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दोहा विशिष्ट /डॉ. प्राची

सप्त सिन्धु घट बह रहे, कर्ण पार स्वर सप्त.

व्योम वृहत निज व्याप्त है, सप्त वर्ण संतृप्त//१//

**************************************************

तर्षण लब्धासक्ति का, करता उर संतप्त.

तर्कण कर तर्पण करें, वृथा फिरें अभिशप्त//२//

**************************************************

मुद्रा, कीर्ति, स्वरुप भ्रम, क्षणिक करें मन तृप्त.

तप्त इष्टि परिशान्तिनी, शक्ति उर अनुज्ञप्त//३//

**************************************************

डॉ.…

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Added by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 12:00am — 31 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
(छंद त्रिभंगी एक प्रयास ) कर्म किये जा

{चार चरण मात्रा ३२ यति (१०,८,८,६) , चरणान्त समतुकांत तथा चरणान्त में जगण वर्जित,  अंत में गुरु (२)}



(1)निश्शंक  जिए जा , कर्म किये जा , ,फल की मत कर ,अभिलाषा 

भगवन सब जाने ,सब पहचाने , कृपा करेंगे   ,रख आशा 

कर मनन निरंतर ,हिय अभ्यंतर,तन मन सुख की ,परिभाषा

पर लोभ  बुरा है , क्षोभ  बुरा है,   पर मन  जीते   ,  मृदु  भाषा 

(2)

शिव हरि  नाम भजो ,मद बिषय तजो ,जितेंद्रिय नाम,सुख पाओ 

भज  दुर्गे अम्बा , माँ जगदम्बा ,मातु रूप  नौ  , …

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Added by rajesh kumari on January 23, 2013 at 11:01pm — 12 Comments

मुझे फकत एक शाम चाहिए (अभिलाषा)

मुझे फकत एक शाम चाहिए

बस अपने ही नाम चाहिए

उस तरु की छाया में बैठे

मन में एक विराम चाहिए



कितने अवसादों से घिरकर

थके थके क़दमों से चलकर

कितनी जिम्मेदारी है सर पर

थोडा सा आराम…

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Added by SUMAN MISHRA on January 23, 2013 at 7:30pm — 6 Comments

मुझको क़फस में क़ैद रहने दीजिए

मुझको क़फस में क़ैद रहने दीजिए
अश्कों को मेरे यूँ ही बहने दीजिए

मेरे गुनाहों की तलाफी है यही
हर सितम चुपचाप सहने दीजिए

गुन्ग दीवारें फकत और कुछ नहीं
ना कीजिए आवाज, रहने दीजिए

महव-ए-गम हो जाओगे ऐ गम-गुसार
होठों को मेरे कुछ ना कहने दीजिए

किस बात के हो मुन्तज़र "विश्वास" तुम
ख़्वाबों को होकर ख़ाक ढहने दीजिए

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Praveen Verma 'ViswaS' on January 23, 2013 at 4:30pm — 5 Comments

"दर्द और आंसू "

स्वयं के आंसुओं से ,

कपोल उसका झुलस गया !

दया हाय! आयी मुझको ,

मेरा भी अश्रु बह गया !!

अपनो के लिए उसकी ,

पत्थर तोड़ती माता !

भूंख से छटपटाता बच्चा,

हाय! पाषाण ह्रदय विधाता !!

असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,

नम आँखों से दर्द धो रही थी !

कई दिनों की भूंखी बेचारी ,

खुली आँखों से सो रही थी !

उसके आँख का खारा पानी ,

यह कह रहा था !

दिल में कहीं गम का ,

समंदर बह रहा था !!

दम तोड़ती ज़िन्दगी ,

दम तोड़ती मानवता !

कहीं ना…

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Added by ram shiromani pathak on January 23, 2013 at 12:38pm — 7 Comments

शब्‍द

शब्‍द,

तेरी गंध

बड़ी सोंधी है

तेरी देह,

बड़ी मोहक है

अपनी उपत्‍यका में

एक मूरत गढ़ने दोगे ?

देखो न,

तेरे ही आंचल का

वह विस्मित फूल

मोह रहा है मुझे

और मेरे बालों में

अंगुली फिराती

बदन पर हाथ फेरती

मुझे सिहराती

सजाती, सींचती

वो तुम्‍हारी लाजवंती की साख

जब

चांद के दर्पण में

कैद

मेरी प्रतिच्‍छाया को

आलिंगन में भींच लेती है,

और मैं…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 23, 2013 at 12:00pm — 14 Comments

उदास लडकियां

उदास लडकियां

नहीं कहतीं किसी से-

 अपनी उदासी का सबब

करतीं इसरार नहीं

अम्मा से, भैय्या से

होती न बतकही

छुटकी गौरैय्या से

तितलिओं के पीछे भी

 भागतीं नहीं जब तब

निर्दय, नृशंस

समय की दस्तक!

उदास लडकियां

नहीं कहतीं किसी से-

 अपनी उदासी का सबब

टोली बच्चों की

 जो गलियों में

करती है शोर;

कडक्को, पकडम पकडाई

खो- खो,

पतंगों की

कटती हुई डोर;

पी लेतीं आँखें

मासूम बदहवासी को

उदास लडकियाँ …

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Added by Vinita Shukla on January 23, 2013 at 11:45am — 16 Comments

तेरा ही तलबगार हूँ मैं...

प्रेम एक रोग हैं गर,

तो हाँ बीमार हूँ मैं,

चाहत बस मुझे तेरी

तेरा ही तलबगार हूँ मैं ll

 

पूजेंगे तुम्हे अब हम ,

तेरे आगे सर झुकायेंगे,

हैं गर ये खता यारो,

तो हाँ गुनाहगार हूँ मैं ll

 

तुझे जो हो न यकीं,

दिल में झांक ले कभी,

तेरे ही ख्वाब पलते हैं,

तेरा ही वफादार हूँ मैं ll

 

चाँद, तारे बहुत दूर तुमसे,

नजर जब भी उठाओगे,

हर सू मुझे ही पाओगे..

हाँ तेरा ही दरों-दिवार हूँ…

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Added by praveen on January 22, 2013 at 11:49pm — 5 Comments

ग़ज़ल "सजा कर रख लिया हमने जो खाली आबगीने को "

============ग़ज़ल =============

उड़ा कर छत हवा जब जब करे जाया पसीने को 

गरीबी कोसती फिरती है तब सावन महीने को 



बफा करने के बदले बेबफाई जब मिली यारो 

बढ़ा दर्द-ए जिगर हद से नहीं आराम सीने को 



मेरे हमराज मुझको इक शराबी मान बैठे हैं 

सजा कर रख लिया हमने जो खाली आबगीने को 



इलाहबाद जाकर पापियों ने पाप यूँ धोये 

हुई गंगा वहाँ मैली बचा पानी न…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 22, 2013 at 4:00pm — 6 Comments

कैसे कहूँ? (एक गीत)

कैसे कहूँ? दिल में है जो 

छोड़ता हूँ, रहता है वो 

ढूंढता हूँ लफ्ज़ कोई 

कोई बयाँ, बात कोई 

.

कहता हूँ, थोड़ा रुकना 

चाँद मेरे! ना छुपना ... 

.

चलते हुए आगे-पीछे 

तेरी दोनों आँखें नीचे 

राह तुझे याद तो है 

रात तुझे याद तो है 

.

वो भी कोई दिन था 

हाँ मैं तेरे बिन था ...

.

कैसे कहूँ? इस दिल में है जो ???

.

कुछ समझ में आता नहीं 

औ' बता भी पाता नहीं 

देखता हूँ, जानता…

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Added by Priya Ranjan on January 22, 2013 at 3:38pm — 2 Comments

ग़ज़ल (मुझको बनाने वाले ने खंज़र बना दिया)

पैबस्त जिस्म में हूँ कि दिल में लगा हूँ मैं 

मुझको बनाने वाले ने खंजर बना दिया |



अफ़सोस किसी बात का होता नहीं मुझे 

पत्थर की तरह मुझको बंजर बना दिया |



चूसा है लहू इस क़दर दुनिया ने खुद अपना 

न जाँ बची न गोश्त, बस पंजर बना दिया |



हक औ' सिला के नाम पर सब इस कदर लड़ें

एक दुसरे को इनने तो कंजर बना दिया |



निकला 'कोई नहीं' मगर सपना हैं देखतें 

गीली जगह पे स्याह एक मंजर बना…

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Added by Priya Ranjan on January 22, 2013 at 3:30pm — 2 Comments

ओ मीत

मेरे गीत तेरी पायलिया है

ओ मीत तू मेरी सावरिया है|

प्रेम गीत मैं गा रहा हूँ

तेरे लिए ही आ रहा हूँ

मिलन को बरस रही बादरिया है

ओ मीत तू मेरी सावरिया है|

मद्धम हवा साथ चली है 

दिल में दीपक सी उजली है 

देख झलक गयी गागरिया है 

ओ मीत तू मेरी सावरिया है|

अगली पहर तक आ जाऊंगा 

तुझे दुल्हन बना…

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Added by deepti sharma on January 22, 2013 at 3:00pm — 4 Comments

प्रतिस्पर्धा

भ्रष्टाचार में भी प्रतिस्पर्धा,

करते आपस में दंगल है !

क्या करूँ कितना मिल जाय ,

बस लूट पाट को बेकल है !!

पैसे के लिए लार टपकाते ,

मार पीट को ये तत्पर है !

बोलबचन से कभी कभी तो,

कर देते सब गुड़-गोबर है !!

कायरता ,पशुता से संचित ,

बनाते नया-नया पैमाना !

चालाकी,मक्कारी ही इनका,

बन चुका धंधा पुराना !!

धन के वन में विचरण करते ,

जैसे इनका ही जंगल है !

जंगल राज़ चला रहे फिर भी ,

कहते है कि सब मंगल है !!

राम शिरोमणि पाठक…

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Added by ram shiromani pathak on January 21, 2013 at 8:22pm — 4 Comments

बिछोह

बिछोह

कभीसोचा न था जो हुआ

कल्पना से परे

ये तुमने किया

यकीन नहीं

होगा भी क्यों

तुम ही तो थी मेरा बिश्वास

दिल के सबसे पास

सांसो में वास

सिर्फ तुम्हारा अहसास

बक्त जो गुजारा हमने

देखे थे सपने

सव नेस्तनाबूद

ख़त्म मेरा बजूद

कहा था तुमने में तुम बनेगें हम

किन्तु सब ख़तम

जरुर छीड़ पड़ी तुम्हारी स्मरण शक्ति

मेरा प्यार भक्ति

तुम वेबफा हो जानता नहीं

 तुमने छल किया…

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Added by Dr.Ajay Khare on January 21, 2013 at 5:45pm — 6 Comments

मत्त गयंद (सवैया): संजीव 'सलिल'

मत्त गयंद (सवैया):
संजीव 'सलिल'
*
मत्त गयन्द सुछन्द  मनोहर, ज्यों गुलकंद मधुर मन भाया
आत्मज सम यश-कीर्ति बढ़ा, कवि-तात का लाड़ निरंतर पाया
झूम उठे थे शेष न शेष रहा धीरज, जब छंद सुनाया.
घबराये नर-नार कहें, क्यों इंद्र ने भू पर वज्र चलाया..
*

Added by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 5:00pm — 3 Comments

सामयिक गीत: पंच फैसला... संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:

पंच फैसला...

संजीव 'सलिल'

*

पंच फैसला सर-आँखों,

पर यहीं गड़ेगा लट्ठा...

*

नाना-नानी, पिता और माँ सबकी थी ठकुराई.

मिली बपौती में कुर्सी, क्यों तुम्हें जलन है भाई?

रोजगार है पुश्तों का, नेता बन भाषण देना-

फर्ज़ तुम्हारा हाथ जोड़, सर झुका करो पहुनाई.

सबको अवसर? सब समान??

सुन-कह लो, करो न ठट्ठा...

*

लोकतंत्र है लोभतन्त्र, दल दाम लगाना जाने,

भौंक तन्त्र को ठोंकतन्त्र ने दिया कुचल…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल - अदब से सिरों का झुकाना ख़तम

ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,

घरों में दियों का जलाना ख़तम,

बड़ों के कहे का नहीं मान है,

अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,

कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,

दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,

नियत डगमगाती सभी नारि पे,

दिलों…

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Added by अरुन 'अनन्त' on January 21, 2013 at 11:07am — 2 Comments

मुक्तक : रूप की आरती (संजीव 'सलिल')

मुक्तक

रूप की आरती

संजीव 'सलिल'

*

रूप की आरती उतारा कर.

हुस्न को इश्क से पुकारा कर.

चुम्बनी तिल लगा दे गालों पर-

तब 'सलिल' मौन हो निहारा कर..

*

रूप होता अरूप मानो भी..

झील में गगन देख जानो भी.

देख पाओगे झलक ईश्वर की-

मन में संकल्प 'सलिल' ठानो भी..

*

नैन ने रूप जब निहारा है,

सारी दुनिया को तब बिसारा है.

जग कहे वन्दना तुम्हारी थी-

मैंने परमात्म को गुहारा है..

*

झील में कमल खिल रहा कैसे.

रूप…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 9:30am — 3 Comments

शर्म करो ऐ तनिक दरिंदों शर्म करो

शर्म करो ऐ तनिक दरिंदों शर्म करो,

मनुज रूप में तनिक दरिंदों शर्म करो।

दिल्ली की सड़कों पर तुमने यह क्या कर डाला।

बापू औ पटेल की धरती पर क्या रच डाला।

तेरी करतूतों से फिर है देश हुआ गमगीन,

शर्म करो ऐ तनिक दरिंदों शर्म करो....

नारी ही दुर्गा है नारी ही लक्ष्मी बाई,

नारी ही कल्पना हमारी नारी ही माई।

माता के स्वरूप को तुमने ही तिल तिल मारा,

दिल्ली की सड़कों पर तुमने यह क्या कर डाला।

तेरह दिन तक जीवन से भी हार नहीं मानी,

पल-पल जिसने अपनी…

Continue

Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 20, 2013 at 9:00pm — 3 Comments

जीवन-मृत्यु

जीवन-मृत्यु

----------------

एक अदृश्य सी रेखा

जीवन मृत्यु के मध्य

चुनना अत्यंत कठिन

दोनों में से एक को

जीवन क्षणभंगुर

अकाट्य सत्य है

मृत्यु भी असत्य नहीं

जान लें इस भेद को

मृत्यु की छाती पर

नर्तन करता जीवन

पकड़ना चाँद लहरों में

बाँधना रेत का कठिन

चेत रे मन होश न खोना

जीवन है अमूल्य खरा सोना

सुन्दर जीवन जिया जाये

होय वही जो पिया मन भाये…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 20, 2013 at 6:30pm — 16 Comments

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