मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़अल
221 1221 1221 12
पाना जो शिखर हो तो मेरे साथ चलो
ये अज़्म अगर हो तो मेरे साथ चलो
दीवार के उस पार भी जो देख सके
वो तेज़ नज़र हो तो मेरे साथ चलो
होती है ग़रीबों की वहाँ दाद रसी
तुम ख़ाक बसर हो तो मेरे साथ चलो
पत्थर पे खिलाना है वहाँ हमको कँवल
आता ये हुनर हो तो मेरे साथ चलो
हर शख़्स वहाँ कड़वा…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 6, 2019 at 5:55pm — 27 Comments
1212 1222 1212
हमारे वार से जब अरि दहल गए
क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए
ख़बर ख़बीस के मरने की क्या मिली
वतन में कईयों के आँसू निकल गए
वो बिलबिला उठे हैं जाने क्यूँ भला
जो लोग देश को वर्षों हैं छल गए
नसीब-ए-मुल्क़ पे उँगली उठाए हैं
सुकून देश का जो खुद निगल गए
मिलेगा दण्ड ए दुश्मन ज़रु'र
वो और ही थे, जो तुझ पर पिघल गए
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 5, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत
डरे फ़िराक़-ओ-ग़मों से उसको न इश्क़ फरमाने की ज़रूरत
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सफ़र मुहब्बत की मंजिलों का हुज़ूर होता कभी न आसाँ
यहाँ न साहिल का कुछ पता है न तय सफ़र की है कोई मुद्दत
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न जाने कितने हैं इम्तिहाँ और क़दम क़दम पर बिछे हैं कांटे
रह-ए-मुहब्बत पे है जो चलना तो दिल में रक्खें ज़रा सी हिम्मत
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रक़ीब गर मिल गया कोई तो बढ़ेंगी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 5, 2019 at 10:30am — 4 Comments
परिचय
मेला प्रांगण में आयोजित बारहवाँ साहित्य सम्मेलन में देशभर के साहित्यकारों का जमावड़ा लगा हुआ था,जिसमें माननीय राज्यपाल के करकमलों से पुस्तक का विमोचन किया जाना था.
आगंतुकों में शहर के प्रतिष्ठित,मनोहर बाबू भी विशिष्ठजन की पंक्ति मंं विराजमान थे.शीघ्र ही मंच पर राज्यपाल की उपस्थित से सन्नाटा खिंच गया.औपचारिकताओं के पश्चात,जिस लेखक की किताब ‘मेरा परिचय’का अनुमोदन किया जाना था,उसे संबोधित कर मंच पर आने का आग्रह किया गया.तो सभी की उत्सुकता में एकटक निगाहें मंचासीन होने वाले के…
Added by babitagupta on March 4, 2019 at 10:45pm — 7 Comments
ग़ज़ल (जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा से)
(मफाई लुन _मफाई लुन _फ ऊलन)
जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा सेl
लगा बैठा हूँ दिल उस दिलरुबा से l
वो बिन मांगे ही मुझको मिल गए हैं
करूँ कोई दुआ अब क्या ख़ुदा से l
झुका मुंसिफ़ भी ज़र के आगे वर्ना
बरी होता नहीं क़ातिल सज़ा से l
परायों का करूँ मैं कैसे शिकवा
मुझे लूटा है अपनों ने दगा से l
ये है फिरक़ा परस्तों की ही साज़िश
बुझा कब दीप उलफत का हवा से…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2019 at 7:49pm — 8 Comments
महाशिवरात्रि की शुभकामनाओं सहित कुछ
- कह मुकरिंयाँ-
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1-
उसे कहें सब औघड़दानी,
फिर भी मैं उसकी दीवानी,
बड़ा निराला उसका वेश,
क्या सखि साजन? नहीं महेश !!
2-
खाता है वह भाँग धतूरा,
फक्कड़नाथ लगे वह पूरा,
पर मेरा मन उस पर डोले,
क्या सखि साजन ? ना बम भोले !!
3-
लोग कहें वह पीता भंग,
मुझ पर चढ़ा उसी का रंग,
मेरा मन उस पर ही डोले,
क्या सखि साजन ? ना बम भोले !!
4-
भस्म रमाता वह …
Added by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 2:00pm — 6 Comments
2122 1212 22
खूब सूरत गुनाह कर बैठे ।
हुस्न पर हम निगाह कर बैठे ।।
आप गुजरे गली से जब उनके ।
सारी बस्ती तबाह कर बैठे ।।
कुछ असर हो गया जमाने का ।
ज़ुल्फ़ वो भी सियाह कर बैठे ।।
देख कर जो गए थे गुलशन को ।
आज फूलों की चाह कर बैठे ।।
जख्म दिल का अभी हरा है क्या ।
आप फिर क्यों कराह कर बैठे ।।
किस तरह से जलाएं मेरा घर ।
लोग मुझसे सलाह कर बैठे ।।
लोग नफरत की इस सियासत…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 4, 2019 at 1:00pm — 11 Comments
अहसास होगा याद अगर करते हैं।।
आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।
इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।
हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।
मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।
जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।
ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।
जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
22 22 22 22 22 2
नमक मसाले से बनती तरकारी है
सच मानों यह असली दुनियादारी है।
देख सलीका नकली बातें करने का
असली पर ही पड़ जाता कुछ भारी है।
छेदों से ही जिसकी है औक़ात यहाँ
छलनी ही समझाती, क्या खुद्दारी है?
होते हों कितने भी पहलू बातों के
हम समझेंगे जितनी अक्ल हमारी है।
तुम मानों जो तुमको अच्छा है लगता
हम मानेंगे बात जो हमको प्यारी है ।
आज लबादे में लिपटे अल्फ़ाज़ सभी
जिनको सुनना जनता की…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 4, 2019 at 9:00am — 4 Comments
न गुनगुनाना न बोल पड़ना,
अभी अधर पर सघन हैं पहरे।
अगर तिमिर को सुबह कहोगे
तभी सुरक्षित सदा रहोगे
अभी व्यथा को व्यथा न कहना
कथा कहो या कि मौन रहना
न बात कहना निशब्द रहना
सुकर्ण सारे हुए हैं बहरे।
न तार छेड़ो सितार के तुम
बनो न भागी विचार के तुम
हवा बहे जिस दिशा बहो तुम
स्वतंत्र मन को विदा कहो तुम।
यही समय की पुकार सुन लो
सवाल सारे दबा दो गहरे।
मशाल रखना गुनाह घोषित
वहाँ करें कौन दीप पोषित।
प्रकाश की हर…
Added by मिथिलेश वामनकर on March 4, 2019 at 3:50am — 13 Comments
2122 2122 2122 212
मीडिया भारत का या तो वायरस यक बन गया
दीमकों के साथ मिलकर या के दीमक बन गया
मीडिया का काम था जनता की ख़ातिर वो लड़े
किन्तु वो सत्ता के उद्देश्यों का पोषक बन गया
दोस्तों टी वी समाचारों का चैनल त्यागिए
क्योंकि उनके वास्ते हर दर्द नाटक बन गया
क्या दिखाना है, नहीं क्या क्या दिखाना चाहिए
कुछ न, जाने मीडिया, सो अब ये घातक बन गया
ज़ह्र भर कर शब्द में, वो वार जिह्वा से…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 3, 2019 at 10:00pm — 9 Comments
अपने दिल के टुकड़े को अपने सीने से अचानक चिपटे देख उसने कहा -"स्वागत-अभिनंदन, ख़ैर-मक़्दम बहादुर, मेरे लख़्ते-जिगर!"
अपने ही भू-खंड पर पैराशूट समेत गिरा जवां पायलट सैनिक पहले तो भौंचक्का था, इस भ्रम में कि यह भू-खंड उसका अपना वाला है या पड़ोसी मुल्क द्वारा हथियाया हुआ! फ़िर जब उसने कुछ युवकों से पुष्टि करनी चाही, तो उनके जवाब सुन वह चौकन्ना हो गया। उसके ज़ख़्मी मुख से देशभक्ति के नारे समां में गूंज उठे।
"अभिनंदन मेरे अज़ीज़ शेर-ए-हिंद!" एक अजीब सी क़ैद से रिहा…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on March 3, 2019 at 8:11pm — 6 Comments
खिजाँ ने गुलशनों में दर्द यूँ बिखेरे हैं
चमन के बागबाँ के बच्चे आज भूखे हैं
**
बहार तुझ पे है दारोमदार अब सारा
कि फूल कितने चमन में ख़ुशी के खिलते हैं
**
अजीब शय है तरक़्क़ी भी लोग जिस के लिए
ज़मीर बेच के ईमान बेच देते हैं
**
क़ुबूल कर ली खुदा ने हर इक दुआ जब भी
दुआ में ग़ैर की खातिर ये हाथ उट्ठे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 3, 2019 at 7:30pm — 4 Comments
तपस्या
राशि को एकटक सास-श्वसुर की फोटो देख,रोमिल के झकझोरने पर,सपने से जागी,कहने लगी,‘मेरी तपस्या पूरी हुई.’
'मुझे पाकर,अब कौन-सी तपस्या?'प्रश्नभरी निगाहों से,देखकर बोला.
झेप गई,,फिर संभलते हुए बोली,'हां,लेकिन मम्मी-पापा की बहू,दिल से अपनाने की तपस्या.'
सुनकर,खुशी में,हाथ पकड़कर बोला,'पर,तुम्हें.... कैसे..........?'
चेहरे पर बनते-बिगड़ते भावों से,लगा,जैसे उसे स्वर्ग मिल गया,‘आज तड़के सुबह,फोन पर मम्मी ने पहली बार बात…
ContinueAdded by babitagupta on March 3, 2019 at 4:51pm — 8 Comments
मिर्ज़ा मासाब को रिटायर होने में आठ-दस साल ही बाक़ी थे। परिवार के प्रति सारे फ़र्ज़ अदा कर चुके थे । एक बढ़िया सा मकान हो जाये और हज अदा हो जाये; बस यही आरजू रह गई थी। पैसों का इंतज़ाम तो हो गया। अब इस सदी में मुल्क के ऐसे हालात में इस बस्ती का पुराना घर बेचकर नये ज़माने का मकान कब, कहां व कैसे बनवाएं या बना बनाया ख़रीदें; बस यही उनके दिमाग़ में था। इसी सिलसिले में एक चर्चित सोसाइटी में वे अज़ीज़ दोस्त महफ़ूज़ का फ्लैट देखने पहुंचे। मुआयना किया। जानकरियां जमा कीं। सकारात्मक व नकारात्मक…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on March 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
मखमली वो फूल नाज़ुक पत्तियाँ दिखती नहीं
आजकल खिड़की पे लोगों तितलियाँ दिखती नहीं।१।
साँझ होते माँ चौबारे पर जलाती थी दीया
तीज त्योहारों पे भी वो बातियाँ दिखती नहीं।२।
कह तो देते हैं सभी वो बेचती है देह पर
क्यों किसी को अनकही मजबूरियाँ दिखती नहीं।३।
अब तो काँटों पर जवानी का दिखे है ताब पर
रुख पे कलियों के चमन में शोखियाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2019 at 7:41pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 1, 2019 at 8:14pm — 6 Comments
मुख़्तलिफ़ हमने यहाँ सोच के पहलू देखे
अक़्ल हैरान है,ऐसे मियाँ जादू देखे
**
आदमी शह्र में हैरान परेशाँ देखा
जब कि जंगल में बिना ख़ौफ़ के आहू देखे
**
जब अमावस को गया चाँद मनाने छुट्टी
नूर फ़ैलाने को बेताब से जुगनू देखे
**
दिल में इंसान के अल्लाह नदारद देखा
और हैवान बने आज के साधू देखे
**
प्यार अहसास है,महसूस किया जाता है
कैसे मुमकिन है कोई चश्म से ख़ुशबू देखे
**
रोटियाँ थोक में मिलती हैं…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 1, 2019 at 7:00pm — 4 Comments
समाधान - लघुकथा -
युद्ध, युद्ध, युद्ध करो,
हमें केवल युद्ध चाहिये। दुश्मन को मसल दो। उसे कुचल दो। बरबाद कर दो।
ऐसी आवाज़ों से आसमान गूंज रहा था।
इन आवाजों को सुनकर नेता जी का मस्तिष्क फटा जा रहा था। इन आवाजों का स्वर और प्रवाह इतना तेज और उत्तेजित करने वाला था कि नेताजी अपने दैनिक क्रिया कलापों पर एकाग्र नहीं कर पा रहे थे।
दूसरी ओर उनकी आँखों के आगे पिछले युद्ध की विभीषिका स्पष्ट झलक रही थी।घायल सैनिकों की चीत्कार भरी पुकार और कराहने के दर्द भरे स्वर। उनके…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 1, 2019 at 5:00pm — 8 Comments
थी यही फूल की किस्मत कि बिखर जाना था,
ये कहाँ तय था कि जुल्फों में ठहर जाना था।
मौज ने चाहा जिधर मोड़ दिया कश्ती को,
"मुझको ये भी न था मालूम किधर जाना था"।
जो थे साहिल पे तमाशाई यही कहते थे,
डूबने वाले को अब तक तो उभर जाना था।
बज़्मे अग्यार में है जलवा नुमाई तेरी ,
इस तग़ाफ़ुल पे तेरे मुझको तो मर जाना था।
गर्द हालात की चहरे पे है,लेकिन तुझको,
आईना बन के मैं आया तो सँवर जाना था।
सुब्ह का भूला…
ContinueAdded by Ravi Shukla on March 1, 2019 at 4:30pm — 8 Comments
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