For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,107)

नज़्म: मटर

ज़िंदगी भी मटर के जैसी है 

तह खोलो बिखरने लगती है

कितने दाने महफूज़ रहते हैं उन फलियों की आगोशी में

कुछ टेढ़े से कुछ बुचके से कुछ फुले से कुछ पिचके से

हू ब हू रिश्तों के जैसे लगते हैं

कुनबे से परिवारों से कुछ सगे या रिश्तेदारों से

पर सभी आज़ाद होना चाहते हैं कैद से

रिवायतों से बंदिशों से बागवाँ से साजिशों से

ज़िंदगी भी मटर के जैसी है

तह खोलो बिखरने लगती है

(मौलिक व अप्रकाशित) 

आज़ी तमाम

Added by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 2:00pm — 4 Comments

नज़्म: ख़्वाहिश

कोई ख़्वाब न होता आँखों में 

कोई हूक न उठती सीने में

कितनी आसानी होती 

या रब तन्हा जीने में

दिल जब से टूटा चाहत में

रिंद बने पैमानों के

ढलते ढलते ढल गई

सारी उम्र गुजर गई पीने में

यूँ ही सांसें लेते रहना

यूँ ही जीते रहना बस

हर दिन साल के जैसा 'गुजरा

हर इक साल महीने में

दुनिया डूबी लहरों में

हम डूबे यार सफ़ीने में

देखीं कैसी कैसी बातें

अज़ब ग़ज़ब दुनियादारी

वो कितने ना पाक…

Continue

Added by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 11:30am — 2 Comments

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2122   2122   2122   212

इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा ।

जो भरम दिल में बचा है खुद रिहा हो जाएगा ।

इतने बुत मौजूद है तेरे खुदा के भेष में,

सजदा करते-करते तू खुद से जुदा हो जाएगा ।

सब पुराने पेड़ों को गर काट दोगे तुम यूं ही,

घर सलामत भी रहा तो लापता हो जाएगा।

ढूंढना अब छोड़ दे उस तक पहुँच का रास्ता,

खुद को पाले तो तू खुद ही रास्ता हो जाएगा ।

छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर ,

ऐसा करने…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 8, 2021 at 12:14am — 3 Comments

ग़ज़ल: जैसे जैसे ही ग़ज़ल रुदाद ए कहानी पड़ेगी

2122 1122 2112 2122

जैसे जैसे ही ग़ज़ल रूदाद ए कहानी पड़ेगी

वैसे वैसे ही सनम दिल की फज़ा धानी पड़ेगी

रश्म हर दिल को महब्बत में ये उठानी पड़ेगी

दिल जलाकर भी कसम दिल से ही निभानी पड़ेगी

ख़ुश न होकर भी ख़ुशी दिल में है दिखानी पड़ेगी

कुछ न कहकर भी रज़ा दिल की यूँ सुनानी पड़ेगी

हुस्न वालो की सुनो ना ख़ुद पे भी इतना इतराओ

लम्हा दर लम्हा महंगी तुम्हें न'दानी…

Continue

Added by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 3:00pm — 4 Comments

( बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे......(ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे

कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)

मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी

था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)

मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ

दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)

अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था

बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)

देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का

हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे…

Continue

Added by सालिक गणवीर on April 7, 2021 at 1:51pm — 9 Comments

हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२



हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया

बोली जवानी क्रोध  में दुश्मन क्या लिख दिया।१।

*

घर के बड़े  भी  काट  के  पेड़ों  को  खुश हुए

बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।

*

तस्कर तमाम  आ  गये  गुपचुप  से  मोल को

माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।

*

आँखों से उस की धार  ये  रुकती नहीं है अब 

भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।

*

वो  सब  विहीन  रीड़  के  श्वानों  से  बन …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 1:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल-मेरी  उदासी  मुझे अकेला  न छोड़  देना

121   22   121   22   121   22

अगर कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना

मेरी  उदासी  मुझे अकेला  न छोड़  देना

बिना तुम्हारे  ये ज़िन्दगी अब  कटेगी कैसे

जो तू नहीं तो नफ़स की डोरी भी तोड़ देना

जरा  सी कोई  रहे  हरारत  न जान  बाकी

कि  जाते जाते  बदन  हमारा निचोड़ देना

कभी हमारे ग़मों पे तुझको दुलार आये

वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना

तेरे ग़मो का उसे न होगा पता, है मुमकिन

मगर सिरा 'ब्रज' उदासियों का न जोड़…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2021 at 10:30am — 11 Comments

ग़ज़ल

2122    1212    22/ 112

  

भारती धर्म  अपना क़द करे हैं !

माँ की खायी कसम न मद करे हैं !

तीरगी को हटाया जाँ हमी ने,

रघुवंशी  हम उजालों क़द  करे है !

मोमबत्ती भी जिनसे जल न सकी,

सूरज  होने का दावा ज़द करे  हैं !

जाने  क्या वो अँधेरों  के  हामी 

वरिष्ठों के है अदु वो हद करे  हैं !

सावन  अंधे जुड़ाव  हो  कैसे ?

है  रतौंधी  उन्हें  अहद  करे…

Continue

Added by Chetan Prakash on April 7, 2021 at 9:30am — No Comments

ग़ज़ल: माँ

2212 2212 2222 2

मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है

तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है

आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है…

Continue

Added by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 8:00am — 4 Comments

मिर्च कोई आग पर बोता है क्या- ग़ज़ल

2122 2122 212

मिर्च कोई आग पर बोता है क्या,
लोन-पानी ज़ख्म को धोता है क्या।

हो रहा जो अब भले होता है क्या,
कोई अपने आप को खोता है क्या।

बेबसी को तू हटा औज़ार बन,
इसका दामन थाम कर रोता है क्या।

इश्क़ करता, सब्ज़ धरती देख ले,
बीज इसका तू कभी बोता है क्या।

'बाल' चुप्पी साध लेना जुर्म पर,
जुर्म से खुद कम कभी होता है क्या।

लोन-नमक

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 6, 2021 at 8:06pm — No Comments

गर तबीयत जाननी है देश की -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२



सादगी से  घर  सँभाला कीजिए

लालसा को मत उछाला कीजिए।१।

*

यह धरा  तो  रौंद  डाली  जालिमों

चाँद का मुँह अब न काला कीजिए।२।

*

करके सूरज से उधारी आब की

चाँद से कहते उजाला कीजिए।३।

*

जब नया देने की कुव्वत ही नहीं

मत फटे में  पाँव  डाला कीजिए।४।

*

गर तबीयत  जाननी  है  देश की

सबसे पहले ठीक आला कीजिए।५।

*

चाँद तारे सिर्फ महलों को न दो

झोपड़ी में भी उजाला कीजिए।६।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2021 at 6:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल: रोयेंगे और मुस्कुरायेंगे

2122 1212 22/112

रोयेंगे और मुस्कुरायेंगे

उम्र भर तुम को गुनगुनायेंगे

तुम जो रहते हो बादलों में सनम

तुम को हम कैसे भूल पायेंगे

जब भी देखेंगे आसमानों को

दिल के अरमाँ मचल ही जायेंगे

ग़म की आँधी न रोक पायेंगे

अश्क आँखों से बहते जायेंगे

कैसे रोकेंगे हसरतें दिल की

चीख कर तुम को फ़िर बुलायेंगे

जी न पायेंगे मर न पायेंगे

दिल जलायेंगे…

Continue

Added by Aazi Tamaam on April 5, 2021 at 11:00am — No Comments

संवेदना--लघुकथा

उस उजाड़ से गांव में बस कुछ टूटीफूटी झोपड़ियां ही मौजूद थीं जो वहाँ के लोगों के आर्थिक दशा और सरकार के विकास के नारे की तल्ख सच्चाई बयान कर रही थीं. उसको थोड़ा अजीब लगा, उसने अपने स्टाफ की बात को गंभीरता से नहीं लिया था. दरअसल जब भी इस गांव के लोगों से वसूली की बात होती, स्टाफ मना कर देता कि वहाँ जाने से कोई फायदा नहीं होगा. "सर, वहाँ लोगों के पास अभी खाने को नहीं है, बैंक की किश्त कैसे चुकाएंगे", अक्सर उसे यही बात सुनने को मिलती थीं.

लेकिन उसे लगा कि शायद दूर होने और वहाँ पैदल जाने के…

Continue

Added by विनय कुमार on April 4, 2021 at 4:30pm — 6 Comments

अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब

2122 1122 1122 22 /112

1

अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब

दिल मेरा तोड़ा गया कह के ख़िलौना कल शब

2

ज़ख़्मी दिल पर तेरा जब नाम उकेरा कल शब

हाय रब्बा मेरे तब होंठों से निकला कल शब

3

झूठ की सुब्ह तलक माँग है बाज़ारों में

और मैं एक भी सच बेच न पाया कल शब

4

मेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएँगी

ख़्वाब आँखों ने दिखाया मुझे ऐसा कल शब

5

उस तरफ़ चाँद सितारों की चमक थी "निर्मल"

इस तरफ़ था…

Continue

Added by Rachna Bhatia on April 4, 2021 at 7:00am — No Comments

ग़ज़ल (किसी की याद में...)

1212 - 1122 - 1212 - (112 / 22) 

किसी की याद में ख़ुद को भुला के देखते हैं

निशान ज़ख्मों  के हम  मुस्कुरा के देखते हैं 

 

निकल तो आए हैं तूफ़ाँ की ज़द से दूर बहुत 

भँवर हैं कितने ही  जो सर उठा के देखते हैं 

चले भी आओ कि अब  इंतज़ार  होता नहीं 

कि अब ये रस्ते हमें  मुँह चिढ़ा के  देखते हैं  

ये ज़िन्दगी भी फ़ना कर दी हमने जिनके लिए 

वही  तो  हैं  जो   हमें  आज़मा के  देखते  हैं 

 

तेरी जफ़ा …

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 3, 2021 at 6:11pm — 18 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : कर्तव्य (गणेश जी बाग़ी)

एक साल हो गया था माँ से मिले हुए। मिलने का बहुत मन हो रहा था। इसलिए वह होली के अवसर पर गाँव जाना चाहता था। किन्तु छुट्टी का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया। घर पहुँचते ही वह सीधे बिस्तर पर गिर पड़ा और सामने दीवार पर लगी स्वर्गीय पिता की तस्वीर को एकटक देखते-देखते कब आँख लग गई, कब वह सपनों में गोते खाने लगा, पता ही न चला।

"बेटा बहुत परेशान लग रहे हो!"

"हाँ पापा, इस कोरोना के कारण माँ से मिले एक साल हो गया, छुट्टी मिल नहीं रही है। क्या नौकरी का मतलब यही होता है कि आदमी घर-परिवार से ही कट…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 3, 2021 at 3:30pm — 8 Comments

"ओ बी ओ" की ग्यारहवीं सालगिरह का तुहफ़ा

ग़ज़ल

22 22 22 22 22 2

जिसने देखा वो ये बोला ओबीओ

कोई नहीं है तेरे जैसा ओबीओ

जब तक ज़िंदा हूँ मैं साथ निभाऊँगा

है ये तुझ से मेरा वादा ओबीओ

'बाग़ी' जी के साथ सभी ने मिलजुल कर

नाज़ों से तुझको है पाला ओबीओ

दुनिया के कोने कोने में फैल गया

तू ने जो भी पाठ पढ़ाया ओबीओ

तेरा नाम शिखर पर दुनिया लिखती थी

मैंने कल शब ख़्वाब में देखा…

Continue

Added by Samar kabeer on April 1, 2021 at 2:52pm — 18 Comments

ग़ज़ल

नहीं आती हिसाबों में सताती हैं तेरी यादें।

भला ये साथ कैसा जो बताती हैं तेरी यादें।'

.

संभालोगे कहां खुद को गिराने आ गये जब वो,

उठाना हाथ रोको जो सुनाती हैं तेरी यादें।

.

ऐ इंसाँ अब न इतना भी ज़माने का हो कर रहना,

ज़रा दिल झाँक देखा याद आती हैं तेरी यादें।

.

बनाई जिंदगी मेरी कहानी जो सुना देते,

अगर भटके सफ़र में क्यूँ जताती हैं तेरी यादें।

.

ये दिल चाहे कहूं कोई ग़ज़ल अब प्यार में तेरे,

मगर अंदर ही फिर क्यूँ ये दबाती…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on April 1, 2021 at 2:00pm — No Comments

कोशिश करो ! आगे बढ़ो...

कोशिश करो   हिम्मत करो 

आगे    बढ़ो    बढ़ते    रहो   आगे बढ़ो... आगे बढ़ो... 

गिरने  के  डर  से मत रुको 

गिर जाओ तो फिर से उठो   आगे बढ़ो... आगे बढ़ो... 

मंज़िल तुम्हें  मिल  जाएगी

क़िस्मत भी ये खुल जाएगी  

मंज़िल के मिलने तक चलो

चलते    रहो    चलते   रहो   आगे बढ़ो... आगे बढ़ो... 

रुकने से कुछ हासिल नहीं

रुक जाए जो कामिल नहीं   

उठते  क़दम  पीछे  न  लो 

पूरा   करो   जो …

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 1, 2021 at 8:26am — 2 Comments

ग़ज़ल (महबूब ज़िन्दगी)

2212 - 1212 -  2212 - 12 

.

मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी

रब  का हसीन  तुहफ़ा  है क्या  ख़ूब ज़िन्दगी

.

आजिज़  हैं  ज़िन्दगी  से जो वो भी  मुरीद हैं

तालिब  सभी  हैं  इसके  है  मतलूब ज़िन्दगी

.

हर  लम्हा  शादमाँ  है  तेरे  दम  से  दिल मेरा

जब  से  हुई  है  तुझसे  ये   मन्सूब   ज़िन्दगी

.

जिसने  नज़र  उठा  के  भी  देखा  नहीं  मुझे 

उस  पर  हुई   है   देखिए   मरग़ूब   ज़िन्दगी

.

लोगों के दिल…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2021 at 9:22am — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service