धैर्य रखो मत हो विकल,सुन लो मेरी बात!
अल्प दिवस हैं कष्ट के ,होगी स्वर्ण प्रभात!!
लोभ कपट को त्यागकर,मीठी वाणी बोल!!
यह जीवन का सार है,सहज वृत्ति अनमोल!!
अपनापन गोठिल जहाँ,वहाँ परस्पर द्वंद !
पापा कहते थे वहाँ ,बढ़ते दुःख के फंद!!
भ्रष्ट आचरण त्यागकर,करना मधुरिम बात !
होगी वर्षा नेह की,प्यार भरी सौगात !!
पापा कहते थे सदा,सुन लो मेरे लाल!
जीवन में होना सफल ,बहके कदम सँभाल!!
सत्कर्मों से ही…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on December 15, 2013 at 11:00pm — 15 Comments
मन अशांत चेहरा शान्त
आँखे शुन्य में निहारती
चारो तरफ था शोर था
मेरी गोद में सोया
मेरा सुहाग था
जीवन का उजाला
बच्चों का पालक
मेरा साहस मेरा श्रृंगार था
आज बीमार था
यहाँ मौत से थी जंग
वहाँ हड़तालियों की
वार्ता सरकार के संग
रोके थे गाड़ीयों के पहिये
आवाज साथीयों साथ रहीये
आती थी हिचिकियाँ बार बार
मौत का मौन निमंन्त्रण
मैं लाचार,कैसे चले पहीये
मेरा बच्चा जो चुप…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on December 15, 2013 at 9:00pm — 7 Comments
चिर निद्रा से जाग युवा कब तक सोएगा
देख हताशा की मिट्टी मन में लिपटी है
स्वार्थ सिद्धि में लिप्त भावना भी सिमटी है
ले आओ तूफान के मिट्टी ये उड़ जाए
मन का दिव्य प्रकाश देख तम भी घबराए
कब तक अनुमानों के दुनिया मे खोएगा
चिर निद्रा से जाग युवा कब तक सोएगा
स्वाभिमान खो गया तुम्हारा क्यूँ ये बोलो
तनमन से नंगे होकर तुम जग भर डोलो
संस्कार मर्यादाओं का भान नहीं है
यकीं मुझे आया के तू इंसान नहीं है
जन्म…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 8:45pm — 4 Comments
वो हँसना, वो रोना
वो दौड़ना, वो भागना
वो पतंगे, वो कंचे
जने कहाँ छूट गए...
अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए...
वो खेला, वो मेला
वो संगी, वो साथी
वो गुल्ली, वो डंडा
वो चोर, वो सिपाही
जाने कहाँ छूट गए ....
अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए...
वो खुशी, वो हंसी
वो खो-खो, वो कबड्डी
वो आईस-पाईस, वो ऊंच-नीच
जाने कहाँ छूट गए....
अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए...
अम्मा की रोटी, उनकी…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 15, 2013 at 8:30pm — 4 Comments
कह पथिक विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ
रवि सा जल
ना रुक, अथक चल
सीधी राह एक धर
रह एकनिष्ठ
बढ़ निडर .
अभी सुबह है,
बाकी है अभी
दुपहर का तपना.
अभी शाम कहाँ,
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.
चलना तेरी मर्यादा
ना रुक, सीख बहना
अवरोधों को पार कर
मुश्किलों को सहना
आगे बढ़ , बन जल
स्वच्छ, निर्मल
अभी दूर है सिन्धु
अभी मुकाम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम…
ContinueAdded by Neeraj Neer on December 15, 2013 at 7:00pm — 10 Comments
हजज मुरब्बा सालिम
१२२२/१२२२
हूँ प्यासा इक महीने से
मुझे रोको न पीने से
पिला साकी सदा आई
शराबी के दफीने से
पिला बेहोश होने तक
हटे कुछ बोझ सीने से
न लाना होश में यारो
नहीं अब रब्त जीने से
उतर जाने दो रग रग में
उड़े खुशबू पसीने से
जिसे हो डूबने का डर
रखे दूरी सफीने से
हुनर आता है जीने का
है क्या लेना करीने से
गिरा न अश्क उल्फत में
ये…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 11:30am — 14 Comments
मेरी दादी बताती थी कि ये सब मोह माया है,
कोई परियों की रानी है ये नानी ने बताया है।।
शिवपुरीवासियों दुगनी मोहब्बत से सुनो मुझको,
कटे हैं पंख पंछी के ये अब तक उड न पाया है।।
नहीं जब मानता था बात थप्पड मार देती थी,
मेरी मां ने मुझे रोते हुए हंसना सिखाया है।।
घमंडी मत बनो दौलत का पीछा मत करो इतना
जो अपने पास होता है वो भी सब कुछ पराया…
Added by atul kushwah on December 14, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
मोहब्बत में तुम्हारा ही लबों पर नाम आया है,
भ्रमर की गुनगुनाहट का कली पर रंग आया है।
यहां हर बज्म तेरे नाम से गुलजार होती है,
तुम्हारी मुस्कुराहट को गजल हमने बनाया है।।
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दिवाली लब से बोलो तो अली का नाम आता है
जनम भर सिर झुकाने का सलीका काम आता है,
मुल्क में धर्म को लेकर उपद्रव पालने वालों
लिखो और फिर पढो रमजान में भी राम आता है।।
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कली जब फूल बन जाए, भ्रमर तब…
ContinueAdded by atul kushwah on December 14, 2013 at 9:30pm — 6 Comments
सीमित संसाधनों के साथ
महती भौतिकता वादी प्यास की तृप्ति
शायद प्रेरित करती है तुम्हे सतत
बेच देने के लिए अपना जमीर ......
शराब और शबाब में मस्त
अपने दांतों से खींचते हुए
रोस्टेड चिकेन की टाँगे
भूलते रहे हो तुम अपने शक्ति और अधिकार ...
फिर समाज में रुतवा कायम करने की;
एक अच्छा पिता और पति कहलाने की ;
तुम्हारी ख्वाइश ने भी जी भर हवा दी है
अधिक से अधिक धनोपार्जन की तुम्हारी प्यास को
जायज या नाजायज
किसी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 14, 2013 at 4:29pm — 7 Comments
साँसें लम्हों का क़र्ज़ मुझे बाँटती रहीं
ज़ख़्मों पे ख्वाहिशों के दर्द टाँकती रहीं
सोचा था कोशिशों को मिलेगी तो कहीं छाँव
क़िस्मत की मुठ्थियाँ ये जलन बाँटती रहीं
बच्चों की तरह बिल्कुल मिट्टी की स्लेट पर
हाथों की लकीरें भी वक़्त काटती…
Added by ajay sharma on December 13, 2013 at 10:34pm — 5 Comments
ग़म ए दौरा से बेख़बर हूँ मैं
निरंतर बह रहा हूँ समंदर हूँ मैं
सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की
थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं
ले ले इम्तहाँ मेरा कोई तूफ़ा भी अगर चाहे
ज़ॅमी पे सब्र की ज़िद का इक घर हूँ मैं
गमों के काफिलों की राह मैं "अजय"
उम्मीद का इक पत्थर हूँ मैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by ajay sharma on December 13, 2013 at 9:30pm — 6 Comments
1)
आपस के संवाद में, कितने ही मंतव्य !
कुछ तो हैं संयत-सहज, अक्सर हैं वायव्य
अक्सर हैं वायव्य, शब्द से चोट करारी
वैचारिक …
Added by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 2:00am — 55 Comments
2122 2122 2122 212
सिलसिले उनके छिपे, कांटो से भी मिलते गये
फिर भी ऐसा क्यों हुआ वो फूल सा खिलते गये
राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम
बिन रुके चलते रहे तो रास्ते मिलते गये
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 9:30pm — 32 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है,
उसे हारने का इशारा हुआ है.
***
उसे चाँद तारों की संगत मिली थी,
वो आवारगी में हमारा हुआ है.
***
मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,
मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.
***
बचा है वो ऐसे, जिसे डूबना था,
कि फिर कोई तिनका सहारा हुआ है.
***
सिकुड़ने लगा है मेरा आसमां अब,
नज़र से नज़र तक, नज़ारा हुआ है.
***
वो आतिशफिशा था, मगर अब ये…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on December 12, 2013 at 9:17am — 44 Comments
1-मरणोपरांत
भूख से मरा था
शायद! इसीलिए
मरणोपरांत अखबार में
फ़ोटो छपी है
२-लाभ
आपके हीरे कि अँगूठी से अच्छा तो मेरा
मिट्टी का दीपक है
कम से कम
रात में प्रकाश तो फैलाता है
३-सौदा
आज उसके बच्चे भूखे नहीं सोये
वो कह रहा था
कुछ फर्क नहीं पड़ता
थोड़ा रक्त बेचने पर
४-तृप्ति
भूख शांत हो गयी
जली रोटी थी तो क्या? हुआ…
Added by ram shiromani pathak on December 12, 2013 at 12:21am — 27 Comments
रात का दूसरा पहर
दूर तक पसरा सन्नाटा और
गहरा कोहरा
टिमटिमाती स्ट्रीटलाइट
जो कोहरे के दम से
अपना दम खो चुकी है लगभग
कितनी सर्द लेहर लगती है
जैसे कोहरे की प्रेमिका
ठंडी हवा बन गीत गाती हो
झूम जाती हो
कभी कभी हल्के से
कोहरे को अपनी बाहों में ले
आगे बढ़ जाया करती
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस
अपनी जगह आ बैठता
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे
बस अपने काम का मारा
सर्द रात में खुद का साम्राज्य
जमाये है हर…
Added by Priyanka singh on December 11, 2013 at 10:00pm — 41 Comments
है वही रास्ते
पथरीले चौड़े
पतले पक्के
घट गये रास्ते
बढ़ गयी दूरियाँ
है वही गिलास
शरबतों से भरे
शराब से खाली
नशा प्यार का
नशा नशा का
दरवाजों पे दरबार
मन की शांति
मन का तनाव
भूला प्यार
बचा टकरार
वही है रिश्ते
निभाने की होड़
दिखावट की होड़
मदद चाहत
मदद डर
प्रेम है वहीं
मन का मिलन
तन का मिलन
समर्पित हम
धन…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on December 11, 2013 at 9:00pm — 13 Comments
अमृता प्रीतम जी और ईश्वर
कई लोग जो अमृता प्रीतम जी की रचनाओं से प्रभावित हैं अथवा उनके जीवन से परिचित हैं, उनकी मान्यता है कि अमृता जी विधाता में विश्वास नहीं करती थीं। इस कथन में वह ठीक हैं भी और नहीं भी। यह इसलिए कि अमृता जी का लेखक-जीवन इतना लम्बा था कि यह मान्यता इस पर निर्भर है कि वह कब किस पड़ाव में से गुज़रीं, और उनकी उस पड़ाव के दोरान की रचनाएँ क्या इंगित करती हैं।
अमृता जी की रचनाओं के लिए असीम श्रद्धा के नाते और जीवन को उनके समान असीम…
ContinueAdded by vijay nikore on December 11, 2013 at 5:30pm — 18 Comments
मुश्किल काम होता है
चढ़ाये रखना ,
लगातार बहुत समय तक
सजावट को ,
रह पाये कोई अगर तुम्हारे साथ
अधिक समय तक
लगातार, तो
फीकी पड़ने लगेंगी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 11, 2013 at 5:00pm — 27 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
रात को चाँद फिर आयेगा देखिये
आके दिल फिर जला जायेगा देखिये
हम रहेंगे खड़े रात भर छत पे ही
बादलों में वो छुप जायेगा देखिये
अपने दीवानों पे रोज ही इस तरह
चांद क्या क्या सितम ढायेगा देखिये
हम जिसे भूल पाए कभी हैं नहीं
किस तरह वो भुला पायेगा देखिये
रंग गिरगिट के जैसे बदलता है जो
कैसे वादे निभा पायेगा देखिये
चांदनी बन जमी पर उतरता रहा
खुद जमी पर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 11, 2013 at 4:30pm — 20 Comments
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