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ज़िन्दा हूँ

फूल ही सही मगर ख़ारों में ज़िन्दा हूँ
मय बनकर ही तलबदारों में ज़िंदा हूँ

मैं इश्क हूँ मुझे आशारों में न ढूंढ
मैं तेरी आँख के इशारों में ज़िन्दा हूँ

मुझे आसमाँ की आज़ादी मिली न कहीं
मैं तेरी याद के इज्तिरारों में ज़िन्दा हूँ

न दे गवाही मुझे इनकारों की तमाम
मैं तेरे खामोश इकरारों में ज़िंदा हूँ

ये माना कि किश्ती है जलजलों में अभी
मैं मगर उम्मीद के किनारों में ज़िन्दा हूँ

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on November 19, 2012 at 9:35pm — No Comments

जल ही जीवन है.(बैरवे छंद)

तीन भाग जल धरती,शेष जमीन,

प्रकृति  सींचे  वरना, नीर विहीन/

धरती जल को दुहता,मनुज प्रवीण,

जाने जल बिन होगा, जीवन  हीन/

प्रकृति  भक्षक बनते,  मानव दीन,

बरसें  मेघ   लगाओ, वृक्ष  नवीन/

नद जल सारा खींचा, कूप बनाय,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:08pm — 2 Comments

नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार

नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार 

-----------------------------------------------------

नाना नाना ई बतावा फिर कौनो  बात हो गई 
चेहरा काहे लटकौले नानी से मुलाक़ात हो गई 
चुप रहो नाती न बोलो पकड़ो   ई दस रुपिया
दोनों ओर आग लगावत नानी के तुम खुफिया 
------------------------------------------------------
नानी खफा बहुत हमसे ढूंढ रही वो बेला 
कौन बनाया लेखक हमको  इंटरनेट…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 19, 2012 at 5:18pm — 9 Comments

सिला

वोह दूर क्या हुए 

इतनी दूर हो गए 
मेरी मुहब्बत के शायद 
हर किस्से भूल गए 
किससे करें शिक्वा-ए-दिल          
किससे  करें गिला 
जिंदगी के आखरी लम्हात में 
हम तन्हा  हो गए
'दीपक' था जलता क्यूँ न 
जलकर लुत्फ़ ही आया 
लेकिन मुझको जलाकर वोह 
खामोश चले गए …
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2012 at 11:30am — 4 Comments

जन्मदिन की शुभकामनाओ पर तहे दिल से धन्यवाद आभार (19 नवम्बर,2012)

ओबीओ ही मात्र मंच, जहाँ मिले प्यार कुछ ख़ास 
सड़सठ पार बसंत पर, हुआ अहसास कुछ ख़ास ।
 
हुआ अहसास कुछ ख़ास, घर में ख़ुशी मनाई,
दूरभाष पर मित्र ने रह रह  घंटी खूब बजाई ।
 
धन्यवाद किस विधि मै करू, शब्द नहीं है पास,
धन्यवाद प्रभु आपका, जीवन में भरी मिठास ।
 
ओबीओ में प्रभु कृपा से,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2012 at 11:00am — 2 Comments

माँ को कैसे दूं श्रद्धांजली ,

माँ तुझे सलाम

 

 

वो चेहरा जो

        शक्ति था मेरी ,

वो आवाज़ जो

      थी…

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Added by shalini kaushik on November 19, 2012 at 12:31am — 4 Comments

मेरे कमरें के केलेंडर पर

मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया

तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"

झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया

छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया

मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया

Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

लघुकथा: लिटमस टेस्ट

 "प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !"  आकाश  शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !

"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !

"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"

“कौन मित्र?”

“अभिनव, कॉलेज वाला...!”

“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”

“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”

“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!”…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 18, 2012 at 8:00pm — 14 Comments

''समझ''

उम्र की दौड़ में हम बदल जाते हैं

वक्त की ठोकरों से संभल जाते हैं l

चाँद-तारों की हसरत है जिनको नहीं    

सूखी रोटी खुशी से निगल जाते हैं l

कूड़े-कर्कट में पाया हुआ जो मिला

उन खिलौनों से ही वो बहल जाते हैं l

हैं जहाँ में बहुत जिनमें है वो हवस   

जो भी देखा उसी पर मचल जाते हैं l

बिन किसी बात हम उनको खलने लगें

इस दुनिया में ऐसे भी मिल जाते हैं l      

राजे-दिल खोलो जिसको अपना समझ…

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Added by Shanno Aggarwal on November 18, 2012 at 7:30pm — 6 Comments

छियासी वर्षीय मराठी नेता को श्रद्धांजली

बाला साहेब ठाकरे अब नहीं रहे 
उन्हें हजारे लोग श्रद्धांजली देते रहे 
किसी ने उन्हें महाराष्ट्र का शेर कहा 
किसी ने उन्हें शिवाजी के बाद का 
मराठी सेवक कह कर नवाजा है ।
देश के बड़े कार्टूर्निष्टों में से एक थे
"सामना"में छपे उनके लेख बताते- 
स्पष्ट-वक्ता बेबाक टिपण्णी करनेवाले, 
जिनके साथ लाखो लोग यात्रा में चल रहे 
हजारे…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 18, 2012 at 4:36pm — 4 Comments

दोहा सलिला: नीति के दोहे संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला

नीति के दोहे

संजीव 'सलिल'

*

रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .

व्यर्थ  घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।



खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।

बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।



फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।

कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।



सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।

नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।





दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।

अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।…

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Added by sanjiv verma 'salil' on November 18, 2012 at 1:21pm — 1 Comment


सदस्य टीम प्रबंधन
आदरणीय योगराजभाईजी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

शब्द-पुष्पों का एक गुच्छा सादर प्रस्तुत है -- 

हर दिल  के  दरबार में,  बादशाह बेताज  

सहज-धीर-उद्भाव-नत, ओबीओ सरताज  

ओबीओ सरताज, पूर्ण जो जीवन जीता  

’जो कुछ है, वह सार’, सोच का सुगढ़ प्रणेता  …

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Added by Saurabh Pandey on November 18, 2012 at 11:30am — 25 Comments

"परमसत्ता अदृश्य का दृश्य हो जाना "

भीषण अंधकार

गहरा तम

डरावना सन्नाटा…

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Added by mohinichordia on November 18, 2012 at 9:05am — 3 Comments

वे तो हमारी कविता कम सुनते थे हम उनसे हमारी हास्य कवितायें ज्यादा सुनते थे

हिन्दू हृदयसम्राट श्री बाला साहेब ठाकरे के देहावसान से मुझे वैयक्तिक दुःख पहुंचा है . उनकी सुप्रसिद्ध कार्टून पत्रिका मार्मिक के वर्धापन समारोह हों या उनके नाती-नातिन के जन्म-दिवस समारोह, अनेक बार उनके साथ रंगारंग महफ़िलें जमती थीं जिनमे वे तो हमारी कविता कम सुनते थे हम उनसे हमारी हास्य कवितायें ज्यादा सुनते थे . अनेक कवियों की कवितायें उन्हें याद थीं और हू बहू उसी शैली में सुना कर तो वे विस्मित कर देते थे .…

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Added by Albela Khatri on November 18, 2012 at 1:00am — 3 Comments

अहवाल-ए-ज़वाल

२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२

पुर-शुआ पुर-शुआ था हमारा शहर, रोशनी में नहाया हुआ था समाँ,

आज लेकिन न जाने ये क्या हो गया, हो गया है अँधेरा अँधेरा जवाँ।



हैं तवारीख में दास्तानें सभी, वक्त की मार से खाक में मिल गये,

जो जवाहर सजाते रहे ताज में, और ताबे रहा जिनके सारा जहाँ।



उल्फतों से यही हाय कहता रहा, मैं तुम्हारा बना हूँ सदा के लिये,

पर अचानक उसी ने गज़ब ये किया, चल दिया ठोकरें दे न जाने कहाँ।



बन्द कर के निगाहें भरोसा किया, जानो…

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Added by इमरान खान on November 17, 2012 at 2:00pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
चौंच में लेकर तिनका ( कुण्डलिया )

लेकर तिनका चौंच में ,चिड़िया तू कित जाय

नीड महल का छोड़ के , घर किस देश बसाय

घर किस देश बसाय ,सभी सुख साधन छोड़े

ऊँची चढ़ती बेल , धरा पे वापस मोड़े

देख बिगड़ते बाल, माथ मेरा है ठनका

जाती अपने गाँव , चौंच में लेकर तिनका

***************************************

(अपने एक ख़याल के ऊपर बनाई यह कुंडली )

चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे…

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Added by rajesh kumari on November 17, 2012 at 11:00am — 18 Comments

चन्द्रबदन!

चन्द्रबदन!

तेरे कपोल पे तेरे नैनों का नीर

लागे जैसे सीप में मोती

शशी से भी तू सुन्दर लागे

जब ओढ़ चुनर तू है सोती

झरने सी तू चंचल है

सुन्दरता से भी सुन्दर है

सुगंध तेरी  जैसे कोई संदल

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…

 

तेरे केशों में…

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Added by Ranveer Pratap Singh on November 16, 2012 at 10:30pm — 8 Comments

मच्छर

        मच्छर

इस युग के दो महान प्राणी

जिनकी महिमा सबने जानी

लेता सब कुछ न कुछ देता   

एक  मच्छर दूसरा  है नेता

---------------------------------

गली नुक्कड़ हो या चौबारा 

हर जगह है इनकी पौ बारा 

जिनके बूते जग में हैं  पलते 

अवसर पा शरीर में डंक भरते 

---------------------------------

सूरत सीरत पे इनकी न जाओ 

लाख बचो इनसे पर बच न पाओ 

भुनभुना के मीठा संगीत सुनाते 

चुपके से  जनता का खून पी…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 16, 2012 at 5:02pm — 16 Comments

गिरती दीवारें सूने खलिहान है

गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है

चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है

जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है

लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है

हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है

Added by नादिर ख़ान on November 16, 2012 at 4:30pm — 12 Comments

ज़माना

               ज़माना 

             -------------

जनता देखो  आया अब  कैसा जमाना

कवि को मना  है आज कल मुस्कुराना 

लिखने पे पड़ता अब  इन्हें जेल जाना 

जनता देखो  आया अब  कैसा जमाना

--------------------------------------------

न खींचो अब कोई चित्र ये जंतु विचित्र 

बैठ कर सदन में खूब मौज लेते सचित्र 

ऐसा न  था कभी इनका चरित्र पुराना 

जनता देखो अब  आया कैसा जमाना 

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उजले तन…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 16, 2012 at 2:52pm — 4 Comments

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