1222 1222 1222 1222
गुलाबों से किताबों तक समाईं धूल की परतें
जरा देखो तो अब माथे पे आईं धूल की परतें!!
ये किस आगोश ने सारे शहर को घेर के रक्खा
घना है कोहरा या फिर हैं छाईं धूल की परतें?
गया इक वक़्त वो आया न तो सन्देश ही आया
हमीं ने रिश्ते नातों पर चढ़ाईं धूल की परतें
गिला इस बात का उनसे करें भी तो करें कैसे
गमे दिल ने मेरे लब पर सजाईं धूल की परतें
बड़े ही फख्र से छोड़ी थीं अपने गाँव की गलियां
मगर 'ब्रज'…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 21, 2018 at 7:00pm — 23 Comments
हे भारत के वीर युवाओं,
कर लो नमन माँ सरस्वती को,
दिखा दो ताकत दुनियाँ को,
कितनी शक्ति है तेरे कलमों में!!
कोई बाँट ना पाये हमको,
ऐसा इतिहास लिखो युवाओं,
हर घर में वीर जन्मा है,
बस कोई उन्हें जगा दो!!
तलवार नहीं अपनी-अपनी कलम उठाओ,
देश में ऐसा क्रान्ति लाओ,
लूटेरे और भ्रष्टाचारियों को,
अपनी कलम की ताकत दिखा दो!!
कलम की ताकत को समझ लो युवाओं,
ये बिन चिंगारी के भी आग जलाती है,
देश के गद्दारों और दुश्मनों को, …
Added by Sushil Kumar Verma on January 21, 2018 at 12:00pm — 1 Comment
हृदय की फुलवारी में
राग-बसंती छिड़ गया
अंग-प्रत्यंग प्रफुल्लित
आनंदित हो गया
चहुँदिश दिशा में
छा गया यौवन
लग गया बाग़ों में फिर से
सरसों , जूही , केतकी का मेला
चटखने लगी कमसिन कलियाँ
उन्हें भी प्रेम निमंत्रण मिलने लगा
मतवाले भँवरों का कारवाँ चला
देखो, कामदेव का जादू फिर चला ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on January 21, 2018 at 10:06am — 19 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2018 at 10:35pm — 7 Comments
लघुकथा - गवाह –
नेताजी की हवेली में काम करने वाली चंपा की नाबालिग लड़की रूपा की नेताजी के लड़के ने ज़बरन इज्जत लूट ली। नेताजी ने साम, दाम, दंड और भेद सब हथकंडे अपना लिये, लेकिन चंपा किसी भी तरह मामले को रफ़ा दफ़ा करने को राजी नहीं हुयी।
आखिरकार नेताजी अपनी औक़ात पर आ गये। चंपा को बोल दिया,"जा जो तेरी मर्जी हो कर ले"।
चंपा भी इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। चीख चीख कर सारी बस्ती इकट्ठा कर ली। चंपा के दो चार पुराने शुभ चिंतकों ने मशविरा दे डाला कि सब जुलूस लेकर थाने चलो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 20, 2018 at 8:54pm — 8 Comments
फ़ाइलातुन फ़ईलातुन फ़ईलातुन फ़ेलुन
तेरे नज़दीक ही हर वक़्त भटकता क्यों हूँ
तू बता फूल के जैसा मैं महकता क्यों हूँ
मैं न रातों का हूँ जुगनू न कोई तारा पर
उसकी आँखों में मगर फिर भी चमकता क्यों हूँ
इस पहेली का कोई हल तो बताओ यारो
हिज्र की रातों में आतिश सा दहकता क्यों हूँ
घर बनाया है तेरे दिल में उसी दिन से सनम
सारी दुनिया की निगाहों में खटकता क्यों हूँ
हासिदों को बड़ी तश्वीश है इसकी…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on January 20, 2018 at 11:21am — 8 Comments
वो कहते हैं मेरी पहचान को मिटटी में मिला डाला
बह्र-1222-1222-1222-1222
वो कहतें हैं मेरी पहचान को मिटटी में मिला डाला।।
मैं कहता हूँ पुरानी थी नया रिश्ता बना डाला।।
न भूला कर की रिश्ते में मैं तेरा बाप हूँ बेटा।
कहाँ भूला यही तो सोंच उल्फत को भुना डाला।।
मैं कहता हूँ मेरी पहचान इक दिन आप की होगी।
वो बोले तुझ से कितने बीज बो कर के उगा डाला ।।
मुझे अब तक यकीं होता न उल्फत की मिसालों पर।
मुहब्बत नाम है किसका उसे किसका बना…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 19, 2018 at 7:29pm — 2 Comments
बह्र- 122-122-122-122
मुझे है भला क्या कमी जिंदगी से।।
है रिश्ता मेरा तीरगी ,रौशनी से।।
मुझे बज्म इतना न पहचां रही है।
है पहचान मेरी-तेरी माशुकी से।।
कई बार गुजरे हैं तेरे शह्र से।
तेरी आशिक़ी से तेरी बेरुख़ी से।।
मुहब्बत के कुछ ऐसे क़िस्से सुने हैं।
की डर लगता है आज की आशिक़ी से।।
दिये की जरुरत किसे अब नही है?
बता किसकी कब है बनी तीरगी से??
पता मुझको उस शख्स का भी जरा…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 19, 2018 at 5:24pm — 5 Comments
2122 2122 212
बेखुदी की जिंदगी है आजकल ।
खूब सस्ता आदमी है आजकल ।।
जी रहे मजबूरियों में लोग सब।
महफिलों में ख़ामुशी है आजकल ।।
लग रही दूकान अब इंसाफ की ।
हर तरफ़ कुछ ज़्यादती है आजकल।।
छोड़ कर तन्हा मुझे मत जाइए ।
कुछ जरूरत आपकी है आजकल ।।
अब नहीं मिलता कोई मुझसे यहां।
बर्फ रिश्तों पर जमी है…
Added by Naveen Mani Tripathi on January 19, 2018 at 1:07pm — 5 Comments
ग़ज़ल ( निकल कर तो आओ कभी रोशनी में )
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(फऊलन-फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चलाओ न तीरे नज़र तीरगी में |
निकल कर तो आओ कभी रोशनी में |
कमी दर्दे दिल में तो अब भी नहीं है
मज़ा आ रहा है तुम्हें दिल लगी में |
मेरी ही नहीं है यह सबकी ज़ुबा पर
लुटे क़ाफ़िले सब तेरी रहबरी में |
करूँ फ़ख़्र मैं क्यूँ न क़िस्मत पे अपनी
दिवाना हुआ हूँ तुम्हारी गली में |
यूँ…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 9:59pm — 10 Comments
प्रिय शेखर,
दोस्त! तुम मेरे सब से अच्छे दोस्त रहे हो, अब तुमसे क्या छुपाऊं? मैं इन दिनों बहुत परेशान हूँ, तुम्हें तो पता है मैं क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करता आया हूँ| मेरी और तुम्हारी जॉब एक साथ ही लगी थी, कितने खुश थे न हम दोनों! अच्छा पैकेज पाकर ,मैं हवा में उड़ने लगा,तुमने कई बार मुझे टोका भी; पर मैं अपनी ही उड़ान भरता रहा, मैं यह भूल गया था कि प्राइवेट सेक्टर में जॉब; बरक़रार रहे जरुरी नहीं ,और ऐसा ही हुआ।सात महीनों से जॉब के लिए दर-दर भटक रहा हूँ, और दूसरी तरफ़ बैंक के क़र्ज़ तले दबता जा…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 18, 2018 at 9:58pm — 8 Comments
ग़ज़ल (शिकायत भला हम करें क्या किसी से )
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(फऊलन- फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चुने हैं ग़मे यार अपनी ख़ुशी से |
शिकायत भला हम करें क्या किसी से |
मिले सिर्फ़ धोके ही अपनों से हम को
वफ़ा अब करेंगे किसी अजनबी से |
खिज़ाओं ख़बरदार उनकी है आमद
सदा फूल खिलते हैं जिनकी हँसी से |
मिला कर नज़र से नज़र यह बताएँ
हुआ दिल ये बर्बाद किस की कमी से |
कभी दोस्तों…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 9:33pm — 10 Comments
गीत
मात्र भार १६ १६
बहला रहा रोज इस दिल को,
किस्से बचपन के कह कर के.
तेरी महकी महकी यादें,
मैंने रख लीं हैं तह कर के.
प्रथम दृष्टि का वह सम्मोहन,
भूल नहीं अब तक मैं पाया.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on January 18, 2018 at 8:30pm — 2 Comments
चाँद से पूछें.....
आखिर
ख़्वाब टूटने का सबब
क्या है
चलो
चाँद से पूछें
करते हैं
जो दिल की मुरादें पूरी
उन तारों का पता
चलो
चाँद से पूछें
मुहब्बत में
अश्कों का निज़ाम
किसने बनाया
चलो
चाँद से पूछें
धड़कनों के पैग़ाम
क्यूँ हुए रुसवा
चलो
चाँद से पूछें
क्यूँ पूनम का अंजाम
बना अमावस
चलो
चाँद से पूछें
पेशानी पे मुहब्बत की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2018 at 1:18pm — 4 Comments
कभी उनकी खूब चलती थी।कोर्ट-कचहरी सब वही थे।और सरकार तो थे ही।सचिव लोग गाहे-बेगाहे जरूरी फाइलें लेकर उनके आवास जाते,तो झिड़की मिलती।टका-सा मुँह लिए लौट आते।अपने नसीब को रोते कि कहाँ से कहाँ कलक्टर हुए,अर्दली ही रहते तो बेहतर होता।चैता के ताल पर 'रे ठीक से नाच बुरबक' तो न सुनना पड़ता। सुरती ठोंककर हाकिम को तो नहीं खिलानी पड़ती। उन्हें अपने लिए 'हाकिम,साहिब' जैसे शब्द गाली लगने लगे थे।वैसे अब हाकिम-सरकार के लोग इन लोगों को अर्दली जैसे ही समझते थे,आर्डर देते थे।
फिर समय ने करवट बदली। साहब जी…
Added by Manan Kumar singh on January 18, 2018 at 9:45am — 3 Comments
1212 1122 1212 22
सिला दिया है मेरे दिल में कुछ उतर के मुझे ।
जला गया जो गली से अभी गुजर के मुझे ।।
किया हवन तो जला हाथ इस कदर अपना ।
मिले हैं दर्द पुराने सभी उभर के मुझे ।।
तमाम जुल्म सहे रोज आजमाइस में ।
चुनौतियों से मिली जिंदगी निखर के मुझे ।।
अजीब दौर है किस किस की आरजू देखूँ ।
बुला रही है क़ज़ा भी यहाँ सँवर के मुझे ।।
मिटा रहे हैं…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on January 17, 2018 at 6:26pm — 1 Comment
1222 1222 122
बहाना ही बहाना चल रहा है
बहाने पर ज़माना चल रहा है
बदलना रंग है फ़ितरत जहाँ की
अटल सच पर दिवाना चल रहा है
नही गम में हँसा जाता है फिर भी
अबस इक मुस्कुराना चल रहा है
निवाला बन गया अपमान मेरा
ये कैसा आबो दाना चल रहा है
वफा मेरी मुनासिब है तो फिर क्यों
अगन सेआजमाना चल रहा है
नहीं रिश्ता है पहले-सा हमारा
मग़र मिलना-मिलाना चल रहा है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 17, 2018 at 6:16pm — 8 Comments
बस आज की रात निकल जाए किसी तरह से, फिर सोचेंगे, यही चल रहा था उसके दिमाग में| दिन तो किसी तरह कट गया लेकिन रात तो जैसे हर अनदेखा और अनसोचा डर सामने लेकर आ खड़ी होती है और आज की रात तो जैसे अपनी पूरी भयावहता के साथ बीत रही थी| डॉक्टर की दी हुई हिदायत कि आज की रात बहुत भारी है, उसे रह रह कर डरा देती थी|
कितनी बार उसने दबे स्वर में मना भी किया था कि जिंदगी के प्रति इतने लापरवाह भी मत रहो| लेकिन राजन ने कभी सुनी थी उसकी, बस एक बड़े ठहाके में उसकी हर बात उड़ा देता| "जिंदगी उनका वरण करती है जो…
ContinueAdded by विनय कुमार on January 17, 2018 at 3:00pm — 4 Comments
काफिया : अम रदीफ़: देखते हैं
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं
अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |
बहुत है दुखी कौम गम देखते हैं
सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |
अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर
मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |
दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या
वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |
किया देश हित काम जनता ही’ देखे
विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 17, 2018 at 11:30am — 2 Comments
221 1221 1221 122
बुझते हुए से आज चराग़ों की तरह है ।
जो शख्स मेरे चाँद सितारों की तरह है ।।
करता है वही कत्ल मिरे दिल का सरेआम ।
मिलता मुझे जो आदमी अपनों की तरह है ।।
रह रह वो कई बार मुझे देखते हैं अब ।
अंदाज मुहब्बत के इशारों की तरह है ।।
कुछ रोज से चेहरे की तबस्सुम पे फिदा वो ।
किसने कहा वो आज भी गैरों की तरह है ।।
यूँ न बिखर जाए कहीं टूट के…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on January 16, 2018 at 9:06pm — 2 Comments
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