For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,139)

कभी आत्ममन्थन करना -- मीना पाठक

दिए दिन, महीने, बरस

जीवन के अनमोल पल

तुम्हारी तल्खियों से

आहत जख्मों को छुपा

मुस्कान की सौगात दी

कोमल भावनाएं

इच्छाओं की आहूति दी

कायम रखी

तुम्हारी मिल्कियत

वजूद को मिटा कर

फिर भी

तुम छीनते रहे मुझसे

मेरे हिस्से का वक्त

तुम्हें मंजूर नही

मेरा खुद के लिए

जीना

तृप्त ना हो सकीं

तुम्हारी इच्छाएं

छीन लेना चाहते हो

मेरा आस्तित्व

मेरी अभिलाषाएं

मेरा सब कुछ

हक से लेने वाले…

Continue

Added by Meena Pathak on October 23, 2013 at 4:30pm — 28 Comments

अमीरी की नई परिभाषा ( व्यंग्य कविता) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

बच्चन पूछे केबीसी में , रट लो शायद काम आए।                                                              

अमीरों की नई सूची बनेगी, शायद तेरा नाम आए॥                                             

 

प्याज के संग जो रोटी खाये, गरीब नहीं कहलाएंगे।                                        

तैंतीस रुपये कमाने वाले,…

Continue

Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 23, 2013 at 3:30pm — 15 Comments

गजल: ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122

_______________________________________________________________



ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी

कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी



चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से

लगी चोट दिल पर…

Continue

Added by शकील समर on October 23, 2013 at 1:36pm — 19 Comments

विसंगति ... विजय निकोर

विसंगति

अंतरंग मित्र

हितैषी मेरे

हँसती रही हैं साँसें मेरी

स्वप्निल खुशी में तुम्हारी

सँजोए कल्पना की दीप्ति

फिर क्यूँ तुम्हारी खुशी के संग

यूँ उदास है मन

आज

अपने लिए ...?

यादों के झरोखों के इस पार

पावन-समय-पल कभी भटकें

कभी लहराएँ, मंडराएँ

ले आएँ रश्मि-ज्योति द्वार तुम्हारे

हँस दो, हँसती रहो, तारंकित हो आँचल

मुझको तो अभी गिनने हैं तारे

सुदूर-स्थित…

Continue

Added by vijay nikore on October 23, 2013 at 1:00pm — 22 Comments

ज़िंदगी ग़ुज़र गई - (रवि प्रकाश)

न बिजलियाँ जगा सकीं,

न बदलियाँ रुला सकीं।

अड़ी रहीं उदासियाँ,

न लोरियाँ सुला सकीं।



न यवनिका ज़रा हिली,

न ज़ुल्फ की घटा खिली।

उठे न पैर लाज के,

न रूप की छटा मिली।



जतन किए हज़ार पर,

न चाँद भूमि पे रुका।

अटल रहे सभी शिखर,

न आस्मान ही झुका।



चँवर कभी डुला सके,

न ढाल ही उठा सके।

चढ़ा के देखते रहे,

न तीर ही चला सके।



वहीं कपाट बंद थे,

जहाँ सदा यकीन था।

जिसे कहा था हमसफ़र,

वही तमाशबीन…

Continue

Added by Ravi Prakash on October 23, 2013 at 12:00pm — 37 Comments

कारोबार-ए-जिंदगी के कारवां चलते रहे

निकले धूप और कभी बादल हैं पिघलते रहें

मौसमों की फितरतों में है की बदलते रहे

 

कभी पके कभी फुटे लौंदे गए रौंदे गए

मस्त होके जिंदगी के सांचे में ढलते रहे

 

शिकवा नहीं जीवन के है उतार और चढाव से

तकदीर के जानों पे हम ख़ुशी ख़ुशी पलते रहे

 

मुश्किलों तो आएँगी हज़ारों राह में मगर  

कारोबार-ए-जिंदगी के कारवां चलते रहे

 

आयें लाखों तूफां पर उम्मीदें बुझ सकें नहीं

हौसलों के साए में चराग ये जलते…

Continue

Added by शरद कुमार on October 22, 2013 at 10:14pm — 11 Comments

ग़ज़ल.....खंज़र चुभा किस धार से

2212/2212/2122/212

 दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से

यूँ भूल कर हमको भला क्या मिला संसार से

यूँ जानकर रुसवा किया आज महफ़िल में भला 

जो तोड़कर नाता चले क्यूँ भला इस पार से

चुप सी है धड़कन मेरी अब दिल भी है खामोश तो

घायल हुआ दिल मेरा खंज़र चुभा किस धार से

नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा 

वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से

वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं

दिल भी…

Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 22, 2013 at 9:30pm — 22 Comments

ज़िन्दगी

जाने किस आशंका से
त्रस्त मन /
झंझावात मे
नन्हा सा दिया /
अब बुझा कि तब बुझा /
अर्थहीन शब्दों के सहारे
घिसटती ज़िन्दगी
क्या यही है ?
किम्वदन्ति बन गई है
तथागत को मिली शान्ति /
आत्म मंथन करने पर
कालिख ही कालिख हाथ लगी /
दोषारोपण सवेरो पर ,
सूरज की किरणे
किसी अंधी गली में सोई मिली ।

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'

Added by ARVIND BHATNAGAR on October 22, 2013 at 9:30pm — 11 Comments

गुलाब और स्वतंत्रता

समतल उर्वर भूमि पर

उग आयी स्वतंत्रता

जंगली वृक्ष की भांति

आवृत कर लिया इसे

जहर बेल की लताओं ने

खो गयी इसकी मूल पहचान

अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .

..

गुलाब की पौध में,

नियमित काट छांट के आभाव में

निकल आती हैं जंगली शाख.

इनमे फूल नहीं खिलते

उगते हैं सिर्फ कांटे.

लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...

… नीरज कुमार ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Neeraj Neer on October 22, 2013 at 7:30pm — 17 Comments

सपने

कुछ सपने केवल सपने ही रह जाते हैं 

बिना पूरे हुये, बिना हकीकत हुये 

और हमे वो ही अच्छे लगते हैं 

अधूरे सपने, बिना अपने हुये 

हम जी लेते हैं 

उसी अधूरेपन को 

उसी खालीपन को 

सपने की चाहत में

जानते हुये भी ....

सपने तो सपने हैं 

सपने कहाँ अपने हैं 

यथार्थ को छोड़कर 

परिस्थिति से मुह मोड़कर 

हम जीते हैं सपने में 

सपने हम रोज देखते हैं 

कुछ ही सपनो को हम जीते हैं 

बाकी सपने सपने ही रह…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on October 22, 2013 at 7:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल-निलेश 'नूर'- कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है...

122, 122, 122, 122



कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है,

है इंसान कैसा, जो रोया नहीं है??

***

मेरी बात मानों, न यूँ ज़िद करो अब,

दुखाना किसी दिल को अच्छा नहीं है.

***

सभी है किसी और की खाल ओढ़े,

तेरे शह्र में, कोई सच्चा नहीं है.

***

मुझे देख रंगत बदलता है अपनी,

वगरना वो बीमार लगता नहीं है.

***

लगाया करो आँख में…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 6:27pm — 13 Comments

!!! नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से !!!

!!! नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से !!!
दुर्मिल सवैया - (आठ सगण-112)

तन श्वेत सुवस्त्र सजे संवरें, शिख केश सुगंध सुतैल लसे।
कटि भाल सुचन्दन लेप रहे, रज केसर मस्तक भान हसे।।
हर कर्म कुकर्म करे निश में, दिन में अबला पर ज्ञान कसे।
नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से, मन से अति नीच सुयोग डसे।।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 6:20pm — 29 Comments

राह आसां नहीं है उल्फत की

२१२२     १२१२     २२

जिंदगी और इम्तिहान न ले

कुछ भी ले ले मेरा गुमान न ले 

मशविरा है यही फकीरों का  

यूं कभी दी हुई ज़बान न ले  



राह आसां नहीं  है उल्फत की

नन्हे से दिल मे आसमान न ले

चल खिलोनों से खेलते हैं हम

तू अभी हाथ में कृपान न ले 

जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता  

असलहों से भरी दुकान न ले

खुल के जी खुद भी, सब को दे…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on October 22, 2013 at 12:30pm — 29 Comments

भई चंदा निकल रहा होगा

जहाँ पर्वत पिघल रहा होगा

चरागे इश्क जल रहा होगा



परिंदे लौटने लगे घर को

चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा



बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये

कोई बच्चा मचल रहा होगा



गलितयों से जो दोस्ती कर ले

वो अपने हाथ मल रहा होगा



नयन हैं तिश्नगी भरे उसके

कोई तो ख्वाब पल रहा होगा



भरे है दर्द वो मगर न कहे

उसे अपना ही छल रहा होगा



छतों पे भीड़ औरतों की है

भई चंदा निकल रहा होगा



जले जो दीप आँधियों में भी

वो गर्दिशों को खल…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 12:27pm — 23 Comments

ग़ज़ल - निलेश 'नूर'- धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है

१२२२,१२२२,१२२२,१२२२

.

वो लेतें है शिकायत में, कि लेतें है मुहब्बत में,

हमारा नाम लेतें है वो अपनी हर ज़रूरत में,

***

मै राजा और तुम रानी, ये दुनियाँ सल्तनत अपनी,

हक़ीक़त में नहीं होता, ये होता है हिक़ायत में.

***

ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,

छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में. 

*** 

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर,

गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 9:40am — 24 Comments

जैसे को तैसा

जैसे को तैसा

आज करवाचौथ के दिन मैं अपनी बीवी से बोला – “प्रिये...

तुम मेरी किडनी के समान हो,

किंतु शादी के बाद के इन 5 वर्षों में

तुम्हारी हालत बिल्कुल

हमारी सरकार जैसी हो गई है,…

Continue

Added by Sushil.Joshi on October 22, 2013 at 7:35am — 22 Comments

क्या कहूँ .................. ( अन्नपूर्णा )

क्या कहूँ ...............

 

आहत मन की व्यथा

कैसे सुनाऊँ.................

मन की व्याकुलता 

अश्रु और व्याकुलता

साथी है परस्पर

आकुल होकर आँख भी

जब छलक जाती है

गरम अश्रुओं का लावा

कपोलों को झुलसा जाता है

न जाने कब कैसे ...................

पीर आँखों की राह

चल पड़ती है बिना कुछ कहे

आकुल मन बस यूं ही

तकता रह जाता है

भाव विहीन होकर भी

भाव पूर्ण बन जाता है जब

जिह्वा सुन्न हो…

Continue

Added by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 2:23pm — 34 Comments

मेरी माँ

एक दिन माँ सपने में आई
कहने लगी, सुना है
तूने कविताएँ बनाईं ?
मुझे भी सुना वो कविताएँ
जो तूने सबको सुनाई
मैं अचकचाई
माँ की कहानी माँ को ही सुनाऊँ !
माँ तो राजा- रानी की कहानी
सुनाती थी
उसे एक आम औरत की कहानी कैसे सुनाऊँ ?
माँ इंतजार करती…
Continue

Added by mohinichordia on October 21, 2013 at 7:15am — 18 Comments

मिला नज़र से नज़र, सब्र आज़माते रहे,

1212 1122 1212 22  .... अंतिम रुक्न ११२ भी पढ़ा गया है ..

.

नज़र, नज़र से मिला, सब्र आज़माते रहे,

मेरे रक़ीब मुझे देख, तिलमिलाते रहे.  

घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,

मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे.

.

गुनाह, जुर्म, सज़ा, माफ़ आपकी कर दी,

ये कह दिया तो बड़ी देर सकपकाते रहे.

.

खफ़ा खफ़ा से रहे बज़्म में सभी मुझसे,

वो पीठ पीछे मेरे शेर गुनगुनाते रहे.  

.

मिला हमें न सुकूँ दफ्न कब्र में होकर,

किसी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 20, 2013 at 10:30pm — 26 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
32 minutes ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
43 minutes ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service