पद भार : २४ मात्रा
जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है
मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है
बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती
सागर की लहर मुझे समझाने लगती है
छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में
वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है
आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में
वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है
भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ
अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 16, 2015 at 7:30pm — 13 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२२
पड़े चंदन के तरु पर घोसला रखना
तो जड़ के पास भूरा नेवला रखना
न जिससे प्रेम हो तुमको, सदा उससे
जरा सा ही सही पर फासला रखना
बचा लाया वतन को रंगभेदों से
ख़ुदा अपना हमेशा साँवला रखना
नचाना विश्व हो गर ताल पर इनकी
विचारों को हमेशा खोखला रखना
अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 16, 2015 at 5:25pm — 20 Comments
प्रणाम
देश के वीरों को प्रणाम
उन शहीदों को सलाम
हमारे कल के लिए नव कोपलों का बलिदान
माताओं ने किये बेटे कुर्बान
बहिनों ने दिया सुहाग का दान
सदियों सदा याद रखेगा हिंदुस्तान
संतान
देश के लिए जान दे
देश भक्ति का ज्ञान दे
राष्ट्र भाषा को मान दे
माँ ऐसे संतान दे.
आंसू
आंसुओं को यों ही पीते रहे
होंठों…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 4:00pm — 18 Comments
मन भावन पैगाम सब ,रक्खे बड़े सम्हाल
आते जब भी सामने,कहते सारा हाल ॥
स्नेह पगे जो शब्द हैं,करते अब मनुहार
इक-इक पाती प्रेम की,कहती बात हजार ॥
आखर में जब तुम दिखो,भर आती है लाज
आवेदन ये प्रेम का ,भर जाते है आज ॥
बिना कहे सब बोलती,हृदय की ये बात
आमंत्रण देती रहीं ,सपनों की बारात ॥
पाती में मिलते रहे ,सूखे सुमन गुलाब
मन मंदिर ले बाचती, खुशबू भरी…
Added by kalpna mishra bajpai on March 16, 2015 at 12:00pm — 11 Comments
रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण ओ बी ओ नियमों के आलोक में प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है.
एडमिन
२०१५०३१९०७
Added by Naveen Mani Tripathi on March 16, 2015 at 11:30am — 13 Comments
तुमने किया छल
भावविभोर विह्वल
जल-थल मन
मन जल-थल !
हर प्रतिमा में ढूंढूँ
बिम्ब तुम्हारे..
अनंतपथ में ढूंढूँ
पदचिन्ह तुम्हारे..
अहा! रहते
तुम सम्मुख सदा..
करते अभिनय नयनों में...
नयनों से ओझल!
तुमने किया छल....
सांझ-सकारे जोहूँ
मै बाट तुम्हारा..
पर सामर्थ्य कहाँ
हृदय में,प्राण में?
भर सकूँ ओज तुम्हारा..
नित्य नए पात्र का
करता मै…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 16, 2015 at 10:35am — 18 Comments
पल पल मुझ से रूठा है
हर पल यूँ तो झूठा है
सच और झूठ का ताना बाना
जीवन का रूप अनूठा है
इक पल में वो अपने दीखे
दो पल में कई सपने दीखे
कुछ पल में सब बिखर गये
यूँ साथ हमारा छूटा है
क्या पल पल मुझसे रूठा है
या जग सारा ये झूठा है !
मैं दीया हूँ तू बाती है
दुनिया क्यूँ तुझे जलाती है
मुझ पे भी कालिख आती है
प्यार के झोंके जब
आग बुझाने आते हैं
बेदर्द नहीं सह पाते हैं
हाथ बढ़ा ढक लेते हैं
आग को और भड़काते…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 16, 2015 at 4:30am — 11 Comments
2122--2122--2122--212
इक यही सूरत बची है आज़्मा कर देखिये
दोस्ती अब दुश्मनों से भी निभाकर कर देखिये
आँख से रंगीन चश्में को हटाकर देखिये
जिंदगी के रंग थोड़ा पास आकर देखिये
रोज खुश रहने में दिल को लुत्फ़ मिलता है मगर
जायका बदले ज़रा सा ग़म भी खाकर देखिये
कल बड़ी मासूमियत से आईने ने ये कहा
हो सके तो आज मुझको मुस्कराकर देखिये
छोड़ कर इन ख़ामोशियों को चार दिन तन्हाँ कहीं
आसमां को भी कभी सर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 3:30am — 16 Comments
दिलॊं कॆ हौसले देखें घटाओं से ज़रा कह दॊ ।।
जलाये हैं चरागों को हवाओं से ज़रा कह दॊ ।। (1)
तुम्हॆं मॆरी इबादत की कसम है ऐ मिरे क़ातिल,
अभी टूटा नहीं हूं मैं ज़फ़ाओं से ज़रा कह दॊ।। (2)
घनी ज़ुल्फ़ॆं मुझॆ बांधॆं इरादा तॊड़ दॆं मॆरा,
नहीं पालॆं भरम क़ातिल अदाऒं सॆ ज़रा कह दॊ !! (3)
मिलूँगा मैं गरीबों की दुआ में रोज तुमको अब,
बुला लेंगी मुझे अपनीं वफाओं से ज़रा कह दॊ ।। (4)
शहर सारे हुये पत्थर दिलों में रंज है…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 16, 2015 at 12:30am — 7 Comments
222 222 2
बातो के लच्छे लाये
यारो दिन अच्छे लाये
भारत को फिर से तुमने
दिन में नक्षत्र दिखाये
संसार पसारे आँचल
तुमने बहु नाच नचाये
पहले नजरे की ऊंची
अब फिरते आँख चुराये
हम अपना दर्द सुनाते
तुम अपनी जाते गाये
दूरागत ढोल सुहाने
जब जाना तब पछताये
थे रंक, बनाया राजा
तुम हम पर ही गुर्राये
ईश्वर देखेगा तुमको
हम नत…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 9:00pm — 12 Comments
2222 1222 1222
लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||
तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,
तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||
माना होता खुदा को एक हमने तो ,
फिर घर न कोई किसी का जला होता ||
उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,
काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||
फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,
ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||
समझौता कर लिया हालात से…
ContinueAdded by Nazeel on March 15, 2015 at 8:00pm — 11 Comments
Added by Nirmal Nadeem on March 15, 2015 at 6:18pm — 16 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 15, 2015 at 3:59pm — 12 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 15, 2015 at 1:19pm — 10 Comments
रुख़सती पे उनकी आँखों में नमी अच्छी लगी
ज्यूं दूर बादलों को धरा की गमी अच्छी लगी
तबस्सुम देख के मचली लबों पे एक दूसरे के
पाक इरादों में छिपी उनकी कमी अच्छी लगी
असीम…
ContinueAdded by anand murthy on March 15, 2015 at 11:30am — 8 Comments
१२२२ १२२२ १२२
शिकायत हो न जाये आसमाँ से
अँधेरा अब उठा ले इस जहाँ से
अगर चुप आग है, तो कह धुआँ तू
शनासाई ये कैसी इस मकां से
तेरे कूचे के पत्थर से हसद है
शिकायत क्यूँ रहे तब कहकशाँ से
सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ
बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से
कभी थे फूल से रिश्ते मगर अब
तगाफ़ुल से हुये हैं वे गिराँ से
परिंदों के परों ने की बग़ावत
सवाल अब पूछ्ना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 10:00am — 25 Comments
1222 1222 1222 1222
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जहाँ में वक्त के माफिक हवायें भी बदलती हैं
नजर पर मत भरोसा कर निगाहें भी बदलती हैं
..
बहारों से लगाकर दिल अभी पगला गया है तू
खिजाँ से दोस्ती करले फिजायें भी बदलती हैं
..
लगे जो आज अपना सा पता क्या कब मुकर जाये
नये जब यार मिल जायें , दुआयें भी बदलती हैं
..
कभी चाँदी ,कभी सोना ,कभी नोटों,के बिस्तर पर
मुहब्बत तड-फडाती है ,वफायें भी बदलती हैं…
Added by umesh katara on March 15, 2015 at 9:30am — 16 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on March 15, 2015 at 8:51am — 8 Comments
2122 1212 22
रोज किसके यहाँ तू* जाता है,
राज अब कौन सा छुपाता है !!
है इमां साथ में अगर तेरे,
साथ वो दूर तक निभाता है !!
जब रहे साथ साथ हम दोनों
प्यार का गीत तब ही* भाता है !!
देखता हूँ अजीब से सपने,
नीद को कौन आ चुराता है !!
आज बनना सभी को* है टाटा,
ख्व़ाब बुनना तो सबको* आता है !!
शोक इतने नहीं किया करते,
बस यही जिंदगी का* नाता है…
ContinueAdded by Alok Mittal on March 14, 2015 at 4:00pm — 11 Comments
1222 1222 1222 1222
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सितारे चाँद सूरज तो समय से ही निकलते हैं
दियों की कमनसीबी से अँधेरे रोज छलते हैं
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किसी को देखकर गिरता सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो कहाँ गिरकर सभलते हैं
****
खुशी घर में उन्हीं से है खुदा की नेमतें वो तो
न डाँटा कर कभी उनको अगर बच्चे मचलते हैं
****
कहा है सच बुजुर्गों ने करें सब मनचली रूहें
किए बदनाम तन जाते कि कहकर ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2015 at 11:10am — 23 Comments
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