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सब की प्यारी माँ.

छहः साल  का नन्हा सा बच्चा था रोहन, लेकिन बड़ा होशियार.मम्मी पापा सब की आँखों का तारा . पढने में जितना होशियार उतना ही बड़ा खिलाडी.हमेशा कोई न कोई नयी हरकत कर के माँ को चौंका देता था. एक दिन  शाम  को काफी अँधेरा हो चला  लेकिन रोहन खेल कर घर नहीं लौटा. माँ की डर के मारे  हालत ख़राब होने लगी. उलटे सीधे विचार मन में आने लगे..बेहाल हो कर ढूंढने  निकली तो देखा की जनाब शर्ट को पेट पर आधा  मोड़े हुए उस में कोई  चीज़ बटोरे लिए चले आ रहे हैं. ख़ुशी…

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Added by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 1:00am — 24 Comments

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।

तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥

दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,

मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 7, 2012 at 9:30pm — 18 Comments

बचपन

याद तुम्हारी आते ही मन व्याकुल हो जाता है,
छूट गया वो साथ जो कभी नहीं फिर आता है.
 
कितना था आनंद कितना था फिर प्यार वहां,
कितने थे कोमल सपने कितने थे अरमान…
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Added by Ashok Kumar Raktale on May 7, 2012 at 6:00pm — 16 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
एक चिड़िया की कहानी

एक चिड़िया की कहानी

 

मैं नन्ही सी चिड़िया...भरती हूँ आज खुले आसमान में लम्बी से लम्बी उड़ान l याद है मुझे आज भी सर्द ठिठूरी कुहासे भरी वो गीली गीली सी सुबह, जब अपनी ही धुन में मस्त, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू में गुम मैं फुदक रही थी एक पगडंडी पर l नम घास की गुदगुदाती छुअन मदमस्त कर रही थी मुझे और मैं अपनी ही अठखेलियों से आह्लादित चहक रही थी…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 7, 2012 at 1:07pm — 16 Comments

“कर लो अब तैयारी”

                                                             सूरज की गरमी को देखो, पड़ती सब पे भारी

सूखे ताल तलैया भाई,  पिघली सड़कें सारी

सूख चली देखो हरियाली, सहमा उपवन सारा. 

पंथिन को तो छांह नहीं अब,  क्योंकर चलता…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2012 at 12:30pm — 29 Comments

ये है कंप्यूटर सदी यानि ज़माना है नया ,

मंजिले  ऊँची  बनाना  आज  की  तामीर  है , 

इस  सदी  की  दोस्तों  कितनी  अजब  तस्वीर  है ... 



ये  है  कंप्यूटर  सदी  यानि  ज़माना  है  नया , 

कितनी  आसानी  से  बदली   जा  रही  तस्वीर  है ... 



क्या  कटेगी  ज़िन्दगी  अपनों  की  मोबाईल  बगैर , 

ये  हमारे  दौर  की  मुंह …

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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 7, 2012 at 11:30am — 11 Comments

कौरवों के साथ में धृतराष्ट्र अँधा है

कौरवों के साथ में धृतराष्ट्र अँधा है

धर्म है पाखंड सा हर दिल दरिंदा है



हिंद में ही लुट रही क्यूँ लाज हिंदी की

पश्चिमी रंग में रंगा हर एक बंदा है



ना हया ना शर्म है आदम के अन्दर अब

औ सनातन धर्म भी मंदिर में धंधा है



आज तक अच्छा किया ना एक नेता ने

जो करे अच्छा यहाँ वो ही तो गन्दा है



फिक्र तुझको…
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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 7, 2012 at 9:30am — 15 Comments

''औरत की कदर''

औरत न तेरा दर कहीं काँटों भरी डगर है  

तेरे जन्म के पहले ही बनती यहाँ कबर है l

रखती कदम जहाँ है गुलशन सा बना देती     

फिर भी यहाँ दुनिया में होती नहीं कदर है l  

ये नादान नहीं जानते कीमत नहीं पहचानते

तेरे बिन कायनात तो सूखा हुआ शजर है l 

जब भी कहीं देश में कोई ज्वलंत समस्या उठी है तो चारों तरफ एक चर्चा का विषय बन जाती है. भ्रूण हत्या भी एक ऐसा ही विषय बना हुआ है. भारत में आये दिन खबरों में, या फिर कभी रचनाओं, कभी लेखों या सिनेमा के माध्यम से…

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Added by Shanno Aggarwal on May 7, 2012 at 6:00am — 12 Comments

अंगूठा चूसते-चूसते वो इतना "बड़ा" हो गया

मै ६ दिसंबर हूँ

मै ११ सितम्बर हूँ

२६ नवम्बर हूँ

आंसुओं का

महासागर हूँ मै !

--------------------------

गोल-गोल

बूँद भरी

पूर्ण हो

निकल पड़ी

-------------------…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 10:09pm — 5 Comments

मैंने अपनी हर दुआ में बस तुझे मांगा यहाँ

मैंने अपनी हर दुआ में बस तुझे मांगा यहाँ

तेरे आने से मिला है अब मुझे सारा जहाँ

 

लब हैं नाजुक पंखुड़ी  से ये गुलाबों की तरह

जुल्फों में उलझे पड़े जो जी रहे हैं अब कहाँ

 

भूलूं कैसे "दीप" आखिर वो हया रुखसार की

उनके बिन कैसे रहूँगा मैं यहाँ औ वो वहाँ

 

…………."दीप"…………..

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 6, 2012 at 8:48pm — 3 Comments

तुम क्या समझो तुम क्या जानो......मोनिका जैन "डाली"

तुम क्या समझो तुम क्या जानो

है पीर कहा ? है दर्द कहाँ ?

क्यों है मन आकुल व्याकुल सा

क्यों है तन थका थका सा ये

क्यों हार - हार कर  भी लेती हूँ

जीने की प्रबल प्रतिग्या मैं

क्यों बुझे हूऐ दीपों में मैं

आशा की जोत जलाती हूँ  

क्यों हूँ  रूठी हूँ दुनिया से मैं

क्यों फिर भी सबसे हिली मिली

हैं प्रश्न बहुत पर फिर भी

मैं क्यों खडी - खडी मुस्काती हूँ ?

क्या है ? क्यों है ? कैसा है ?

प्रश्नों की ठेलम ठेली है !

हो चकित देख कर…

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Added by Monika Jain on May 6, 2012 at 7:00pm — 11 Comments

चल दिल चलें अपने जहाँ.......

दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.



दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.

सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,

रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने…

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Added by इमरान खान on May 6, 2012 at 11:41am — 7 Comments

मुझे उम्र भर एक रियाज बक्श दी

किसी  अदीब  ने  मुझे  अलफ़ाज़  बक्श  दी

खामोशियों  को  आवाज़  बक्श  दी
 
 
मेरे  दहलीज़  पर  भी  थोड़ी  रौनक  हो…
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Added by Nilansh on May 6, 2012 at 9:30am — 6 Comments

उफ़! .. बड़ी गर्मी है!

उफ़!.... बड़ी गर्मी है!

घर के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हैं

एयर कंडीसन ऑन है

बहुत अच्छा लग रहा है!

तभी,

बिजली चली गयी!

थोड़ी देर बाद ही

तन से, निकलने लगे पसीने!

ओह कैसी चिपचिपाहट,

कपड़े हो गए गीले!

खिड़की खोलकर झाँका

एक गर्म हवा का झोंका

मानो चेहरे की कोमलता को

निचोड़ गया

तन को झकझोड़ गया!

उफ़!... बड़ी गर्मी है!

मैं पांचवी मंजिल से झांक रहा था

देखा,

कुछ मजदूर इस गर्मी में भी

मन लगाकर,

हंसमुख चेहरे दिखाकर

काम कर रहे…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2012 at 6:27am — 19 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
एक नयी दुनिया

एक  नयी  दुनिया 

एक  नयी  दुनिया देखी  है अन्तः  मन  की  आँखों  से

 

जिसमे  कोई  रंग  नहीं  हैं , पर  सारे  रंगों  से  सुन्दर…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 9:42pm — 6 Comments

गजल

कुछ नया इसमें नहीं , दास्तां पुरानी दे गया 

यार मेरा आँख को नमकीन पानी दे गया |


मैं इसे सबको सुनाऊं , लोग सुनते झूम के …
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Added by dilbag virk on May 5, 2012 at 8:18pm — 6 Comments

कविता -01- माछेर झोल भात और कुटनी !

कविता -01- माछेर झोल !

 

जब ओडिशा में

चलें ठंडी हवाएं

तट…

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Added by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 7:11pm — 17 Comments

"न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ"

न  जाने  क्यूँ  किसी  को  खल  रहा  हूँ ,

मै  अपनी  रह  गुज़र  पर  चल  रहा  हूँ ....



दीया  हूँ  हौसलों का इसलिए मै ,

मुकाबिल  आँधियों  के  जल  रहा  हूँ ....



मै  तेरे  नाम  की  शोहरत  हूँ  शाएद ,

इसी  बयेस  सभी  को  खल  रहा  हूँ .....



मुझे  तू  याद  रखे  या  भुला  दे ,

मै  तेरी  याद  में  हर  पल  रहा  हूँ ....…



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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 5, 2012 at 12:30pm — 17 Comments

कविता : अम्ल, पानी और मैं

दफ़्तर के काम में डूबा हुआ था मैं
अचानक किसी शब्द से चिपकी चली आई तुम्हारी याद
जैसे ढेर सारे ठंढे सांद्र अम्ल में गिर जाय एक बूँद पानी
और उत्पन्न हुई ढेर सारी ऊष्मा
पानी की तैरती बूँद को झट से उबाल दे
अम्ल छलक पड़े बाहर
कुछ मेरे कपड़ों पर
कुछ मेरे चेहरे पर
यूँ अचानक मत आया करो
मेरे भीतर का अम्ल मुझे जला देता है
मैं खुद आउँगा कतरा कतरा तुम्हारे पास
जैसे ढेर सारे पानी में खो…
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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 5, 2012 at 12:00am — 10 Comments

॥ पानी ॥

(प्रस्तुत रचना रोला छन्द में आबद्ध है।रोला के प्रत्येक चरण में11-13 पर यति(विराम) के साथ 24-24 मात्रायें होती हैं।चरणान्त में लघु गुरु की विशेष बाध्यता नहीं है।)



रहिमन आये याद,हमें तुम्हारा पानी।

घटा जलस्तर किन्तु,बढ़ा आंखों में पानी॥



मोती चूना और,मनुज सभी गये सूखे।

प्यासी सारी भूमि ,त्राहि-त्राहि जन चीखे॥



पिघल रहा हिमवान,जलधि तल ऊपर आया।

क्षरण परत ओजोन,काल की काली छाया॥



ऑक्सीजन में कमी,वायु में कार्बन भारी।

मलवे से है पटी,प्रदूषित… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 4, 2012 at 8:47pm — 32 Comments

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