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'मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था'

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम

सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था

ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था

बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत

औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था

वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं

मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था

सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे

सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था

बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे

फिर तुमको यहाँ शोर…

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Added by Samar kabeer on March 19, 2018 at 2:00pm — 37 Comments

धूप का विस्तार लगाकर सो गए - सलीम रज़ा रीवा

2122 2122 212

धूप का विस्तार लगाकर सो गए

छांव सिरहाने दबाकर सो गए

oo

ज़िंदगी से थक-थका कर सो गए

वो चराग़--जाँ बुझा कर सो गए

oo

गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर

वो मेरे ख़्वाबों में आकर  सो गए

oo

तंग थी चादर तो हमने यूँ किया

पांव सीने से लगाकर सो गए

oo

उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़ाब

जो ज़माने को जगाकर सो गए

oo

बे-कसी में…

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Added by SALIM RAZA REWA on March 18, 2018 at 11:00pm — 19 Comments

घुटनें एवं छड़ी(कहानी )

रामदीन |” अख़बार एक तरफ रखते हुए और चाय का घूंट भरते  हुए पासवान बाबू ने आवाज़ लगाई

“जी बाबू जी |”

“मन बहुत भारी हो रहा है |दीपावली गुजरे भी छह महीने हो गए | सोचता हूँ दोनों बेटे बहुओं से मिल लिया जाए|---- ज़िन्दगी का क्या भरोसा !”

“ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी !हम तो रोज़ रामजी से यही प्रार्थना करते हैं की बाबूजी को लंबा और सुखी जीवन दे |”

“ये दुआ नहीं मुसीबत है |बुढ़ापा ---अकेलापन----तेरे माई जिंदा थी तब अलग बात थी पर अब ---“ वो गहरी साँस भरते हुए कहते हैं

“हम क्या…

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Added by somesh kumar on March 18, 2018 at 11:00pm — 8 Comments

एक गीत/ सतविंद्र कुमार राणा

यह वर्ष नया मंगलमय हो

कोंपल फूटी है तरुवर पर

नव पल्लव का निर्माण हुआ

टेसू की लाली उभरी है

पुलकित हर तन, हर प्राण हुआ

हर मन से बाहर हर भय हो

यह वर्ष नया मंगलमय हो।

गेंहूँ बाली पूरी होकर

अब लहर लहर लहराती है

सरसों पर पीला रंग चढ़ा

भवरों को यह ललचाती है

भँवरों के गीतों-सी लय हो

यह वर्ष नया मंगलमय हो।

जाड़े को विदा किया हमने

गर्मी को दिया बुलावा है

हर चीज नई-सी लगती है

जब साल नया यह आया…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 18, 2018 at 8:50am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया (ग़ज़ल राज )

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

वो मेरी खामोशियों को हाँ म हाँ समझा किया

मुझको धरती  और खुद को आसमाँ समझा किया

पहना जब तक सादगी और शर्म का मैंने लिबास

ये ज़माना यार  मुझको नातवाँ समझा किया

उस कहानी के सभी किरदार उसको थे अज़ीज़

बस मेरे किरदार को ही रायगाँ समझा किया

जिस्म मेरा रूह मेरी जिस चमन पर थी निसार

वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया

जिसकी दीवारों में माज़ी सांस लेता था कभी 

यादों से भरपूर घर को वो…

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Added by rajesh kumari on March 17, 2018 at 2:30pm — 18 Comments

दोनों हाथ (नए ढंग से पुनःप्रस्तुति का प्रयास )

आदित्य और नियति(शादी के पहले छह महीने )

खाना लगा दूँ ?” घर लौटे आदित्य से नियति ने पूछा

“दोस्तों के साथ बाहर खा लिया |”

“बता तो देते |” नियति ने मुँह गिराते हुए कहा

“कई बार तो कह चुका हूँ कि जब दोस्तों के साथ बाहर जाता हूँ तो खाने पर इंतजार मत किया करो |”आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा

नियति की आँखों में आँसू आ गए आदित्य

“अच्छा बाबा सॉरी !अब प्लीज़ ये इमोशनल ड्रामा बंद करो |” आदित्य ने कान पकड़ते हुए कहा और नियति अपने आँसू पोछने लगी

रात को…

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Added by somesh kumar on March 17, 2018 at 11:25am — 4 Comments

लघुकथा-संजीदा

एक समय था जब आनंदी लाल जी घंटों अख़बार पढ़ा करते थे । उम्र बढ़ने के साथ-साथ नेत्र ज्योति ने साथ छोड़ दिया । उन्हें अब अक्षर दिखाई नहीं देते । पोता चिण्टू सुबह की ताज़ा ख़बरें और अनमोल विचार रोज़ पढ़कर सुनाता है । वह दादा जी का सच्चा समाचार वाचक है । आज सुबह के सारे समाचार सुन लेने के बाद दादा जी बोले-" बेटा चिण्टू कोई अच्छा-सा अनमोल वचन सुनाओ ।" कुछ देर अख़बार के पन्ने पलटने के बाद चिण्टू बोला -" दादा जी ,व्हिक्टर ह्यूगो का बहुत बढ़िया विचार आया है वो सुनाता हूँ । सुनो ,"बुद्धिमान व्यक्ति बूढ़ा नहीं…

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Added by Mohammed Arif on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments

ग़ज़ल...तू खुश्बू है चन्दन है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

22 22 22 2
खन खन करता कंगन है
साँसों में भी कम्पन है

मैं पत्थर हूँ राहों का
तू खुश्बू है चन्दन है

आहट है किन कदमों की
उर में कैसा स्पंदन है

आँखों ने क्या कह डाला
आकुल ये मन वंदन है

मन मन्दिर में आ जाओ
स्वागत है अभिनन्दन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments

गर बचेगा कुछ मिरा वो शाइरी ओर नेकियां...



बह्र:-2122-2122-2122-212

  बढ़ गई जिस दौर रिश्तों की नमीं और दूरियां ।।

खुद-ब-खुद लेनी पड़ी खुद को खुद की सेल्फियां।।

जिसको समझा शान आखिर अब वो आ कर के खड़ा ।।

    मुँह चिढ़ाता दौर मेरा ,खुद -जनी नाकामियां।।

  नाम अब है गर्व का ,खुदग़रज ओऱ बे अदब।

  झुकना अब न चाहता हैं नवजवां कोई मियां।।

देश के होने लगे जब मज़हबी हालात यूँ।।

राजनीतिक सेंकने लगते हैं अपनी रोटियां।।

  रास्ता सबका अलग, अब बँट ही जाना है…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 11:56am — 5 Comments

अपाहिज - लघुकथा –

अपाहिज - लघुकथा –

"अरे चन्दू भैया, यह क्या कर रहे हो? आपको देखकर तो हमको भी शर्म आ रहा है"?

"अब तू ही बता,  शंकर, हम क्या करें?, इंजीनियरिंग की डिग्री लिये बैठे हैं। तीन साल हो गये, नौकरी खोजते खोजते। इंटर्व्यू में जाने के लिये भी पैसा नहीं है। उधारी भी अब कोई नहीं देता। माँ बापू से मांगने में भी शर्म लगता है"।

"चन्दू भैया, ऐसे भीख माँगने से कितना दिन तक गुजारा होगा"?

"आठ दस दिन में जो पैसा इकट्ठा होता है, उससे दो चार जगह इंटर्व्यू  दे आते हैं। तू बता, कितने समय…

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Added by TEJ VEER SINGH on March 16, 2018 at 11:10am — 8 Comments

नज़्म: आत्मबोध

सुझाव / इस्लाह आमंत्रित 

.

जब क़लम उठाता हूँ यह सवाल उठता है

क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?

.

क्या अगर कोई तितली फूल पर जो मंडराए

टूट कर कोई पत्ता शाख़ से बिछड़ जाए

तोड़ कर सभी बन्धन पार कर हदों को जब

इक नदी उफ़न जाए, दौडकर समुन्दर की

बाँहों में समा जाए तब ग़ज़ल कही जाए?

.

इक  पुराने अल्बम से झाँक कर कोई चेहरा

तह के रक्खी यादों के ढेर को झंझोड़े और

इक किताब में बरसों से सहेजी पंखुड़ियाँ

यकबयक बिखर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:30am — 11 Comments

कुंडलिया छंद

 

 माना ताज  मिसाल  है , सुंदरता की  एक l

 चीख़ें गूँजीं हैं यहाँ , करुणा भरी अनेक ll

 करुणा भरी अनेक , यहाँ पर लिखीं कहानी l

 कटे   करों  से खून, बहा  है  बनकर  पानी ll

 'अना'  जान ले  सत्य, ताज  का हर दीवाना l

 प्रेम   निशानी  ताज, अजब है जग में माना ll

  - अनामिका सिंह  'अना'

    मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Anamika singh Ana on March 15, 2018 at 6:30pm — 11 Comments

तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया



बह्र:-2122-2122-2122-212

तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया 

"ये ख़बर ज्यूँ ही मिली कि तू पराया हो गया

धुंध छा जाती न आँखें रोक पाती अश्क अब।

तेरे बिन जीवन यूँ मेरा टूटी माला हो गया।।

कैसे खुद को मैं बचाता प्यार का है रंग चटख।

प्रेम के रंग से लिपट जब ईश ग्वाला हो गया।।

कुछ बताया अश्क ने यूँ अपनी इस तक़दीर पर।

जब से प्याली में वो टपका तब से हाला हो गया।।

ठोकरें बदली…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on March 15, 2018 at 4:00pm — 11 Comments

महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था

221 1221 1221 122

********************

महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।

तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।

रौशन किया जो हक़ से तुझे रोज़ ही दिल में,

वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था ।

कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,

ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।

है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,

सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।

होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ, 

मंदिर किसी…

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Added by Harash Mahajan on March 15, 2018 at 3:00pm — 21 Comments

आखिरी मुलाकात(कविता )

आखिरी मुलाकात

आखिरी लम्हा

आखिरी मुलाकात का

अथाह प्यास

जमी हुई आवाज़

उबलते अहसास

और दोनों चुप्प !

आतूूर सूरज

पर्दा गिराने को

मंशा थी खेल

और बढ़ाने को

आखिरी दियासलाई

अँधेरा था घुप्प !

सुन्न थे पाँव

कानफोड़ू ताने

दुधिया उदासी पे

लांछन मुस्काने

आ गया सामने

 जो रहा छुप्प |

वक्त रुका नहीं

आँसू ढहे नहीं

पत्थर बहा…

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Added by somesh kumar on March 14, 2018 at 10:33pm — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की -. माँ भारती की शान में,

२२१२/२२१२

.

माँ भारती की शान में,

वो रोज़ नव परिधान में.

.

क्यूँ राष्ट्रभक्ति खो गयी

समवेत गर्दभ गान में.

.

सब हो गए कितने पतित

सोचो कथित उत्थान में.

.

हर बैंक कर देंगे सफा

वो स्वच्छता अभियान में.

.

इन्सानियत बाक़ी कहाँ 

अब है बची इन्सान में.  

.

वो माफ़िनामे लिख गये

अपना यकीं बलिदान में.

.

कैसे मसीहा देख लूँ

उस इक निरे नादान में.

.

करते दहन है खूँ फ़िशां

कत्था लगा कर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:12pm — 14 Comments

स्वप्निल यथार्थ

स्वप्निल यथार्थ....

जब प्रतीक्षा की राहों में

सांझ उतरे



पलकों के गाँव में

कोई स्वप्न

दस्तक दे



कोई अजनबी गंध

हृदय कंदरा को

सुवासित कर जाए



कोई अंतस में

मेघ सा बरस जाए



उस वक़्त

ऐ सांझ

तुम ठहर जाना

मेरी प्रतीक्षा चुनर के

अवगुंठन के

हर भ्रम को

हर जाना

मेरे स्वप्न को

यथार्थ कर जाना

मेरे स्वप्निल यथार्थ को

अमर कर जाना

सुशील सरना

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on March 14, 2018 at 7:45pm — 13 Comments

कुंडलिया छंद

1-

वर दे  माता शारदे , रचूँ   प्रीति  के छंद l

हो समष्टि की साधना , बढ़े ह्रदय आनंद ll

बढ़े  ह्रदय आनंद , लेखनी  चलती  जाए l

लिखूँ सदा ही सत्य , झूठ से दिल घबराए ll

'अना' बहुत नादान,  शारदे जग की ज्ञाता l

सिर पर रख दे हाथ, आज तू वरदे माता ।।

2-

सत्कर्मों का फल मिला , पाया  मानव रूप l

जीवन पथ पर रख कदम ,देख न छाया धूप ll  

देख न छाया धूप , मैल   मत मन  में रखना l

करना सबसे प्रेम , स्वाद जीवन का चखना…

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Added by Anamika singh Ana on March 14, 2018 at 4:00pm — 15 Comments

कुछ हाइकु

बीत जाएगी

जिंदगी, काटो मत

जीवन जियो

 

पतंग जैसे

डोर है जिंदगी की

उड़ी या कटी

 

नहीं टूटते

अपनत्व के तार

आखिर यूँ ही

 

 सूर्य ग्रहण

हार गया सूरज

परछाई से

नदी बावरी

सागर में समाना

अभीष्ट जो था

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Added by Neelam Upadhyaya on March 14, 2018 at 3:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल (मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है )

(फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन)



हो रहा उनका हर वक़्त दीदार है |

मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है |



कुछ तो है दोस्तों शक्ले महबूब में

देखने वाला कर बैठता प्यार है |



उनका दीदार मुमकिन हो कैसे भला

उनके चहरे पे बुर्क़े की दीवार है |



मुझ पे तुहमत दग़ा की लगा कर कोई

कर रहा ख़ुद को साबित वफ़ादार है |



चाहे दीदारे दिलबर ,दवाएं नहीं

वो हकीमों मुहब्बत का बीमार है |



उसको क्या वारदाते जहाँ की ख़बर

जो पढ़े ही नहीं…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2018 at 11:30am — 32 Comments

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