Added by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 7:04pm — 16 Comments
मुतकारिब मुसद्दस सालिम
१२२ १२२ १२२
अधूरा मिलन है हमारा
नहीं प्यार ऐसा गवारा I
मिले गर न हम इस जनम में
जनम साथ लेंगे दुबारा I
भटकता अकेला गगन में
विपथ एक टूटा सितारा I
समय की बड़ी बात होती
कहाँ आज जश्ने बहारा I
तपस्या सदृश मूक जीवन
सभी ने जतन से संवारा I
अभी से थका जीव-मांझी
बहुत दूर पर है किनारा I
कहाँ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 5:30pm — 18 Comments
हाथी के नेतृत्व में सभी जानवरों ने शाकाहार संघ बनाया। सबसे पहले लोमड़ी ने शाकाहार की कसम खायी और फिर उसने मांसाहारियों के सामने एक प्रदर्शन करने का सुझाव दिया, जिसे तुरंत ही मान लिया गया। लोमड़ी ने दस-दस जानवरों का समूह बना कर उन्हें एक क्रम में खड़ा किया। सबसे पहले दस हाथी, फिर भालू, बन्दर, बारहसिंघा, हिरण फिर खरगोशों का समूह और सबसे अंत में वो स्वयं थी। बड़े-बड़े पोस्टर लेकर जुलुस ने शाकाहार के पक्ष में नारे लगाते हुए जंगल के राजा शेर की मांद के अंदर तक पूरा चक्कर लगाया जैसे ही लोमड़ी और शेर की…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 2, 2015 at 3:30pm — 12 Comments
१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२ (सभी संभव कॉम्बिनेशन्स)
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हमें न ऐसे सताओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
ज़रा क़रीब तो आओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो. …
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 2:00pm — 26 Comments
२११२२ २११२२ २११२
प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
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प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
ख्वाब तो हो, सच्चा न सही मुबहम ही सही
लम्स तेरा जिसमें न मिले वो चीज़ ग़लत
आब हो या महताब हो या ज़म ज़म ही सही
मेरे सहन में आज उजाला , कुछ तो करो
धूप अगर हलकी है उजाला कम ही सही
कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी
काँटों लदी हो डाल खिले…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:25pm — 29 Comments
जल बहता है -
झरनें बनकर, लिए अपनी शुद्धता का बहाव
वन की गहराई को, पेड़, पौधों, बेलों की झूलन को लिए
जानी-अनजानी जड़ीबूटियों के चमत्कारों से समृद्ध होकर
निर्मलता में तैरते पत्थरों को कोमल स्पर्श से शालिग्राम बनाता हुआ
धरती का अमृत बनकर वनवासियों का, प्राणियों का विराम !
जल बहता है -
नदी बनकर, नालों का बोझ उठाती, कूड़ा घसीटती
मंद गति से बहती, अपने निज रंग पर चढी कालिमा को लिए
भटकती है गाँव-शहरों की सरहदों से छिल जाते अपने अस्तित्व को लेकर…
Added by Pankaj Trivedi on April 2, 2015 at 12:30pm — 15 Comments
1222 1222 1222
""""""""""""""""""""'"""""""'''"''''''
गजब ये रंग देखा है जमाने का।
सहारा है सभी को इक बहाने का।
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नजर के तीर से कर चाक दिल मेरा,
कहेगें हाल तो कह दो निशाने का।
*****
रही आदत खिलौना प्यार को समझा,
किया है खेल रोने औ रुलाने का।
*****
हमारा दर्द ही हमको सिखाया है,
बुरे हालात में, हँसने हँसाने का।
*****
मरा है क्यों उसीपे ऐ दिवाना दिल,
हिदायत दे गया जो छोड़ जाने का।
*****
तड़पते देख हैं-हैरान…
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 2, 2015 at 12:00pm — 11 Comments
1222 1222 1222 1222
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ये कैसी हलचलें नवयुग बता तेरी रवानी में
बचे भूगोल में नाले नदी किस्से कहानी में
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बनीं नित नीतियाँ ऐसी हुकूमत हो किसी की भी
नफा व्यापार में बढ़चढ़ रहे फाका किसानी में
****
दिलों का जोश ठंडा है, उमर कमसिन उतरते ही
बुढ़ापा हो गया हावी सभी पर धुर जवानी में
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जमाना और था जब प्यार आँसू पोंछ देता था
मगर अब अश्क मिलते हैं मुहब्बत की निशानी में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:00am — 12 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2015 at 11:00am — 16 Comments
२१२ २२१२ १२१२
मै तो बलिहारी,अमीर हो गया
इश्क़ में रब्बा फकीर हो गया
***
मेरे रांझे का मुझे पता नही
बिन देखे ही मै तो हीर हो गया
**
उसके जलवे यूँ सुने कमाल के
दिलको किस्सा उसका तीर हो गया
***
शिवशिवा घट-घट मुझे पिलाओ अब
तिश्न मै वो गंग नीर हो गया
**
उसको पहनूं धो सुखाऊँ रोज मै
लाज मेरी अब वो चीर हो गया
***
गाऊँ कलमा मै सुनाऊँ दर-ब-दर
‘’जान’’ज्यूँ मै कोई पीर हो…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 10:30am — 18 Comments
“ बेटा!! अभी दो महीने पहले ही तेरी इकलौती जवान बहन का तलाक हुआ है. जैसे तैसे आस-पड़ोस वालो का मुंह बंद हुआ और तू गैर समाज की लड़की से चोरी छुपे शादी कर घर ले आया. तुझे अपने माता-पिता के मान-सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं रहा..”
“ माँ! मैं पिछले चार-पांच साल से इस लड़की को प्यार करता हूँ, अब यह मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है. अगर शादी नहीं करता तो बेवफ़ा कहलाता..”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 10:23am — 14 Comments
चैन से रहते थे कभी
तीन कमरों की छत के साये में
मैं ,मेरे माँ-बाबूजी
मेरी पत्नि
मेरे बच्चे शामिल थे
एक 'हम ' शब्द में ।
धीरे धीँरे
'हम ' शब्द बिखर गया
मा-बाबूजी बाहर वाले
कमरे में भेज दिये गयेे
अब वो दोनों हो गये थे
' हम ' और माँ-बाबूजी
अब हम ' का विस्तार
मैं,मेरी पत्नि,मेरे बच्चों
तक सिमट गया था
माँ -बाबूजी 'और' हो चुके थे ।।
मेरा बेटा भी अब
बाल बच्चेदार हो गया हैे
'हम ' शब्द आतुर है
एक…
Added by umesh katara on April 2, 2015 at 9:38am — 22 Comments
गजल लिखने का प्रयास मात्र है, कृपया सुधारात्मक टिप्पणी से अनुग्रहीत करें
अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.
आश लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.
राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.
रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, राह…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:30am — 20 Comments
कभी तुम चीन जाओगे कभी जापान जाओगे ।।
नया रुतबा दिखाने को कभी ईरान जाओगे ।।(1)
गिरानी के तले दबकर मरे जनता तुम्हारा क्या,
विदेशों में मियाँ खाने मिलें पकवान जाओगे ।।(2)
पड़े ओले किसानों के मुक़द्दर में बनीं पर्ची,
जताने तुम रहम-खोरी चले खलिहान जाओगे ।।(3)
मिलेंगे कब हमें अच्छे दिनों की आस है भाई,
विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ।।(4)
हमारी बेवशी को तुम न समझोगे बड़े साहब,
ज़रा ख़ुद डूब कर देखो,हमें पहचान जाओगे ।।(5)…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 2, 2015 at 8:00am — 10 Comments
जब तुम गयी हो
तो दिल का भवंरा बेसुध
तेरे दिल के बंद दरवाज़े से
जा टकराया
और गिर पड़ा जमीन पर
होश ना रहा उसको !
जब जागा नींद से
तो बेवफ़ाई की चींटियों ने
था उसे घेरा हुआ
नोच नोच कर खा रहीं थी
मेरे दिल के नादान भंवरे को
घसीटते हुए ले जा रहीं थी
अपनी मांद में
तड़पा था बहुत
कोशिश भी की छुटने की
जालिमों ने मौका न दिया
सोचा.... लोग तो चार कांधों की
आरजू करते हैं
और मुझे चार नहीं
हज़ार कांधे नसीब हुए
और…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:10am — 17 Comments
चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................
जब छा जाएँगे रिश्तों के निपट अंधेरे
और थकन की धूल पाँव से सर तक बोलेगी
थकते थकते जब इक दिन चुक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................
जब जब बोले हैं , बोले हैं खामोशी से हम
और प्रति-उत्तर भी पाए हैं , वैसे ही हमने
मिलते मिलते मौन कहीं जब थक जाएँगे
तेरी बाहों में हम छुप…
ContinueAdded by ajay sharma on April 1, 2015 at 11:29pm — 7 Comments
ब्रह्मा बड़ी शांति से इंद्र की बात सुन रहे थे, "पूजनीय, धरती पर आर्यव्रत नामक स्थान सोने की चिड़िया कहलाता है। कई अविष्कार हुए हैं, वेद लिखे गए, महाकाव्य लिखे गए, कितने ही उत्तम शास्त्र भी लिखे गए। सभी नागरिक स्वस्थ, सुखी और संपन्न हैं। श्री कृष्ण ने वेदों का परिष्करण कर अमर-अजर आत्मा की अवधारणा तक दे दी है।"
“सत्य है, लेकिन ईर्ष्या और स्वार्थ के कारण आपसी फूट आत्मा की तरह ही रोग, दुःख और विपन्नता को अमर कर देगी।“ वाणी में भारीपन था|
(मौलिक और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 1, 2015 at 9:30pm — 9 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥
ले गई है फिर वहां ,जो छोड़ आया था शहर
है खुदा भी एक ,एक ही आसमां , एक ही ज़मीं
सरहदों पर किस लिए हमने मचाया है कहर
मारता आया है बरसों बाद भी अक्सर हमें ॥
घुल गया था जो दिलों में लकीरो का जहर
भूल कर भी भूल सकता हूँ भला कैसे उसे ,
वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर
वायदा करके नहीं आये अभी तक क्यों भला ,
यूँ अकेला बैठ…
Added by Nazeel on April 1, 2015 at 8:44pm — 16 Comments
1212 1122 1212 112/22
गई तो रंग बदलता ये शह्र छोड़ गई
घटा बहारों में ढलता ये शह्र छोड़ गई
सबा चमन से गुज़रते हुये महक लेकर
रविश-रविश* यूँ टहलता ये शह्र छोड़ गई *बाग़ के बीच की पगडण्डी
फ़िज़ा ए शह्र तलक आके यक-ब-यक आँधी
यूँ मस्तियों में उछलता ये शह्र छोड़ गई
तमाम रात भटकती वो तीरगी* आखिर *अँधेरा
पिघलती शम्अ पिघलता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2015 at 5:30pm — 20 Comments
मुतदारिक मुसद्दस सालिम
212 212 212
सो गया सो गया सो गया
चाँद आकाश में खो गया I
ढूंढते थे जिसे उम्र भर
लो यहीं था अभी तो गया I
प्यार का बीज मन में मेरे
कोई चुपके से आ बो गया I
नैन जबसे उलझ ये गये
चैन ना जाने क्या हो गया I
चोट खाया बहुत प्यार में
वो दिवाना अभी जो गया I
था सहारा बहुत प्यार से
दूर लेकिन चला वो गया…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 2:00pm — 20 Comments
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1970
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