Added by जयनित कुमार मेहता on April 19, 2017 at 5:49pm — 8 Comments
तू गीत कोई "मल्हार"सा गा दे
जो मुझको तेरा मीत बना दे,
मुखड़े पर स्वर-संगीत उठा कर
स्थाई पर जैसे सम आकर,
तू गीत कोई "मल्हार" सा गा दे
कुछ एक नयी सी रीत बना दे,
फिर एक नई बंदिश तू लिख दे
जो दिल आकर घर सा कर दे,
मुझको अपनी मीत बना दे
मुझको अपनी जीत बता दे,
तू कुछ ऐसा गीत बना दे
जो तेरी मेरी प्रीत बता दे,
तू गीत कोई "मल्हार"सा गा दे
जो मुझको तेरा मीत बना दे,
तू गीत कोई "मल्हार"सा गा दे
जो…
ContinueAdded by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 19, 2017 at 11:41am — 2 Comments
नख़्ल-ए-दिल रेगज़ार करना था,
इक तसव्वुर ग़ुबार करना था.
.
तेरी मर्ज़ी!!! ये ज़ह’न दिल से कहे,
बस तुझे होशियार करना था.
.
वो क़यामत के बाद आये थे
हम को और इंतिज़ार करना था.
.
हाल-ए-दिल ख़ाक छुपता चेहरे से
जिस को सब इश्तेहार करना था.
.
लुत्फ़ दिल को मिला न ख़ंजर को
कम से कम आर-पार करना था.
.
चंद यादें जो दफ़’न करनी थीं
अपने दिल को मज़ार करना था.
.
बारहा दुश्मनी!! अरे नादाँ .....
इश्क़ भी बार बार करना…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2017 at 8:40pm — 13 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 18, 2017 at 8:17pm — 7 Comments
1-
पीने में आनंद है, मिथ्या है संसार।
पीने से बढ़ता सदा, आपस में है प्यार।।
आपस में है प्यार,भेद सारे मिट जाते।
टकराते जब जाम,स्वर्ग का सुख तब पाते।।
मदिरा के बिन यार,मजा क्या है जीने में।
जीवन है दिन चार, हर्ज फिर क्या पीने में।।
2-
किसने पाई आजतक, मद्यपान से शांति।
पीने वाला पालता, मन में फिर क्यों भ्रांति।।
मन में फिर क्यों भ्रांति'शांति देगी ये हाला।
खोकर अपना होश,बने फिर क्यों मतवाला।।
हुआ नशे से मुक्त, विचारा मन में जिसने।…
Added by Hariom Shrivastava on April 18, 2017 at 6:00pm — 8 Comments
Added by Arpana Sharma on April 18, 2017 at 5:00pm — 14 Comments
दो कवितायें
दोस्त
जब मेरे पास दोस्त थे
तब दोस्तों के पास कद हद पद नहीं थे
और जब दोस्तों के पास पद हद कद थे
मेरे पास दोस्त नहीं
धन
जब मेरे पास धन नहीं था
तब समझते थे सब मुझे बदहाल
पर मैं खुश था , बहुत खुश था
और जब मेरे पास है अकूत सम्पति
दुनिया मुझे खुशहाल समझती है
और मैं तडपता हूँ बिस्तर पर
नींद के सुकून से भरे एक झोंके के…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on April 18, 2017 at 3:10pm — 10 Comments
12122/12122
इक अजनबी दिल चुरा रहा था।
करीब मुझ को' बुला रहा था।
वो' कह रहा था बुझाए'गा शम्स,
मगर दिये भी जला रहा था।
वो' ज़ख़्म दिल के छुपा के दिल में,
न जाने' क्यों मुस्करा रहा था।
सबक़ मुहब्बत का' हम से' पढ़ कर,
हमें मुहब्बत सिखा रहा था।
बुरा है' टाइम तो' चुप है' "रोहित"।
नहीं तो' ये आईना रहा था।
रोहिताश्व मिश्रा, फ़र्रुखाबाद
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by रोहिताश्व मिश्रा on April 18, 2017 at 1:30pm — 15 Comments
न बैठो इतने करीब मेरे कहीं मेरा दिल मचल न जाए
अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।
जो बर्फ़ अरमानों पर जमी है तेरी तपिश से पिघल न जाए
पिघल गई गर तो मेरी आँखों की झील भर के उछल न जाए ।।
बड़ा ही शातिर ये वक़्त है फिर नई कोई चाल चल न जाए
मिलन से पहले घड़ी विरह की मिलन का लम्हा निगल न जाए ।।
तेरी छुअन से हुई वो जुम्बिश की दिल की धड़कन बिखर गई है
न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए…
ContinueAdded by Gurpreet Singh jammu on April 18, 2017 at 10:50am — 14 Comments
Added by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:30am — 11 Comments
तेरी आँखों ने
दीवाना बना दिया मुझको
में क्या था और
ये क्या बना दिया मुझको
क्या पता है हाल-ए-खबर तुझे
जो दे गयी है बेचैनी मुझे
क्यों समझते नही ख़ामोशी मेरी
क्या पता नहीं तुम्हें कहानी मेरी
कहते हैं सब ये शराफत है तेरी
पर कैसे बताऊँ तू ही तो मंज़िल है मेरी
सुनो ना जिसे सब लोग जिंदगी कहते हैं
तुम बिन उसे मैं अब क्या कहूँ
ये इश्क क्या है मालूम नहीं
पर इक दर्द सा सीने में है
दीवाना हूँ सादगी का तेरी
सुन ले आरजू इस दिल…
Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 17, 2017 at 8:17pm — 6 Comments
समीक्षार्थ
मनहरण घनाक्षरी ....(एक प्रयास)
***
आशा का प्रकाश कर
बांस को तराश कर
बांसुरी के सुर संग
गीत बन जाइए
.
हौसले पकड़ कर
आँधियाँ पछाड़ कर
बहती नदी सी इक
रीत बन जाइए
.
मछली पे आँख रहे
धरती पे पाँव रहे
आसमान छू के जरा
जीत बन जाइए
.
बहुत जीया है इस
दुनिया की सोच कर
अब अपने भी जरा
मीत बन…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on April 17, 2017 at 6:30pm — 14 Comments
मेरे भीतर की कविता
अक्सर छटपटाती है
शब्दों के अंकुर
भावों की विनीत ज़मीन पर
अंकुरित होना चाहते हैं
ना जाने क्यों वे
अर्थ नहीं उपजा पाते हैं
मेरे भीतर की कविता फिर भी
जाकर संवाद करती है
सड़क किनारे बैठे
उस मोची पर जो
फटे जूते सी रहा है
बंगले की उस मेम साहिबा पर
जो अपना बचा फास्ट फुड
डस्टबिन में फेंककर
ज़ोर से गेट बंद करके
अंदर चली जाती है
लेकिन
अनुभूतियाँ ज़ोर मारती है
पछाड़े खाकर गिर जाती है
हृदय…
Added by Mohammed Arif on April 17, 2017 at 5:30pm — 12 Comments
प्रेम कहानी
मेरी भी है प्रेम कहानी,जिसमे राजा और है रानी|
मिल कर खोला दिल का राज ,नदी किनारे की है बात|
कहा तुम्हारा साथ चाहिए ,प्यार भरे ज़ज्बात चाहिए|
दिल की बाते देना बोल ,नीम नहीं मिश्री के घोल|
मृग नैनी सु अधरों वाली ,तेरे बिना मै खाली खाली|
मेरी भी है प्रेम कहानी ,जिसमे राजा और है रानी|
लड़की का जवाब
यही बात तो सब है कहते ,साथ हमारे कभी न रहते\
कभी यहाँ है कभी वहाँ है ,रब ही जाने कहा कहा है|
कभी है राधा कभी…
ContinueAdded by Pankaj sagar on April 17, 2017 at 12:53pm — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 16, 2017 at 10:00pm — 16 Comments
Added by Arpana Sharma on April 16, 2017 at 7:41pm — 11 Comments
आदतन हर रोज़ सवेरे-सवेरे
बुझते विश्वास की गहरी पीर
मौन विवशता के आवेशों में
बहता मन में निर्झर अधीर
आस-पास लौट आता है उदास
अकस्मात अनजाने तीखा गहरा
गहरे विक्षोभों का सांवला
देहहीन दर्दीला उभार
ज़िन्दगी के अब ढहे हुए बुर्जों में
विद्रोही भावों के अवशेष धुओं में
है फिर वही, फिर वही असहनीय
अजीब बदनसीब अनथक तलाश
नियति के नियामक चक्रव्यूहों में
पुरानी पड़ गई बिखरती लकीरों…
ContinueAdded by vijay nikore on April 16, 2017 at 5:28pm — 9 Comments
Added by बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' on April 16, 2017 at 8:45am — 5 Comments
2122/1212/22
.
जब नज़र से उतर गया कोई,
यूँ लगा मुझ में मर गया कोई.
.
इल्म वालों की छाँव जब भी मिली
मेरे अंदर सँवर गया कोई.
.
उन के हाथों रची हिना का रँग
मेरी आँखों में भर गया कोई.
.
बेवफ़ाई!! ये लफ्ज़ ठीक नहीं,
यूँ कहें!!! बस,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2017 at 8:00am — 16 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on April 15, 2017 at 11:56pm — 5 Comments
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