
युवाओं को
खा जाता है,
एक पोसा हुआ भेड़िया,
लोकतंत्र को कर लेता है ,
अपनी मुठ्ठी में…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 13, 2014 at 9:00am — 21 Comments
देवदार के पत्ते पर
बर्फ के कतरे जितनी
मेरी अभिलाषा |
उस पर भी दुनिया की सौ-सौ शर्तें
सौ-सौ पहरे
तीक्ष्ण-तल्ख भाषा |
पलकों की ड्योढ़ी पर बैठे स्वप्न
कुछ नेपथ्य में टूट-फूट
करते विलाप
सभी प्रतीक्षारत, कब छँटे
घना कुहासा |
प्रस्वेदित तन
म्लानता का प्रचण्ड सूरज
जीवन नभ पर
और सिद्धि की
शून्य सदृश आशा |
भिक्षुक द्वार खड़ा आशीष लिए
दानी परदे में बैठा
यहाँ कौन भिक्षुक…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 13, 2014 at 12:51am — 8 Comments
इक गुलदस्ते की तरह, सजा हमारा देश।
तरह-तरह के लोग हैं, तरह-तरह के वेश।।
जाति धर्म के फेर में, उलझ गया इंसान।
प्रेम शांति का मार्ग है, सत्य यही लो जान।।
तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।
बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।
मक्कारी औ झूठ से, जो ना आये बाज।
उसकी भाषा लो समझ, पहचानो आवाज।।
(मौलिक व अप्रकाशित)* संशोधित
Added by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2014 at 9:30pm — 22 Comments
आओ कुछ तो समय निकालो
थोड़ा हँस लो थोड़ा गा लो |
जीवन की आपाधापी में
अपने पीछे छूट न जाएँ
नन्हे सपने टूट न जाएँ
जरा नया उत्साह जगा लो
थोड़ा हँस लो.......
अपने हम से रूठ गए जो
जीवन पथ पर छूट गए जो
उनकी यादों से अब निकलो
रूठ गए जो उन्हें मना लो
थोड़ा हँस लो........
देख समय ने करवट खाई
फिर क्यों है मायूसी छाई
दे दो गम को आज विदाई
बुरे समय को हँस कर टालो
थोड़ा…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on February 12, 2014 at 3:00pm — 31 Comments
वो मुर्गे की बांग
वो चिडियों की चीं-चीं
वो कोयल की कूक
अब वो भोर कहाँ ..
वो जांत का घर्र-घर्र
वो चूड़ी की खन-खन
वो माई का गीत
अब वो भोर कहाँ ..
वो कंधे पर हल
वो बैलों की जोड़ी
वो घंटी का स्वर
अब वो भोर कहाँ ..
वो पहली किरन
वो अर्घ-अचवन
वो पार्थी की पूजा
अब वो भोर कहाँ ..
वो माई की टिकुली
वो पीला सिन्दूर
वो पायल की छम-छम
अब वो भोर कहाँ ..
वो…
Added by Meena Pathak on February 12, 2014 at 3:00pm — 17 Comments
2122 2122 2122
आँख में उनकी छिपा डर देख लेते
जल गये जो आप वो घर देख लेते
कर दिया अंधा सियासत ने सहज ही
आप वरना खूँ के मंजर देख लेते
क्यों किसी के आसरे पर आप बैठे
कुछ नया खुद आजमाकर देख लेते
बात करते हो बहुत तुम न्याय की जब
हाकिमों नित क्यों कटे सर देख लेते
खूब सुनते है तेरी जादूगरी की
आग पानी से जलाकर देख लेते
सोच लेता मैं कि जन्नत पा गया हूँ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2014 at 7:30am — 16 Comments
रति भी तू,कामना भी तू,
कवि की सुंदर कल्पना है,
प्रेम से भरी मूरत है तू,
कुदरत का कोई करिश्मा है ...
सांवली रंगत,सूरत मोहिनी,
कातिलाना तेरी अदाएं है,
सात सुरों की सरगम तू,
फूलों की महकती डाली है....
नयन तेरे काले कज़रारे है,
लब ज्यूँ मय के प्याले है,
जिन पर हम दिल हारे है,
उल्फ़ते-राज़ ये गहरे है ....
हुस्नों-हया की मल्लिका…
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 12, 2014 at 12:30am — 15 Comments
टिकती है क्या झूठ पर, रिश्ते की बुनियाद
झूठ बोल हर बात में, करते सदा विवाद |
करते सदा विवाद, सवाल पूछ कर देखे
मुखड़ा करे बयान, होंठ व ननन जब निरखे
कहते है कविराय. कभी न सत्यता छिपती
रिश्ते की बुनियाद कभी न झूठ पर टिकती ||
(2)
डाली डाली में जहाँ,फूलों की मुस्कान,
मेरा देश अखंड वह, भारतवर्ष महान
भारतवर्ष महान,छटा है मोहक न्यारी
दुल्हन जैसा रूप,जहां खिलती हर क्यारी
लक्ष्मण…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:30pm — 11 Comments
दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य
रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।
सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1
चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।
जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2
अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।
माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3
हरी दूब कोमल बड़ी, ज्यों नव वधू समान।
सम्बन्धों को जोड़ कर, रखती कुल की शान।।4
हल्दी सेहत मन्द है, करती रोग-निरोग।
त्वचा खिले…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 11, 2014 at 6:28pm — 12 Comments
मन – पाँच दोहे
************
मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर
फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर
मन, आखें मीचे अगर , खूब मचाये शोर
आँख अगर हो देखती , मन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 11, 2014 at 6:00pm — 28 Comments
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