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All Blog Posts (18,927)

बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे

तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे



रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया

रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे



घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी

चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 5, 2012 at 4:38pm — 13 Comments

रेत में जैसे निशां खो गए

रेत में जैसे निशां खो गए

हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए

 

रात आँखें ताकती ही रहीं

मेहमां जाने कहाँ सो गए

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझधार में खो गए…

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Added by नादिर ख़ान on December 5, 2012 at 4:30pm — 11 Comments

उलझन

जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ

Added by MAHIMA SHREE on December 5, 2012 at 4:22pm — 22 Comments

प्यार से तस्वीर मेरी - पोंछना आंसू बहाके

प्यार से तस्वीर मेरी, पोंछना आंसू बहाके।

शीश खटिये पे टिकाकर, सोंचना आंसू बहाके।।

 …

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Added by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2012 at 3:06pm — 16 Comments

मंदार माला सवैया

मंदार माला सवैया :-

=================

राजा वही जॊ प्रजा कॊ दुखी दीन, संताप हॊनॆ न दॆता कभी !!

बाजी लगा दॆ सदा जान की आन,ईमान खॊनॆ न दॆता कभी !!

आनॆ लगॆं आँधियाँ राज मॆं आँख,आँसू भिगॊनॆ न दॆता कभी…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 12:00pm — 12 Comments

मत्तगयंद सवैया

मत्तगयंद सवैया :-

===============

आज हुयॆ मतदान सभी चुनि, बैठ गयॆ चढ़ि आसन चॊटी,

भारत कॆ यह राज-मणी सब, फ़ॆंक रहॆ अब  खॊटम खॊटी,

नागिन सी  फ़ुँफ़कार भरॆं सब, छीनत हैं जनता कइ रॊटी,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments

ओ..री कुरसी माई । (व्यंग गीत)

चुनाव  में  हारे  हुए  नेताजी  की  व्यथा ?

ओ..री  कुरसी  माई । (व्यंग…

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Added by MARKAND DAVE. on December 5, 2012 at 10:00am — 2 Comments

‘’भारत’’

जो सोने की चिड़िया था सो रहा है

जिसे रोना ना चाहिये वो रो रहा है l

इस दुनिया का है कुछ अजब कायदा 

अब लोगों को जाने क्या हो रहा है l

नये जमाने में खो गयी सादगी कहीं 

बस बोझ जीने का इंसान ढो रहा है l

मन में खोट और रिश्तों में है चुभन    

यहाँ अपना ही अपनों को खो रहा है l

जहाँ उगे कभी मोहब्बत के थे शजर 

वहाँ काँटों का जंगल अब हो रहा है l

कितनी गंगा हुई मैली जानते सभी   

पर उसमें…

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Added by Shanno Aggarwal on December 5, 2012 at 3:57am — 3 Comments

दुष्टो की है देह (दोहे)

 
 नहीं रहा अब गाँव में, भाईचारा भाव,
खेतो में बढ़ने लगे, नित क्लेश के भाव ।
 
 
नहीं रहा अब शहर में, जीना यूँ आसान,
जगते है अब चाय से, रात जाम की शान ।
 
मोल झूंठ का बढ रहा, संत जगत भी मौन,
सच सस्ते में बिक रहा, सच बोले अब…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2012 at 7:00pm — 13 Comments

महाभुजंगप्रयात सवैया

महाभुजंगप्रयात सवैया :-

=================

नहीं रास आईं वफ़ायॆं किसीकॊ, अनॆकॊं चलॆ हैं उसी राह राही !!

किनारॆ खड़ॆ दॆखतॆ हैं तमाशा,हमारी वफ़ा का सिला यॆ तबाही !!

पुकारा कई बार था नाम लॆकॆ,खुदाकी…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 4, 2012 at 2:00pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
आंसू

 

"आज के अखबार में प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम निकला है" जैसे ही हौस्टल में यह बात देवारती को पता चली, बेतहाशा दौड़ पड़ी लाईब्रेरी की ओर, अखबार उठा सारे रोलनंबर देखे, हर पंक्ति ऊपर से नीचे, दाएं से बाएँ, एक बार, दो बार, बार बार, पर उसका तो रोल नंबर ही नहीं था. उसके पैरों तले तो जैसे ज़मीन ही खिसक गयी. अपनी आखों पर यकीन नहीं हुआ, बुझे मन से भारी क़दमों से बाजार जा कर फिर से अखबार खरीदा, एक एक  रोल नंबर पेन से काटा, कहीं उलट पलट जगह न छप गया हो. एक घंटा बीत गया, पर नहीं मिला उसका नंबर,…

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Added by Dr.Prachi Singh on December 4, 2012 at 12:30pm — 15 Comments

घर में पलती इसी धूप के साथ पला मैं छाँव हो गया .....................

थकी हुयी शतरंज का, मैं पिटा हुआ इक दांव हो गया 

भाग्य कर्म के घमासान में मैं धरती का घाव हो गया I 
........................................................................................

बचपन में आँगन में खेली तरुडाई में मुंडेरों पे 
घर में पलती इसी धूप के साथ पला मैं छाँव हो गया 
........................................................................................
जब जब बोझ पड़ा अनचाहा जीवन…
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Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

पेट के कहने में फिर हम आ गए

पेट के कहने में फिर हम आ गए 

पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए 

माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी 

छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

ऑफिस का रिक्शा पापा का और मदिर वो घंटा - घंटी 

अम्मा की हर बात रटी थी हमको बरसों पंक्ति पंक्ति …

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Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 9:30pm — 1 Comment

बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -

काम से तो रोज घूमे काम बिन भी घूम बन्दे |

नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे ||

 

बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -

कुछ करो या ना करो हर ठाँव को ले चूम बन्दे ।|

 

बेवफा है जिंदगी इसको नहीं ज्यादा पढो अब -

दर्शनों में आजकल मचती रही यह धूम बन्दे ।|

 

दे उड़ा…

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Added by रविकर on December 3, 2012 at 8:54pm — 2 Comments

गीता के १८ अध्याय

 

चारो ओर, खड़े है सैनिक

युद्ध में जीत दिलाने को

शोक करुणा से, अभिभूत है अर्जुन

देख, रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारों को

खड़े हुए है अब कृष्णा

उसे शोक से मुक्त कराने को

देहान्तरं  की प्रक्रिया कैसी

संक्षेप में ये समझाने को

अजर अमर है जीवात्मा

स्मरण रखना इस ज्ञान को

खड़ा हो जा धनुष उठा

अपना धर्म निभाने को

मरे हुओ को मार डालना

जग में नाम कराने को

अपने पराये से मुहँ मोड़ लो

पाप पुण्य की चिंता…

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Added by PHOOL SINGH on December 3, 2012 at 5:42pm — 3 Comments

कहानी : तमाचा

  उस बस में जगह की वैसी ही किल्लत थी, जैसी मुंबई में पानी की है ! पर ये किल्लत मेरे पहुँचने के बाद हुई, इसलिए मुझे सीट मिल गई थी, और मै बैठा था ! अगला स्टॉपेज आया, यहाँ पर्याप्त लोग उतर गए, कुछ चढ़े भी, पर उतरने की मात्रा ज्यादा थी ! इसलिए अब बस में कुछ हल्कापन था ! बस में चढ़ने वालों में एक लड़की भी थी, जोकि मेरे पास आकर बोली, “थोड़ी जगह मिलेगी?” मै अपनी जगह से जरा सा खिसककर उसको जगह दिया ! उस लड़की के तत्काल बाद, याकि उसके पीछे ही एक लड़का भी बस में चढ़ा, उस लड़के के विषय में मुझे अजीब बात ये लगी…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 11:00am — 13 Comments

हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती...

तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,

हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।



हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,

कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।



गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,

अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।



मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,

हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।



बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,

के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।



कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,

कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं…

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Added by इमरान खान on December 2, 2012 at 10:30pm — 19 Comments

आपने सराहा / बड़ा मजा आया



21 2221 2221 2221 2



यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।

क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|

आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -

नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।



कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -

थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।

आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर

चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।

वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते

कौन किसकी इन्तजारी कर…

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Added by रविकर on December 2, 2012 at 9:24pm — 15 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुछ हाइकू /डॉ.प्राची

***********************

सीप में मोती.

पिय प्रेम हृदय.

जागृत ज्योति.

************************

दुख के शूल.

गुलदस्ता जीवन.

प्रेम के  फूल.

*************************

प्रेम शरण.

तिमिर में किरण.

गुरु चरण.

**************************

अभिन्न मित्र.

सुरम्य लय ताल.

बंध पवित्र.

***************************

है ज़रुरत.

अनकहा…

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Added by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:27pm — 24 Comments

पिकहा बाबा ----प्रेस वार्ता

पिकहा बाबा ----प्रेस वार्ता 

------------------------------
हे नाती बाबू एहर सुना देखा अंतरजाल आश्रम पर काफी भीड़ इकट्ठी होएला. का  माजरा  बा ?
सुना नाना जी कौनो चिंता न किये . ई सब चारों स्तंभ के लोग इकठ्ठा कियेला . आज तोहरा प्रेस वार्ता का आयोजन बा .
देखा नाती हमका चरका न देवा . २ महीना हो गईला हमरे अवतार का रोजे रोज दांव होएला. कौनो हमरे पास न आवेला. न जाने सब कहाँ बिजी बा . बड़ा मनेजमेंट गुरु बनेला. इतना मा तो हम पूरे  देश की सरकार…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 2, 2012 at 5:58pm — 6 Comments

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