यह बचपन ,बचपन मैं जवान हो गया
जानता नहीं बचपन ,बचपन क्या चीज है
नहीं जानता है यह हंसना -खेलना
नहीं जानता यह रूठना मनाना,
जानता नहीं यह माँ बाप का प्यार
सीखा नहीं क्या होता है बचपन का दुलार
नहीं सीखा इसने पढ़ना लिखना ,
हाँ सीख लिया है जिंदगी को पढ़ना
जानता हैं चौबीसों घंटे मेहनत करना
रोटी कपडा मिलता है इसे इनाम
यह बचपन,बचपन मैं जवान हो गया
अब यह जवान हो गया है
जवान होते होते जिसने अपनी जवानी ,
बचपन मैं…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on January 25, 2015 at 9:05pm — 7 Comments
रात में फुटपाथ पर इक बेबसी रोती रही,
लोग तो जागे मगर संवेदना सोती रही,
शाम होते ही जमीं पर तीरगी छाने लगी,
आसमानों में सुबह तक रोशनी होती रही,
याद की चादर वो अपने आंसुओं की धार से,
दर्द की कालिख मिटाने के लिए धोती रही,
किसलिए इतनी मशक्कत, जब उसे पीना नहीं
शहद मधुमक्खी न जाने किसलिए ढोती रही
ऐ खुदा तेरी खुदाई का सबब ये भी मिला,
मौत ने काटी फसल और जिंदगी बोती रही।।
.
(अतुल)
मौलिक व…
Added by atul kushwah on January 25, 2015 at 7:30pm — 23 Comments
Added by Samar kabeer on January 25, 2015 at 6:12pm — 19 Comments
परिवर्तन
*******
बून्द की नाराजगी का संज्ञान
सागर ले ही
ज़रूरी नहीं
फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है
प्रकृति प्रदत्त
संज्ञान अगर सागर ले भी ले तो
खुद में कोई परिवर्तन भी करे ये नितांत ज़रूरी नहीं
वैसे हर नाराजगी कोई परिर्वतन ही चाहती हो किसी में
ये भी ज़रूरी नहीं
कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है
कुछ स्वांतः सुखाय
अपने ज़िन्दा होने के सबूत के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 25, 2015 at 10:00am — 25 Comments
‘अजी सुनते हो ---
‘हाँ सुनाओ, ‘
‘वह मिसेज मल्होत्रा की बहू, जिसके फरवरी में बेटा हुआ था I वह बेटा निमोनिया से मर गया और हमारी जो महरिन है इसकी ननद के भी लल्ला हुआ था, वह भी तीन दिन पहले डायरिया से मर गया और अपनी बेटी की सहेली -----‘
‘--- उसका बच्चा भी मर गया होगा I’
‘हां बिलकुल ---- ‘
‘मगर यह स्टैटिक्स तुम मुझे क्यों बता रही हो ?’
‘किसे बताऊँ, एक वह अपनी पोती है I छह महीने की हो गयी, उसे जुकाम तक न हुआ I’
(मौलिक व् अप्रकाशित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 24, 2015 at 9:10pm — 32 Comments
"अरे!! तुम्हारे जैसे गरीब अनाथ के झोपड़े में महात्मा गाँधी की तस्वीर...”
“हाँ! साहब, अभी कुछ दिन पहले ही लोगों ने चौराहे पर इस तस्वीर को लगाकर.. मालायें पहनाई, खूब जोर-शोर से भाषण-बाजी की. फिर इसे सब, वहीं छोड़कर चले गये.. ये वहां बे-सहारा थे, तो इन्हें अपने घर ले आया...”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on January 24, 2015 at 7:33pm — 22 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 6:26pm — 25 Comments
विकट विरल है राह कठिन कदम कदम कुहासा है
खड़ा मुसाफिर मुश्किल में वो बेबस बहुत रूआंसा है
संयम और सहजता से निरंतर नित निज काम करो
शनै शनै पुरजोर प्रयासों से प्रज्ज्वलित इक आशा है
संकल्पों के यज्ञकुंड में श्रमनीर का अर्घ्य दान करो
दिनकर दिलबर रश्क करे जिन्दगी की यह परिभाषा है
अरमानों के बीज रोप कर सींचो रोज पसीने से
छ्टे कुहासे साफ़ डगर स्फुटन अंकुर की अभिलाषा है
@आनंद ०७/०१/२०१५ "मौलिक व…
ContinueAdded by anand murthy on January 24, 2015 at 1:30pm — 9 Comments
तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं…
राही प्रेम पगडंडी पर
क्योँ तूने कदम बढाये हैं
हर कदम पर देते धोखे
छलिया हुस्न के साये हैं
तेरे निश्छल भाव को समझें
किसके पास ये फुर्सत है
पल भर में ये अपने हैं
अगले ही पल पराये हैं
व्यर्थ है बादल भटकन तेरी
प्रेम विहीन ये मरुस्थल है
तुझे पुकारें तुझसे लिपटें
कहाँ वो व्याकुल बाहें हैं
हर और लगा बाजार यहाँ
हर और मुस्कानों के मेले हैं
छद्म वेश में करती घायल
बे-बाण यहाँ…
Added by Sushil Sarna on January 24, 2015 at 12:30pm — 20 Comments
रात के ९ बजे थे |खाना खाकर विनीत बिस्तर पर लेट गया और radio-mirchi on कर दिया- “चूड़ी मजा ना देगी,/कंगन मजा ना/देगा, तेरे बगैर साजन /सावन मजा ना देगा"
तभी खिलखिलाती हुई मुग्धा ने कमरे में घुसकर ध्यान भंग किया –“ चाचा-चाचा, अदिति दीदी कुछ कहना चाहती है
“ हाँ बेटा बोल ,” विनीत ने कहा |
“ चाचा मुझे चाची के चूड़ीदान से कुछ रंग-बिरंगी चूड़ियाँ लेनी है वो सहमते हुए बोली |”
विनीत ने अदिति को देखा, एकबार आलमारी की तरफ देखा जहाँ निम्मा का चुड़ीदान रखा था | कुछ देर चुप…
ContinueAdded by somesh kumar on January 24, 2015 at 11:30am — 14 Comments
" वाह !! बहुत खूब रितेश गुप्ता , तुमने संस्था का नाम ऊँचा किया है । हम सबको तुम पर गर्व है । " पीठ थपथपाकर मोहित सर ने जब शाबाशी दी तो रितेश दर्प से भर उठा ।
" सर , सब आपके मार्ग दर्शन का ही नतीजा है । "
" फिर तो मुझे गुरू दक्षिणा भी मिलना चाहिए तुम से । " मोहित सर की बाँछे खिल उठी ।
" क्या बात करते है सर ...? लाखों रूपयों की फीस के बाद अब यह गुरू दक्षिणा भी ___ ...? "
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Added by kanta roy on January 24, 2015 at 8:00am — 14 Comments
Added by Anurag Singh "rishi" on January 24, 2015 at 12:30am — 8 Comments
2122 1212 22
झूठ ही बन गया है आँचल क्या
धूप लगने लगी है अफ़्ज़ल क्या (अफ़्ज़ल –भला)
अक्ल की बंद खिड़कियाँ खोलो
टाट लगने लगा है मखमल क्या
जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज
दिल में कायम रहेगा ये कल क्या
किस्से कुछ और थे हकीकत और
ये रवायात बदलीं पल-पल क्या
छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर
मच उठी दिल में कोई हलचल क्या
फर्ज़ अपना भुला दिया…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 23, 2015 at 10:16pm — 14 Comments
चादर झीनी देख कबीरा
मैली ओढ़ी देख कबीरा
जीना मरना सब साथ चले
काया साझी देख कबीरा
ईश भगत का रिश्ता ऐसा
भूखा रोटी देख कबीरा
ऊँच नीच का अंतर कैसा
काया माटी देख कबीरा
यम इक राजा मिलना चाहे
आत्मा रानी देख कबीरा
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
आपके सुझाओं व समालोचना की प्रतीक्षा में ......
Added by gumnaam pithoragarhi on January 23, 2015 at 7:29pm — 14 Comments
ठण्ड भयानक पड़ने लगी थी और विभिन्न समाजसेवी संस्थाएं रोज लोगों से अपील कर रही थीं कि सड़क के किनारे रह रहे लोगों को गर्म वस्त्र दान करें | सड़क पर तमाम न्यूज़ चैनल की गाड़ियां घूम रही थीं और इन कार्यक्रमों को दिखा रही थीं |
उस मोहल्ले के आखीर में भी एक भिखारी सड़क पर पड़ा हुआ था | कुछ लोगों ने उसे ऊनी कम्बल इत्यादि दान किये और ये भी उन चैनल्स ने कैमरों में कैद किया लेकिन उसकी हल्की बुदबुदाहट पर किसी ने ध्यान नहीं दिया |
सुबह वो भिखारी मरा पड़ा था | लोग खाने के लिए देना भूल गए थे…
Added by विनय कुमार on January 23, 2015 at 6:00pm — 22 Comments
"आज की प्रलय"
कोहरे का कहर सांझ घिरने के साथ साथ बढ़ता जा रहा था, गंगाजी से उठती ठंडी हवा शरीर को छूरी की तरह काट रही थी। विश्वा को लगने लगा था कि आज की रात रेतीली जमीन पर बिछे चिथड़े भी उसको इस प्रलय से नही बचा पायगें। मानवीय आस तो बाकी थी नही सो विश्वा अपने ईष्ठ देव को ही बार बार याद करने लगा।
"भाई ये बहुत अच्छा हुआ जो सुरज ढलने से पहले संस्कार हो गया ।"
"सही कहा भैयाजी नही तो सारी रात ठंडी में गंगा किनारे ही बितानी पड़ती।"
सामने से गुजरते कुछ लोगो की आवाजे सुनकर…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on January 23, 2015 at 4:30pm — 10 Comments
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो ....
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
नयन आँगन का तुम मधुमास हो
रक्ताभ अधरों की तुम ही प्यास हो
तुम ही सुधि हो मेरे मधु क्षणों की
मेरे एकांत का तुम ही अवसाद हो
नयन पनघट का मिलन पंथ हो
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
इस जीवन की तुम हो परिभाषा
मिलन- ऋतु की तुम अभिलाषा
भ्रमर आसक्ति का मधु पुष्प हो…
Added by Sushil Sarna on January 23, 2015 at 1:06pm — 19 Comments
2122 1221 2212
**********************
रूह प्यासी बहुत घट ये आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो
रूख से जुल्फें हटा चाँदनी रात में
चाँद को आह भरने का मौका न दो
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
सात फेरों की रस्में निभाओ मगर
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो
चाहिए अब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:00am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 23, 2015 at 10:42am — 15 Comments
धर्म के प्रति प्रगाढ़ आस्था के कारण ही सुधा आज घर द्वार सब त्याग गुरू आश्रम चली आई ।
"सुना है गुरूदेव आज रात खास आयोजन करने वाले है । जाने आज किसका भाग्योदय होने वाला है? " आश्रम में सुगबुगाहटें जारी थी ।
लगभग १२ बजे सभा गृह में सब गुरू सेविकायें उपस्थित थी कि सहसा गुरूदेव का आगमन हुआ । पीताम्बर धारण किये हुए, सिर पर मोर मुकुट सजाये हुए आज गुरूदेव कृष्ण रूप में रास के लिए राधा का चयन करने वाले थे ।
कृष्ण रूपी गुरूदेव जब सुधा के सामने ठिठके तो उसका हृदय रो उठा…
Added by kanta roy on January 23, 2015 at 8:30am — 26 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |