For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,139)

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४९

मेरी मां मुझे रोज़ १० पैसे देती थी, स्कूल जाने के पहले. वही बहुत था मेरे लिए टिफ़िन में पाचक खरीद के खाने के लिए- एक पैसे के न जाने कितने हुआ करते थे, सफ़ेद अथवा पीले-सुनहरे रंग की पारदर्शी प्लास्टिक की पन्नी में, बच्चों की उँगलियों से भी बहुत पतले और सतर, ...लम्बे लिपटे हुए.  

 

कुछ न सही तो कभी लेमनचूस की अंडाकार चपटी गोलियां ही सही.... संतरे के रस अथवा कालेनमक के स्वाद वाली नारंगी-बैंगनी गोलियां जिन्हें खा कर हमारी जीभ का रंग भी बदल जाता था और हम जीभ निकाल-निकाल के अपनी बहन…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 4:09pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५१

जुलाई की एक सर्द और भीगी-भीगी सी शाम आस्ताने (चौखट) पे आके खड़ी थी अन्दर आने को, दिन के उजाले कब के जा चुके थे दरीचों के रास्ते, बस बादलों के पीछे जैसे उनके सायों ने कुछ देर के लिए शाम के वुजूद को नुमूदार (ज़ाहिर) कर रखने का एहसान किया हो. कूचों में बहती पानी की धारें नालियों में जाके गिर रही थीं, तो नालियों में बहते तेज़ चश्मे (झरने, पानी के रेले) की घरघराहट आने वाली सन्नाटगी का खमोशियों से ऐलान कर रही थी. कभी-कभार किसी शख्स के गुजरने की आवाज़ उसके भारी जूतों की चरमराहट से कानों से आके…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 4:05pm — No Comments

आज कुर्सी पे बैठा तो रब हो गया

देश में कैसा बदलाव अब हो गया
नंगपन है रईसी ग़ज़ब हो गया  

जबसे इंग्लिश मदरसे खुले, बाप और  
माँ को आँखें दिखाना अदब हो गया

हाथ जोड़े थे जिसने कभी वोट को
आज कुर्सी पे बैठा तो रब हो गया

अब गधों की फ़तह, मात घोड़ों की हो
दौर दस्तूर कैसा अजब हो गया  

हर्फ के कुछ उजाले लुटा प्यार से   
"दीप" खुर्शीद सा जाने कब हो गया

संदीप पटेल "दीप"

(मौलिक व अप्रकाशित)  

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 4:01pm — 8 Comments

सलवटें करवटें औ याद सहर से पहले

मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले

पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले  



जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने  

यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले



ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी

नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले



कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक

रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले



नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना  

जले है दीप सारी रात सहर से पहले



संदीप पटेल "दीप"…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 2:30pm — 6 Comments

मेरा अभीष्ट

मेरे जीवित होने का अर्थ -

-ये नहीं कि मैं जीवन का समर्थन करता हूँ  !

-ये भी नहीं कि यात्रा कहा जाय मृत्यु तक के पलायन को  !

 

ध्रुवीकरण को मानक आचार नही माना जा सकता !

मानवीय कृत्य नहीं है परे हो जाना !

 

मैं तटस्थ होने को परिभाषित करूँगा किसी दिन !

संभव है-

कि मानवों में बचे रह सके कुछ मानवीय गुण !

मेरा अभीष्ट देवत्व नहीं है !

.

.

.

……………………................………… अरुन श्री…

Continue

Added by Arun Sri on July 16, 2013 at 1:38pm — 17 Comments

कितना तुमको जीना है //रवि प्रकाश (Kitna Tumko Jeena Hai By Ravi Prakash)

सदियाँ बीत गई हैं फिर भी,जीने का आधार नहीं;

धड़कन लीक बदलती है पर,सांसों में आभार वही।

गरमी के खेमे उठ जाते,अगले पल में रिमझिम है;

जग के झूठे व्यापारों में,परिवर्तन ही अन्तिम है।

दुख की दीवारें पक्की हैं,सुख का परदा झीना है।

अपने में ही सब कुछ हो कर,कितना तुमको जीना है॥

सागर होना बहुत सरल है,नदिया बन गाना मुश्किल;

शिखरों सा उठना संभव है,गल कर बह जाना मुश्किल।

छाले भी सहलाने होंगे,गिरती-पड़ती राहें हैं;

सुर में गा पाना बहुत कठिन,स्वर में तपती आहें… Continue

Added by Ravi Prakash on July 16, 2013 at 6:00am — 14 Comments

ये शाम ....

सूरज की लालिमा और 

उसे इस कदर थका हुआ देख ... 

पंक्षियों को लौटते देख 

दरख्तों के साये लंबे होते देख 

ये आभास हुआ कि

सूरज डूबने वाला है 

बच्चों का कलरव 

गाड़ियों का सड़क पर 

अचानक भागते हुये देख 

यह एहसास हुआ 

कि.... 

ये दिन डूबने वाला है 

फिर आंखे मूंदकर 

मैंने डूबते सूरज से कुछ मांगा 

इस बात से बेपरवाह 

कि डूबती हुयी चीज 

किसी को कुछ नहीं दे सकती 

जो खुद अँधेरों मे डूब रहा…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on July 15, 2013 at 10:30pm — 6 Comments

शून्य

कभी यूं ही बैठकर सोचते हुए

कल्पना की असीम गहराइयों में

डूबते उतराते

भाव ध्वनियां बनकर

खुद रूप लेने लगते हैं

शब्द का।

 

शब्द बोलते हैं

एक भाषा

और फिर

गडमड हो जाते हैं

एक दूसरे में।

 

रह जाती है

एक ध्वनि

एक स्वर

वह जो

परम भाव है

परम ध्वनि

परम अक्षर!

 

जहां से उपजे

वहीं समा गए

परम शून्य में।

निर्विकार शान्ति!

 

भाव…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 15, 2013 at 10:00pm — 31 Comments

लघुकथा- चादर

आखिर आज वही बात सच हुई, जिसकी चेतावनी युगल  ने  नितिन को चार माह पूर्व  दी थी।
नितिन के पिता रामेश्वर जी के पास बटवारे के बाद केवल पांच एकड़ जमीन मिली थी। नितिन और विपिन दो भाई है। 
नितिन के पिता रामेश्वर रोटी राम है, नितिन और विपिन ने आठ माह पहले दो एकड़ जमीन बेच के व्यवसाय के लिए डाउन पेमेंट पर ट्रेक्टर लिया था। चार माह पहले ही नितिन की शादी हुयी, नितिन के घर की पहली ही शादी है जिसे पारम्परिक रूप से…
Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 15, 2013 at 9:00pm — 26 Comments

सरस्वती आराधना /दिलीप तिवारी

वीणाधारी  विद्यावाली , मातु शारदे तुम्हे नमन i 

शव्द अर्थ के पुष्पों का ,व्याकरण बना तुमको अर्पण i i 

संज्ञाए सेवाये करती ,सर्वनाम तेरे अनुचर i

क्रिया विशेषण की तारों से ,निकले वीणा के स्वर i i

नवरस के घुगरू प्यारे अलंकार  की है झांझर i

काव्य गद्य श्रगारित तुमसे ,गीतवना  महिमा गाकर i i

अनुपम छटा सवाँरे  ,भाषाए है चरणो पर i

आलोडित मन मंदिर मेरा नेह सुधा तेरी पाकर i i

मुझको तेरा वरदान मिले ,चरणों में तेरे स्थान मिले i 

शीख रहा माँ कविता  करना ,अंतर मन…

Continue

Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 8:22pm — 5 Comments

अलादीन का चिराग हूँ मैं

अलादीन का चिराग हूँ मैं

एक हसीन ख्वाब हूँ मैं

 

मचलती सुबह हूँ मैं

खिलखिलाती शाम हूँ मैं

 

हँसी का अंदाज हूँ मैं

प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं

 

पहचान मेरी मुझसे है

दो कुलों की शान हूँ  मैं

 

दायरों मे बंधी हूँ मैं

शर्म से सजी हूँ मैं

 

छाया हूँ बाबुल के आंगन की

पिया की परछाई हूँ मैं

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Pragya Srivastava on July 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
विरह मधुर ज्यों प्रीत (दोहे)//डॉ० प्राची

प्रियतम कैसा यह विरह, तन्हाँ मैं निश-प्रात ,

मधुरिम-मधुरिम वेदना, पिया प्रेम सौगात  //१//

अथक चला अब सिलसिला, मन ही मन संवाद ,

कसमें वादे नित गुनूँ, उर झूमे आह्लाद //२//

जुल्फों के छल्ले बना, खेले मन बेचैन,…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 8:00pm — 36 Comments

लगे जताने बहुत बड़े है

121    22   121    22

.

जहाँ जरूरी हुआ अड़े हैं,

इसीलिए हम यहाँ खड़े हैं

 

जिन्हें जरूरत जहान भर की

वहीँ मशाइल  बड़े-बड़े हैं

 

समय उन्हीं के लिए बना है

जिन्हें कि हर पल लगे बड़े हैं

 

मिली जरा सी उन्हें जो शुहरत,

लगे जताने बहुत  बड़े है

 

जिन्हें नाकारा  है तेरी दुनिया   

हम उनके हक़ में सदा लड़े हैं

 

किसी की कमियों से क्या है लेना

अगर है खूबी, वहीँ अड़े…

Continue

Added by Dr Lalit Kumar Singh on July 15, 2013 at 6:30pm — 7 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा : दर्द (गणेश जी बागी)

ज फिर किसी ने पारस को चाकू मार दिया था, उसकी किस्मत अच्छी थी कि घाव बेहद मामूली था.  डाक्टर बाबू देखते ही पारस को पहचान गये, क्योंकि कोई आठ दस महीने पहले की ही तो बात है जब पारस के घर मे डकैती हुई थी और बदमाशों ने पारस के शरीर पर चाकू से अनगिन वार किये थे, तब इलाज के लिए उसे इसी डाक्टर के पास लाया गया था, गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद भी इस बहादुर नौजवान के मुँह से उफ़ तक नहीं निकली थी, लेकिन इस बार अत्यधिक…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 15, 2013 at 5:30pm — 63 Comments

शृंगार रस के दोहे

साँसें जब करने लगीं, साँसों से संवाद

जुबाँ समझ पाई तभी, गर्म हवा का स्वाद

 

हँसी तुम्हारी, क्रीम सी, मलता हूँ दिन रात

अब क्या कर लेंगे भला, धूप, ठंढ, बरसात

 

आशिक सारे नीर से, कुछ पल देते साथ

पति साबुन जैसा, गले, किंतु न छोड़े हाथ

 

सिहरें, तपें, पसीजकर, मिल जाएँ जब गात

त्वचा त्वचा से तब कहे, अपने दिल की बात

 

छिटकी गोरे गाल से, जब गर्मी की धूप

सारा अम्बर जल उठा, सूरज ढूँढे कूप

 

प्रिंटर…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2013 at 2:34pm — 26 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सुहाने ख्वाब से मुझको उठा गुज़री

ग़ज़ल लिखने का एक प्रयास और किया है मैने, प्रकृति की सुंदरता का हमेशा से ही कायल रहा हूँ इसलिए मेरी रचना प्रकृति के आस पास ही रहती है. 

वज्न -1222 1222 1222

हजज मुसद्दस सालिम

सुहाने ख्वाब से मुझको उठा गुज़री

वो लहराती हुई बादे सबा गुज़री

 

दिखी थी पैरहन वो धूप की लेकर

कभी शबनम की वो ओढ़े कबा गुज़री

 

फ़िज़ा सरशार भीगी…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2013 at 1:00pm — 7 Comments

कुण्डलिया छंद

अबला नारी को कहें, उनको मूर्ख जान |
नारी से है जग बढ़ा ,नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,नारी बनेगी सबला |
नर जो ना दे घाव ,तो क्यों रहे वह अबला||

..........................

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Sarita Bhatia on July 15, 2013 at 10:30am — 8 Comments

वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना

वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥

मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥

बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।

हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥

दिलों के बीच मुहब्बत के गुल खिलाता गया,

जहाँ- जहाँ से भी गुजरा है काफ़िला अपना॥

हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,

ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥

कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,

बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥

ये चंद साँसे भी…

Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 15, 2013 at 1:00am — 8 Comments

प्रश्न उठाओ ...

जरूरत है प्रयास की 

कोशिश की 

कंक्रीट का जंगल 

और ठसाठस सड़के हैं 

नीला अंबर धूल धूसरित है 

उहापहो की स्थिति है 

इतने विशाल शहर में

हम और तुम निहायत अकेले हैं 

जीवन का उद्देश्य 

केवल जीवन यापन है 

नित्य क्रम की नियति को 

समझ लिया खुशी का समागम 

खोखली हंसी 

छिछला प्यार 

दिखावे के लिए मिलना जुलना 

केवल सतही संतुष्टि है 

झाँक कर देखा अंदर 

तो अजीब तरह का खोखलापन है 

गाहे…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on July 14, 2013 at 10:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल - कुछ अपने

वो मानते हैं कि हो सकती उनसे कोई खता नहीं

खुद तक तो खुदा के सिवा कोई और पहुंचता नहीं|

वो जुस्तजू करते हैं हमारे क़दमों के निशाँ की भी

उनके हाथों में छुपे खंजर को तो कोई खोजता नहीं|

वो जिन्होंने तय की हैं बुलंदियां लाशों की सीढ़ी पे

कदमों में लगे खून से कब फिसल जाएँ पता नहीं|

वो हो जाते हैं नाराज़ हमारी ज़रा सी लडखडाहट से

जैसे उनके जहां में मदमस्त तो कोई गिरता नहीं|

वो हैं जैसे भी दूर उनसे सोच में भी नहीं…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 14, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service