121-22 121-22 121-22 121-22
ख़ुशी में तू है,है ग़म में तू ही,नज़र में तू, धड़कनों में तू है ।
मैं तेरे दामन का फूल हूँ,माँ मेरी रगों में तेरी ही बू है ।।
हरेक लम्हा सफ़र का मेरे ,भरा हुआ है उदासियों से ।
ये तेरी आँखों की रौशनी है, जो मुझमे चलने की आरज़ू है ।।
है तेरे क़दमों के नीचे जन्नत, ज़माना करता तेरी इबादत ।
तेरे ही रुतबे का देख चर्चा, माँ सारे आलम में चार सू है ।।
तमाम है रौनके जहाँ में ,जो बेकरारी नज़र में भर दें ।
मगर जो खाता है…
Added by मनोज अहसास on April 25, 2016 at 3:00pm — 9 Comments
चिन्तामग्न
तुमसे मिलने पर
और तुमसे न मिलने पर भी
काँपते हुए, डरे हुए
पिघलते हुए प्रश्न
व्यथाओं की उलझन के अंतर्वर्ती विस्तार में
दर्दीली रातों में द्वंद्व की आड़ी-टेड़ी…
ContinueAdded by vijay nikore on April 25, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on April 25, 2016 at 10:28am — 9 Comments
किस तरह का ये कहो नाता है
उनके बिन पल न रहा जाता है
लूट ले जाता है खुशियाँ सारी
उसका जाना न हमें भाता है
रात लाती है उम्मीदें लेकिन
दिन का सूरज हमें तड़पाता है
धूल हो जाते हैं अरमां सारे,
चैन इस दिल को नहीं आता है
रात आती है सितारे लेकर
चाँद रातों की नमी लाता है
मौलिक/अप्रकाशित.
Added by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
" क्यों बे तुझे कहा था ना चाय देके जल्दी आ जाना पर तू यहाँ टीवी देखते खड़ा है। वहां काम कौन करेगा तेरा बाप ? चल दूकान पे। " लडके पर झल्लाते हुए चायवाले ने कहा।
" बस एक ओवर देख के आता हूँ भैयाजी। आखरी ओवर है जीत-हार की बात है। " उत्सुकता से आईपीएल देख रहे लड़के ने कहा।
" अबे एक ओवर के बच्चे, वहाँ चार ओवर जितने गिलास जमा हो गए है, चल बोला ना। " चायवाले ने फिर चिल्लाते हुए कहा।
" हाँ हाँ भैयाजी चल रहा हूँ। और ये आऊट। येsssss मैच जीत गये भैयाजी। " ख़ुशी में झूमते हुए लड़का चिल्लाया और…
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on April 24, 2016 at 4:30pm — 4 Comments
212 212 212 212
चार दीवारें भी हों छतों के लिये
और क्या चाहिये मुफलिसों के लिये
महफिलें भूख की हो रहीं हैं ज़बां
है सियासत मगर रहबरों के लिये
अत्ड़ियाँ पेट की घुटनों से मिल गईं
अब कहाँ तक झुकें रहमतों के लिये
जिन दरख्तों तले पल रहा आदमी
प्यार की हो नमी उन जड़ों के लिये
लाख दौलत अकूबत है हासिल जिन्हें
वो तरसते मिले कहकहों के लिये
ठोकरें नफरतें झिड़कियों के सिवा
और…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
अपनी क्षमता से अधिक भारी दाना उठा कर धीरे-धीरे दीवार पर चढती एक चींटी को देख उसके साथ चल रही दूसरी चींटी चौंकी और उसने कहा, "इतना भारी दाना! तुम फिसल जाओगी|"
पहली चींटी कुछ क़दमों ही में हांफ चुकी थी, लेकिन उसने दृढ शब्दों में उत्तर दिया, "कल सभा में हमारे नेता हाथी ने कहा था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, चींटियों को भारी से भारी दाना उठाना चाहिये, तभी हमारी गरीबी खत्म होगी, हमारे सपने पूरे होंगे|"
दूसरी ने मुस्कुरा कर कहा, "लेकिन अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कोशिश…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 24, 2016 at 3:00pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२ आप पहले झोपडी तो इक बनाकर देखिये ख्वाब फिर महलों के भी दिल में सजा कर देखिये मैं नहीं हूँ तो हुआ क्या ये ग़ज़ल मेरी तो है मेरी गजलें भी कभी तो गुनगुना कर देखिये जिस तरफ देखोगे, तुमको बस नजर आयेंगे हम है मगर बस शर्त इतनी मुस्कुराकर देखिये है विरह के बाद में ही यार मिलने का मज़ा आग पहले ये विरह की खुद लगा कर देखिये चीज़ मय अच्छी… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2016 at 2:00pm — 13 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २
----------------
जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है
जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है
केवल घोटाले करना ही भ्रष्टाचार नहीं
भ्रष्ट बहुत वो भी है जो नफ़रत फैलाता है
कुछ तो बात यकीनन है काग़ज़ की कश्ती में
दरिया छोड़ो इससे सागर तक घबराता है
भूख अन्न की, तन की, मन की फिर भी बुझ जाती
धन की भूख जिसे लगती सबकुछ खा जाता है
करने वाले की छेनी से पर्वत कट जाता
शोर मचाने वाला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2016 at 1:38pm — 8 Comments
अगर मैं मर जाऊँ, प्रियतमा मत रोना तुम।
स्वर्ग लोग की तभी, घण्टियाँ सुन पाओगी।
अधम पतित संसार, को देना सूचना तुम।।
एक रूह इस जगत, अपावन से अब चल दी।।
तू ये रचना पढ़े, रचयिता याद न आये।
चाहत तो थी कई, किन्तु चाहत है ये अब।
दीवाना ये मनस, नगर में रह ना पाये।।
क्योंकि यदि सोचोगे, शोक में डूबोगे तब।।
जबकि माटी होकर, गीत ये लिखता हूँ मैं।
कहीं प्रेम का भाव, न जग जाये फिर तुझमें।
हो ना तू बदनाम, प्रियतमा डरता हूँ मैं।
मेरा नाम तलाश,…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 24, 2016 at 9:00am — 2 Comments
लघुकथा : " बेटी का भाग्य "
" आज कुछ परेशान से दिख रहे हो, क्या बात है ? चाय बना के लाऊँ ?" पत्नी ने पूछा...
" हाँ ! पर थोड़ी कड़क। " पति ने कहा...
कुछ देर बाद...
" ये लो तुम्हारी कड़क चाय, अब बताओ बात क्या है ? " पत्नी ने चाय का प्याला देते हुए कहा...
" आज पुरुषोत्तम जी मिले थे, उनकी बेटी दो दिनों से लापता है। कोचिंग गई थी पर लौटी नही उसके बाद से। " पति ने चाय का घूँट लेते हुए कहा...
" अरे... तो कोचिंग में पता किया के नही उन्होंने ? " पत्नी ने हैरान होते हुए…
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on April 24, 2016 at 2:09am — 6 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 23, 2016 at 11:08am — 4 Comments
1222 -1222-1222-1222
उन्हें ढूंढे मेरी ऑंखें बनी बीमार बरसों से
निकलता ही नहीं दिल से मेरा दिलदार बरसों से
नहीं काबू रहा ये दिल, तेरी उल्फ़त का जादू है
धड़कता है मचल कर ये मेरी सरकार बरसों से
किया है वायदा उसने कि अच्छे दिन मैं लाऊंगा
तभी विश्वास से जनता है बैठी यार बरसों से
नहीं झुकना नहीं गिरना कसम तुमको है भारत की
हिमालय आज है मांगे दिया जो प्यार बरसों से
वही धोखा है फितरत में कि तौबाजिस से की…
ContinueAdded by munish tanha on April 23, 2016 at 10:30am — 3 Comments
Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on April 22, 2016 at 11:44am — 6 Comments
मेरे महबूब सपनों से हक़ीक़त बन तू आ जाए
मेरा उजड़ा हुवॉ जीवन मेरी जाँ फिर सवर जाए
मुझे अहसास अब होने लगा है इश्क़ में तेरे
कहीं ना ज़िन्दगी तेरी ही गलियों में गुज़र जाए
जिसे हो जुस्तजू तेरी वो बेचारा किधर जाए
जिए वो ज़िंदगी अपनी या आहें भर के मर जाए
मैं अक्सर आह भरता हूँ तेरे दीदार के ख़ातिर
झलक तेरी मिले गर तो मेरा जीवन सँवर जाए
तेरी गलियों की मिट्टी भी मुझे जन्नत से प्यारी है
चले गर साथ हम दोनों मुहब्बत भी निखर…
Added by Amit Tripathi Azaad on April 22, 2016 at 10:03am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
बना कर इक बड़ी लाइन कई बीमार बैठे हैं,
उन्हींके साथ में कितने यहां एमआर बैठे हैं।
न जाने सेल को किसकी नज़र ये लग गई यारब,
रिटेलर सब हमारी कोशिशों के पार बैठे हैं ।
ये जितने डाक्टर है सब मुझे जल्लाद लगते है,
मरीजो को दवा क्या दें लिए तलवार बैठे हैं।
मरीजे इश्क हैं सारे इन्हें मतलब नज़ारे से,
लिए आँखों में कब से हसरते दीदार बैठे हैं।
दुपहिया धूप में रक्खा उठा कर चल पड़े थे वो,
बयाँ के बाद की तकलीफ…
Added by Ravi Shukla on April 21, 2016 at 10:30pm — 16 Comments
2122--1212--22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 21, 2016 at 8:00pm — 9 Comments
Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 7 Comments
Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |