हर मेंढक अपनी पसंद का कुँआँ खोजता है
मिल जाने पर उसे ही दुनिया समझने लगता है
मेढक मादा को आकर्षित करने के लिए
जोर जोर से टर्राता है
पर यह पूरा सच नहीं है
वो जोर जोर से टर्राकर
बाकी मेंढकों को अपनी ताकत का अहसास भी दिलाता है
और बाकी मेंढकों तक ये संदेश पहुँचाता है
कि उसके कुँएँ में उसकी अधीनता स्वीकार करने वाले मेंढक ही आ सकते हैं
गिरते हुए जलस्तर के कारण
कुँओं का अस्तित्व संकट में है
और संकट में है…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 9, 2016 at 8:18pm — 6 Comments
Added by Rahila on January 8, 2016 at 10:37pm — 14 Comments
बचपन से ही मेरी माँ ने मुझे फ्राक की जगह पेंट शर्ट पहनाया, मेरा राजा बेटा बड़ा बहादुर है,सुन सुन बड़ी हुई। पर आज क्यों मेरा नाम ले लेकर रो रही हैं।
"क्या इसी दिन के लिए पढाया लिखाया अपने पैरों पर खड़ा किया?"
"माँ यह क्या घिसा पिटा डायलॉग,मैं ऐसा क्या गलत कर रही हूँ? मैं नहीं प्रदर्शित कर सकती अपने आप को ट्रे लेकर चाय के कपों के समान।"
"तो कोई अपने मन का लड़का ढूंढ ले,तुझे इतनी आजादी तो दी है।"
"क्या लडका ढूंढ लूँ,सब लिजलिजे, ढुलमुल।एक फटकार में पेंट गीला कर दें।"
"तो…
Added by Pawan Jain on January 8, 2016 at 1:30pm — 11 Comments
मैं स्वछन्द घूमती रहती
जिसको चाहे उसे ले जाती
भनक भी न उसे लगाती
दुखो से मुक्ति झट दे जाती
मृत्यु मैं जो कहलाती
जीवन का दस्तूर बताती
लालसा को परिपूर्ण कराती
बर्बरस्ता को यूँ मिटाती
पूर्ण आनंद का अनुभव कराती
मृत्यु मैं जो कहलाती
खुले क्षितिज में तुम्हे घुमाती
जीवन- मरण का भेद कराती
रिस्तो का तुम्हे बोध करा
सत्यता की दुनिया दिखाती
मृत्यु मैं जो कहलाती
फल बुराई का तुझे दिखाती
अंत समय जब मैं…
Added by PHOOL SINGH on January 8, 2016 at 11:30am — 3 Comments
जैसे ही कई वर्ष पुरानी तलवार को उस वीर ने म्यान से बाहर खींचा तैसे ही उस जंग लगी तलवार के सोये अरमान फिर से जाग उठेऔर उसने चाहा कि उसे फिर एक बार पहले सा सम्मान,प्रेम प्राप्त हो जो पहले उसे राजा के हाथ में आने के बाद मिलता था। उसे याद हो आये वो दिन जब युद्ध में सिपाहियों को पाट पाट कर वो अचानक ही अपने राजा की प्रधान प्रेयसी बन जाती थी। उसके मुख पर एक कुटिल मुस्कुराहट छाई व मन में एक आकांक्षा जागी वही युद्ध, वही सम्मान! काश ! वीर ने उसे बुझे मन से देखा व सान धरने वाले के पास ले गया। उसने…
ContinueAdded by Mamta on January 8, 2016 at 10:30am — 11 Comments
देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।
हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.
तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे
तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।
दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक
घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।
दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम
पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।
वो समन्दर था , मगर भटका नहीं
हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।
दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब
छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।
सच्चे इक प्यार के मोती के लिये
हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे…
Added by ajay sharma on January 8, 2016 at 12:05am — 6 Comments
दिल के अहसासों को ...
मैं नहीं जानता
वो किसकी दुआ थी
मैं नहीं जानता
वो किसकी सदा थी
मैं तो ये भी नहीं जानता
कब उसके लम्स
मेरे ज़िस्म पर
अपनी पहचान छोड़ गए
शायद वो रेशमी इज़हार
खामोशी की कबा में ग़ुम थे
कब साँझ ने
तारीक का लिबास पहन लिया
बस ! न जाने कब
चुपके से इक ख्याल
हकीकत बन गया
न पलक कुछ बोली
न लबों पे कोई जुंबिश हुई
दिल के अहसासों को
इक दूजे की हथेलियों ने
इक दूजे…
Added by Sushil Sarna on January 7, 2016 at 7:30pm — 6 Comments
मृग छाया सी प्रीत बस, दे समीप्य का भास
मधुर मोहिनी बन करे, बैरी खुद की श्वास
बाह्य प्राप्ति से पूर्णता, मिलती कब पर्याप्त
मिले न कुछ वो भी मिटे, जो भी हो निज व्याप्त
नहीं एक भी वायदा, नहीं बंध से युक्त
प्रीत प्रखर निभती तभी, मन हों जब उन्मुक्त
प्रीत न कलुषित कर कभी, आरोपित कर चाह
मन इच्छित हर कामना, लीले सलिल प्रवाह
अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही…
Added by Dr.Prachi Singh on January 7, 2016 at 1:00pm — 11 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2016 at 9:30am — 8 Comments
शिकन भरा लिबास......
ये सुर्ख सी आँखें
बिखरी हुई जुल्फें
शिकन भरा लिबास देख
आज अपने ही दर्पण में
मैं लुटी नज़र आती हूँ //
हर शब की तरह
जो आज भी
इस जिस्म को रूहानी ज़ख़्म दे गया
फिर उसी के साथ बेवजह
जीने की ज़िद कर जाती हूँ //
जानती हूँ
वो फिर कुछ पल के लिए आएगा
अपने दिए ज़ख्मों पे
झूठे वादों का मरहम लगाएगा
मैं उसकी बातों में आजाऊंगी
भूल जाऊँगी दर्द ज़ख्मों का
और अपना अस्तित्व भी भूल जाऊँगी //
झूठा ही…
Added by Sushil Sarna on January 6, 2016 at 4:29pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 6, 2016 at 12:27am — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 5, 2016 at 10:30pm — 18 Comments
Added by Dr. Rakesh Joshi on January 5, 2016 at 9:26pm — 12 Comments
ज़िन्दगी कार के स्टिअरिंग से बोली - "भाई, तुम भी ग़ज़ब करते हो ! पल भर में इंसान के सफ़र को नया रुख़ दे देते हो , इस लोक से उस लोक पहुंचा देते हो !"
यह सुनकर मौत बोली - "इसमें उसका क्या क्या कसूर? इंसान की बुद्धि को 'स्टिअर' तो मैं करती हूँ! मनचाही दिशा में मोड़ देती हूँ इंसानी बुद्धि को अपनी 'स्टिअरिंग' से! जब अपने पर आती हूँ न, इंसान के सारे ज्ञान और अनुभव का घमंड चूर करके पल भर में इंसान पर 'बुद्धि' या 'मति' वाले सारे मुहावरे और लोकोक्तियां लागू कर देती हूँ! चाहे वह शादी में शामिल…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 5, 2016 at 7:00pm — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 5, 2016 at 2:32am — 13 Comments
आपकी तालीम का हर अर्थ कुछ दोहरा तो है
आकाश पर बादल नहीं पर हर तरफ कोहरा तो है
बादशाहों की हमेशा ज़िन्दगी महफूज़ है
लड़ने-मरने के लिए शतरंज में मोहरा तो है
इस महल में अब खज़ाना तो नहीं बाकी रहा
द्वार पर दरबान है, संगीन का पहरा तो है
शोर करना हर नदी की चाहे हो आदत सही
ये समंदर हर नदी से आज भी गहरा तो है
तुम क़सीदे खूब पढ़ लो पर यहाँ हर आदमी
हो न गूंगा आज लेकिन, आज भी बहरा तो…
ContinueAdded by Dr. Rakesh Joshi on January 4, 2016 at 10:30pm — 15 Comments
कितना अच्छा हो ....
अभी-अभी
हवाओं के थपेड़ों से बजते
वातायन के पटों ने
तिमिर में सुप्त चुप्पी से
चुपके से कुछ कहा //
अभी-अभी
रिमझिम फुहारों ने
चंचल स्मृति की
असीम गहराईयों संग
अंगड़ाई ली //
अभी-अभी
एक रूठा पल
घोर निस्तब्धता को
अपनी निःशब्द श्वासों से
जीवित कर गया //
अभी-अभी
एक तारा टूट कर
किसी की झोली
सपनों से भर गया //
अभी-अभी से लिपट
कभी पलक…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2016 at 7:48pm — 12 Comments
२१२२
ज़िन्दगी भर
मौत का डर
प्यार तो है
ढाई आँखर
तोड़ पिंजरा
आजमा पर
ये सियासत
एक अजगर
होश जख्मी
हुस्न खंजर
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on January 4, 2016 at 7:30pm — 7 Comments
सत्तर वर्षीय राजेश जी के इकलौते बेटे किशोर की मृत्यु पिछले साल एक कार दुर्घटना में हो गयी थी!पत्नी की मृत्यु किशोर की शादी से पहले ही हो चुकी थी! अब परिवार के नाम पर राजेश जी और उनकी जवान पुत्र बधु सीमा थी!वह भी बैंक में कार्यरत थी! जवान किशोर की मौत के सदमे ने दौनों को लगभग मूक बना दिया था!दौनों में से कोई किसी से बात चीत नहीं करते थे!वश यंत्र वत अपने अपने कार्य करते रहते थे! किशोर की बरसी की रस्म पूरी होते ही राजेश जी ने सीमा को समझाया,"सीमा तुम पढी लिखी, सुंदर, जवान और कामकाजी महिला हो!…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 4, 2016 at 6:30pm — 16 Comments
- गजल के चार मिसरे -
घर से जब भी निकलूं मां हमेशा मेरे थैले में
मैं जो कुछ भूल जाता हूं वो चीजें डाल देती है,
न जाने कौन सी जादूगरी है मां के हाथों में
वो सर पर हाथ रखकर सौ बलाएं टाल देती है।।
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- मुक्तक -
सुहानी शाम हो जब खूबसूरत, याद रहती है
हर—इक इंसान को अपनी जरूरत याद रहती है
मोहब्बत में कसम—वादे—वफा हम भूल सकते हैं,
मगर ताउम्र हमको एक सूरत याद रहती है।।
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मौलिक व अप्रकाशित (अतुल कुशवाह)
Added by atul kushwah on January 4, 2016 at 5:30pm — 2 Comments
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