मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।
पंक घृणा के फेंककर, कहलाये भगवान।
इतनी सी इस बात को, समझे ना इंसान।।
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
रहे हृदय में आस्था, श्रृद्धा में हो ईश।
बस उसके ही नाम पर, नत रखना तू शीश।।
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on February 13, 2015 at 8:00am — 9 Comments
मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,
वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,
जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।
मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां
बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,
बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया
देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,
दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे
रोशनी साथ मेरा निभाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...
प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी
एक सागर को क्या प्यास होगी भला,
हां अगर तुम…
Added by atul kushwah on February 12, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
धूमिल सपने हुए हमारे
रंगहीन सी
प्रत्याशाएँ
सोये-जागे सन्दर्भों की
फैली हैं
मन पर शाखाएँ
शंकायें तो रक्तबीज सी
समाधान पर भी
संशय है
अपने पैरों की आहट में
छिपा हुआ अन्जाना
भय है
किस-किसका अभिनन्दन कर लें
किस-किसका हम
शोक मनाएँ
सांस-सांस में दर्प निहित है
कुछ होने कुछ
अनहोने का
कुछ पाने की उग्र लालसा
लेकिन भय
सब कुछ खोने का
अनगिन…
Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 12, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
मेरी पलकों को......एक रचना
मेरी पलकों को अपने ख़्वाबों की वजह दे दो
अपनी साँसों में मेरे जज़्बातों को जगह दे दो
जिसकी नमी तुम ये दामन सजाये बैठी हो
उसके रूठे सवालों को जवाबों में जगह दे दो
बंद हुआ चाहती हैं अब थकी हुई पलकें मेरी
अपनी तन्हाई में रूहानी रातों को जगह दे दो
ये ज़िंदगी तो गुज़र जाएगी तेरे हिज्र के सहारे
इन हाथों में कुछ रूठे हुए वादों को जगह दे दो
कल का वादा न करो कि अब न…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 12, 2015 at 8:00pm — 24 Comments
कुष्ट रोग से ग्रसित बिधवा बुढ़िया अकेली ही रहती थी. इकलौता बेटा शादी कर पता नहीं कहाँ जा बसा था. किसी ने बताया कि रोग से मुक्ति चाहिए हो तो जुम्मे के रोज मजार वाले बाबा के पास जाओ. बुढ़िया अगले ही जुम्मे को मजार पर पहुँच गयी । वहाँ झाड़-फूंक चल रही थी. बाबा के एक शागिर्द ने चढ़ावा लिया और घर-परिवार, रिश्तेदारों आदि के बारे में पूछताछ कर एक तरफ बिठा दिया जहाँ पहले से उस जैसे अन्य मरीज इन्तजार कर रहे थे. खैर कुछ देर इन्तजार के पश्चात उसकी बारी आयी ।
बाबा की…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 4:00pm — 25 Comments
आधी रात
चांदनी और छाँव
तस्करों का हरा-हरा गाँव
जालिमो में कुछ अधेड़
कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़
कुछ घर थे गरीबों के भी
दांतों के बीच जीभों के भी
सचमुच बदनसीबों के भी
आधी रात
चांदनी और छाँव
सन्नाटे में डरा-डरा गाँव
एक गरीब बुढ़िया के द्वार
तेजी से आया इक घुड़सवार
बुढिया की बेटी को…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 10:54am — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
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ठसक तेरी मेरी गैरत के आपस में उलझने से
मुहब्बत लुट गयी अपनी दिलों में जह्र पलने से
..........
दगाबाजी से अच्छा तो अलग होना मुनासिब था
बफाओं के बिना क्या है सफर में साथ चलने से
...........
मेरा घर अपने हाथों से कभी मैंने जलाया था
नहीं लगता मुझे अब डर किसी का घर भी जलने से
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तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने…
Added by umesh katara on February 12, 2015 at 10:48am — 16 Comments
दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो
दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो
लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो
क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?
क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो
इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का
सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो
घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया
आँसुयों सा ये सफ़र कर…
Added by ajay sharma on February 12, 2015 at 12:30am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 11, 2015 at 9:17pm — 20 Comments
मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा
जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा
चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में
उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा
आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में
उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा
इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन
आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा
गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं
चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा
खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन
जेठ दुपहरी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 11:29am — 24 Comments
221 2121 1221 2 2
रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं --
रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं
शम्सो क़मर - चाँद सूरज
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं
रो ले अगर, तेरा बिना रोये गुज़र नहीं
लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं
सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना
मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं
मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 8:30am — 29 Comments
22--22--22--22--22--22--22--2 |
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हँसते - हँसते रो लेता हूँ, रोते - रोते हँसता हूँ |
कोई मुझसे ये मत पूछो आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ |
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आईने-सी… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2015 at 11:00pm — 45 Comments
Added by Samar kabeer on February 10, 2015 at 10:42pm — 11 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on February 10, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on February 10, 2015 at 6:05pm — 11 Comments
॥ मै ईश्वर नहीं ॥
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मै ईश्वर नहीं
किसी ईश्वरीय व्यवहार की उम्मीदें न लगायें
मै तो क्या कोई भी चाहे तो ईश्वर नहीं हो सकता
बस दूसरों में ईश्वरीय गुण खोजने में लगे रहते हैं
हम , आप , सब
इसलिये, आज
ये ऐलान है मेरा ,
मुझमें केवल इंसानी गुण ही हैं
अच्छों से उनसे अधिक अच्छा
बुरों से भरसक बुरा
उनके व्यवहार के प्रत्युत्तर में भेज रहा हूँ
कुछ दिल से निकली मौन गालियाँ
कुछ आत्मा से निकली बद…
Added by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:00am — 21 Comments
Added by दिनेश कुमार on February 9, 2015 at 12:40pm — 33 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2015 at 11:37am — 17 Comments
सुबह शाम
दफ्तर काम
ढलता सूरज
उगता चाँद
रात, तुम्हारी याद
आखों से बरसात !!
कभी भूख
कभी प्यास
कभी हर्ष
कभी विषाद
तन्हाई, रात वीरान
सुलगते हुए अरमान !!
तन्हा सफर
स्ट्रीट लाईट
पाखी जलता
मन मचलता
प्यास, बैचैन करवटें
बिस्तर पर सिलवटें !!
उगता सूरज
आँखें लाल
वही सवाल
वही मदहोशी
गुम, खुद में कहीं
नहीं सुध किसी चीज़ की !!
फिर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 9, 2015 at 10:21am — 26 Comments
अब तक आदित्य को लगता था कि पति-पत्नी क रिश्ते में पति ज्यादा अहम होता है | उसे ज्यादा तवज्जो, मान सम्मान मिलना चाहिए | शायद इसमें उसका कोई दोष भी नही था जिस समाज में वह पला-बढ़ा वह एक पितृ-सत्तात्मक समाज है जहाँ पिता भाई व पति होना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है |माँ-बहन व पत्नी ये हमेशा निचले पायदान पर ही रही हैं, बेशक वो समाजिक तौर पर कितनी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें |
बालक के जन्म लेने पर उसके स्वागत में उत्सव और कन्या जन्म पर उदासी |बालक को हर चीज़ में तरजीह और आज़ादी जबकि…
ContinueAdded by somesh kumar on February 8, 2015 at 11:30pm — 10 Comments
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